‘‘सुनो जी, चाय बना कर पी लेना और नाश्ते में ब्रैड ले लेना. मैं कीर्तन में जा रही हूं,’’ प्रोफैसर साहब की पत्नी उन्हें सोते से जगाते हुए और विदा लेते हुए बोली.

जब तक वे सो कर जगें, वह जा चुकी थी. उन्होंने घड़ी देखी तो सुबह के 8 बजे थे. वे किसी प्रकार उठे और फ्रैश हो कर चाय बनाने में जुट गए. बेमन से चाय बनाई और ब्रैड के साथ पी गए. इस के बाद टीवी चालू कर अतीत में खो गए. आज से 30 वर्ष पूर्व उन की शादी इस शारदा से हुई थी. दरदर की ठोकर खाने के साथ दिल्ली शहर में सेल्समैन और फिर एलआईसी एजेंट का काम किया. दिनरात काम करने की धुन और मृदु व्यवहार उन्हें सफल बनाता चला गया. वे आज दोनों बेटियों को एमबीबीएस की पढ़ाई करा और यह छोटा सा फ्लैट ले पाए हैं. फ्लैट में बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के साधन हैं. समय के साथसाथ पत्नी की अंधभक्ति बढ़ती चली गई.

‘‘क्यों, आज काम पर नहीं जाना? अरे, नहाएधोए तक नहीं? न जाने कब सुधरोगे,’’ पत्नी आते के साथ ही चालू हो गई थी.

‘‘जरा एक प्याली चाय…’’ वे आधा ही बोल पाए थे कि वह फिर भड़क उठी, ‘‘बस, चायचाय, खाने की जरूरत नहीं. यह चाय तुम्हें मार डालेगी. अरे, यह जहर है जहर…’’ कहती व हाथपांव पटकती बेमन से चाय बना कर लाई और कप ऐसे पटक कर रखा कि वह टूट गया और चाय की छींटें पूरे बदन पर जा गिरीं.

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‘‘अब खड़ेखड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो. जाओ, हाथपैर धो लो वरना दाग लग जाएगा. कपड़ों पर लगा दाग मुझ से नहीं छूटने वाला,’’ वह बजाय अफसोस जाहिर करने के भड़क रही थी. वे चुपचाप उठे, स्नान किया और कपड़े पहन कर तैयार हो घर से निकल गए. अब पत्नी का व्यवहार काटने को दौड़ रहा था. वे घर से निकल कर पार्क में बैठ कर फिर से खो गए अतीत की याद में…

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30 वर्ष पूर्व वे दरभंगा के एक कालेज में समाजशास्त्र के प्राध्यापक थे. उन्होंने पीएचडी की हुई थी. उन का विवाह शारदा से हुआ. किसी वजह से कालेज की नौकरी से उन्हें निकाल दिया गया और वे रोड पर आ गए. लोगों के कहने पर दिल्ली आ गए जहां सेल्समैन का काम करने लगे. पत्नी, जो बातूनी और मुंहफट थी, की किसी से नहीं बनती थी. कलह कर के यहां आ गई. फिर तो बेटियों का जन्म, पढ़ाईलिखाई, सारे काम समय के अंतराल में निबटते गए. उन की आदत चाय पीने की थी. वे दिन में 5-6 चाय तक पी जाते थे. वहीं, पत्नी चाय बनाने से कतराती थी. कई बार इस छोटी सी बात को ले कर कलह चरम तक पहुंच चुकी थी. कई बार इस कलह के कारण आत्महत्या तक का विचार मन में आया.

धीरेधीरे समय बीतता गया और बेटियां बड़ी हो गईं. बेटियों की शादी हो गई और वे ससुराल चली गईं. वे भी बूढ़े हो गए. कई बार अन्याय को देख बेटियां भी बाप का पक्ष ले कर मां से लड़ने लगतीं तो शारदा भड़क जाती.

‘तुम ने बेटियों पर जादू कर दिया है,’ कह कर उस का रोनाधोना चालू हो जाता.

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संयोगवश उसी समय राहुल का फोन आया.

‘‘कहां हो?’’

‘‘क्यों? कुछ काम है?’’

उन का उत्तर सुनते ही वह बोला, ‘‘बस, यों ही, कुछ खास नहीं. बस, आ जाओ. काफी दिन हुए मुलाकात किए. घर पर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर वे उस के घर पर पहुंच गए.

उन के उदास चेहरे को देख वे लोग चौंक गए. फिर तो राहुल और उस की पत्नी ने जो इस का तोड़ बताया, वह अचूक था जिस ने उन की दुनिया ही बदल दी. हुआ यह कि वे उन के यहां से खाना खा कर आए और अगले दिन सुबह उठ कर उन्होंने बालों को डाई किया तथा तैयार हो कर निकल गए.

‘‘कब तक लौटोगे?’’ पत्नी के यह कहने के जवाब में चहक कर बोले, ‘‘सुनो, देर लग सकती है. रात में पार्टी से खा कर आऊंगा, तुम खाना खा लेना.’’

इतना कह कर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना वे चल दिए. दिनभर काम निबटाया और रात के 10:30 बजे जब घर लौटे तो पत्नी का चेहरा हताश था. उन्होंने कुछ नहीं पूछा और कपड़े बदल कर सो गए. पत्नी की ओर अगले दिन भी ध्यान नहींदिया. 2 दिन में वह परेशान हो गई थी. ‘कहां जाते हैं, रोज इन्हें कौन खिलाता है? कहीं कोई चक्कर तो नहीं,’ यह सोच कर वह डर गई और अपनी सहेलियों से चर्चा की. अंजाम सुन कर वह चौंक गई. कई औरतें कीर्तनभजन में लगी रहीं और दूसरी औरतें उस का सुहाग ले उड़ीं. कहीं ऐसा हो गया तो…नहीं, अब कीर्तनभजन नहीं. घर बचाना है. मगर कैसे? यह प्रश्न उसे परेशान कर रहा था. आज रात जब वे लौटे तो वह प्याज के पकौड़े बना कर तैयार कर चुकी थी. परंतु उन्होंने उस की तरफ देखा तक नहीं. अगले दिन सुबह जब फिर उठ कर तैयार होने लगे तो उस ने ‘चाय पीते जाओ’ कह कर रोकना चाहा.

‘‘नहीं, चाय मैं बाहर पी लूंगा. तुम चिंता मत करो,’’ कहते हुए जब वे बाहर निकलने लगे तो वह झट सामने आ गई.

‘‘क्या है? कुछ चाहिए क्या?’’ उन्होंने सरल स्वर में पूछा.

‘‘रोजरोज कहां से खा कर आते हो?’’ वह सरलता से पूछ रही थी.

‘‘कुछ नहीं, काम के चक्कर में बाहर लेट हो जाता हूं. तुम्हें कौन परेशान करे, इसलिए खाना बाहर ही खा लेता हूं,’’ वे मृदु स्वर में बोल कर बाहर निकल गए.

अब तो शारदा का शक यकीन में बदल गया. कुछ गड़बड़ जरूर है वरना इस तरह कभी बात नहीं करते थे. यों कटेकटे रहना, बाहर खा कर आना आदि. आज दिन में कीर्तनभजन में मन नहीं लग रहा था. कहीं कुछ हो गया तो? वह शाम 7 बजे लौट आई. पति की पसंद का खाना तैयार किया और प्रतीक्षा करने लगी.

‘‘बेटा, अब की छुट्टियों में मैं आऊंगा. तुम्हारी मां का बता नहीं सकता. वह भजनकीर्तन में खोई रहती है,’’ इतना कहते वे फोन बंद कर के कमरे में आए.

रोज की तरह कपड़े बदल कर जैसे ही लेटे, वह पास आ गई.

‘‘क्यों जी, बड़ी के पास चलना है?’’ वह प्यार से पूछ रही थी.

‘‘हां, उसी का फोन था,’’ संक्षिप्त जवाब दे कर वे सोने की कोशिश करने लगे.

‘‘सुनो, कल रविवार है. तुम्हारी पसंद का क्या बनाऊं?’’ वह प्यार से पूछ रही थी.

‘‘कुछ नहीं, कल तो मैं कीर्तन में जा रहा हूं.’’

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‘‘नहीं, कल घर में रहेंगे. न मैं कहीं जा रही हूं न आप. कोई कीर्तनभजन नहीं. बस, घर में रह कर मैं आप की पसंद का खाना बनाऊंगी,’’ यह कहती व उन के सिर में उंगली फेरती जा रही थी और वे धीरेधीरे नींद के आगोश में समा गए. इतनी बड़ी समस्या का समाधान इतनी छोटी तरकीब से होगा, यह सोचा न था.

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