Family Story : चलो, थोड़ा रुकते हैं, थोड़ा जीते हैं. मोबाइल को जेब में रख, किसी अपने की आंखों में झांकते हैं. यही तो मन करता था नंदा का लेकिन वक्त के साथसाथ सब बदल रहा था.

मुंबई में बारिश के मौसम के बारे में कोई आम इंसान यहां सालों रहने के बाद भी अंदाजा नहीं लगा सकता. कभी लगता है, घर से निकल रहे हैं, तेज बारिश होने वाली है, छाता भी ले लो, बारिश वाले शूज भी पहन लो, ऐसे कपड़े पहन लो जो भीग कर तन से चिपट न जाएं और जब घर से बाहर निकलो तो सब सूखा. 2 घंटे बाद घर आओ तो लगता है कुछ ज्यादा ही तैयारी कर ली थी. एक बूंद भी न बरसा और कभी आसमान इतना साफ लगता है कि पक्का यकीन हो जाता है कि छाते को ढोने की कतई जरूरत नहीं है.

बीस सालों से बारिश के मौसम से नंदा यही आंखमिचौली खेल रही है या यह भी कह सकते हैं कि बारिश नंदा से आंखमिचौली खेलती है. प्रकृतिप्रेमी नंदा 45 साल की हाउसवाइफ है. वह अपने बच्चों रेयान और काव्या को कालेज और पति विजय को औफिस भेज कर 8 बजे सैर के लिए जरूर निकलती है.

पहले वह अपनी 2 सहेलियों अंजू और रेनू के साथ सैर पर जाती थी, बातें करतेकरते, हंसतेबोलते बढि़या सैर होती थी. फिर धीरेधीरे पहले अंजू, फिर रेनू गार्डन के ट्रैक पर एकदो राउंड के बाद एक बैंच पर बैठ कर रील्स देखने लगतीं, नंदा का मूड औफ हो जाता. फिर उन दोनों ने सैर पर आना ही छोड़ दिया. नंदा भी सोचती, ठीक है, साथ आ कर भी क्या कंपनी मिलती थी, दोनों फोन से ही चिपकी रहती थीं.

रोज सैर पर दिखते लोगों से भले ही कभी बात न हो, कोई जानपहचान न हो पर रोज दिखने से एक अबूझ रिश्ता सा बनता चला जाता है. ऐसे ही नंदा 2 लोगों को एक लंबे वक्त से देख रही थी. एक, फिट और हंसमुख से बुजुर्ग अकेले सैर करते दिखते थे जिन्हें अब नंदा गुडमौर्निंग कहती आगे बढ़ने लगी थी. वे भी जवाब दे कर मुसकरा कर आगे बढ़ जाते. दूसरा, करीब 32 साल का लड़का भी सैर पर नियमित दौड़ता, भागता दिखता था.

गार्डन के बाहर एक टपरी थी जहां सैर से लौटते लोग कभीकभी रुक कर चाय पीते. नंदा का बड़ा मन करता कि कभी ऐसे ही वह भी, पुरुषों की तरह, खड़ी हो कर चाय पी ले पर वहां कोई महिला कभी अकेली न दिखती. कभी कोई रुकती भी तो उस के पति साथ होते. सालों से उस का मन होता कि वह भी किसी के साथ यहां रुके, चाय पिए, हंसेबोले. सच बात तो यह थी कि नंदा किसी से दिल खोल कर बातें करना चाहती थी पर उस के आसपास की दुनिया अब फोन में खोती जा रही थी. कभीकभी तो सैर करते हुए लोग अपने फोन में देख रहे होते थे. नंदा को ये लोग चलतेफिरते जौम्बी लगते.

