Family Story In Hindi : शादी जीवन का एक अहम फैसला होता है, जिसे वे चारों दोस्त ले चुके थे लेकिन उस फैसले में उन्हें अपने मातापिता की भी पूर्ण सहमति चाहिए थी क्योंकि वे अकेले नहीं, सब को साथ ले कर चलना चाहते थे.
कैंटीन में कोने की सीट पर चार दोस्तों की महफिल जमी थी. आसपास की चहलपहल से दूर वे अपनी ही बातों में गुम थे. चायकौफी की चुस्कियों के साथ उन का हंसीमजाक बदस्तूर जारी था. उन में कोई मितभाषी था तो कोई अंतर्मुखी, कोई चंचल तो कोई शांत पर दोस्ती चतुर्भुज जैसी जो सभी धर्मजाति से परे एक ऐसा वर्ग था जिस की समान आकार की भुजाएं चार दोस्त विजय, नंदिनी, अमन और शैली थे.
विजय, रवि और रमाजी का इकलौता बेटा था. विजय जब 17 वर्ष का था तब रविजी दिल्ली आ बसे थे. उन की कालोनी में ही नंदिनी का परिवार रहता था. विजय तब 11वीं कक्षा उत्तीर्ण कर के आया था और 12वीं कक्षा में एडमिशन के लिए काफी प्रयासरत था तब नंदिनी के पापा अनिलजी से हुए परिचय के कारण विजय का एडमिशन नंदिनी के ही स्कूल में हो गया था.
नंदिनी भी 12वीं कक्षा में ही थी और उस के बाद दोनों ने कालेज में एडमिशन भी एकसाथ ही लिया था. नंदिनी का एक बड़ा भाई था जो अपनी नौकरी के सिलसिले में लखनऊ में रहता था.
एडमिशन के दौरान काउंटर पर पेपर्स जमा करते हुए विजय और अमन की बातचीत हुई थी तो पता चला कि अमन भी उन्हीं की तरह कालेज में प्रथम वर्ष का विद्यार्थी था. इस तरह तीनों ने एकसाथ ही क्लास में प्रवेश किया.
शैली अपने भैयाभाभी के साथ रहती थी. उस के मातापिता एक दुर्घटना के शिकार हो असमय ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे तब वह 16 वर्ष की थी. जौन और लीना ने उस के भाईभाभी हो कर भी मातापिता का फर्ज निभाया था.
मातापिता को खोने के बाद शैली शांत हो गई थी पर जौन और लीना के वात्सल्य ने शैली को संभाल लिया. स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद उस का मन कुछ उचाट सा रहता था पर लीना चाहती थी कि शैली अभी हंसेखेले, अपनी उम्र के दोस्तों के साथ घुलेमिले इसलिए उस ने बहुत प्यार और संयम के साथ शैली को समझाया. शैली भी लीना को बहुत मानती थी, सो, उस ने भी खुलेमन से कालेज में एडमिशन लिया.
कालेज के पहले 2 दिन वह अनुपस्थित रही पर तीसरे दिन गई तो नंदिनी से हुई दोस्ती की वजह से जल्दी ही वह विजय और अमन की भी अच्छी दोस्त बन गई और इस तरह इन चारों का ग्रुप बन गया.
रविजी को नया शहर काफी रास आ गया था. यहां उन्होंने अपने बिजनैस में तेजी से तरक्की की. संपन्नता और बढ़ी तो उन्होंने अपना मकान भी बदल लिया. एक छोटी सी कोठी बनवाई थी उन्होंने जो नंदिनी के घर से थोड़ी दूरी पर थी. घरों में बेशक थोड़ी दूरियां बढ़ गई थीं परंतु दोनों परिवारों के संबंधों में कोई दूरी नहीं आई थी.
विजय, नंदिनी, अमन और शैली तब सन नब्बे के बैच में थे. अब तो उन चारों की दोस्ती भी काफी मशहूर हो रही थी. क्लासरूम में नंदिनी और शैली आगे की सीट पर और विजय और अमन ठीक उन के पीछे बैठते थे. दोस्ती गहराती गई तो चारों एकसाथ कभीकभी क्लास भी बंक करने लगे. नंदिनी और शैली ने अर्थशास्त्र लिया था, इसलिए केवल अर्थशास्त्र के पीरियड में ही चारों अलग होते थे वरना कैंटीन हो या लाइब्रेरी, चारों साथ ही रहते थे.
एक दिन कैंटीन में विजय ने पूछा, ‘‘इस रविवार का क्या प्रोग्राम है?’’
‘‘मुझे तो अपनी आंटी के घर जाना है,’’ शैली ने समोसा खाते हुए जवाब दिया.
‘‘और मुझे तो पापा ने शोरूम के लिए कुछ सामान लाने का काम सौंपा हुआ है,’’ अमन चाय की चुस्की लेता हुआ बोला.
‘‘और नंदिनी, आप कहां व्यस्त हैं?’’ विजय ने नंदिनी को देखते हुए पूछा.
‘‘कहीं नहीं, मैं बिलकुल फ्री हूं. तुम बताओ, क्या प्रोग्राम बनाना चाह रहे हो?’’ नंदिनी चुहलभरे स्वर में बोली.
‘‘अरे, मैं सोच रहा था कि संडे को औटो एक्सपो का आखिरी दिन है तो चलते हैं सब.’’
‘‘औटो एक्सपो और मैं सोच रही थी तुम किसी फिल्म की बात करोगे,’’ शैली तुनक कर बोली.
‘‘चल हट यार, ये फिल्म कहां से आ गई बीच में?’’
‘‘अमन, तू तो चल यार, सामान फिर किसी दिन ले अइयो. यों भी संडे एक्सपो का आखिरी दिन है.’’
‘‘हां यार चल, वहां तो मुझे भी जाना है और नंदिनी, तुम तो नहीं चलोगी न, तुम्हें कोई फिल्म देखने जाना होगा?’’
‘‘अरे वाह, क्यों नहीं चलूंगी, गाडि़यों पर क्या सिर्फ तुम लड़कों का ही कौपीराइट है. मैं भी चलूंगी और अपनी पसंद की गाडि़यां भी देखूंगी,’’ नंदिनी इतराते हुए बोली.
