सऊदी महिलाओं के लिए साल 2015 बहुत ही अहम रहा. इस साल पहली बार सऊदी सरकार ने देश की महिलाओं को वोट देने और चुनाव में खड़े होने का अधिकार दिया है. अब यह आशा की जा रही है कि सऊदी समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और राजनीति में भी वे सक्रिय भूमिका निभा सकेंगी. लेकिन वहीं, कुछ कट्टरपंथी सोच रखने वालों ने इस के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया है ताकि महिलाओं को उन अधिकारों से वंचित रखा जा सके. औनलाइन मुहिम द्वारा महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है और कटाक्ष कर उन्हें चुनाव में हिस्सा लेने से रोकने की मांग की जा रही है. यह मुहिम कितनी कामयाब होगी, इस बहस से हट कर इस बात को निरस्त नहीं किया जा सकता कि महिला अधिकारों का समर्थन करने वालों की संख्या अधिक और प्रबल है जिस से प्रभावित हो कर ही सऊदी सरकार ने यह फैसला किया है. ज्ञात रहे, सऊदी सरकार की संसद, जिसे शूरा कहते हैं, में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 2011 से है लेकिन इस के बावजूद, उन्हें वोट देने अथवा चुनाव में खड़े होने की इजाजत नहीं थी. 2011 में सऊदी सुल्तान अब्दुल्ला बिन अब्दुल अजीज अलसऊद ने संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए 20 फीसदी सीटें आरक्षित करने की घोषणा की थी. इस के बाद 150 सीटों वाली संसद में 30 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो गईं.
इस पहल से खाड़ी देशों में सऊदी अरब अकेला ऐसा देश है जहां किसी भी देश की संसद में महिला प्रतिनिधि के मुकाबले अधिक प्रतिनिधि हैं. संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई की 40 सदस्यों वाली संसद में महिलाओं की संख्या 7 है, बहरीन में 40 में 4, कुवैत में 50 में 3, ओमान में 84 में 1 महिला सदस्य है. सब से खराब सूरतेहाल यमन की है जहां 301 सदस्यों वाली संसद में केवल 1 महिला सदस्य है. इस से यह साफ होता है कि सऊदी समाज, जिस में महिलाओं को उन के जायज अधिकार भी हासिल नहीं थे, की सोच में तबदीली आ रही है. सऊदी सरकार द्वारा महिलाओं पर बहुत सी पाबंदियों को खत्म किए जाने के बावजूद उन्हें अभी भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इन में निकाह, नौकरी और पासपोर्ट के लिए घर के मुखिया से इजाजत लेना अनिवार्य होना भी शामिल है.
बदलाव की बयार
सऊदी महिलाओं ने खेलों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया है. पहले तो इस की इजाजत नहीं थी फिर जब इजाजत मिली तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेलों के लिए यह शर्त है कि टूर्नामैंट में हिस्सा लेने के लिए घर के किसी आदमी को खेल के मैदान तक जाना पड़ेगा. इतना ही नहीं, इसलामी शिक्षा एवं दिशानिर्देश के अनुसार अपने बदन को छिपाने वाले कपड़े पहनने होंगे. इस के तहत, 2012 में लंदन के ओलिंपिक खेलों में किसी सऊदी महिला ने पहली बार हिस्सा लिया. इस से भी बड़ा बदलाव उस समय आया जब एक सऊदी महिला ने वकालत करने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया. इस के पूर्व किसी महिला ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह वकालत करेगी. इस महिला के साहस ने अन्य महिलाओं को इस दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया है. वैसे यह अलग बात है कि इस महिला के लिए वकालत शुरू करने के लिए किसी वकील के अधीन रह कर प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य किया गया था.
सऊदी अरब में अभी भी महिलाओं के कार चलाने पर प्रतिबंध है. बीते दिनों कुछ महिलाओं ने कार चलाने की अनुमति हासिल करने के लिए सऊदी अरब की सड़कों पर गाडि़यां चलाई थीं लेकिन सरकार ने गाडि़यां चला रही महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया था. महिलाओं को कार चलाने की अनुमति कब मिलेगी, यह समय ही बताएगा. 2013 में सऊदी सरकार ने कुछ शर्तों के साथ महिलाओं को स्कूटर चलाने की इजाजत दी है. इस के तहत सऊदी महिला के स्कूटर चलाते समय साथ में घर का कोई आदमी रहेगा जो दुर्घटना होने की स्थिति में जख्मी महिला को परदे का लिहाज रखते हुए अस्पताल तक पहुंचाने में मदद कर सके. महिलाओं को मतदान करने और निकाय चुनाव में खड़े होने के खिलाफ कट्टरपंथियों के ए समूह ने देश के मुफ्ती आजम से मुलाकात कर इस बात पर जोर दिया है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें और महिलाओं को चुनाव में भाग लेने से रोकें. मुफ्ती आजम ने उन की मांग को निरस्त कर दिया है, जिस के बाद इस समूह ने सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ दी है लेकिन इस मुहिम का नतीजा विपरीत निकला और महिला हितों के लिए काम करने वाले और भी ज्यादा सक्रिय हो गए हैं. ऐसे में आशा की जा रही है कि विरोधी समूह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकेगा.
बहरहाल, सऊदी अरब के इस फैसले का भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों पर गहरा असर पड़ेगा. इन दोनों देशों में औरतों के पास चाहे बराबर के हक हों मगर हकीकत यह भी है कि मुसलिम समाज अरब देशों की नकल करने की कोशिश करता है. वहां के बदलाव की हवा यहां पर नए पत्तों को उगने का मौका देगी.