छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां घूमने के लिए ज्यादा कुछ सोचना नहीं पड़ता. राज्य में जहां भी आप जाएंगे वहां प्राकृतिक आनंद आप की प्रतीक्षा कर रहा होगा. ऐसा इसलिए कि तेजी से विकसित होते आदिवासी बाहुल्य इस प्रांत में जंगल ही जंगल हैं जिन में से कुछ को पर्यटकों की सुविधा के लिए इस तरह विकसित किया गया है कि उन्हें देख कर दिल से एक ही आवाज निकलती है कि यहां पहले क्यों नहीं आए.
सांस्कृतिक विविधता तो छत्तीसगढ़ की पहचान है ही लेकिन यहां के झूमते जंगल, लहलहाते वृक्ष, संगीत गुंजाते झरने व पहाडि़यां और इन से भी ज्यादा खास ऐसेऐसे जंगली पशुपक्षी जिन्हें देख कुछ पर्यटक बाहरी शोरशराबे की दुनिया से कुछ इस तरह कट जाते हैं कि उन की इच्छा यहीं बस जाने की होने लगती है. प्रकृति की ही तरह सरल सहज आदिवासी जीवन भी एक संदेश देता है कि जिंदगी और दुनिया तो खुद हम ने मुश्किल बना ली है, इसलिए शांति और तनाव से मुक्ति पाने जंगलों की तरफ भागते हैं ताकि कुछ वक्त अपने लिए भी बिताया जा सके.
मुमकिन है कि एक बार छत्तीसगढ़ और उस में भी बस्तर के जंगल देख आप सोचने पर मजबूर हो जाएं कि हम कौन सी दुनिया में आ गए जहां चलते तो जमीन पर हैं लेकिन वह पेड़ों से ढके होने के चलते दिखती नहीं. कुलांचें भरता कोई हिरण कब आप के पास से गुजर जाए, कहा नहीं जा सकता, कभी किसी पेड़ पर बैठी टुकुरटुकुर ताकती मैना या कोई दूसरा अंजाना मगर आकर्षक पक्षी देख कर लगता है कि यही वास्तविक दुनिया है जहां की ताजी हवा शरीर और दिमाग को स्फूर्ति से भर देती है.
इन कुदरती नजारों को नजदीक से देखने और महसूस करने के लिए अब सड़कें बना दी गई हैं. ठहरने के लिए सुविधाजनक रिजौर्ट और होटल व विश्रामगृह हैं. जहां कुछ दिन रुक कर आप जिंदगी की आपाधापी भूल एक ऐसा सुकून महसूस कर सकते हैं जो शायद ही कहीं और मिले. तो आइए, जानते हैं छत्तीसगढ़ के वन्यजीवन के बारे में और बिताते हैं वहां कुछ दिन जो किसी रोमांच और उपलब्धि से कम नहीं होते.
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उदंती अभयारण्य
1984 में स्थापित यह अभयारण्य 237 वर्ग किलोमीटर में फैला है. उदंती नदी के नाम पर आधारित
इस अभयारण्य में पक्षियों की 120 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं जिन में प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं. जंगली मुरगे, कठफोड़वा, फेजेंट, बुलबुल और ड्रोगो पक्षी आसानी से देखने को मिल जाते हैं.
उदंती अभयारण्य की एक खासीयत यहां के कुदरती नजारे हैं. जितनी पहाडि़यां यहां हैं उतने ही मैदान भी हैं. जलाशयों की तो यहां भरमार है. जंगली भैंसे स्वच्छंद विचरते देखे जा सकते हैं. इस के अलावा चीतल, नीलगाय, सांभर, जंगली सूअर व सियार भी ढूंढ़ने नहीं पड़ते. बाघ भी यहां बहुतायत में हैं पर संकोची स्वभाव के होने के कारण वे आमतौर पर दिखते नहीं.
तरहतरह के वृक्षों के बीच से गुजरते रंगबिरंगी चट्टानों वाली गोड़ेना फौल भी दर्शनीय है. यहां पर पर्यटक पिकनिक का लुत्फ उठाते देखे जा सकते हैं.
देवधारा जलप्रपात इस अभयारण्य का दूसरा आकर्षण है जिस तक पहुंचने के लिए लगभग 1.5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. इसे देख महसूस होता है कि यह चट्टान आसमान में है जिस के नीचे बहुत गहरे तक पानी भरा हुआ है. यहां पानी 40 फुट की ऊंचाई से गिरता है. सिकासेर जलाशय के नीचे 300 मीटर की प्राकृतिक ढलानी चट्टानों के बीच ठहरे हुए पानी को देखना भी नहीं भूलना चाहिए.
उदंती अभयारण्य पहुंचने के लिए रायपुर से 175 किलोमीटर तक का सफर सड़कमार्ग से तय करना पड़ता है.
