भारत की बढ़ती जनसंख्या और घटती खेती की जमीनें खाद्यान्न संकट की ओर इशारा कर रही हैं. ऐसे में बेरोजगारी व भुखमरी बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में मछलीपालन न केवल रोजगार का अच्छा साधन साबित हो सकता है, बल्कि खाद्यान्न समस्या के पूरक के तौर पर भी अच्छा साबित हो सकता है. देश में दिनोंदिन मछली खाने वालों की तादाद में इजाफा हो रहा है, इसलिए मछली की मांग में तेजी से उछाल आया है.ऐसे में अगर बेरोजगार नौजवान और किसान मछलीपालन का काम वैज्ञानिक तरीके से करें तो कम लागत में अधिक मुनाफा हो सकता है.
तालाब का चयन : मछली पालन के लिए सब से पहले तालाब का चयन करना पड़ता है. इस के लिए ग्रामपंचायतों नगरपालिकाओं द्वारा संरक्षित तालाबों को पट्टे पर ले कर यह काम शुरू किया जा सकता है. जिन के पास 1 बीधे से 2 हेक्टेयर तक जमीन है, वे तालाब की खुदाई करा कर मछलीपालन का काम शुरू कर सकते हैं. तालाब का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि तालाब में साल भर 1-2 मीटर पानी जरूर भरा रहे. इस के लिए तालाब में पानी भरने का इंतजाम रखना चाहिए. तालाब में मछली के बच्चे डालने से पहले यह जान लेना जरूरी होता है कि तालाब बाढ़ प्रभावित न हो और उस के किनारे कटेफटे न हों.मछलीपालन से पहले यह जांच लेना चाहिए कि तालाब का समतलीकरण हो चुका हो. इस के अलावा तालाब में पानी आनेजाने की जगह पर जाली लगी होनी चाहिए, ताकि जलीय जीवजंतु तालाब में न आने पाएं. तालाब के सुधार का काम जून तक जरूर पूरा कर लेना चाहिए.
तालाब की सफाई : मछलीपालन करने से पहले ही तालाब की सफाई जांच लेनी चाहिए. जलकुंभी, लेमना, अजोला, पिस्टिया, कमल, हाईड्रिला या नजाज को तालाब से निकाल देना चाहिए, क्योंकि ये पौधे तालाब के ज्यादातर भाग को घेरे रहते हैं, जिस से मछलियों की पैदावार प्रभावित होती है. तालाब में खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायन का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस से पानी जहरीला हो कर मछलियों के लिए घातक साबित हो सकता है.
तालाब से फालतू मछलियों की सफाई भी जरूरी होती है. ये मछलियां उन्नतशील मछलियों को प्रभावित करती हैं. इस के लिए मत्स्यबीज को तालाब में छोड़ने से पहले तालाब में महुए की खली डाल देनी चाहिए, जिस के असर से पढि़न, मांगुर, सौर, सिंधि जैसी मछलियां मर कर ऊपर आ जाती हैं, जिन्हें जाल से छान कर बाहर निकाल देना चाहिए. इस के 15 से 20 दिनों बाद ही तालाब में मत्स्य बीज डालना सही होता है, क्योंकि तब तक तालाब से महुए की खली के जहर का असर खत्म हो जाता है.
मछलियों की अच्छी बढ़वार के लिए मत्स्यपालन विभाग की प्रयोगशाला में तालाब की मिट्टी की जांच जरूर कराएं, ताकि तालाब में कार्बनिक व रासायनिक खादों के इस्तेमाल को तय किया जा सके.
चूने व उर्वरक का इस्तेमाल : मछलीपालन वाले तालाब में चूने का इस्तेमाल पानी की क्षारीयता में इजाफा करता है और अम्लीयता को सही करता है. चूना तालाब में मछलियों को दूसरे जलीय जीवों से भी बचाता है. इस के लिए 250 किलोग्राम बुझा हुआ चूना प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. तालाब में कार्बनिक संतुलन के लिए 10 टन गोबर प्रति हेक्टयर की दर से 1 साल में इस्तेमाल करें. यह मात्रा 10 महीने की समान मासिक किस्तों में डालीन चाहिए. गोबर की खाद डालने के 15 दिनों बाद रासायनिक खादों का इस्तेमाल करना चाहिए, जिस में यूरिया 200 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 250 किलोग्राम व म्यूरिक आफ पोटाश 40 किलोग्राम प्रति हेक्टयर होना चाहिए.
प्रजातियों का चयन
मछलीपालन के लिए कभी भी एक तालाब में अकेली एक प्रजाति की मछली का चयन नहीं करना चाहिए, बल्कि उच्च उत्पादकता वाली 2 से 6 प्रजातियों का चयन करना चाहिए, जिस से मछलियों की बढ़वार अच्छी होती है और उत्पादन भी अच्छी मात्रा में होता है.
