“क्या वह राहुल गांधी को इस बात का सुबूत दे पाएंगी कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी उन के पिता हैं?”

यह सवाल अकसर विवादित बयान देने भाजपा नेता विनय कटियार ने संप्रग अध्यक्ष से एक रैली में की.

इस से पहले कटियार ने प्रियंका गांधी पर भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.

“नरेंद्र मोदी ने पैंट और पैजामा पहनना भी नहीं सीखा था तब पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने देश की फौज, नौसेना और वायुसेना बनाई थी…”

यह कहना है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ का.

छींटाकशी का दौर शुरू

नेताओं के बिगड़े बोलों और बेतुके बयानों के लगातार मीडिया में सुर्खियां बनने पर लोगों को एकबारगी फिर यह एहसास हो गया कि चुनावी मौसम आ गया है और इस मौसम में गालियां, एकदूसरे को नीचा दिखाना और छींटाकशी का दौर शुरू होना नेताओं की फितरत है.

वैसे, हमारे देश के कुछ नेता चुनावी मौसम में जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और उन की जबान करेले की तरह कड़वी हो जाती है.

चुनावी समय में कोई धर्म के नाम पर वोट मांगता है तो कोई जाति के नाम पर. इस दौरान सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का माहौल भी खूब बनाया जाता है.

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सिद्धू भी पीछे नहीं

क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू ने पिछले दिनों चुनावी रैली में बोलते हुए कहा,”अल्पसंख्यको, समय आ गया है कि आप वोट की ताकत दिखाओ और उन्हें हराओ जो आप का दुश्मन है. इस जगह आप की आबादी ज्यादा है, इसलिए यह आप के हाथ में है कि किसे बहुमत से जीता सकते हो…”

यह क्या बोल गए आजम खान सपा नेता आजम खान के कथित बोल ने तो मर्यादा की सारी हदें ही लांघ दीं.

आजम खान के ‘अंडरवियर’ वाले विवादित बयान के बाद देश में खासा बवाल मच गया.

हालांकि इस शर्मनाक बयान के बाद निर्वाचन आयोग ने भी कुछ समय के लिए उन के चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी, तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी आजम खान को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है, बावजूद खान को अपने बयान पर कोई खेद नहीं है.

घटनाक्रम पर आजम खान के बेटे ने अपने पिता का बचाव करते हुए मीडिया से बातचीत में कहा,”आजम खान पर इसलिए काररवाई की गई क्योंकि वह एक मुसलमान हैं.”

उधर आजम खान ने कहा,”मेरे बयान को तोङमरोङ कर पेश किया गया. मैं ने अपने बयान में किसी का नाम नहीं लिया.”

देर से जागा आयोग

आजम खान के अलावा चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और बसपा सुप्रीमो व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के विवादित बयानों को ले कर भी उन पर कुछ समय के लिए उन के चुनाव प्रचार करने पर प्रतिबंध की घोषणा की.मगर आश्चर्य तो यह है कि इन में से किसी ने भी अपने विवादित बोलों पर न तो खेद जताया और न ही माफी मांगी.

डर्टी पौलिटिक्स पर शीर्ष अदालत ने भी संज्ञान लिया और आयोग की काररवाई को उचित ठहराया.

जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा,”हम कह सकते हैं कि चुनाव आयोग ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया. उस ने आचार संहिता तोड़ने वालों पर काररवाई की. लगता है आयोग हमारे आदेश के बाद जाग गया है…”

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ये भी कम नहीं

योगी से मुख्यमंत्री बने आदित्यनाथ भी कङवी बोलों के लिए बदनाम रहे हैं. हिन्दुत्व पर तीखी बयानबाजी और बेतुके बोलों का एक नजारा कुछ दिनों पहले तब दिखा जब योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को ही दलित बता कर खासा विवाद खङा कर दिया था, जिसे न तो उन्होंने कभी देखा होगा न जाना होगा.

अच्छा होता अगर योगी आदित्यनाथ आधुनिकता की बात करते, रोजगार, स्वास्थ्य व शिक्षा की बात करते.

भाजपा नेता पीएस श्रीधरन पिल्लई की एक रैली में एक विवादित बयान से तो सनसनी फैल गई. पिल्लई ने कहा, “मुसलिमों की पहचान उन के कपड़े खोलने से हो जाएगी.”

हालांकि सोशल मीडिया पर यह वीडियो मौजूद होने के बावजूद पिल्लई ने इस प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार किया है.

उधर केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे भी कहां पीछे रहने वाले थे. बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को उन्होंने राजनीति छोङ घूंघट में रहने की नसीहत दे डाली.

इस बयान की भी कङी निंदा की गई और उन्हें पुरूषवादी सोच का कहा गया, बावजूद अश्विनी चौबे को भी अपने इस बोल पर अफसोस नहीं है.

सोशल मीडिया बन रहा हथियार

सोशल मीडिया में राहुल गांधी को ले कर जितना मजाक उड़ाया जाता है वह भी तथाकथित विपक्ष के नेताओं की सोचीसमझी साजिश का हिस्सा हो सकता है.  कुछ कांग्रेसी नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी पर भी व्यक्तिगत हमले किए. मोदी की पत्नी यशोदाबेन तक को चुनावी रैलियों में टारगेट किया गया.

बौलीवुड हीरोइन से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लङ रहीं उर्मिला मातोंडकर के राजनीति में प्रवेश के बाद से उन्हें निशाना बना कर लैंगिक हमले किए गए. उन पर जानलेवा हमला भी किया गया जिस के बाद उन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग तक कर डाली.

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बयान के पीछे मंशा क्या

दरअसल, इस तरह के बयान अकसर रणनीति का हिस्सा होते हैं ताकि मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके. इस को हवा देते हैं आज का सोशल मीडिया, जिस पर तथ्यों को और भी तोङमरोङ कर पेश किया जाता है.

चुनावी रणनीतिकार मानते हैं, “दो विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा नेताओं के कङवे बोल चुनाव प्रचार का ही एक हथकंडा हो सकता है जिस में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हामी होती है. जाहिर है, इस से एक माहौल बनता है और वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है.”

नैतिक पतन

मगर सवाल यह भी है कि क्या भारतीय राजनीति इतनी दूषित हो गई  है कि वोट की खातिर या फिर वोटों के ध्रुवीकरण के लिए नैतिक मूल्यों को भी ताक पर रख दिया जाए?

देश की राजनीति अगर इतनी गंदी हो गई तो लोकतंत्र की बात करने वाले सफेदपोश नेताओं को व्यक्तिगत कमैंट्स करने की आजादी किस ने दे दी?

इस के लिए जिम्मेदार कौन हो सकता है- क्या नेता, जो बेशर्मी की हद पार कर जाते हैं या फिर जनता, जो अब तक ऐसे नेताओं को वोट की चोट से राजनीति से ही बाहर नहीं कर पा रही?

क्या यह डर्टी पौलिटिक्स नहीं है?

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