ऐसे ही बारिश के मौसम का एक दिन था. नंदा साफ मौसम देख कर बिना छाते के सैर पर आ गई थी. देखते ही देखते आसमान काला हो गया और बारिश शुरू हो गई. नंदा तेज कदमों से गार्डन से निकली. उस ने देखा, वे बुजुर्ग और वह रोज आने वाला लड़का उस टपरी के अंदर खड़े हो गए हैं. बारिश होने पर टपरी वाला जल्दी से बैंच अंदर खींच देता था. नंदा को टपरी में जाने का यह मौका बड़ा लुभावना लगा. वह उन बुजुर्ग और उस लड़के को मुसकरा कर देखती हुई उन लोगों के साथ खड़ी हो गई. अपने लिए टपरी वाले को चाय का और्डर देते हुए लड़के ने बुजुर्ग और नंदा से कहा, ‘‘आप लोग चाय पियोगे?’’
नंदा ने जरा संकोच से कहा, ‘‘मैं सैर पर न तो फोन लाती हूं, न पर्स. बस, घर की चाबी ले कर आ जाती हूं.’’
‘‘तो क्या हुआ, इतना अच्छा मौसम है, आज चाय मेरी तरफ से.’’
बुजुर्ग ने ‘हां’ में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगली बार मेरी तरफ से चाय होगी.’’
नंदा हंसी, ‘‘उस से अगली बार मैं पर्स ले आऊंगी. वैसे, मेरा नाम नंदा है. ‘दोस्ती’ सोसाइटी में रहती हूं.’’
‘‘मेरा नाम अजय है, ‘कंचनपुष्प’ में रहता हूं.’’
‘‘मैं शेखर, ‘दर्शन’ में रहता हूं.’’

टपरी वाले ने तीनों को चाय दी. नंदा आज बहुत खुश थी. परिवार के साथ बड़ेबड़े होटल्स में खाना खाना अलग, आज यहां बेफिक्र, अनजान लोगों के साथ टपरी में तेज बारिश में चाय पीना, अनोखा एहसास. बुजुर्ग ने पूछ लिया, ‘‘वैसे, तुम फोन के बिना कैसे? आजकल तो बारबार फोन देखे बिना किसी को चैन नहीं आता और तुम फोन लाती ही नहीं, कमाल की बात है.’’
‘‘कुछ समय तो इंसान ऐसा बिताए जो फोन के बिना गुजरे. फोन ने तो लाइफ ही बदल कर रख दी, कोई साथ में भी हो तो भी अकेलापन लगता है. अरे, बारिश रुक गई. मैं अब भागती हूं. थैंक यू, अजय. आज मेरा एक सपना पूरा हुआ.’’
‘‘कौन सा सपना?’’
‘‘यहां टपरी पर चाय पीने का सपना. कोई साथ नहीं मिलता था.’’ वे दोनों हंसने लगे. नंदा तेजी से दोनों से ‘कल सुबह मिलते हैं’ कह कर वहां से निकल गई.

आज घर जा कर नंदा का तनमन खिला हुआ था. वह एक ताजगी से भरी थी. दिनभर के काम उस ने बहुत उत्साह से निबटाए. शाम को जब विजय और बच्चे आ गए तो वह आज उन्हें अपना टपरी का अनुभव बताना चाहती थी पर जैसा कि आज के समय में एक ही घर के लोग मीलों दूर बैठे लोगों से तो चैट कर सकते हैं पर घर में ही एकदूसरे के मन की थाह पाने में किसी को कोई रुचि नहीं. डिनर के बाद तीनों हमेशा की तरह फोन पर बिजी थे. उस ने कई बार चाहा कि सब को एकसाथ बुला कर टपरी का किस्सा सुनाए पर उसे लगा, नहीं, रहने देती हूं, विजय उपदेश देंगे कि अजनबियों से दूर रहो, बच्चे थोड़ा मजाक बना लेंगे. फिर अपनेअपने फोन में घुस जाएंगे. विजय अब तक ट्विटर पर थे. नंदा का मन नहीं माना. वह उन के पास गई, ‘‘आज की एक मजेदार बात बताऊं?’’
फोन से बिना नजरें हटाए विजय ने ‘हूं’ कहा तो नंदा ने कहा, ‘‘फोन तो रखो.’’
‘‘कुछ पढ़ रहा हूं.’’
‘‘क्या?’’
‘‘ट्रोलर्स के जवाब. मजा आ जाता है, यार. सैलिब्रिटीज के तो पीछे पड़े रहते हैं. इन लोगों के मुंह से एक शब्द निकला नहीं कि बवाल खड़ा कर देते हैं.’’