रायपुर से ही 176 किलोमीटर की सड़क दूरी तय कर सीतानदी अभयारण्य पहुंचा जा सकता है जो उदंती जैसा ही है लेकिन उड़ने वाली गिलहरी भी यहां का अतिरिक्त आकर्षण है. उदंती की तरह इस अभयारण्य में भी टीक, साज, बीजा, लेंडिया, हल्दू, धामौरा, आंवला, सरई और अमलतास के घने पेड़ों की लुभावनी शृंखला है.
उदंती और सीतानदी अभयारण्यों में ठहरने के लिए वन विभाग के रैस्टहाउस हैं. इन में पहले से आरक्षण करा लेना उपयुक्त रहता है. भ्रमण के लिए नवम्बर से जून तक के महीने उपयुक्त हैं.
बस्तर के जंगल
बस्तर के जंगल दुनियाभर में मशहूर हैं. यहां की 80 फीसदी आबादी आदिवासियों की है जो बेहद सरल और
सीधे होते हैं. बस्तर में घने जंगलों के अलावा दर्शनीय जलप्रपातों की भरमार है. यहां से 40 किलोमीटर दूर चित्रकोट के अलावा तीरथगढ़, कांगेरधारा, चित्रधारा, मेदरीघूमर, तामड़ाघूमर और गुप्तेश्वर सहित दर्जनभर जलप्रपात बेहद खूबसूरत हैं. इस के अलावा गुफाओं की भी यहां भरमार है. यहां से पर्यटक कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान जाने का मौका भी नहीं चूकते.
रायपुर से लगभग 300 किलोमीटर दूर सड़कमार्ग द्वारा बस्तर आ कर पर्यटक एक अलग रोमांच अनुभव करते हैं, जहां कदमकदम पर पेड़ हैं, छोटीबड़ी पहाडि़यां, नदियां और जलाशय हैं. बस्तर में ठहरने के लिए छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का दंडामी लक्जरी रिजौर्ट तो है ही, सुविधाजनक निजी होटलों की भी वहां कमी नहीं.
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गंगरेल
रायपुर से महज 80 किलोमीटर दूर गंगरेल बांध भी प्रसिद्ध है. वहां पर्यटक वोटिंग का आनंद लेते नजर आते हैं. यहां के आकर्षक बगीचों में घूमने का भी अलग आनंद है.
सब से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करता है अंगार इको ऐडवैंचर कैंप, जहां हर कदम पर रोमांच आप का इंतजार और स्वागत करता नजर आता है. वर्मी ब्रिज, ब्रोन फायर केटवाक, मंकी क्रो, कमांडो नैट, टायर शेइंग, रूफ क्रौसिंग जैसे खेल इस कैंप में होते रहते हैं.
छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल द्वारा गंगरेल में आधुनिक सहूलियतों वाले लक्जरी कौटेज बनाए गए हैं जिन के आसपास वन्यजीवन से रूबरू होने के लिए पर्यटक पैदल सैर का मजा लेना नहीं भूलते.
सैलानियों को आकर्षित कर रहा है छत्तीसगढ़
–एम टी नंदी, प्रबंध निदेशक, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल
आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ का पूरा इलाका आजादी के बाद से दूसरे कई मामलों की तरह पर्यटन स्तर पर भी उपेक्षा का शिकार रहा है. लेकिन प्रकृति ने छत्तीसगढ़ के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है. उलटे, दूसरे राज्यों के मुकाबले प्रकृति ने इसे कुछ ज्यादा ही सौगातें बख्शी हैं जिन्हें छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड अब पेशेवर अंदाज में पेश कर राज्य को पर्यटन मानचित्र पर सम्मानजनक स्थान दिलाने की कोशिश में लगा है.
ये कोशिशें कैसी हैं और कितनी कामयाब हैं, इस बाबत इस प्रतिनिधि ने छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के नव नियुक्त प्रबंध निदेशक, भारतीय वन सेवा के 1991 के बैच के अधिकारी एम टी नंदी से बातचीत की. प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश :
क्या आप को यह पद या जिम्मेदारी चुनौतीपूर्ण लगती है?
निसंदेह यह चुनौतीपूर्ण कार्य है. हालांकि मैं पर्यटन मंडल को महज मुनाफा कमाने का जरिया नहीं मानता हूं लेकिन पर्यटकों का ध्यान छत्तीसगढ़ की तरफ आकर्षित कर पाना और उन्हें यहां तक लाना आसान भी नहीं है.
क्या नक्सली इस की वजह हैं?
नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता. दरअसल, छत्तीसगढ़ की ऐसी छवि बन गई है या बना दी गई है कि हर कोई यह सोचता है कि यहां नक्सली गतिविधियां बहुत हैं जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं. यह राज्य पयर्टकों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है. नक्सलियों पर ज्यादा चर्चा करने के कोई माने नहीं. आज तक उन्होंने पर्यटकों को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है.
