प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब नेपाल यात्रा पर गए, तो पशुपतिनाथ मंदिर में उन का शानदार स्वागत हुआ. इस से खुश हो कर नरेंद्र मोदी ने उस मंदिर की विजिटिंग बुक में लिखा, ‘पशुपतिनाथ हैं जो भारत और नेपाल को जोड़ते हैं. मैं प्रार्थना करता हूं कि वे दोनों देशों पर अपनी कृपा रखेंगे.’

सब से पहले तो नरेंद्र मोदी यहीं गलत हो गए थे. वे धार्मिक समानता के बल पर दैवीय कृपा की आस लगा बैठे थे, क्योंकि अगर धर्म के नाम पर ही बेहतरीन कूटनीतिक रिश्ते बनते होते, तो मध्यपूर्व के कई इसलामी देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध कभी न बन पाते और पाकिस्तान के रिश्ते ईरान, सीरिया से ऐसे तो खराब न होते. पाकिस्तान से टूट कर बंगलादेश भी न बनता.

अगर नेपाल की बात करें, तो जब से वहां का नया संविधान आया है, तब से इस इलाके के तमाम समीकरण बदलने लगे हैं. भारत से उस के संबंधों में एक गांठ बन गई है. रहीसही कसर मधेशी समस्या ने पूरी कर दी है. नतीजतन, नेपाल भारत का दामन छोड़ कर चीन और बंगलादेश की ओर झुक गया है.

आज भारतनेपाल के आपसी संबंधों में खटास ही नहीं आई है, बल्कि नेपालचीन, नेपालबंगलादेश और बंगलादेशचीन के संबंधों के समीकरण भी बदल रहे हैं. कुलमिला कर इस पूरे मामले में एक हद तक इस समय भारत थोड़ा अलगथलग पड़ गया है.

बिगड़ गया खेल
साल 2002 के दंगों में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की इमेज को जो धक्का लगा था, उसे दुरुस्त करने के लिहाज से वे प्रधानमंत्री बनते ही पड़ोसी देशों समेत दुनिया के तमाम देशों के साथ संबंधों को नया रूप देने में जुट गए थे. इस की शुरुआत उन्होंने भूटान से की. फिर ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजील गए. इस के बाद कुछ ही समय में उन्होंने 2 बार नेपाल का दौरा किया.

नरेंद्र मोदी से पहले साल 1997 में प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने नेपाल का दौरा किया था. मतलब पिछले 18 सालों से भारत के किसी प्रधानमंत्री ने नेपाल का दौरा नहीं किया था. नेपाल के साथ संबंधों को गरमाने में नरेंद्र मोदी की सरकार ने तेजी दिखाई.

भारत की ओर से पहले ही नेपाल को रेल लाइन से जोड़ने का काम शुरू हो चुका था, पर काम सुस्ती से आगे बढ़ रहा था. अब मोदी सरकार ने उस में रफ्तार लाने का फैसला किया है. बताया जाता है कि जोगबानीविराटनगर के बीच रेल लाइन बिछाने का काम केवल 20 फीसदी ही बाकी रह गया है.

मोदी सरकार बनने के बाद पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध दुरुस्त होते दिख रहे थे, पर नेपाल के ताजा घटनाक्रम के चलते अचानक पूरा मामला पटरी से उतर गया और खेल बिगड़ गया है.

अब आम नेपालियों में धीरेधीरे यह सोच बन रही है कि किसी दूसरे देश की सुरक्षा में नेपाली अपना खून क्यों बहाएं. गौरतलब है कि ब्रिटेन और भारत की सेना में बड़ी तादाद में नेपाली हैं.

चीन की ओर झुकाव
पत्रिका ‘रिपब्लिकन’ में छपे एक इंटरव्यू में नेपाल की प्रधानमंत्री रह चुकी कीर्ति निधि बिस्ता ने कहा कि चीन हमेशा से नेपाल का अच्छा दोस्त रहा है. लिपूलेख दर्रा समझौते के अलावा चीन से नेपाल को कोई परेशानी नहीं है. नेपाल इस समझौते को रद्द करना चाहता है.