नंदा के मन में कुछ चटक सा गया. अपने मन की बात किस से करे. बच्चों के रूम में ?झांका, दोनों रील्स देखदेख कर हंस रहे थे. वह चुपचाप अपने बाकी के काम निबटाने लगी. दिल आजकल उदास रहता है. हर रिश्ते में डिजिटल तकनीक घुस आई है. उसे लगता है, यह डिजिटल तकनीक हर रिश्ते को दीमक की तरह एक दिन खा जाएगी.
बातें खत्म होती जा रही हैं. कोई बात करना चाहता है तो सुनने वाला कोई नहीं है. अगले दिन वह फिर सैर पर गई. शेखर और अजय आज अपने से लगे. दोनों उसे देख कर मुसकराए. तीनों रोज की तरह अपनीअपनी सैर अलगअलग करते रहे. फिर वहां रखी एक बैंच पर शेखर बैठे दिखे तो नंदा भी उन के पास जा कर बैठ गई. अजय भी उन दोनों के पास आ कर खड़ा हो गया, पूछा, ‘‘आप लोगों की सैर हो गई?’’
‘‘हां, आज आने का मूड नहीं था, सोचा, घर पर भी क्या करूंगा, फिर आ ही गया.’’
‘‘मैं तो अंकल को बैठा देख रुक गई.’’
‘‘और मैं आप दोनों को बैठा देख रुक गया.’’ तीनों हंसे. नंदा ने कहा, ‘‘अब किसी दिन बारिश हो तो टपरी पर फिर चाय पिएं. मुझे कल बड़ा मजा आया.’’
शेखर ने कहा, ‘‘बारिश का क्या वेट करना, चलो, चाय पी लेते हैं.’’
अजय ने कहा, ‘‘बस मैं 2 राउंड और दौड़ कर आया.’’
‘‘ओके,’’ नंदा ने थम्स अप किया. शेखर ने पूछा, ‘‘और बताओ, घर पर कौनकौन है?’’
‘‘पति और 2 कालेज जाने वाले बच्चे. आप के घर पर कौनकौन है?’’
‘‘बेटा, बहू और एक पोता. तीनों कामकाजी. और मैं रिटायर्ड आदमी. पत्नी
रही नहीं.’’
‘‘आंह, सौरी.’’
नंदा ने कनखियों से शेखर को देखा, उन का चेहरा उदास था.
थोड़ी देर में पसीने से तर अजय आ गया, ‘‘चलें?’’

पता नहीं क्या बात थी, नंदा को इन 2 अजनबियों से बात करते हुए जरा भी डर नहीं लगा, न कोई संकोच हुआ. किसीकिसी की वाइब्स इतनी पौजिटिव होती हैं, नंदा यह साफसाफ महसूस कर रही थी. वैसे भी, एक लंबे समय से दोनों को देख तो रही ही थी. उस के मन में बहुत दिनों से एक ख्वाहिश रहती थी कि उस के कुछ ऐसे दोस्त बन जाएं जो डिजिटल तकनीक की दुनिया से कुछ दूर रहने वाले हों, कुछ ब्रेक लेने वाले हों, जिन से वह कुछ बातें करे, हंसे, बोले.