‘‘हां, और वापस लौटते हुए खरीद भी लूंगी,’’ विजय हंसते हुए बोला तो उस की यह बात सुन कर अमन और शैली भी जोर से हंस पड़े.
नंदिनी का मुंह बन गया तो अमन ने हंसते हुए उस की पीठ पर हलके से धौल जमा दी, उस पर नंदिनी खिलखिला पड़ी.
‘‘मम्मी, परसों हम लोग औटो एक्सपो देखने जा रहे हैं.’’
‘‘औटो एक्स्पो, तुम्हें कब से गाडि़यों में दिलचस्पी होने लगी?’’
‘‘अरे, क्या हो गया है सब को, क्यों नहीं जा सकती मैं औटो एक्सपो में?’’ नंदिनी मुंह ही मुंह में बोलती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ चली.
तभी अनिलजी के आने की आहट हुई तो नंदिनी ‘पापापापा’ कहते हुए उन की ओर दौड़ गई.
‘‘पापा, परसों मैं प्रगति मैदान जाऊं, वहां फेयर लगा है.’’
‘‘और यह तो पूछिए कि कैसा फेयर, गाडि़यों का औटो एक्सपो, वहां जाना है मैडम को,’’ ऊषाजी भी उन दोनों के नजदीक चली आईं.
‘‘कौनकौन जा रहा है, तुम चारों ही जा रहे हो न?’’ अनिलजी विजय के साथसाथ अमन और शैली को भी भलीभांति जानते थे.
‘‘नहीं पापा, शैली नहीं जा रही है. मैं, विजय और अमन जाएंगे, जाऊं न मैं, मेरे अच्छे पापा?’’ नंदिनी बच्चे समान मचल उठी.
यह देख कर अनिलजी की हंसी छूट गई और उन्होंने हां में सिर हिला दिया.
‘‘कालेज खत्म होने को है और बचपना अभी भी नहीं गया है,’’ ऊषाजी यह कह कर रसोई में चली गईं.
रात को बैडरूम में अनिलजी कोई किताब पढ़ रहे थे, ऊषाजी आईं और पानी का गिलास साइड टेबल पर रखते हुए बोलीं, ‘‘काफी रात हो गई है, अब सो जाइए.’’ इतना कह कर वे भी लेट गईं.
अनिलजी ने किताब बंद कर दी और ऊषाजी से मुखर हुए, ‘‘तुम्हें विजय पसंद है?’’
यह सुन कर ऊषाजी ने एक पल को अनिलजी की ओर देखा और फिर बोलीं, ‘‘आप नंदू के लिए सोच रहे हैं?’’
‘‘हां, बुराई क्या है? अच्छा लड़का है.’’
‘‘तो क्या अपनी नंदू भी उसे चाहती होगी?’’ ऊषाजी ने अपनी सवालिया नजरें अनिलजी पर टिका दीं.
‘‘अपनी नंदू को कहां कोई गाडि़यों का शौक है. औटो एक्सपो में किस लिए जा रही है जबकि शैली भी नहीं जा रही. जाहिर है, कालेज के अलावा भी विजय का और साथ पाने के लिए.’’
यह सुन कर ऊषाजी बोलीं, ‘‘हां, जोड़ी तो अच्छी है और फिर विजय है भी काफी समझदार जो अपनी नंदू के लिए बहुत अच्छी बात है. अब की बार रवि भाईसाहब से मिलें आप तो बातों ही बातों में जिक्र कर दीजिएगा.’’
कालेज का आखिरी वर्ष था. फेयरवैल की तैयारियां जोरोंशोरों से चल रही थीं. चारों ने एकसाथ ही जाने का निर्णय लिया. नंदिनी ने शैली को अपने घर में ही बुला लिया था और अमन विजय के घर पहुंचने वाला था. वहां से वे नंदिनी के घर जाने वाले थे और ऐसे सब इकट्ठे हो कर कालेज पहुंचने वाले थे.
फेयरवैल वाले दिन रमाजी ने नंदिनी को खुद तैयार किया. हलके गुलाबी रंग की साड़ी, सौम्य मेकअप और लंबे खुले बालों में नंदिनी का रूप यों दमका कि रमाजी उस की नजर उतारने को मजबूर हो गईं. नंदिनी खिलखिला कर मां के गले लग गई.
दोनों नीचे पहुंचीं तो शैली ड्राइंगरूम में पहले से बैठी हुई थी. नंदिनी को इस रूप में देख कर उस के मुंह से निकला, ‘‘अरे वाह, मेरी हीरोइन. अरे मैडम, आज हमारे कालेज का फेयरवैल है, तेरा इस घर से फेयरवैल नहीं है,’’ फिर एक उंगली ठोड़ी पर टिकाते हुए बोली, ‘‘अरे बिटिया, अभी ससुराल जाने का वक्त नहीं आया.’’
‘‘चलचल, ज्यादा बातें मत बना,’’ नंदिनी उस की ऐक्टिंग देख कर हंसते हुए बोली.
‘‘हां, जल्दी चल. विजय बाहर गाड़ी में इंतजार कर रहा है.’’
‘‘अमन नहीं आया? ये दोनों तो साथ में आने वाले थे न,’’ नंदिनी ने पूछा.
‘‘हां, वह कुछ काम पड़ गया है उसे तो अब वह सीधा कालेज ही पहुंचेगा.’’
ऊषाजी भी बाहर आईं, देखा, विजय गाड़ी की स्टेयरिंग सीट पर था. नंदिनी उस के साथ आगे बैठ गई और शैली पीछे वाली सीट पर बैठी. ऊषाजी ने हाथ हिला कर सब को हंसते हुए विदा किया.
परीक्षा परिणाम आए 3 महीने हो चुके थे. विजय अपने पापा के साथ उन के व्यवसाय में जुट गया और नंदिनी ने फैशन डिजाइनिंग कोर्स में दाखिला लिया था.
