था अपना सा, मगर मेरा नहीं था
बहुत था दूर, पर इतना नहीं था
उसे वो तोड़ना क्यों चाहता था
बंधन जो कभी बांधा नहीं था
नहीं वो मिल सका ये है हकीकत
कहूं कैसे उसे चाहा नहीं था
उस को फुरसत तो थी, चाह न थी
था वो मसरूफ पर इतना नहीं था
जी लिया दर्द, पी लिए आंसू
कहां रोता, तेरा कांधा नहीं था.
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