भारत में जब से सिनेमा बनना शुरू हुआ तब से कहा जाता रहा है कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है. समाज में जो कुछ घटित होता है उसे ही फिल्मकार अपने सिनेमा में पेश करता है. मगर धीरेधीरे सिनेमा समाज का प्रतिबिंब होने के बजाय कब समाज पर अपना प्रभाव डालने लगा, यह किसी की समझ में न आया.
इतिहास गवाह है कि 70 व 80 के दशकों में समाज में वही पोशाकें पहनी जाती थीं जो फिल्मों में हीरो पहनता था. यहां तक कि लोग हीरो की हेयरस्टाइल तक कौपी करने लगे थे.
70 के दशक में शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी है. यदि यह कहा जाए कि अब सिनेमा की गिरफ्त में पूरा समाज आ चुका है तो कुछ भी गलत न होगा. अब तो भारतीय सिनेमा, खासकर हिंदी सिनेमा, जिस तरह की हिंसा, जिस तरह के ऐक्शन दृश्य परोस रहा है उस के चलते कहा जा रहा है कि सिनेमा के ही चलते अब हमें अपने चारों तरफ हिंसात्मक समाज नजर आता है.
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में सिनेमा व समाज का संबंध लगभग एकजैसा बना हुआ है. हौलीवुड फिल्में हिंसा से सराबोर रहती हैं. भारतीय बच्चे भी हौलीवुड की सुपर हीरो व ऐक्शन प्रधान फिल्में देखने के लिए लालायित रहते हैं. हौलीवुड की इन ऐक्शन फिल्मों ने पूरे विश्व के समाज पर बहुत बुरा असर डाला है.
अमेरिका का लगभग हर बच्चा हौलीवुड की ऐक्शन प्रधान फिल्मों से प्रेरित हो कर हिंसक बनता जा रहा है. यही वजह है कि पिछले दिनों अमेरिका में 6 साल के लड़के ने अपनी टीचर की हत्या करने का प्रयास किया पर टीचर की हिम्मत नहीं हुई कि वह उस बालक की शिकायत स्कूल के प्रिंसिपल से कर सके. कुछ ही दिनों बाद वही लड़का स्कूल में गन ले कर पहुंच गया और 2 बच्चों पर गोलियां बरसा दीं. फिलहाल लड़का जेल पहुंच गया.
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