शैली के पापा बैंक में काम करते थे. शैली भी बैंक में ही जौब करना चाहती थी, इसलिए उस ने बैंकिंग की पढ़ाई करने का निश्चय किया हुआ था और वह वही कर रही थी.
अमन के पापा का ‘फर्नीचर मार्ट’ था और काफी अच्छा चलता था. शोरूम में उन का भांजा भी भरपूर सहायता करता था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी और इन सब बातों को देख कर ही अमन ने फोटोग्राफी का कोर्स करने की इजाजत मांगी, जिस की हामी उसे परिवार से सहज ही मिल गई थी.
वक्त अपनी गति से चल रहा था. 2 वर्ष और बीत गए. अब विजय के घर में उस की शादी की चर्चा काफी जोर पकड़ने लगी थी. उस के घर की टेबल लड़कियों की तसवीरों से भरी रहती थी और कुछ ऐसा ही हाल नंदिनी के घर पर भी था हालांकि उसे तसवीरें नहीं दिखाई जा रही थीं पर अब उस के मातापिता भी उस के विवाह की तीव्र इच्छा रखे हुए थे.
शैली अब बैंक में कार्यरत हो चुकी थी और अमन ने अपना छोटा सा फोटो स्टूडियो खोल लिया था.
पूरी दुनिया को मुट्ठी में कैद करने वाला यंत्र ‘मोबाइल’ तब नहीं था परंतु घर पर ट्रिनट्रिन करती लैंडलाइन की तार ने इन चारों दोस्तों की दोस्ती के तार को जोड़ रखा था.
हर 15 दिनों में एक दिन इन चारों की मुलाकात का दिन होता था. हंसीमजाक, सुखदुख, अपनेअपने क्षेत्र के अनुभव को कहनेसुनने में वक्त कैसे बीत जाता था, उन चारों को पता भी न चलता. हर मुलाकात का अंत अगली मुलाकात की तारीख निश्चित करने के साथ होता.
रविजी ने विजय के लिए एक और नई फैक्ट्री खोलने का फैसला किया. दिन और तारीख तय हुए तो मुहूर्त में सम्मिलित होने के लिए सभी को निमंत्रण देना था. रविजी ने विजय से कहा कि नंदिनी का घर पास ही है, वहां वे खुद ही हो आएंगे. उस के बाद विजय अमन और शैली के घर जा कर उन्हें सपरिवार आने का निमंत्रण दे आया था.
रविजी रमाजी के साथ नंदिनी के घर पहुंचे तो वह घर पर नहीं थी. अनिलजी और ऊषाजी ने बेहद खुलेदिल से उन का स्वागत किया. चाय का दौर चला तो घंटा, डेढ़ घंटा कब व्यतीत हो गया, पता न चला.
उन लोगों के जाने के बाद नंदिनी के मातापिता काफी संतुष्ट नजर आ रहे थे जैसे उन्हें मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. रवि और रमाजी ने उन से नंदिनी का हाथ मांगा था विजय के लिए जिस के लिए दबे शब्दों में उन लोगों ने हां भी कर दी थी. अब उन्हें केवल नंदिनी की हां का इंतजार था.
‘‘नंदू, कल रवि भाईसाहब और रमा भाभी आए थे,’’ ऊषाजी ने नाश्ते की टेबल पर नंदिनी को बताया.
‘‘अच्छा, हां, वह अंकल की नई फैक्ट्री का इनोग्रेशन है न, इसलिए, पता है मम्मी, यह नई फैक्ट्री अंकल ने विजय को सौंपनी है.’’
‘‘पता है बेटा और साथ ही अब वे लोग विजय की शादी भी करवाना चाह रहे हैं,’’ ऊषाजी ने टोहने वाले स्वर में नंदिनी से कहा.
‘‘मम्मी, जैसे आप लोग मेरे पीछे पड़े हैं न, वैसे ही अंकलआंटी भी विजय के पीछे पड़े हैं,’’ नंदिनी खुल कर हंसते हुए बोली.
‘‘तो इस में गलत क्या है, अब तुम लोग अपनीअपनी लाइफ में सैटल हो चुके हो और फिर, उम्र का तकाजा भी यही है कि अब तुम दोनों की शादी भी हो जानी चाहिए,’’ ऊषाजी उत्साहित स्वर में बोलीं.
‘‘मम्मी, मैं काफी समय से नोट कर रही हूं कि आप को मेरी शादी की बहुत जल्दी है. तो ठीक है, मैं शादी के लिए तैयार हूं पर लड़का मेरी पसंद का होगा, बताइए मंजूर है?’’ नंदिनी ने शरारती स्वर में ऊषाजी से पूछा.
‘‘नंदू, तेरे पापा और मैं ने हम दोनों ने ही हमेशा तेरी हर जायज मांग को पूरा किया है. जो पढ़ना चाहा वो पढ़ी, जो कैरियर चुनना चाहा वही चुनने दिया पर यह तेरी शादी का सवाल है, इस में केवल तेरी मरजी नहीं चलेगी, लड़का हमें भी पसंद आना चाहिए वरना फिर तुझे हमारी पसंद से ही शादी करनी होगी,’’ ऊषाजी तनिक तीखे स्वर में बोलीं.
‘‘ओ मेरी प्यारी मम्मी, फिकर नौट, लड़के को आप सालों से जानती हैं. उस की फैमिली के बारे में भी आप को पता है. बस, जल्दी ही आप लोग उस का चेहरा भी देख लेंगे,’’ इतना कह कर नंदिनी ने अपना बैग उठाया और रमाजी को बाय कह कर घर से निकल गई.
शाम की चाय पीते हुए अनिलजी बोले, ‘‘अब वह हमें लड़के से क्या मिलवाएगी, उस की बातों से तो पूरा पता चल ही गया है कि विजय ही है वह लड़का.’’
‘‘मेरा भी यही खयाल है और जरूर विजय ने भी अपने घर में ऐसी ही बात की होगी तभी तो रवि भाईसाहब ने सीधे ही नंदू को मांग लिया.’’
