कोसी और घाघरा

भेद के फासले

मिटा गई घरों के

दिल्ली की सड़कों पर भी

नाव चले

तो कुछ बात बने

 

अट्टालिकाओं के झरोखे से झांकता

शहर का आदमी

इस उम्मीद में कि

धरती और आस्मां

एकसाथ दिखें

तो कुछ बात बने

 

घुप्प अंधेरा निराश मन

शहर की ओर ताकता इंसान

इस उम्मीद में कि

उस का पोता राहुल भी

पांवपांव चले

तो कुछ बात बने

आनंद नारायण

 

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