मुझे डर सता रहा है
वो कहीं बदल न जाए
अभी था करीब मेरे
कहीं दूर चल न जाए
देख चांद भी छिपा है
सितारे भी सो रहे हैं
आ जाओ करीब मेरे
कहीं रात ढल न जाए
जो नज्म लिखूं मैं तो
तेरे प्यार में हो डूबी
कोई और इश्क पे
मेरे लिख गजल न जाए
छलकें न अब कभी भी
आंखों से अश्क मेरे
किस्मत कहीं ये मेरी
मुझ को छल न जाए
झुकीझुकी निगाहें और
लबों पे खामोशियां हैं
ये इश्क का जुनू है
कहीं दम निकल न जाए
देख तेरे नाम का दुपट्टा
आज ‘हीर’ ओढ़ती है
सिहर सी इक रगों में
ये दिल मचल न जाए.
हरकीरत हीर
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