‘‘चलो, अच्छी बात है. दोनों बच्चों ने अपनेअपने जीवनसाथी अपनी मरजी से और बहुत अच्छे चुने हैं,’’ अनिलजी बेहद नरम स्वर में बोले.
फैक्ट्री के उद्घाटन वाले दिन वहां काफी चहलपहल थी. विजय की दादी ने फीता काटा तो उन चारों की मित्र मंडली ने सब से ज्यादा तालियां बजाईं. माहौल काफी खुशगवार था. तभी माइक हाथ में ले कर रविजी ने सब को संबोधित किया.
‘‘मेरे सभी प्रियजन, आज आप सब इस खास अवसर पर उपस्थित हुए हैं, इस के लिए मैं आप सब का दिल से आभारी हूं. आप सभी का बहुतबहुत धन्यवाद और आज इस खुशी के मौके पर ही मैं आप सब से एक और दूसरी खुशी बांटना चाहता हूं.’’ यह सुन कर विजय, नंदिनी, अनिल और शैली चारों की ही आंखों में उत्सुकता नजर आई.
विजय तो बोल भी पड़ा, ‘‘जल्दी बताइए न पापा.’’
यह सुन कर रविजी हंसते हो बोले, ‘‘बताता हूं, अच्छा तुम यहां आओ मेरे पास.’’
विजय रमाजी के साथ उन के पास पहुंचा तो रविजी दोबारा सभी मेहमानों से संबोधित हुए, ‘‘वह दूसरी खुशखबरी यह है कि आप सब बहुत जल्द ही विजय को दूल्हे के रूप में देखेंगे और जो प्यारी सी बेटी उस की दुलहन बनेगी, वह भी यहीं मौजूद है और वह है मेरे अजीज दोस्त की बेटी नंदिनी.’’ यह कह कर अनिलजी ने विजय को देखा.
चारों तरफ तालियों का शोर था पर उस शोर में विजय सहित नंदिनी, अमन और शैली चारों ही सकते की सी अवस्था में थे और एकदूजे का मुंह ताक रहे थे.
विजय ने रविजी के हाथ से माइक ले कर साइड में रखा और धीमे स्वर में उन से बोला, ‘‘पापा, यह क्या कह रहे हैं, नंदिनी और मैं, हमारी शादी, यह विचार कैसे आया आप को और आप ने मुझ से पूछा भी नहीं?’’
‘‘अरे, यह कैसी बातें कर रहे हो, कुछ दिनों पहले जबजब तुम्हारी मां और मैं ने तुम से शादी की बात की थी तो तुम ने ही कहा था कि एक लड़की है और उस के परिवार को हम लोग जानते हैं और सब से बड़ी बात, तुम ने कहा कि वह तुम्हारे साथ ही पढ़ती थी तो अब इस बात पर और सोचने की गुंजाइश ही कहां थी कि वह लड़की नंदिनी के अलावा कोई और हो सकती है.’’
विजय मुसकरा पड़ा यह सुन कर, ‘‘क्यों पापा, शैली नहीं हो सकती क्या वह लड़की?’’
आश्चर्यचकित रह गए रविजी यह बात सुन कर, ‘‘क्या कह रहे हो?’’
रमाजी तो ‘काटो तो खून नहीं’ की अवस्था में आ गईं.
‘‘विजय, तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है, वह एक क्रिश्चियन परिवार और हम कट्टर ब्राह्मण. समाज में हमें मुंह दिखाना है या नहीं,’’ रमाजी की आंखों में तो जैसे खून तैर गया हो.
‘‘ठीक कह रहा हूं, पापा. और अब एक और जरूरी बात है वह यह कि नंदिनी भी मु?ो नहीं, किसी और को पसंद करती है.’’
विजय जैसे एक के बाद एक राज का खुलासा किए जा रहा था.
‘‘पर यह फैसला मेरे अकेले का नहीं है, बल्कि कुछ देर पहले नंदिनी के मम्मीपापा से बात कर के मैं ने आज यह बात कही.’’
रविजी की बात सुन कर विजय ने कुछ दूर खड़ी नंदिनी को देखा जो अपने मम्मीपापा से शायद उन्हीं बातों पर उलझ रही थी जो बातें विजय अपने पापा से कर रहा था.
शैली और अमन के चेहरों पर भी दिल और दिमाग में चल रही उथलपुथल की छाया थी.
यह परिस्थिति और अजीब मोड़ ले, इस से पहले ही अब सब को सच्चाई से अवगत होना होगा, बस, इसी खयाल के साथ विजय ने धीमे से रमाजी का हाथ थामा और रविजी को भी साथ लिया और नंदिनी की ओर बढ़ चला.
उस के करीब पहुंच कर वह उस के मम्मीपापा से मुखातिब हुआ.
‘‘अंकलजी, आंटीजी, मुझे लगता है नंदिनी ने अब तक आप को सबकुछ बेहतर तरीके से बता दिया होगा, हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं पर आपस में शादी का विचार हम दोनों के ही दिलों में कभी नहीं उपजा. मैं, दरअसल, शैली को पसंद करता हूं.’’
यह सुन कर अनिलजी और ऊषाजी भी हैरान हो गए और हैरानीभरी निगाहों से उन्होंने रविजी की ओर देखा.
माहौल भारी सा हो उठा था कि तभी नंदिनी ने जैसे एक और बम फोड़ा हो, ‘‘मम्मी, दरअसल, मैं और अमन एकदूसरे को पसंद करते हैं.’’
‘‘क्या?’’ अनिल और ऊषाजी के एक बार फिर से चौंकने की बारी थी.
‘‘यह सब क्या उलटापुलटा हो रहा है. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा,’’ ऊषाजी यह कह कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गईं.
‘‘मैं समझती हूं, मम्मी. दरअसल, आप लोगों को गलतफहमी हो गई और हम लोगों से गलती हो गई कि मैं ने और विजय, हम दोनों ने ही आप लोगों को अपनीअपनी पसंद का सही नाम नहीं बताया.’’
‘‘और पापा, उस का नतीजा यह हुआ कि आप लोगों को लगा कि मैं और नंदिनी आपस में एकदूसरे से…’’ विजय ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया.