वह बातें करने के लिए तरसने लगी थी. सहेलियों से कई बार कहती, ‘शौपिंग के लिए निकलें? कुछ चाटवाट खा कर गप्पें मारते हुए आ जाएंगे.’ वे कहतीं, ‘शौपिंग तो औनलाइन हो जाती है, कौन दुकानों पर, मौल में धक्के खाए.’
हां, कभी खानेपीने का प्रोग्राम बन जाता तो वहां भी उन्हें खाने की चीजों की फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड करने की जल्दी रहती. सैल्फी लेने में व्यस्त रहतीं. जो परेशानी नंदा को घर में महसूस होती, वही अब सहेलियों के साथ भी होती. मन का अकेलापन बढ़ता जा रहा था. ऐसे में मिले ये दोनों अजनबी उसे अपने से लगने लगे. वह दिल खोल कर उन दोनों से बातें करती.
टपरी में आज बाहर खड़े हो कर नंदा ने चाय पी. उस का उत्साह देख कर शेखर हंस दिए, ‘‘नंदा, टपरी में चाय पी कर कोई इतना खुश हो सकता है, यह तो मैं सोच भी नहीं सकता था.’’
‘‘खुश होने की 2 वजहें एकसाथ मिल गईं. बातें करने वाले 2 दोस्त बन गए और टपरी में चाय तो कब से पीनी थी. अजय, तुम्हारे घर पर कौनकौन है?’’
‘‘मेरी वाइफ, कंचन. अभी हम 2 ही लोग हैं.’’
‘‘वह सैर पर नहीं आती?’’
‘‘नहीं, उसे शौक नहीं. वह सोशल मीडिया की मारी है. इस शौक ने उसे थोड़ा आलसी बना दिया है. पहले अच्छीभली अपनी फिटनैस पर ध्यान देने वाली लड़की थी, अब तो उस का हर काम फोन पर ही हो जाता है. पहले तो यहां मुझ से भी तेज दौड़भाग कर जाती थी पर जैसेजैसे आलस बढ़ा, उस का सब छूट गया. वैसे, एमबीए किया है, जौब की तलाश में है.’’
शेखर कहने लगे, ‘‘मुझे लगता था कि मैं इस उम्र में अकेला जी रहा हूं, अब लग रहा है, शायद सब अकेले होते जा रहे हैं.’’
‘‘आप सही सोच रहे हैं,’’ कह कर अजय चाय के पैसे देने लगा.

नंदा बड़े हलके, खुश मन से घर लौटी. कितना अच्छा लग रहा था आज. उस के जीवन में एक ही कमी थी, वह पूरी होती दिख रही थी. उसे दोस्त मिल गए थे, अनजान थे, अजनबी थे पर दोस्त बन रहे थे. उसे उन दोनों के साथ बातें करने में, समय बिताने में जरा सा भी अपराधबोध नहीं हो रहा था. नए दोस्तों से जुड़ाव उसे कोई नुकसान भी नहीं पहुंचा पाएगा, वह यह भी महसूस कर रही थी.

शेखर उस से बहुत बड़े हैं, उन की बातों में सिर्फ स्नेह दिखा है. अजय उस से बहुत छोटा है. वह एक स्त्री है जिस की सिक्स्थ सैंस कमाल होती है. उसे इन दोनों से कभी कोई परेशानी नहीं हो सकती, यह उसे समझ आ गया है. अगर कभी कोई शंका हुई भी तो वह अपने रास्ते बदल लेगी. प्यार, मोहब्बत, धोखे जैसी चीज यहां होने वाली नहीं है.

सब को एक अकेलापन महसूस हो रहा है जो शायद आज घरघर की परेशानी है पर कोई मान नहीं रहा है. घर के काम करतेकरते उस ने सोचा, अरे हां, कल एक छोटे से स्ंिलग बैग में पैसे ले कर जाएगी. कल उन दोनों को चाय वह पिलाएगी. टपरी वाला बनमस्का भी तो रखता है, आज कोई खा रहा था, बढि़या लग रहा था. कल वह भी अपने दोस्तों के साथ खाएगी. सालों से टपरी पर लोगों को दोस्तों के साथ रुकते, चाय पीते देख रही है. अब जा कर उसे दोस्त मिले हैं. वह भी सैर के बाद रोज टपरी पर रुकेगी जब तक रुक पाएगी.
इतने में विजय का फोन आया, ‘‘अरे, कहां थीं? इतनी देर से फोन कर रहा हूं.’’
‘‘सैर पर. क्या हुआ?’’
‘‘यार, तुम फोन ले कर जाया करो.’’
‘‘नहीं, मुझे जरूरत नहीं लगती. ले गई तो मैं भी जौम्बी की तरह मशीनी सैर करने लगूंगी. वैसे भी, फोन देखते सैर करते हुए लोगों से खुद ही बचना पड़ता है. फोन क्यों किया था?’’
‘‘टैंथ फ्लोर वाले मित्तल साहब की तबीयत खराब है, उन्हें हौस्पिटल ले गए हैं. उन की वाइफ के पास कोई नहीं है, तुम उन्हें फोन कर लेना और हौस्पिटल चली जाना.’’
‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’
‘‘मित्तल साहब ने फेसबुक पर स्टेटस डाला था, ‘गोइंग टू हौस्पिटल, नौट वैल.’
‘‘तुम औफिस में भी फेसबुक देख रहे हो? वैरी गुड,’’ नंदा ने मन ही मन अपना सिर पीट लिया.
‘‘उन के पास कोई नहीं है? वे तो कहती हैं, सोशल मीडिया पर मित्तल साहब के सोसाइटी में ही बहुत फौलोअर्स हैं. उन्हें तो किसी से मिलनाजुलना भी पसंद नहीं है.’’
‘‘सारे ताने मुझे सुनाए जा रहे हैं न?’’
नंदा ने कोई जवाब नहीं दिया, बस इतना कहा, ‘‘सिंधु बाई काम कर के चली जाए तो जाती हूं. उन्हें फोन अभी कर लूंगी.’’

नंदा को याद आया, एक दिन उस ने मित्तल साहब की पत्नी नैना से कहा था, ‘बिल्ंिडग का एक गेटटुगेदर शुरू कर लें, सब से मिलतेजुलते रहना चाहिए. एक सर्कल बनना चाहिए, मिलतेजुलते रहने से अच्छा लगेगा.’
‘नहीं, क्या करना है मिलजुल कर. तुम फ्री हो तो किसी और से बात कर लो. अपना कोई ग्रुप बना लो.’

नंदा ने फिर किसी से इस बारे में बात नहीं की थी. रेनू और अंजू से दोस्ती थी ही. नंदा ने नैना से बात की, पता चला, मित्तल साहब को सीने में दर्द हुआ था. टैस्ट हो गए थे, सब ठीक था. उन्हें शायद एसिडिटी ज्यादा थी. वे शाम तक घर आने वाले थे.
नंदा ने पूछा, ‘‘आप लोगों के लिए कुछ खाना ले आऊं?’’

नैना ने कहा, ‘‘हां, प्लीज, मेरे लिए कुछ हलका सा खाना ले आओ. इन की हैल्थ के तनाव में मेरा शायद बीपी हाई हो गया है. यहीं पर चैक भी करवा लूंगी. कैंटीन में मु?ो कुछ अच्छा नहीं लगा. बस, कुछ थोड़ा सा ले आओ. बेटी बाहर ही रहती है, उसे अभी कुछ नहीं बताया, परेशान हो जाएगी.’’
नंदा को लगा, नैना सचमुच टैंशन में हैं, बात करना चाहती है, बोलती जा रही थी. ‘‘ठीक है, आप चिंता न करें, मैं कुछ ले आती हूं.’’
‘‘थैंक यू, नंदा.’’

