Bollywood : अप्रैल माह के चौथे सप्ताह यानी कि 25 अप्रैल को प्रदर्शित ‘फुले’ और ‘ग्राउंड जीरो’ फिल्मों को जिस तरह से दर्शकों ने ठुकराया है, उस से एक बात साफ हो जाती है कि अब भारत बदल चुका है. यह ‘नया भारत’ है. इस नए भारत की जनता को धर्म, जाति या देशभक्ति का झुनझुना पकड़ा कर फुसलाया या मूर्ख नहीं बनाया जा सकता. दूसरी बात यह भी साफ हो गई कि अब दर्शक फिल्मकारों की अपनी फिल्म के रिलीज से पहले पैदा की जाने वाली कंट्रोवर्सी के झांसे में आने से रहा.
दलित वर्ग के मसीहा कहे जाने वाले महात्मा ज्योति राव फुले और उन की पत्नी सावित्री फुले के जीवन पर फिल्मकार अनंत नारायण महादेवन ने फिल्म ‘फुले’ का निर्माण किया, जिसे 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिराव फुले की जन्म जयंती के दिन रिलीज किया जाना था, मगर अचानक इस फिल्म की रिलीज टाल कर 25 अप्रैल कर दी गई और फिल्मकार ने बयान जारी किया कि पुणे, महाराष्ट् के ब्राम्हण संगठनों के विरोध और सैंसर बोर्ड की आपत्ति के चलते फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज नही हो पा रही है. उस के बाद सोशल मीडिया और यूट्यूब पर फिल्म ‘फुले’ को ले कर जबरदस्त विवाद पैदा किया गया.
12 अप्रैल को पुणे से हिंदू ब्राम्हण संगठन’ के अध्यक्ष दवे ने कुछ टीवी चैनलों से बातचीत करते हुए कहा -‘‘हम ने फिल्म ‘फुले’ के रिलीज का विरोध नहीं किया. हम ने सिर्फ फिल्म निर्माता से मांग की थी कि वह फिल्म में ब्राम्हणों के योगदान को भी दिखाएं.’’ लेकिन पूरे 15 दिन तक अनंत नारायण महादेवन तमाम चैनलों व सोशल मीडिया पर बरसाती आंसू बहाते हुए फिल्म को ले कर विवाद को गर्म हवा देते रहे.
सैंसर बोर्ड द्वारा जिन दृश्यों को काटने की बात की जा रही थी, वह सभी दृश्य फिल्म में मौजूद हैं. इस तरह की गलत कंट्रोवर्सी पैदा कर निर्माता को कुछ नहीं मिला, फिल्म ‘फुले’ को नुकसान ही हुआ. और समाज में वैमनस्यता पैदा करने का ही प्रयास किया गया. इतना ही नहीं यह बात भी साबित हो गई कि आम जनता समझदार है, और अनुराग कश्यप जैसे लोगों द्वारा विवादास्पद बयानों पर वह यकीन नहीं करते.
सच तो यह है कि फिल्म ‘फुले’ जिस तरह से बनी है, उस तरह की फिल्मो को सिर्फ सरकारी पुरस्कार मिलते हैं, दर्शक नहीं. 25 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘फुले’ ने पूरे 7 दिन के अंदर केवल दो करोड़ रूपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र किए. इन में से निर्माता की जेब में कुछ नहीं आएगा, बल्कि निर्माता को थिएटर ओनरों को अपनी जेब से कुछ धन राशि देनी है.
इस फिल्म के निर्देशक अनंत नारायण महादेवन को भी पता था कि इस तरह के विषयों पर बनी फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते. दूसरी बात अभिनेता प्रतीक गांधी को लोग केवल ओटीटी पर देखना पसंद करते हैं, उन्हें सिनेमा की टिकट खरीद कर देखना कोई नहीं चाहता. प्रतीक गांधी की अभी तक कमर्शियल वैल्यू नहीं बनी है और प्रतीक गांधी हवा में तैरते रहते हैं. वह खुद अपने आप को देश का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता मानते हैं, मगर कमर्शियल फिल्म का दर्शक ऐसा नहीं मानता.