तभी उन सभी के पीछे से एक बारीक आवाज आई, वह आवाज थी अमन की मम्मी सुरेखाजी की.
‘‘माफ कीजिएगा, आप लोगों के बीच दखल दे रही हूं पर अब सभी बातें खुल चुकी हैं और जहां तक अब मैं समझती हूं, हमें बच्चों की पसंद को खुलेदिल से अपना लेना चाहिए.’’
सभी हैरानपरेशान से उन की तरफ देखने लगे.
‘‘आप सभी की तरह मुझे भी अमन से यह बात अभी ही पता लगी है,’’ सुरेखाजी के मुंह से यह सुन कर विजय और नंदिनी ने उस की ओर देखा.
‘‘विजय, जा तू अपने दोस्त के पास, भाईसाहब की घोषणा के बाद उसे तेरे सहारे की बहुत जरूरत है,’’ सुरेखाजी ने हंसते हुए कहा.
विजय अमन की तरफ बढ़ा तो नंदिनी भी धीमे कदमों से उस के पीछे चल दी. सम?ा गई थी कि सभी परिवार के लोग अब आपस में बात करना चाहते हैं.
‘‘इन बच्चों ने किस दुविधा में डाल दिया है,’’ रमाजी के मुंह से निकला.
‘‘दुविधा ने अभी दुविधा का रूप लिया नहीं, रमा बहन. अच्छा हुआ जो पूरी बात आज यहीं खुल गई जब हम सब एक ही जगह एकत्रित हैं. बच्चों ने अपना फैसला बता दिया है और जबरदस्ती अपनी मरजी बच्चों पर थोपने का समय अब रहा नहीं. सभी परिवार एकदूजे से भलीभांति परिचित हैं, सालों से व्यवहार में रहे हैं, ऊषा बहन, मुझे दिल से बहुत खुशी होगी अगर नंदिनी मेरे घर बेटी बन कर आएगी.’’
सुरेखाजी की यह बात सुन कर ऊषाजी ने अनिलजी की ओर देखा.
‘‘और रवि भाईसाहब, शैली बिटिया बेहद गुणी और सहज स्वभाव की है. आप के और रमा बहन के रूप में उसे अपने मातापिता का प्यार मिल जाएगा. मेरी तो बस इतनी सी विनती है कि आप इस बात पर जरूर विचार कीजिएगा,’’ सुरेखाजी ने अपनेपन से कहा.
घर आते ही रमाजी बिलकुल बिफर गईं.
‘‘विजय, यह आज क्या किया है तुम ने? विवाह के लिए जीवनसाथी चुना भी दूसरे धर्म से. दोनों ही परिवार बिलकुल ही विभिन्न धर्मों वाले. न हमें उन के धर्म के बारे में कुछ ज्ञान है न वे हमारे धर्म के बारे में कुछ जानते हैं. और ये सब कब, कैसे हो गया?’’
विजय चुपचाप सब सुन रहा था और रविजी जैसे गहरी सोच में थे.
रमाजी रविजी से फिर बोलीं, ‘‘अरे, आप भी कुछ कहिए न. हैरान हूं मैं कि आप कैसे शांत बैठे हैं, क्या आप नहीं जानते कि इस की शादी के लिए मैं ने क्याक्या सोच रखा है, क्याक्या अरमान संजोए हुए हैं?’’
रविजी ने अपनी नजरें रमाजी के चेहरे पर टिका दीं और जैसे ही उन्होंने उन के कंधे पर हाथ रखा तो रमाजी की रुलाई फूट पड़ी.
विजय ने उन्हें चुप कराने की कोशिश की तो रवि ने आंखों ही आंखों में उसे फिलहाल वहां से जाने का इशारा किया. लगभग घंटेभर बाद वे विजय के कमरे में पहुंचे तो देखा, विजय अधलेटी अवस्था में पलंग पर था. उन्हें देखते ही वह उठ कर बैठ गया. रविजी भी उस के नजदीक ही पलंग पर बैठ गए.
‘‘पापा, मम्मी कैसी हैं अब?’’
‘‘अपने कमरे में हैं. काफी रोई हैं, अभी लेटी हुई हैं.’’
‘‘पापा, उन्हें समझाइए न.’’
रविजी ने कुछ पल शांत भाव से उस की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘बेटा, हमारे लिए तो तुम हमेशा बच्चे ही रहोगे पर क्या असल जिंदगी में भी अभी छोटे बच्चे ही हो? शादी जैसे फैसले को क्या खेल समझ रखा है.’’
नंदिनी के परिवार को हम बेहतर जानते थे. वे लोग हमारी ही बिरादरी वाले हैं. लड़की दिखने में सुंदर है, सुशील है. और फिर, हम सब को अच्छी तरह जानतीसम?ाती थी पर अब अगर वह किसी और को चाहती है तो जाहिर है कि अब तुम्हारे लिए हम कोई और लड़की पसंद करते पर यह काम भी तुम ने खुद ही कर लिया. इस के लिए हमें कोई एतराज नहीं पर बिलकुल ही विपरीत धर्म की लड़की से विवाह आसान बात नहीं है.
‘‘चाहे हम शैली के परिवार को जानते हैं पर वह हम से बिलकुल अलग है, विजय. रीतिरिवाज, खानपान, पहनावा सभी कुछ तो अलग है. इस बात को तो तुम भी समझ.’’
‘‘पर पापा, मैं शैली को अच्छे से जानता हूं. वह हमारे घर आएगी तो हमारे तौरतरीके अच्छे से अपना लेगी. आप जानते हैं, वह तो मांसाहार से भी परहेज करती है.’’
‘‘देखो विजय, प्रेम संबंधों के शुरुआती दौर में यह ‘दुनिया से लड़ कर एकदूजे को अपनाएंगे’ ऐसी बातें बहुत अच्छी लगती हैं पर शादी के बाद जब हकीकत की जमीन पर कदम रखोगे न तो पांव जख्मी हो जाएंगे और वे जख्म भविष्य में नासूर बन कर रह जाएंगे.’’
विजय बेहद असमंजस की स्थिति में आ चुका था.
