उत्तर प्रदेश देश का सब से बड़ा सूबा है. यहां के ज्यादातर लोगों का रोजगार केवल खेतीकिसानी ही है. दूसरे प्रदेशों की तरह यहां?भी खेतीकिसानी की ढेर सारी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लागू हैं. योजनाओं का लाभ निचले स्तर तक पहुंचे इस के लिए करोड़ों रुपए का बजट भी?है, मगर जिन के जरीए यह सारा काम होना?है वही नहीं?हैं यानी यहां का कृषि महकमा अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी से बुरी तरह जूझ रहा?है. इस वजह से सब से ज्यादा नुकसान किसानों को ही हो रहा?है.

वहीं दूसरी तरफ प्रदेश सरकार अपने को किसानों का सब से बड़ा हितैषी बताने से नहीं थक रही है. साल 2015 को यहां की सरकार ने प्रदेश में किसान वर्ष घोषित कर रखा था, मगर तब से अब तक किसानों और किसानी की स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही है. इस बार भी अखिलेश सरकार ने ‘कृषक दुर्घटना बीमा योजना’ को समाप्त कर के उस के स्थान पर किसानों के लिए एक बेहतर योजना ‘मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना’ शुरू की है. बेशक यह योजना बेहतर है, मगर असल सवाल यह है कि बिना अधिकारियों और कर्मचारियों के इन जैसी तमाम योजनाओं का लाभ किसानों को कैसे मिल सकेगा. नए पेश होने वाले बजट को भी सरकार किसानों के लिए अभी से ही वरदान साबित होगा, बता रही?है मगर यह सब बिना स्टाफ के कैसे पूरा होगा? आइए, जानते हैं कि कौनकौन से पद खाली हैं?

निदेशकों के पद खाली : कृषि विभाग में निदेशकों के अनेक पद बनाए गए हैं, जिन में राज्य स्तर पर प्रबंधन हेतु कृषि निदेशक, निदेशक बीज विकास निगम, निदेशक कृषि अनुसंधान परिषद और अपर निदेशकों, संयुक्त कृषि निदेशकों और मंडल व जिला स्तर पर उप कृषि निदेशकों की तैनाती होती?है.

बीते साल 2015 के अंतिम महीने से राज्य स्तर के प्रबंधन हेतु कई महत्त्वपूर्ण निदेशकों के पद खाली पड़े थे. इन में खासतौर पर बीज प्रमाणीकरण निगम, उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम, उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि प्रबंधन संस्थान, रहमान खेड़ा लखनऊ के पद शामिल हैं. एक अंगरेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार बीज विकास निगम में निदेशक व सही प्रबंधन न होने के कारण करोड़ों रुपए की लागत के बीज सड़ गए.

भला हो कृषि प्राविधिक सहायकों के 8 जनवरी से शुरू हुए बेमियादी धरनेप्रदर्शन का, जिन की स्टाफ की तैनाती संबंधी मांग के कारण कृषि मंत्री के हथपांव फूल गए थे और मामले को तूल पकड़ते देख उन्होंने झट से वरिष्ठ अधिकारी मुकेश श्रीवास्तव को अगले दिन ही प्रदेश का कृषि निदेशक नियुक्त कर दिया?था.

अगर प्राविधिक सहायकों का बेमियादी धरनाप्रदर्शन न होता तो कृषि निदेशक का पद भी लंबे समय तक खाली रह सकता?था. इन पदों के लंबे समय तक खाली रहने के पीछे जानकार बताते?हैं कि सरकार अपनी पसंद का नौकरशाह बैठाना चाहती?है. विभाग में पहले से कार्य कर रहे अन्य निदेशकों में इन पदों को हथियाने की होड़ भी खूब है, मगर सरकार है कि अपने लिए सब से अच्छा दावेदार न मिल पाने के कारण देर कर रही है. इस से अन्य कामों के साथ ही साथ नई भर्तियों में?भी देरी हो रही?है, जिस से खेतीबारी भी अछूती नहीं?है.