कतला : यह भारतीय मछली जिसे भाकुर भी कहा जाता है, बहुत तेजी से बढ़ती है. इस मछली में भोजन को मांस में बदलने में अच्छी कूवत पाई जाती है, इसलिए इस का बाजार भाव हमेशा अच्छा रहा है. यह मछली के शौकीनों की पसंदीदा मछली मानी जाती है.
इस मछली का सिर बड़ा होता है. इस की मूछें नहीं होती हैं. यह पानी की ऊपरी सतह पर तैरने वाले प्लवकों को भोजन के रूप में खाती है. यह मछली ज्यादातर तालाब के भोजन को खाती है, लेकिन कृत्रिम भोजन भी इसे पसंद होता है. इसी वजह से तालाब में कृत्रिम भोजन का छिड़काव भी किया जा सकता है.
कतला पहले साल में ही 12-14 इंच की लंबाई में बढ़ती है. इस का वजन 1.0 किलोग्राम से ले कर 1.25 किलोग्राम तक होता है. एक कतला मछली 1 साल में 1.2 किलोग्राम तक के वजन पर 15 रुपए की लागत लेती है, जबकि इस का बाजार भाव 100 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम होता है. इस प्रकार इस से 85 से 135 रुपए तक का लाभ लिया जा सकता है.
सिल्वर कार्प : यह मछली रूस व चीन में पाई जाती है. इस का पालन भारतीय किसानों की अच्छी आमदनी का साधन है. सिल्वर कार्प लंबी व चपटे शरीर वाली मछली है. इस का सिर नुकीला व थूथन गोल होता है. यह तालाब के शैवाल व सड़ेगले पदार्थों को खाती है. इसे अलग से मछलियों का चारा खिलाया जाना भी अच्छा होता है. सिल्वर कार्प तालाब में तेजी से बढ़ती है और 12 से 14 इंच लंबी हो जाती है. 1 साल में इस का वजन 1.5 किलोग्राम से 1.8 किलोग्राम तक हो जाता है. इस मछली को पालने में प्रति मछली मात्र 15 रुपए की लागत आती है.
रोहू : इस मछली का वैज्ञानिक नाम लेबियो रोहिता है. यह भारतीय प्रजाति की सब से तेज बढ़ने वाली मछलियों में गिनी जाती है. इस प्रजाति की मछलियां सब से स्वादिष्ठ मानी जाती हैं. खाने वाले इसे सब से ज्यादा पसंद करते हैं. यह मछली तालाब के अंदर के शैवाल व जलीय पौधों की पत्तियों को खाती है. रोहू की वृद्धि दर कतला से थोड़ी कम है. यह अपने जीवनकाल में 3 फुट की लंबाई तक बढ़ सकती है, जिस का वजन 1 किलोग्राम तक पाया जाता है.
इन तमाम मछलियों के पालन के लिए 1 हेक्टेयर तालाब में 5 हजार मत्स्यबीज या अंगुलिकाएं डालने की जरूरत पड़ती है, इन के साथ तालिका में बताई जा रही अन्य प्रजातियों की मछलियों को पालना भी जरूरी होता है.
मछलियों का आहार व देखभाल : मछलियों के विकास के लिए मूंगफली, सरसों या तिल की खली को चावल की कनकी या गेहूं की चोकर के साथ बराबर मात्रा में मिला कर मछलियों के भार के 1 से 2 फीसदी की दर से देना चाहिए. अगर ग्रास कार्प मछली का पालन किया गया है, तो पानी की वनस्पतियों जैसे लेमना, हाइड्रिला, नाजाज, सिरेटो फाइलम या स्थलीय वनस्पतियों जैसे नैपियर, बरसीम या मक्के के पत्ते वगैरह जितना खाएं उतनी मात्रा में रोजाना देना चाहिए.
मछलियों के बीज तालाब में डालने के बाद हर महीने तालाब में जाल डाल कर उन के स्वास्थ्य व वृद्धि की जांच करते रहना चाहिए. अगर मछलियां परजीवी से प्रभावित हों, तो उन्हें पोटैशियम परमैगनेट यानी लाल दवा या नमक के घोल में डुबो कर तालाब में छोड़ें. मछलियों में लाल चकत्ते या घाव दिखाई दें तो अपने नजदीकी मत्स्य विभाग से जरूर संपर्क करें.
मछलियों की निकासी व बिक्री : मछलियों की उम्र जब 12-16 महीने की हो जाए और उन का वजन 1-2 किलोग्राम हो, तो उन्हें तालाब से निकाल कर स्थानीय मंडी या बाजार में बेचा जा सकता है, जिस से मत्स्यपालक अच्छा लाभ कमा सकते हैं.
साथसाथ पाली जाने वाली प्रजातियां
मछली की 6 प्रजातियों के लिए 4 प्रजातियों के लिए 3 प्रजातियों के लिए
प्रजाति तालाब में फीसदी तालाब में फीसदी तालाब में फीसदी
कतला 10 30 40
रोहू 30 25 30
नैन 15 20 30
सिल्वर कार्प 20 – –
ग्रास कार्प 10 – –
कामन 15 25 –