एक गहरी सांस ले कर रविजी बोले, ‘‘और बेटा, क्या शैली शादी के बाद अपने घर से रिश्ता तोड़ देगी, नहीं न, तो क्या तुम्हारी होने वाली संतान वहां के तौरतरीके से अनजान रहेगी? नहीं बेटे, ऐसा नहीं होगा और इन परिस्थितियों में जो सब से ज्यादा पछताएंगे, वे होंगे तुम और शैली क्योंकि अपनेअपने परिवार को खुश रखने का सारा भार तुम दोनों के कंधों पर ही होगा. इन बातों पर गौर करो, बेटा.’’
रविजी तो यह समझ कर वहां से चले गए पर अब विजय का सिर फटने को हो रहा था.
ऐसा नहीं था कि शैली और उस ने कभी इन बातों को सोचा नहीं था परंतु इतनी गहराइयों से वे इन सब बातों पर कभी विचार न कर पाए थे. इस रिश्ते के लिए ‘चाहे कुछ भी हो जाए हम अपनेअपने घर वालों को मना लेंगे’ बस यही बातें होती थीं उन की.
रविजी की बातों को सुनने के बाद वह पूरी रात बेचैनी से कमरे में टहलता रहा. सुबह रविजी ने ही रमाजी के लिए चाय बनाई और बैडरूम में ले कर पहुंचे. धीमे से उन्होंने रमाजी को उठाया. उन की आंखें सूजी सी थीं. उन्होंने चाय पीने से इनकार कर दिया. रविजी से बोलीं, ‘‘समझ दिया न आप ने विजय को कि यह शादी नहीं होगी. हम दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे? सभी रिश्तेदारों को हम पर हंसने का मौका मिल जाएगा. सभी कहेंगे कि अपनी बिरादरी से हम अपने इकलौते बेटे के लिए एक लड़की नहीं ढूंढ़ सके.’’
‘‘मैं ने उसे काफी समझाया है. अब तुम सब्र से काम लो. अभी मिलोगी तो गुस्से से बात मत करना और शैली की बात चले तो कुछ भी अनापशनाप मत बोलने लग जाना, अपना व्यवहार रोजमर्रा जैसा ही रखना.’’
रविजी के यह समझने पर विजय के घर पर तो कोई अप्रिय बात नहीं हुई परंतु नंदिनी के घर पर इन्हीं बातों की चर्चा हो रही थी.
जाहिर है, अनिलजी और ऊषाजी बीते दिन हुई घटना से उबर नहीं पाए थे.
‘‘नंदिनी, तुम ने कभी अमन के बारे में इस तरह तो नहीं बताया था कि तुम उस से शादी करना चाहती हो. हम दोनों तो विजय को ही तुम्हारे भावी वर के रूप में सोचते रहे,’’ अनिलजी ने नंदिनी से कहा.
‘‘पापा, मैं ने मम्मी से कहा था कि विजय की फैक्ट्री के मुहूर्त वाले दिन लड़के से मिलवा दूंगी, मैं उस दिन अमन का नाम आप लोगों को बताना चाहती थी पर उस से पहले ही अंकल ने…’’
अनिलजी और ऊषाजी ने एकदूजे को देखा और क्योंकि अब विजय ही शैली से शादी करना चाहता था तो विजय का नाम तो अब नंदिनी से जोड़ना फुजूल था पर अमन के परिवार से रिश्ता उन लोगों के लिए अकस्मात आया हुआ था तो इसे ले कर वे लोग अभी दुविधा में थे.
बेशक अमन की मांजी ने बीते दिन ही नंदिनी को खुले दिल से अपनी बहू बनाने की इच्छा नंदिनी के मम्मीपापा के समक्ष रखी थी पर फिर भी, इस नए रिश्ते को अपनाने में अनिल और ऊषाजी दोनों ही कुछ अनिश्चितता की अवस्था महसूस कर रहे थे और अभी कुछ समय के लिए यह बात उठाना नहीं चाहते थे.
उधर शैली के घर में जौन और लीना आपस में बात कर रहे थे, ‘‘लीना, आखिर शैली को अपनी कम्युनिटी में कोई लड़का नहीं मिला क्या जो उस ने विजय से शादी करने के बारे में सोचा?’’
‘‘सोचा नहीं जौन, वे दोनों एकदूजे को चाहते हैं. शैली सरल स्वभाव वाली एक समझदार लड़की है. अगर यह रिश्ता हुआ तो यकीन मानो, शैली कभी इस घर का नाम खराब नहीं करेगी. तुम चिंता मत करो, सब ठीक होगा.’’ लीना ने जौन के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा.
जौन की आंखों में चिंता की लकीरें कुछ कम हुईं तो उन्होंने पूछा, ‘‘तुम ने शैली से बात की?’’
‘‘हां, रात को ही की थी. वह बहुत रोई जैसे उस से उस ने प्यार नहीं, कोई अपराध कर दिया हो. जब मैं उसे संभाल रही थी तो वह रोतेरोते बोली कि वह कभी हम दोनों का दिल नहीं दुखाना चाहती थी. उस ने और विजय ने तो यह तय कर रखा है कि यदि दोनों के ही परिवार इस शादी की रजामंदी नहीं देते तो वे दोनों ही अपनेअपने परिवारों का मान रखेंगे.
घर छोड़ कर जाना या कोर्ट मैरिज जैसे कदम वे कभी न उठाते बल्कि फैमिली की रजामंदी ही उन दोनों के लिए सब से जरूरी है. तभी तो कह रही हूं, अपनी शैली को अब उस की पसंद से शादी की इजाजत दे दो. उस का मुरझाया चेहरा देखना अब मेरे बस में नहीं है. लीना की आंखों से आंसू बह चले तो जौन ने उसे सीने से लगा लिया.
अमन के पिता सुधीरजी सीधेसादे मगर व्यावहारिक व्यक्ति थे. सुरेखाजी ने उन्हें सारी बातें बताईं और साथ ही, यह भी बताया कि उन्हें काफी समय पहले से ही नंदिनी अमन के लिए बहुत पसंद है.