अधिकारी स्तर के पद खाली : विभाग में राजपत्रित अधिकारियों के कुल 966 पद हैं, जिन में से 474 पद खाली हैं. इसी तरह से अराजपत्रित कर्मचारियों के 172 पद खाली हैं. जिला एवं ब्लाक स्तर पर काम करने वाले विभिन्न कर्मचारियों के लिए कुल 28090 पद हैं, जिन में से 13362 पद खाली हैं.

हाईकोर्ट के आदेश का भी असर नहीं : 2 साल पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने कृषि सेवाओं के तहत प्राविधिक सहायकों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया था. अंतिम परिणाम आ जाने के बाद भी विवादों में होने के कारण प्राविधिक सहायकों की तैनाती नहीं हो पा रही थी. जिस पर बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार से कहा कि चयनितों को 1 महीने के अंदर तैनाती दी जाए. 1 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार चयनितों को तैनाती नहीं दे सकी है, जबकि चयनितों की तैनाती से विभागीय काम में तेजी आ सकती है.

नहीं रखे गए कृषिमित्र : सरकार की अनेक कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी गांवगांव तक पहुंचे, इस के लिए केंद्र सरकार ने हर ग्राम पंचायत स्तर पर 1 कृषिमित्र की नियुक्ति करने को कहा है, मगर राज्य सरकार ने इस में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई?है. कुछ साल पहले किसानमित्र मामूली मानदेय पर काम कर रहे थे, बाद में मानदेय न मिलने के कारण किसानमित्रों ने?भी काम बंद कर के दूसरे काम पकड़ लिए. इस से जमीनी स्तर पर खेतीकिसानी की तकनीकों का प्रचारप्रसार बंद हो गया?है.

वेतन को तरस रहे संविदाकर्मी?: प्रदेश में केंद्र द्वारा संचालित नेशनल मिशन औन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन एंड टेक्नोलाजी (आत्मा) योजना साल 2012 से चलाई जा रही?है. योजना का मुख्य मकसद किसानों को खेती के नवीनतम  तकनीकी ज्ञान से परिचित कराना?है. योजना में काम करने वाले कर्मियों की संविदा (ठेका) पर तैनाती राज्य सरकार ने गैर सरकारी संगठन के जरीए की?है.

योजना में मुख्य रूप से 2 तरह के पद हैं, जिन में गांव?स्तर पर सहायक तकनीकी प्रबंधक और ब्लाक स्तर पर ब्लाक तकनीकी प्रबंधक हैं. गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) इन संविदाकर्मियों को हर महीने तनख्वाह नहीं दे पाता?है. कभी 6 महीने तो कभी 4 महीने बाद तनख्वाह देता?है. तनख्वाह हर महीने न मिल पाने के कारण संविदाकर्मी कई बार अपना काम पैसे उधार ले कर करते?हैं या घरपरिवार की कई प्रकार की जरूरतें नहीं पूरी कर पाते हैं. इस से तकनीकी कर्मी मन से काम नहीं कर पाते हैं या कुछ लोग नियमित आमदनी बनाए रखने के लिए दूसरे कामों में भी लगे रहते?हैं. इस से सरकार की योजना पर पानी फिर जाता है.

इच्छाशक्ति की कमी : इतनी बातें जाननेसमझने पर तो यही लगता?है कि सरकार जब बड़ेबड़े दावे किसानों के हित में कर रही?है तो बिना अधिकारियों, कर्मचारियों के उन्हें कैसे पूरा करेगी? प्रदेश सरकार की कथनी और करनी में अंतर न होता तो वह बड़े पैमाने पर खाली पदों को जल्दी से भरने में दिलचस्पी दिखाती. शायद यही कारण है सरकार उच्च न्यायालय के आदेश का भी समय से पालन नहीं करा पा रही?है, मगर ऊपर से किसानों का मसीहा होने का ढोल पीट रही?है

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