फल, सब्जी व अनाज की पैदावार बढ़ाने में रासायनिक खादों का इस्तेमाल बहुत मददगार साबित हुआ है, लेकिन अब महंगी खादों की आड़ में किसानों की जेबें कट रही हैं. ऊपर से खाद अब 100 फीसदी खालिस मिलनी मुश्किल हो रही है, लिहाजा खेत में डाली खाद का असर आधाअधूरा दिखता है.दरअसल खरीफ की फसलों के लिए अप्रैल से सितंबर तक व रबी के लिए अक्तूबर से मार्च तक मांग बढ़ने से खादों की किल्लत मची रहती है. ऐसे में खादों की कालाबाजारी होती है. साथ ही मिलावटखोरों की पौ बारह हो जाती है. इस खेल से नफा  चालबाजों का व नुकसान किसानों व उन की फसलों का होता है.

खादों में मिलावट के 3 तरीके हैं. पहला तरीका है खाद की नकली बोराबंदी यानी बोरे पर किसी नामी कंपनी का नामनिशान छपा होता है, पर उस के अंदर घटिया खाद भरी होती है. इस के लिए मशहूर कंपनियों की खादों के खाली बोरे खरीद कर उन में नकली खादें भर दी जाती हैं.दूसरे तरीके के तहत महंगी खादों में सस्ती खादें मिलाई जाती हैं और तीसरे तरीके में खाद में नमक व रेत वगैरह मिलाया जाता है. यूरिया में नमक, सिंगल सुपर फास्फेट में बालू व राख, कापर सल्फेट, फेरस सल्फेट व म्यूरेट आफ पोटाश में रेत व नमक मिलाया जाता है. डीएपी में दानेदार सिंगल सुपर फास्फेट व राक फास्फेट, एनपीके में सिंगल सुपर फास्फेट या राक फास्फेट, जिंक सल्फेट में मैगनीशियम सल्फेट मिला दिया जाता है.

जब मैगी के मामले में सरकार कड़े कदम उठा सकती है, तो किसानों के काम आने वाली महंगी खाद में मिलावट का मसला हमारे ओहदेदारों को अंदर तक आखिर क्यों नहीं झकझोरता? दरअसल किसानों की परवाह महज चुनावों के पहले की जाती है और खेती को बढ़ावा देने जैसी बातें फकत वोटों के लिए होती हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...