‘‘सिर्फ तुम्हारी पसंद से ही बात नहीं बनने वाली, नंदिनी के मातापिता भी इस रिश्ते को दिल से स्वीकारें, यह भी जरूरी है. अब तुम्हीं बताओ, उस दिन जब तुम ने अपना प्रस्ताव उन लोगों के समक्ष रखा तो उन लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी? अमन और नंदिनी ने आपस में प्रेमसंबंध तो जोड़ लिया लेकिन विवाहसंबंध जोड़ने के लिए तो मातापिता की खुशी भी तो जरूरी है.’’
‘‘आप की बात समझती हूं मैं, पर उस वक्त तो स्थिति इतनी अजीब सी हो गई थी कि मैं आप को क्या बताऊं. रमा बहन तो बिलकुल ही नाखुश दिख रही थीं. मुझे नहीं लगता कि विजय का परिवार विजय की पसंद को अपनाएगा.’’
‘‘शादीब्याह का मामला है और फिर अंतर्जातीय. नाजुक हालात हैं उन लोगों के लिए. सोचनेसमझने में उन लोगों को वक्त तो लगेगा ही.’’
‘‘अमन, सबकुछ कितना डांवांडोल सा लग रहा है. ऐसी भूलभुलैया सी लग रही है जिस में से निकलने का कोई रास्ता सुझाई नहीं दे रहा,’’ नंदिनी काफी परेशानीभरे स्वर में बोली.
‘‘कई बार समस्याएं अथाह गहरे समुद्र समान दिखती हैं जो दिखने में भयावह होता है पर भला कोई समुद्र के पानी के बहाव को रोक सका है, न कोई दीवार न कोई पहाड़. जिस तरह पानी अपना रास्ता खुद खोज लेता है उसी तरह इस परेशानी का भी कोई हल जरूर निकलेगा. तुम चिंता मत करो बल्कि शैली को थोड़ी हिम्मत दो. मैं भी कल विजय से मिलूंगा,’’ इतना कह कर अमन ने फोन का रिसीवर नीचे रख दिया.
चारों ही परिवारों के लिए अगले कुछ दिन अजीब सी कशमकश में बीते पर कहते हैं न, रात इतनी भी लंबी नहीं होती कि अंधेरे को लीलने वाले सूरज को अपने साए में छिपा ले. सूरज उदय होता है और अंधेरे में डूबी हर चीज साफसाफ नजर आने लगती है.
रविजी के पुराने और गहरे दोस्त विशाल कपूर जो सालों पहले लंदन चले गए थे, उन का किसी जरूरी काम से अगले कुछ दिनों में दिल्ली आना तय हुआ. जैसे ही रविजी को यह पता चला, वे काफी खुश हुए. बहुत अरसे बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात होने जा रही थी वरना तो चिट्ठियां और फोन ही जरिया थे दोनों की बातों के.
विशालजी ने अपने जरूरी काम निबटाए और अगले दिन जाने से पहले उन्होंने रविजी से रात के खाने के बाद घर के माहौल का जिक्र किया.
‘‘रवि यार, घर में कुछ शांत सा माहौल है, भाभी चुप सी रहती हैं और विजय, विजय तो जवान लड़का है पर एक अजीब सी उदासी उस के चेहरे पर दिखाई देती है, आखिर बात क्या है?’’
रविजी ने एक गहरी सांस ले कर विशालजी को सारी बात बताई.
सारी बात जानने के बाद विशालजी धीमे से हंस दिए.
रविजी चुपचाप उन्हें देखते रहे.
‘‘यार, मुझे तेरी दोस्ती पर बड़ा मान है पर ये धर्म, जाति की बातें बीच में न ला. तेरा खुद का मानना है कि लड़की अच्छी है, परिवार अच्छा है तो सिर्फ तेरी बिरादरी से नहीं है, इस वजह से तुम लोग वहां विजय की शादी नहीं करना चाहते, ये सब दकियानूसी विचार कम से कम मेरे सामने तो न रख. अमन और नंदिनी भी तो एक बिरादरी के नहीं हैं तब भी अमन का परिवार खुले हाथों से नंदिनी का स्वागत करने को तैयार है तो वहां नंदिनी के मातापिता राजी नहीं हो रहे. अरे, सभी उंगलियां एकसमान नहीं होतीं पर साथ मिलती हैं तभी मुट्ठी बनती है. तू भी यह बात समझ और अनिल भाई को भी समझ.’’
‘‘भारत में यह कोई छोटीमोटी बात नहीं है, शादी करनी है इकलौते बेटे की, हजार बातें सोचनी पड़ती हैं.’’
‘‘समाज की सोचना चाहता है अपने बेटे की खुशी को कुरबान कर के. अच्छा, एक बात बता, अगर तुम दोनों की बात मान कर विजय शैली से शादी न भी करे तो क्या गारंटी है कि वह तुम लोगों की पसंद से शादी कर ही लेगा. अगर उस ने शादी ही न करने का फैसला ले लिया तो तेरा समाज खुश हो जाएगा?
‘‘और, जिस बिरादरी की वकालत तू कर रहा है, जरा याद कर के बता दे कि तेरे कितने बिरादरी वालों ने अपनेअपने घर, अपने बच्चों की परवरिश, उन की शादियां तुझ से पूछ कर की हैं. देख यार, बात लाख पुरानी सही पर बिलकुल सटीक है कि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना.’’
‘‘मैं अगर मान भी जाऊं तो भी विजय की मां नहीं मानेगी, उस के बहुत सपने हैं विजय की शादी को ले कर.’’
‘‘अरे, तो कर न उन के सारे सपने पूरे. बस, अपने बच्चे की खुशी की कीमत पर नहीं, सारी रस्में, सारी खुशियां सब मना यार, तेरे बेटे की शादी है.’’
बातें खत्म हो गईं और साथसाथ रात भी ढल गई. भोर का उजाला देखते हुए रवि जी ने काफीकुछ सोच लिया था. विशालजी तो वापस चले गए पर रविजी के आगे बहुतकुछ स्पष्ट कर गए थे.
