पर्यटक लखनऊ में भुलभुलैया यानि इमामबाड़ा घूमने आते हैं. यहां आकर उनको पता चलता है कि भुलभुलैया केवल पर्यटक स्थल ही नहीं है यह एक धार्मिक स्थल भी है. जहां पर पर्यटक को ड्रेस कोड का पालन करना होता है. ड्रेसकोड के अलावा भी भुलभुलैया घूमने के कुछ नियम कानून है. कुछ पर्यटक इसका विरोध करते हैं तो कुछ यह मान लेते हैं कि जब मंदिर में ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है तो यहां क्या दिक्कत है ? पोशाक और दूसरे कानून से भुलभुलैया घूमने से लोग बचने लगे हैं. जो खुद भुलभुलैया के लिए सही नहीं है.
विरोध के बाद भले पोषाक का यह विवाद ठडें बस्ते में चला गया हो पर दूसरे नियमो का दर्द अब भी पर्यटकों के सिर पर लटक रहा है. जिसको लेकर पर्यटकों और इमामबाडा प्रशासन या यहां काम करने वाले लोगों के बीच अक्सर विवाद होता रहता है. जिससे पर्यटकों के घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है.
लखनऊ जिला प्रशासन के एक ड्रेस कोड ऐसे में यहां घूमने आने वालों को धर्म के नियम मानकर कपड़े पहन कर यहां आना चाहिये. इसके तहत सिर को ढकने के साथ ही साथ ऐसे कपड़े हो जिनमें शरीर खुला ना दिख रहा हो. ऐसे में लखनऊ जिला प्रशासन ने एक ड्रेस कोड बना दिया. जिसकी हर तरफ आलोचना शुरू हो गई. जिला प्रशासन ने तो ऐसे कानून को वापस ले लिया इसके बाद भी भुलभुलैया में घूमते समय सिर को ढक कर जाने के लिये कहा जाता है. इसके साथ ही साथ पतिपत्नी या लड़का लड़की के जोड़े को अंदर अकेले जाने नहीं दिया जाता है.
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भुलभुलैया प्रबंधन से जुड़े लोग यह मानते हैेंं कि कपल यानि जोड़े से जाने वाले लोग एकांत का लाभ उठा कर अश्लील हरकतें कर सकते है. ऐसे में जरूरी यह होता है कि वह अपने साथ गाइड लेकर जाये. जानकार लोग कहते हैं कि इस तरह के नियमों के सहारे गाइड के कारोबार को आगे बढ़ाया जा रहा है. ऐसे में घूमने वाले नियमों का विरोध हो रहा है. ऐसे नियमों से सबसे अधिक परेशान नये शादीशुदा जोड़े होते हैं. ऐसे लोग पर्यटन की नजर से यहां घूमने आते हैं और आजादी का लाभ भी लेना चाहते हैं. कई जोड़े इन नियमों से परेशान हो जाते हैं. कई लोगों को इसकी आदत पड़ जाती है क्योकि कई मंदिरों में भी पहनावे को लेकर नियम कानून है .
इसके बाद भी भुलभुलैया घूमने आने वाले ड्रेस कोड से परेशान है. उनके यहां आकर पर्यटन की अनुभूति नहीं हो रही है.
वास्तुकला का अदभुत नमूना:
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ घूमने के लिहाज से सबसे मशहूर और ऐतिहासिक जगह है. नवाबी शासनकाल और अंग्रेजी शासनकाल में बनी यह की इमारत वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. 1775 से 1856 तक लखनऊ अवध राज्य की राजधानी था. नवाबी काल में अवध की अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ घूमने जो भी आता है वह सबसे पहले बड़ा इमामबाड़ा (भुलभुलैया) जरूर देखना चाहता है यह लखनऊ की सबसे मशहूर इमारत है. चारबाग रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर दूर बना इमामबाड़ा वास्तुकला का अदभुत नजारा है. 1784 में इसको नवाब आसिफुद्दौला ने बनवाया था. इस इमारत का पहला अजूबा 49 गुणे 4 मीटर लम्बा और 16 गुणे 2 मीटर चौड़ा एक हाल है. इसमें किसी तरह का कोई खंबा नही है. इसके एक छोर पर कागज फाडने जैसी कम आवाज को भी दूसरे छोर पर आसानी से सुनी जा सकती है. इस इमारत का दूसरा अजूबा 409 गलियारे है. यह सब एक जैसे दिखते है और समान लम्बाई के है. यह सभी एक दूसरे से जुड़े हुये है. इनमें घूमने वाले रास्ता भूल जाते है. इसीलिये इसको भूलभूलैया कहा जाता है. भुलभुलैया में नहाने के लिये एक बावली बनी है जिसमें गोमती नदी का पानी आता है.
सुरक्षा की नजर से यह कुछ ऐसी बनी है कि इसके अंदर नहा रहा आदमी बाहर आने को देख सकता है. बाहर वाला अंदर वाले को कभी नही देख पाता था. बड़े इमामबाड़ा से एक किलोमीटर आगे छोटा इमामबाड़ा बना हुआ है. मुगल स्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने का निर्माण अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह के द्वारा 1840 में कराया गया था. दूर से यह इमामबाड़ा ताजमहल जैसा दिखता है. यहां नहाने के लिये एक खास किस्म का हौज बनाया गया था जिसमें गर्म और ठंडा पानी एक साथ आता था. इस इमारत में शीशे के लगे हुये झाडफानूस बहुत ही खूबसूरत है.
बडा इमामबाड़ा और छोटे इमामबाड़ा के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारते है. इनको पिक्चर गैलरी, घडी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के टिकट इमामबाड़ा से ही एक साथ मिल जाता है. इमामबाड़ा के बाहर बने 60 ऊंचे दरवाजे को रूमी दरवाजा कहा जाता है. इसके नीचे से सड़क निकलती है. इस दरवाजे के निर्माण की खास बात यह है कि इसको बनाने में किसी तरह के लोहे या लकड़ी का प्रयोग नही किया गया है. रूमी दरवाजे से थोड़ा आगे चलने पर घडी मीनार बनी है. 221 फुट ऊंची इस मीनार का निर्माण 1881 में हुआ था. इसमें लगी घड़ी का पेंडुलम 14 फुट लंबा है. 12 पंखुड़ियों वाला डायल खिले फूल की तरह का दिखता है. इसके पास ही बनी पिक्चर गैलरी में अवध के नवाबों के तैलचित्र लगे हुये है. इससे नवाबी संस्कृति का पता चलता है.