फिर भी पर्यटन के मामले में छत्तीसगढ़ पिछड़ा तो दिखता है?
जी, दरअसल, लंबे वक्त तक यहां के पर्यटन स्थलों के अलावा कला, संस्कृति और वन्यजीवन की भी अनदेखी हुई है जिस की भरपाई रातोंरात नहीं हो सकती. पर्यटन मंडल को वजूद में आए बहुत ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ है. मंडल ने व्यापक स्तर पर कोशिशें पिछले 5 सालों में शुरू की हैं. मुझे यह बताते खुशी होती है कि ये कोशिशें रंग लाने लगी हैं. बड़ी संख्या में पर्यटक बेहिचक यहां आ रहे हैं और पर्यटन स्थलों, आदिवासी संस्कृति और वन्यजीवन से रूबरू हो रहे हैं.
आप किस आधार पर इन कोशिशों को कामयाब मानते हैं?
मेरे पास गिनाने की कई वजहें और आंकड़े हैं पर इन से हट कर बात करें तो न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी छत्तीसगढ़ पर्यटन का संदेश सिरपुर महोत्सव, बस्तर दशहरा और राजिम महाकुंभ जैसे आयोजनों से गया है. सभी ने इन समारोहों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है और हम ने भी मेहमाननवाजी में और इन कार्यक्रमों को स्तरीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और न ही आगे छोड़ेंगे.
छत्तीसगढ़ में ऐसा क्या है कि पर्यटक यहां आएं?
छत्तीसगढ़ में ऐसा क्या नहीं है कि पर्यटक यहां न आएं. वाइल्ड लाइफ का जो नजारा यहां है वह शायद ही कहीं और हो. ऐतिहासिक धरोहरों के मामलों में भी यह राज्य काफी संपन्न है, जिन्हें गिनाने बैठ जाऊं तो काफी वक्त निकल जाएगा. ऐतिहासिक काल के शैलचित्र पूरे राज्य में बिखरे पड़े हैं. साथ ही, पौराणिक महत्त्व के स्थलों की एक पूरी शृंखला छत्तीसगढ़ में है.
क्या ट्राइबल टूरिज्म भी इस मुहिम का हिस्सा है?
घोषित तौर पर तो अभी नहीं है लेकिन यहां आने वाले अधिकतर पर्यटकों के मन में आदिवासी संस्कृति के प्रति जिज्ञासा होती है जो यहीं आ कर शांत होती है. आदिवासियों की अपनी दुनिया है पर उन की लोककलाएं, संगीत, गायन, नृत्य सभी को लुभाते हैं.
छत्तीसगढ़ के बाबत लोग इस बात से घबराते हैं कि यहां ठहरने के लिए सुविधाजनक होटल्स नहीं हैं?
यह पुरानी धारणा है. अब तो मैं दावे से कह सकता हूं कि पूरे छत्तीसगढ़ में सितारा और विश्वस्तरीय सुविधाओं वाले रिजौर्ट और होटल हैं. मिसाल के तौर पर चित्रकोट को लें जिस के दंडामी लक्जरी रिजौर्ट को सभी पर्यटक सराहते हैं. पर्यटक यहां का जलप्रपात देखने आते हैं तो ठहरने की सुविधाएं देख चकित रह जाते हैं.
उदांती और सीतावटी अभयारण्य के रैस्टहाउस भी आधुनिक हैं. यहां के वन्यजीवन की भी बात निराली है. हां, यह मैं मानता हूं कि छत्तीसगढ़ में अब और होटलों और रिजौर्ट्स की जरूरत महसूस होने लगी है.
क्या पर्यटन विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप होता है?
बिलकुल होता है. और मैं उसे सकारात्मक मानता हूं. यह छत्तीसगढ़ पर्यटन के प्रति लोगों का बढ़ता रुझान है कि हर जनप्रतिनिधि चाहता है कि हम उस के क्षेत्र में पर्यटन विकसित करें यानी यहां हर जगह पर्यटन की संभावनाएं मौजूद हैं जिन्हें एकएक कर विस्तार दिया जा रहा है. इसे बजाय हस्तक्षेप के, आग्रह कहना उचित होगा.
भविष्य की प्रमुख योजनाएं क्या हैं?
योजनाएं कई हैं. कुछ नए आयोजनों पर विचार किया जा रहा है जो सिरपुर औैर राजिम जैसे हों. लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरी इच्छा स्थानीय पर्यटकों को आकर्षित करने की है. मैं चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ के लोग एक बार
पूरा छत्तीसगढ़ घूमें और फिर सोचें कि ‘छत्तीसगढि़या सब से बढि़या’ हम बडे़ गर्व से क्यों कहते हैं.
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