उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रचार में एक बात पर खासा जोर दिया था कि छत्तीसगढ़ तो राम चन्द्र की ननिहाल है, यहां तो उनका मंदिर बनना ही चाहिए. इस और ऐसी कई बेतुकी बातों का आदिवासी बाहुल्य इस राज्य की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं था जिनसे न तो धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के किसानों की समस्याएं हल हो रहीं थीं और न ही आदिवासियों की घोषित बदहाली दूर हो रही थी. उल्टे लोगों के मन में यह डर जरूर बैठ गया था कि कहीं भाजपा यहां भी मंदिर राग अलापना शुरू न कर दे, क्योंकि धरम करम की राजनीति से समस्याएं हल नहीं होतीं उल्टे बढ़ती ही हैं.

लिहाजा 15 साल के मुख्यमंत्री रमन सिंह से नाउम्मीद लोग उनसे इतने दूर चले गए कि पिछले चुनाव में 90 में से 49 सीट ले जाने बाली भाजपा 20 का आंकड़ा छूने भी तरस रही है, दूसरी तरफ कांग्रेस 65 से ज्यादा रिकार्ड सीटें ले जा रही है.

छत्तीसगढ़ का परिणाम बेहद चौंका देने वाला है, वजह हिन्दी भाषी राज्यों मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुकाबले यहां कांटे की लड़ाई में त्रिशंकु विधानसभा के आसार और अंदाजे व्यक्त किए जा रहे थे, लेकिन हैरतअंगेज तरीके से कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से खारिज करने में कामयाबी हासिल कर ली है और कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना बैठे अजीत जोगी को भी एहसास करा दिया है कि अब वोटर सधे और तजुर्बेकार हाथों में ही सत्ता देना बेहतर समझ रहा है, बजाय कोई नया जोखिम उठाने के.

गौरतलब है कि आईएएस अधिकारी रहे अजित जोगी ने अपनी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनाने के बाद बसपा से गठबंधन किया था. बसपा प्रमुख मायावती ने अजित जोगी को मुख्यमंत्री घोषित किया था. उम्मीद की जा रही थी कि जोगी-माया कुछ नया कर पाएंगे, लेकिन नतीजों में अजित जोगी की जनता कांग्रेस तो थोड़ी बहुत है पर बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ है. अजीत जोगी का यह खयाल खयाली पुलाव साबित हुआ कि जनता रमन सिंह सरकार से छुटकारा पाने उन्हें फिर से मौका देगी.

बदलाव का मन बना चुकी जनता ने कांग्रेस को मौका दिया, तो इसके अपने अलग माने हैं. इसमें कोई शक नहीं कि छत्तीसगढ़ में भी सत्ता विरोधी लहर थी. 15 साल से काबिज भाजपा कुछ खास नहीं कर पाई. इससे ज्यादा अहम बात यह थी कि आरएसएस और दूसरे हिंदूवादी संगठन आदिवासियों की जिंदगी में खलल डालने लगे थे. इस पर नीम चढ़े करेले सी बातें आदित्यनाथ सरीखे कट्टर हिंदूवादियों ने कर रमन सिंह की विदाई डोली उठवा दी, जिनके रमन सिंह ने न केवल पैर पड़े थे बल्कि पूरे विधिविधान से देवताओं की तरह उनका पूजा पाठ किया था.

इस नजारे से लोगों को समझ आ गया था कि अगर भाजपा को चौथी बार भी सत्ता दी तो फिर राज्य में अगले पांच साल काम धाम कुछ नहीं होगा, बल्कि इसी तरह घंटे घड़ियाल बजते रहेंगे, जिससे उनकी जिंदगी और बदतर होती जाएगी. लिहाजा वोटर ने बुद्धिमानी दिखाते फैसला लिया और अजीत जोगी और बसपा गठबंधन को कमजोर विकल्प मानते कांग्रेस को गद्दी सौंप दी.

इलाकेवार नतीजे देखें तो साफ लग रहा है कि भाजपा राज से खुश या संतुष्ट कोई नहीं है. राजधानी रायपुर में भी भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया है और नक्सलियों के गढ़ बस्तर में तो वह पानी भी नहीं मांग पाई, जहां की 19 सीटें सरकार बनाने में अहम रोल निभाती हैं. इस दफा नक्सलियों ने खुलेआम हिंसा की थी और चुनावी प्रक्रिया में भी अड़ंगे डाले थे. नक्सलियों ने पहली दफा बस्तर में हिंदूवादियों के खिलाफ मोर्चा खोला था, जिसका असर बस्तर के आदिवासियों पर यह पड़ा कि उन्होंने भाजपा से तौबा कर ली. तेजी से यह हवा बस्तर में अंदरूनी तौर पर उड़ी कि भाजपा आदिवासियों का हिंदूकरण करेगी, जबकि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं और ये तथाकथित हिन्दू ही सदियों से उनका शोषण कर रहे हैं.

पर बात सिर्फ हिन्दुत्व की ही नहीं थी, बल्कि युवाओं की भी थी जो रोजगार के लिए तरस रहे हैं. आदिवासियों की शिक्षित होती पीढ़ी ने भी बारीकी से यह समझा था कि भाजपा सरकार वादों और उम्मीद के मुताबिक उन्हें रोजगार मुहैया नहीं करा पा रही है. उल्टे पूंजीपतियों के हाथों प्राकृतिक संसाधनों को बेचती जा रही है जिससे फायदा चंद ऊंची जाति वालों को हो रहा है. बेरोजगारी का मुद्दा शहरों में भी प्रमुख रहा था.

कांग्रेस यहां उतनी मजबूत स्थिति में थी नहीं, जितनी नतीजों में दिखाई दे रही है. उसने दूसरे राज्यों की तरह यहां भी मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा पेश नहीं किया था, लेकिन पुराने दिग्गज कांग्रेसी चरणदास महंत को चुनाव लड़ाकर यह संदेशा जरूर दे दिया था कि वह सत्ता विरोधी लहर जो अब आंधी साबित हो रही है को भुनाने का मौका चूकना नहीं चाहती, जिसका फायदा उसे मिला भी.

शहरी इलाकों में भी भाजपा को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली तो इसके एक बड़ी वजह कर्मचारियों की नाराजी और व्यापारियों में नोट बंदी और जीएसटी को लेकर पसरी भड़ास है, जिसे लेकर बिलासपुर के एक व्यापारी जीएस छाबड़ा का कहना है कि लोगों का भरोसा नरेंद्र मोदी और रमन सिंह दोनों पर से उठा है, जिनके बेतुके फैसलों ने रोजमरराई जिंदगी दुश्वार कर दी है. छाबड़ा के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को आज के से नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए. यह सोचना गलतफहमी है कि छत्तीसगढ़ के लोग नरेंद्र मोदी को विकल्पहीन मानते हैं.

भाजपा की फजीहत और दुर्गति से यह बात साबित भी हो रही है, जिसने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चुनाव जिताऊ इमेज के चिथड़े उड़ाकर रख दिये हैं और यह चेतावनी भी दे दी है कि लोगों को रामलला के नहिहाल, मायके या ससुराल के भजन कीर्तन से ज्यादा खुद से जुड़े जमीनी मुद्दों से ज्यादा सरोकार है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...