था अपना सा, मगर मेरा नहीं था
बहुत था दूर, पर इतना नहीं था
उसे वो तोड़ना क्यों चाहता था
बंधन जो कभी बांधा नहीं था
नहीं वो मिल सका ये है हकीकत
कहूं कैसे उसे चाहा नहीं था
उस को फुरसत तो थी, चाह न थी
था वो मसरूफ पर इतना नहीं था
जी लिया दर्द, पी लिए आंसू
कहां रोता, तेरा कांधा नहीं था.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और