Family Story : चलो, थोड़ा रुकते हैं, थोड़ा जीते हैं. मोबाइल को जेब में रख, किसी अपने की आंखों में झांकते हैं. यही तो मन करता था नंदा का लेकिन वक्त के साथसाथ सब बदल रहा था.
मुंबई में बारिश के मौसम के बारे में कोई आम इंसान यहां सालों रहने के बाद भी अंदाजा नहीं लगा सकता. कभी लगता है, घर से निकल रहे हैं, तेज बारिश होने वाली है, छाता भी ले लो, बारिश वाले शूज भी पहन लो, ऐसे कपड़े पहन लो जो भीग कर तन से चिपट न जाएं और जब घर से बाहर निकलो तो सब सूखा. 2 घंटे बाद घर आओ तो लगता है कुछ ज्यादा ही तैयारी कर ली थी. एक बूंद भी न बरसा और कभी आसमान इतना साफ लगता है कि पक्का यकीन हो जाता है कि छाते को ढोने की कतई जरूरत नहीं है.
बीस सालों से बारिश के मौसम से नंदा यही आंखमिचौली खेल रही है या यह भी कह सकते हैं कि बारिश नंदा से आंखमिचौली खेलती है. प्रकृतिप्रेमी नंदा 45 साल की हाउसवाइफ है. वह अपने बच्चों रेयान और काव्या को कालेज और पति विजय को औफिस भेज कर 8 बजे सैर के लिए जरूर निकलती है.
पहले वह अपनी 2 सहेलियों अंजू और रेनू के साथ सैर पर जाती थी, बातें करतेकरते, हंसतेबोलते बढि़या सैर होती थी. फिर धीरेधीरे पहले अंजू, फिर रेनू गार्डन के ट्रैक पर एकदो राउंड के बाद एक बैंच पर बैठ कर रील्स देखने लगतीं, नंदा का मूड औफ हो जाता. फिर उन दोनों ने सैर पर आना ही छोड़ दिया. नंदा भी सोचती, ठीक है, साथ आ कर भी क्या कंपनी मिलती थी, दोनों फोन से ही चिपकी रहती थीं.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन





