फैशन उद्योग, बौलीवुड फिल्मों से हमेशा काफी प्रभावित रहा है. हमारे देश के लोग अपने पसंदीदा अभिनेता व अभिनेत्रियों के प्रति आकर्षित होते हैं और चाहते हैं कि वे वही पहनें, जो उन के फैशन आइकन ने उस विशेष फिल्म में पहना है. इसे बनाने वाले कौस्ट्यूम डिजाइनर होते हैं जो चरित्र के अनुसार डिजाइन बनाते हैं जो देखने में सुंदर और आकर्षक लगता है.
बौलीवुड उद्योग की शुरुआत से ही फैशन ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और दोनों उद्योग एकसाथ नई ऊंचाइयों पर पहुंचे. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ही ऐसी जगह है जो बदलते फैशन को स्वीकार करती है. भारतीय फिल्मों में भव्य और विदेशी वेशभूषा, सेट, रंग संयोजन, आभूषण आदि की भरमार होती है. इस भव्यता और स्टाइलिश तत्त्वों को देख कर दर्शक अनायास ही आकर्षित होते हैं.
फिल्मों का फैशन था पहली पसंद
80 का दशक फिल्म इंडस्ट्री के फैशन का सब से खराब दौर था. उस समय के फैशन ट्रैंड में पैडेड शोल्डर, मैटेलिक सबकुछ और चमकदार, बड़े एक्सैसरीज शामिल थे, जिसे धीरेधीरे बदला गया और 90 के दशक की भारतीय फिल्मों ने फैशन पर जोर दिया, जिस में एथनिक कपड़ों में लंबी आस्तीन, पारदर्शी दुपट्टे और छोटे ब्लाउज आदि का क्रेज था, जो बाद में क्रौप टौप, शौर्ट्स, औफशोल्डर, हौल्टर नेक और डैनिम ओवरऔल के रूप में फिल्मों में दिखने लगी, क्योंकि फैशन अधिक संयमित होने लगा. इस के बाद स्पोर्ट्सवियर एक नया फैशन था, जिसे फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ और ‘दिल तो पागल है’ फिल्मों ने लोकप्रिय बनाया और तब से इसे लोग पहनने लगे हैं.
फैशन और मार्केटिंग
फिल्म और उस की मार्केटिंग में भी फैशन का महत्त्व देखा गया है. यही वजह है कि कुछ फिल्मों का रीमेक बनाने का निर्णय भी निर्देशकों ने लिया. मसलन, देवदास का कई बार रीमेक समय के अनुसार और दर्शकों को नए फैशन से परिचय करवाने के लिए किया गया और आज भी कई पुरानी फिल्मों का रीमेक बनाया जा रहा है, जिस में आधुनिक पहनावे को महत्त्व देते हुए फिल्में बनाई जा रही हैं.
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