नंदा जल्दी ही उन के लिए परांठा और सब्जी बना कर ले गई. 61 साल के मित्तल साहब अब बेहतर थे. औब्जरवेशन में रखा गया था. 55 वर्षीया नैना को नंदा ने प्यार से नाश्ता करवाया. थोड़ी देर बाद वहां से चलते हुए कहा, ‘‘आप लोगों का डिनर भी मैं बना लूंगी. आप आराम कर लेना. किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे फोन कर देना.’’
‘‘फ्री हो तो रुको न थोड़ी देर.’’

नंदा ने सोचा, आज किसी से बात करने की नैना को कितनी जरूरत महसूस हो रही है वरना आज का इंसान अपनेआप में ही सिमट कर रहने लगा है. उसे याद आया, एक दिन लिफ्ट में नैना और नंदा साथ ही थे, नैना ने उसे देख कर बस सिर हिलाया था और फोन में कुछ देखने लगी थी. पता नहीं कितने लोग अब लिफ्ट में भी नजरें मिलाए बिना फोन में ही नजरें गड़ाए रखते थे. जितना नंदा यह सब नोट कर रही थी, उस का दिल और उचाट होता रहता.

ऐसा नहीं कि वह इस डिजिटल तकनीकी विकास के खिलाफ थी, बस उसे लगता कि इस तकनीक ने एक इंसान को दूसरे इंसान से दूर कर दिया है. अब वे बातें नहीं हैं, खिलखिलाहटें नहीं हैं, गप्पें नहीं हैं. उस के चारों तरफ एक मशीनी सा जीवन है. उसे कई बार लगता कि आने वाले समय में कहीं इंसान एक मशीन बन कर न रह जाए, कोमल भावनाएं खत्म न हो जाएं. घर जा कर उस ने विजय को बता दिया कि वह हौस्पिटल से आ गई है. उस ने रेनू और अंजू को भी फोन पर नैना के बारे में बताया तो दोनों ने कहा, ‘‘ठीक है, यार. फोन पर कल या परसों पूछ लेंगे. मित्तल साहब ठीक तो हैं ही, अच्छा है.’’
‘‘जा कर मिल लेना, नैना को अच्छा लगेगा. इंतजार क्यों करना कि किसी को कुछ हो तो हाजिरी लगाएं.’’
‘‘ओके, मैडम.’’ नंदा को हंसी आ गई. फिर वह मित्तल दंपती के लिए डिनर की तैयारी में लग गई.

विजय औफिस से आए, तब तक रेयान और काव्या भी घर आ कर अपने प्रोजैक्ट पर काम कर रहे थे. नंदा ने विजय से कहा, ‘‘तुम मित्तल साहब को डिनर भी दे आओ, उन से मिल भी लो.’’
‘‘तुम ही दे आओ, मैं जा कर क्या करूंगा.’’
नंदा को गुस्सा आ गया, ‘‘फिर मुझे क्यों हौस्पिटल भेजा था?’’
‘‘तुम्हें सब से मिलनेजुलने का शौक है न, इसलिए.’’ नंदा ने विजय को गुस्से में घूरा, उस ने कहा, ‘‘अच्छा बाबा, ठीक है, चलता हूं. सोचा था, ओटीटी पर एक नया शो आया है, अभी खाना खा कर शुरू करूंगा पर ठीक है, फटाफट खाना लगाओ, फिर खाना खा कर चलते हैं.’’
नंदा विजय के साथ जा कर नैना को खाना दे आई. मित्तल दंपती नंदा को बारबार थैंक्स कहते रहे. जब दोनों घर वापस आए, रेयान ने कहा, ‘‘अब ऊपर वाले आंटीअंकल ठीक हैं?’’
‘‘हां.’’
विजय ने नंदा को चिढ़ाया, ‘‘आज तुम्हारी मम्मी बहुत खुश हैं पड़ोसिन ने बात की.’’
नंदा ने कुछ नहीं कहा. रेयान और काव्या का पूरा ध्यान अपनेअपने फोन पर था. नंदा ने कहा, ‘‘फोन पर इतना व्यस्त तो पीएम भी न रहते होंगे. सब ने हद कर रखी है.’’
जवाब हाजिर था, ‘‘आप को कैसे पता, पीएम फोन पर हम से ज्यादा व्यस्त नहीं रहते होंगे?’’ नंदा चुप रही, रूटीन चलता रहा.