गौरतलब है कि लिपूलेख दर्रे पर लंबे समय से नेपाल अपना हक जताता रहा है. यह दर्रा भारत, चीन और नेपाल तीनों देश के करीब से हो कर गुजरता है. इस दर्रे का इस्तेमाल भारतचीन व्यापार और कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए होता रहा है.

इस इंटरव्यू का सार यह है कि 2 सौ सालों तक खुद गुलाम रहने के बाद भारत 1950 से ही नेपाल को अपना उपनिवेश बनाने की फिराक में रहा है. भारत हमेशा से नेपाल की सुरक्षा और जल संसाधन पर अपना कब्जा चाहता है.

मौजूदा संकट पर कीर्ति निधि बिस्ता का मानना है कि मधेशियों को ले कर भारत को चिंता करने की कतई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह नेपाल का अंदरूनी मामला है.

गौरतलब है कि भारतीय सीमा पर नाकाबंदी के चलते नेपाल में जरूरी सामान की किल्लत हो गई है. इस से नेपाल के अहम को ठेस लगी है.

भारत द्वारा प्रस्तावित पनबिजली परियोजना को ले कर नेपाल की राजनीति भी गरमा गई है. क्या सत्ताधारी और क्या विपक्षी दल, नेपाल के नेताओं ने यह डर जाहिर किया है कि प्रस्तावित मैगा परियोजना के बहाने भारत की नजर नेपाल के पानी पर रही है. जहां तक इस पनबिजली परियोजना का सवाल है, तो भारत ने साफ कर दिया था कि नेपाल चाहे तो प्रस्ताव में अपनी तरफ से कुछ जोड़घटाव कर सकता है.

नेपाल व भारत के संबंधों के बीच आई ताजा दरार ने उसे चीन की तरफ पूरी तरह से धकेल दिया है. केवल नेपाल ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में चीन अपने दबदबे के काम में लगा हुआ है. उस की नजर बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर पर है. हिंद महासागर में चीन के स्ट्रिंग औफ पर्ल्स दक्षिण एशियाई देशों के लिए ही नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए भी चिंता की बात है. वह यहां चीनी सेना और कारोबारी नैटवर्क की पैठ चाहता है. इतना ही नहीं, चीन बंगलादेश व पाकिस्तान के अलावा श्रीलंका और म्यांमार में बंदरगाह बनाने का इच्छुक है. चीन साल 2020 तक अरुणाचल प्रदेश तक रेल लाइन बिछाने का भी ऐलान कर चुका है.

चीन बंगलादेश के साथ भी अपने कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर  जोर दे रहा है. गौरतलब है कि चीन की ओर से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने जब कभी भारत का दौरा किया था, तब बंगलादेश का भी दौरा किया था.

चीनी हथियार के 3 खरीदारों में एक बंगलादेश भी है और वह 82 फीसदी हथियार चीन से ही खरीदता है. चीन अपने युद्धपोत और पनडुब्बी तैनात करने के लिए बंगाल की खाड़ी में बंगलादेश की सीमा का इस्तेमाल करने के जुगाड़ में लगा हुआ है. भारत के लिए निश्चित तौर पर यह चिंता की बात है.

कुलमिला कर नेपाल चाहता है कि दादागीरी के बजाय भारत नेपाल की संप्रभुता का सम्मान करते हुए बड़े भाई की तरह पेश आए. मोदी सरकार को यह बात मान लेनी चाहिए कि नेपाल कभी हिंदू राष्ट्र हुआ करता था, पर दुनिया के बदले माहौल में अब यह भारत की ही तरह एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है. वह अपनी मरजी से चलेगा, पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारियों की राय से नहीं, जो भारतीय मूल के हैं.                 

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