पड़ोसी की लड़की की डिलीवरी हुई और लड़का हुआ. नागपुर के जिस अस्पताल में डिलीवरी हुई वह बच्चों की चोरी के लिए पिछले दिनों काफी कुख्यात रहा था. अस्पताल में लड़की के साथ उस की मां रुकी हुई थी. एक दिन लड़की बैड पर सोई थी. नवजात शिशु रो रहा था. लड़की की मां से रहा नहीं गया. वह बच्चे को ले कर डाक्टर को दिखाने गई. उस के इस काम का असर उलटा हुआ. हुआ यों कि नर्सों ने लड़की की मां पर ही इलजाम लगा दिया कि तू यहां बच्चा चोरी करने आई है.

बहुत हंगामा हुआ. सभी वार्ड्स में जांच हुई कि कोई बच्चा चोरी तो नहीं हुआ या लापता तो नहीं है. कागजी खानापूर्ति हुई. लड़की की मां रोनेधोने लग गई. उस का बहुत बुरा हाल था. जिस का बच्चा था उस का रोतेरोते बुरा हाल था. अपना बच्चा है, यह बात सिद्ध करने के लिए उस के पास कोई सुबूत नहीं था. बस, एकमात्र उपाय यही था कि अस्पताल से कोई बच्चा लापता नहीं हुआ हो. दिनभर कागजी कार्यवाही होती रहने के बाद ही बच्चा वापस मिल सका.  

संजय कुमार मेश्राम, नागपुर (महा.)

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बैंक में टोकन ले कर अपना नंबर आने के इंतजार में लोग बैठे थे. वहीं पर बैठे एक पंडितजी ने अपनी ओर सब का ध्यान आकर्षित करते हुए पास में बैठे युवक से कहा, ‘‘बेटा, पढ़ रहे हो?’’

‘‘नहीं, पंडितजी, कंपनी में सर्विस कर रहा हूं.’’

‘‘बेटा, तुम्हारे हाथ की रेखाएं आने वाले समय में मुसीबत की ओर संकेत कर रही हैं. किसी विपत्ति में फंस सकते हो.’’

युवक ने हाथ खींचते हुए कहा, ‘‘मैं कर्म पर विश्वास करता हूं, भाग्य पर नहीं.’’

‘‘आने वाली समस्या से तुम्हें सचेत कर दिया. मैं ने जो कहा, वह सोलह आने सही निकलेगा. तब तुम मुझे जरूर याद करोगे.’’

जब उन का नंबर आया, उन्होंने काउंटर पर रुपए जमा करने के लिए दिए. मशीन में से जांच हो कर निकले 500 रुपए के नोटों में से कुछ नकली थे. कैशियर ने कहा, ‘‘पंडितजी, लगता है दानदक्षिणा में आप को नकली रुपए मिल गए.’’

तभी उस युवक ने कहा, ‘‘अभी आप बैठे हुए दूसरों का भविष्य बखान कर रहे थे पर यहां तो आप का वर्तमान ही चौपट हो गया और आप को पता ही नहीं चला. क्या आप ने अपने हाथ की रेखाएं नहीं देखी थीं?’’

अब पंडितजी की शक्ल देखने लायक थी. वे ठगे जाएंगे, यह उन्होंने भी नहीं सोचा था.

उषा श्रीवास्तव, इंदौर (म.प्र.)

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