लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिड़ला को चुने जाने से यह साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी ने भले ही चुनावी मैदान पर बाहरी लोगों को महत्व दें पर सरकार चलाने के लिये बने संवैधानिक पदों पर संगठन के लोगों को ही तवज्जों देती है.

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिड़ला ऐसा नाम है जिसके बारे में किसी को कोई अंदाजा नहीं  था. इसी तरह जब भाजपा ने जब रामनाथ कोविंद का नाम सामने लाया था तब हर किसी को आश्चर्य हुआ था. ओम बिड़ला को लोकसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है यह किसी को उम्मीद भी नहीं थी.

संगठन में भी ऐसे नेताओं का चुनाव होता है जिनकों सगठन के साथ ही साथ जनता के बीच काम करने का अनुभव होता है. ओम बिड़ला भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा में 6 साल तक पदाधिकारी रहे. इसके बाद राजस्थान के कोटा से 3 बार विधायक और 2 बार सांसद चुने गये.राजनीति के साथ वह समाजसेवा में भी काम करते रहे. पर्यावरण के मुददे पर काम करने के लिये उनके पास लंबा अनुभव है. आम नेताओं के मुकाबले वे बहुत मधुर बोलने वाले में से है. लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ऐसे लोग ज्यादा सफल होते हैं.

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भाजपा और आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की कार्यप्रणाली की समझ रखने वाले लोग मानते  हैं कि सत्ता के महत्वपूर्ण पदों पर संगठन और विचारधारा से जुड़े लोगों को महत्व दिया जाता है. इसका लाभ यह होता है कि पार्टी और संगठन की विचारधारा के बारे में उसको पहले से पता होता है. किसी तरह के विवाद की गुजाइंश खत्म हो जाती है. विचारधारा में आपसी टकराव होने से सरकार की इमेज अच्छी नहीं होती है.

ओम बिड़ला का स्वभाव मूलतः बहुत मृदुभाषी और छवि साफसुथरी है. संगठन, सरकार और जनता के बीच काम करने का लंबा अनुभव है. ऐसे में वह लोकसभा अध्यक्ष के रूप में अच्छा काम कर सकते हैं. लोकसभा अध्यक्ष विपक्ष को ऐसे अवसर नहीं देता कि वह सदन का बहिष्कार करने का बहाना तलाश सके. विपक्ष मौके तलाश करता रहता है कि हल्ला करके सदन का बहिष्कार कर सके. ऐसे में ओम बिड़ला  काफी सफल साबित हो सकते हैं.

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