19 जून, 1960 को नेपाल के भोजपुर इलाके में जन्मी विद्या जब स्कूल में पढ़ती थीं तो नेपाल की लड़कियों और औरतों की हालत को ले कर दुखी होती थीं. उन के पिता रामबहादुर पांडे भारतीय मूल के नेपाली नागरिक थे. उन्होेंने ही विद्या के कोमल दिलोदिमाग में यह बैठा दिया था कि पढ़ाई के जरिए ही महिलाओं, समाज और समूचे देश की तरक्की हो सकती है. उन के घर की माली हालत ठीक नहीं थी, इस के बावजूद उन की पढ़ाई में रुकावट नहीं आने दी गई. 15 साल की उम्र में छात्र राजनीति से जुड़ने वाली विद्या ने स्कूल और कालेज की पढ़ाई के दौरान ही मुखर वक्ता के तौर पर अपनी पहचान बना ली थी. उन्होंने महिला समस्याओं को उठाया और तमाम परेशानियों के बाद भी महिलाओं के लिए लगातार लंबी लड़ाई लड़ती रहीं.

वही विद्या 28 अक्तूबर को नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गई हैं. नेपाल के इतिहास में पहली बार किसी महिला को सब से ऊंचे सरकारी पद पर बैठने का गौरव हासिल हुआ है. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की उपाध्यक्ष विद्या देवी भंडारी ने नेपाल कांग्रेस के अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी कुल बहादुर गुरुंग को 113 वोट से शिकस्त ही नहीं दी बल्कि 4 दूसरी पार्टियों का समर्थन पाने में भी कामयाब रहीं. नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद विद्या दूसरी निर्वाचित राष्ट्रपति हैं, जबकि नया संविधान बनने के बाद वे पहली राष्ट्रपति बनी हैं. उन्होंने रामबरन यादव की जगह ली.

पढ़ाई के दौरान ही साल 1978 में विद्या कम्युनिस्ट पार्टी औफ नेपाल (एमएल) की यूथ विंग से जुड़ गईं. पार्टी की युवा नेता के तौर पर सभाओं में वे जम कर बोलतीं और महिलाओं को अपने मसलों के लिए आवाज उठाने को ललकारती थीं. देश में महिलाओं की कमजोर हालत के साथसाथ विद्या को नेपाल की पंचायतीराज व्यवस्था में राजशाही का दखल काफी कचोटता था. उन का मानना है कि कहने को तो जनता को अपना लोकल नेता चुनने का अधिकार मिला हुआ था लेकिन नेता जनता के बजाय राजा के प्रति जवाबदेह थी. उन्होंने इस माहौल को बदलने की ठान ली. उन्होंने जनता के बीच इस मसले को जोरदार तरीके से उठाया और आखिर, राजशाही का खात्मा हो गया.

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