अब सब से पहले उन्हें रमा को मनाना था. ‘‘नहीं, नहीं. ये कैसी बातें कर रहे हैं आप, क्या कहेंगे सब?’’ रमाजी आज भी उन्हीं बातों पर अडिग थीं. ‘‘रमा, हमें अपने बेटे के बारे में सोचना है और यह मत भूलो कि जोरजबरदस्ती से विजय की शादी तो क्या ही करवा पाएंगे, कहीं विजय को न खो दें.’’
‘‘चुप रहिए आप, मत कीजिए ऐसी बातें,’’ रमा के आंसू बहने लगे.
‘‘रमा, मान जाओ, विजय की खुशी के बारे में सोचो और किसी के बारे में नहीं.
यह क्या कम है कि आज के वक्त में बालिग बच्चों ने कोई कदम खुद नहीं
उठाया बल्कि हम बड़ों को यथासंभव मान दे रहे हैं. मैं कल ही अनिलजी से मिलता हूं और शैली के घर भी जाता हूं. बहुत वक्त जाया हो गया, अब और नहीं. और रमा, ये सब तुम्हारे साथ के बिना संभव नहीं. बोलो, साथ हो न मेरे?’’
रमाजी ने कुछ पल उन्हें देखा और फिर मुसकरा कर हां की मुद्रा में सिर हिला दिया.
‘‘रवि भाई साहब, ये सब क्या हो गया है. हम ने तो ये सब कभी सोचा भी नहीं था,’’ अनिलजी का स्वर कुछ बुझ सा था.
‘‘अनिल भाई, यदि सोचने मात्र से ही सब काम अपने मनमुताबिक हो जाएं तो इंसानी जीवन का महत्त्व ही क्या, जीवन मिला है कुछ अच्छा करने के लिए, नई दिशा में कदम बढ़ाने के लिए, आज का वक्त धर्म, जाति, बिरादरी से ऊपर उठ कर समाज को एकसाथ ले कर चलने का है.’’
‘‘उम्र के इस मोड़ पर भी मेरा दोस्त मुझे सही राह पर चलना सिखा सकता है तो मैं भी उस के विचारों को सर्वोपरि रख कर उस राह पर कदम बढ़ा सकता हूं और चाहता हूं कि इस फैसले में मुझे चारों परिवारों का साथ भी मिले जो समाज में एकता का संदेश दें. पिछड़े विचारों को किनारे कर नई पीढ़ी को समझ कर उन के साथ खुशी से जीवनयापन करें’’
‘‘यदि हमारे इस फैसले से कुछ परिवार भी समझदारी से काम लें और अपने रिश्तों को बनाए रखें तो हमारा जीवन सार्थक हो जाएगा.’’
‘‘आप सही कह रहे हैं भाईसाहब, केवल अपने ही विचारों की धुंध में अपने ही बच्चों पर विश्वास करने की जो इबारत स्पष्ट नहीं दिख रही थी, अब आंखों के आगे साफसाफ दिख रही है. आइए, अपनेअपने समधियों के घर चलें’’ अनिलजी बेहद खुश नजर आ रहे थे.
‘‘और अब की बार रिश्ता जोड़ने में कोई जल्दबाजी नहीं करूंगा,’’ यह कह कर रविजी ठहाका मार कर हंस पड़े और अनिलजी ने भी उन का खुल कर साथ दिया.
जौन और लीना विजय को पसंद तो शुरू से ही करते थे पर अब वे उसे दूसरी ही नजरों से देख रहे थे. शैली के जीवनसाथी के रूप में स्वीकारने में हिचकिचा रहे थे पर रविजी और अनिलजी की बातों से बेहद प्रभावित हुए और उन के दिलों को काफी सुकून मिला जब रविजी ने उन्हें यह बताया कि रमाजी की भी इस रिश्ते के लिए पूर्ण सहमति है और वे लोग अब किसी संशय में न रहें. दोनों ही अब शैली को ले कर संतुष्ट हो गए थे.
सुधीरजी और सुरेखाजी को आरंभ से ही इस रिश्ते के लिए कोई मलाल न था. बस, वे लोग केवल इतना चाहते थे कि नंदिनी के मातापिता भी खुशीखुशी नंदिनी को अमन से शादी करने की इजाजत दें ताकि भविष्य में सभी के संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहें.
अनिलजी ने उन लोगों से भली प्रकार इस रिश्ते के बारे में बातें कीं. उन्होंने अमन के मातापिता को विश्वास दिलाया कि बच्चों की खुशी में ही उन की सच्ची खुशी है और वे अब इस रिश्ते को दिल से अपनाते हैं.
दोनों विवाह एक ही दिन संपन्न हुए. चार प्यारे दोस्त आज 2 खूबसूरत वैवाहिक जोड़े के रूप में दुनिया के सामने थे और उन चारों की खुशी देखते ही बनती थी.
सभी कुछ सुचारुरूप से चलने लगा. विजय और शैली ने बहुत संयम का परिचय दिया. चारों परिवार सारे तीजत्योहार मिल कर मनाते थे. रविजी और रमाजी ने शैली को अपनी बेटी की तरह अपना लिया था. शैली भी उन दोनों में अपने मातापिता की परछाईं देखती थी. अपनी समझदारी और लगन से जल्दी ही उस ने सब के दिल जीत लिए. रमाजी तो अब शैली के व्यव्हार की कायल हो चुकी थीं. अमन और नंदिनी ने भी कभी किसी परिस्थिति में अपने दोस्तों को अकेला नहीं छोड़ा.
रविजी के फैसले ने सभी बच्चों का उन की खुशियों से मिलन करवाया था. अब तो सभी लोग, चाहे वे पासपड़ोस से हों या उन के रिश्तेदार, इन परिवारों की एकता की मिसाल देते थे. जब भी किसी भी मौके पर सभी एकत्रित होते थे तो रविजी के दिल से एक ही बात निकलती थी कि ‘मैं तो अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.’ और यह कारवां था सब की खुशियों का, जो अब सामाजिक एकता का जीताजागता उदाहरण था. Family Story In Hindi
लेखिका : साहिबा टंडन