फिल्म ‘फुले’ में दिखाया गया कि ज्योति राव फुले के पास 35 एकड़ जमीन है. वह अंग्रेजों के साथ मिल कर काम कर रहे हैं, इस वजह से ज्योति राव फुले के प्रति लोगों की कोई हमदर्दी नहीं उपजती. वह फिल्म में व्यवसायी ज्यादा नजर आते हैं. ब्राम्हणों की जमीन पर उन की मदद से स्कूल खोल देना या ब्राम्हणों से पैसे ले कर किताब लिख देना समाज सुधार नहीं कहलाता.
25 अप्रैल को ही रिलीज हुई इमरान हाशमी की फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ महा डिजास्टार साबित हुई. 50 करोड़ रूपए की लागत वाली इस फिल्म ने 7 दिन में केवल 7 करोड़ रुपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र किए. इस में से निर्माता की जेब में जाएंगे महज ढाई करोड़ रूपए. फिल्म की शूटिंग के दौरान पूरी यूनिट के चाय पीने और भोजन का ही बिल ढाई करोड़ रुपए हो गया होगा.
पहले सप्ताह के बौक्स औफिस आंकड़ें के आधार पर कहा जा सकता है कि फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ का लाइफटाइम कलैक्शन महज 10 करोड़ रुपए ही रहेगा. फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ की इस दुर्गति के लिए इस के निर्देशक और अभिनेता इमरान हाशमी सिरे से जिम्मेदार हैं. कहानी कश्मीर में तैनात रहे बीएसएफ औफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे के जीवन की है, जिन्होंने 2003 में आतंकवादी गाजी बाबा को मौत की नींद सुलाया था.
अब बीएसएफ औफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे के किरदार में इमरान हाशमी कहीं से फिट नहीं बैठते. इमरान हाशमी की ईमेज एक बेहतरीन अभिनेता की बजाय ‘सीरियल किसर’ की ही रही है. फिल्म के निर्देशक तेजस प्रभा विजय देउस्कर की 15 साल में दो मराठी व एक हिंदी के बाद ‘ग्राउंड जीरो’ चौथी और हिंदी में दूसरी फिल्म है. उन की अबतक एक भी फिल्म सफल नहीं रही है, मगर तेजस प्रभा विजय देउस्कर को अहम है कि उन से बेहतर फिल्म कोई बना नहीं सकता. वह फिल्म के रिलीज से पहले फिल्म के प्रमोशन के लिए सिटी टूर करने में बिजी थे. उन के पास पत्रकारों से बात करने का वक्त नहीं था. लेकिन फिल्म के फ्लौप होने के चार दिन बाद उन्हें पत्रकारों की याद आने लगी. फिल्म निर्देशक तेजस प्रभा विजय देउस्कर को गंभीरता से सोचना चाहिए कि अगर उन से ज्यादा बेहतरीन फिल्म कोई बना नहीं सकता, तो फिर क्या वजह रही कि 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ और 25 अप्रैल को ‘ग्राउंड जीरो’ रिलीज हुई,फिर भी लोगों ने इसे नहीं देखा. फिल्मकार भूल गए कि आजकल लोग अपनी गाढ़ी कमाई को बेफजूल खर्च नहीं करते.
अप्रैल माह के चौथे सप्ताह यानी कि 25 अप्रैल को ही राज कुमार संतोषी निर्देशित व आमीर खान के अभिनय से सजी 1994 में रिलीज हो चुकी फिल्म ‘अंदाज अपनाअपना’ को ‘रीरिलीज’ किया गया.
1994 में भी यह फिल्म बुरी तरह से फ्लौप हुई थी. रीरिलीज होने पर 7 दिन में इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर केवल एक करोड़ रूपए ही एकत्र किए. अब फिल्मकारों को कौन समझाए कि काठ की हांडी बारबार नहीं चढ़ती.