अगली सुबह शेखर और अजय उस का स्लिंग बैग देख कर हंस दिए. अजय ने कहा, ‘‘आज तो आप टपरी पार्टी के लिए रेडी हो कर आई हैं.’’
‘‘हां, एक सरप्राइज भी है.’’
‘‘क्या?’’
‘‘पहले अपनी अपनी सैर खत्म कर लें.’’ तीनों अपनीअपनी स्पीड में सैर करते रहे. गार्डन बहुत बड़ा था. कई ट्रैक्स थे. बहुत से लोग यहां सैर करने आते, खूब रौनक रहती थी. बहुत हरियाली वाला एरिया था. दूरदूर से लोग यहां कारों से, बाइक्स से आते, गाडि़यां बाहर खड़ी कर के बढि़या सैर करते. सैर हो गई तो नंदा शेखर को ढूंढ़ती हुई उन की बैंच तक पहुंच गई और उन्हें पिछली शाम का मित्तल दंपती का किस्सा सुनाने लगी. शेखर ने कहा, ‘‘मतलब, तुम पड़ोसिन अच्छी हो.’’
नंदा खुले मन से हंसी. शेखर को अजय और नंदा का साथ खूब भाता. सुबह के नए दोस्त उन्हें दिन में भी कई बार याद आते. दौड़ताभागता अजय भी जल्दी ही उन के पास आ गया, बोला, ‘‘चलो, बताओ, क्या सरप्राइज है?’’
‘‘टपरी पर तो चलो.’’
तीनों टपरी पर आ गए. नंदा ने बच्चों की तरह उत्साहित हो कर कहा, ‘‘आज चाय के साथ बनमस्का भी खाएंगे. कल बड़ी अच्छी खुशबू आ रही थी.’’
दोनों ने उस का मुंह देखा, फिर जोर से हंसे. अजय ने कहा, ‘‘भाई, मेरी भागदौड़ बेकार हो जाएगी. बटर तो मैं खाता नहीं.’’
शेखर ने कहा, ‘‘मैं भी घर जा कर बस फल खाता हूं, इस सब की तो मुझे आदत नहीं.’’

नंदा का मुंह उतर गया. अजय ने फौरन कहा, ‘‘नहीं, अंकल, ऐसा करते हैं, हफ्ते में एक दिन तो खा ही सकते हैं. चलेगा, एक दिन में कुछ नहीं होता.’’ फिर टपरी वाले से कहा, ‘‘हां भाई, आज बनमस्का भी खिला दो.’’

नंदा का चेहरा खिल उठा, ‘‘ठीक है, हफ्ते में एक दिन खा लिया करेंगे,’’ नंदा बड़ा प्यारा मुसकराई. अजय ने मजाक किया, ‘‘आज तो किसी चीज की खुशबू नहीं आ रही आप को?’’

शेखर और नंदा हंस दिए. चाय के साथ बनमस्का खाते हुए नंदा का मन खिलाखिला जा रहा था. देखने में बात कितनी छोटी सी थी लेकिन नंदा, शेखर और अजय के लिए यह बात कितनी बड़ी थी, वे ही जानते थे. वे तीनों छोटीछोटी बातों के लिए तरस रहे थे, एक ऐसे साथ के लिए तरस रहे थे जहां उन के पास किसी इंसान का साथ हो, बातें हों, हंसी हो, सुकून हो. इस टपरी ने 3 एकजैसे लोगों को कैसे मिलवा दिया था, इस बात पर तीनों मन ही मन हैरान थे और खुश भी. Family Story 

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