अपने हिस्से से ज्यादा लेने और ज्यादा से ज्यादा पैसे बनाने के अशोक के स्वभाव ने अपने ही भाई मनोज के लिए अचानक एक मुसीबत खड़ी कर दी. ऐसे में मनोज ने क्या तरकीब अपनाई जिस से न केवल सचाई की जीत हुई बल्कि अशोक को शर्मिंदा भी होना पड़ा?

दरवाजे की घंटी बजी. मीना ने दरवाजे पर जा कर मैजिक आई से बाहर झांका. जमाने का माहौल अच्छा नहीं था, इसलिए सावधानी से काम लेना पड़ता था. बाहर खड़ा उस इलाके का डाकिया शिवलाल था. मीना ने दरवाजा खोला.

‘‘साहब के लिए रजिस्ट्री है, मैडम,’’ शिवलाल ने कहा और मीना को सरकारी किस्म का 1 लिफाफा पकड़ा दिया.

ये भी पढ़ें-अफसरी के चंद नुसखे

मीना ने रसीद पर हस्ताक्षर किए, उस के नीचे अपना टैलीफोन नंबर लिखा और शिवलाल को रसीद वापस दे दी. अंदर आ कर मीना ने लिफाफा टेबल पर रख दिया ताकि उस का पति मनोज जब शाम को दफ्तर से आएगा तब देख लेगा.

शाम को मनोज आया और उस ने लिफाफा खोला. अंदर जो कागजात थे, उन को पढ़ा. उस के माथे पर शिकन पड़ गई. उस ने कागजात दोबारा पढ़े.

‘‘मूर्ख कहीं का, गधा, बिलकुल पागल हो गया है,’’ मनोज ने नाराजगी भरे स्वर में जोर से कहा.

मीना चौंक उठी, ‘‘तुम किस के बारे में बोल रहे हो? मामला क्या है?’’

‘‘वह उल्लू, अशोक,’’ मनोज ने अपने छोटे भाई का नाम लेते हुए कहा, ‘‘उस ने मेरे खिलाफ अदालत में केस दर्ज किया है.’’

‘‘अदालत में केस?’’ मीना ने आश्चर्यजनक आवाज में पूछा, ‘‘कैसा केस? तुम ने क्या जुर्म किया है?’’

ये भी पढ़ें-दुर्घटना पर्यटन: भाग-2

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...