सावित्री जैसे ही अस्पताल पहुंची कमरे में चल रहा डा. सुदर्शन और पति दीनानाथ का वार्त्तालाप सुन कर उन के कदम ठिठक गए, ‘‘देखो दीनानाथ,’’ सुदर्शन कह रहे थे, ‘‘तुम मेरी बात से सहमत हो या नहीं, यह मैं नहीं जानता, पर मेरे विचार से तुम्हें भाभी को सबकुछ सचसच बता देना चाहिए. आखिर, कब तक छिपाओगे उन से?’’

‘‘कोई बताने लायक बात हो तो बताऊं भी उस बेचारी को. एक दिन तो पता चलना ही है, तब तक तो उसे निश्ंिचतता से जी लेने दो,’’ तभी दीनानाथ का स्वर सावित्री के कानों से टकराया और वह शीघ्र ही सकते में आ गईं. मानो एकाएक किसी ने उन के कानों में गरम सीसा उड़ेल दिया हो. उन्होंने तेजी से उस कक्ष का द्वार

खोला और तूफान की गति से कमरे में प्रवेश किया.

‘‘क्या हुआ है आप को?’’ सावित्री ने हांफते हुए पूछा.

उन्हें अचानक अपने सामने पा कर एक क्षण को तो दीनानाथ का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था पर क्षणांश में ही उन्होंने खुद को संभाल लिया था.

‘‘अरे, सावित्री, क्या हुआ? बहुत बदहवास सी लग रही हो? क्या घर से भागी चली आ रही हो? दीनानाथ ने मुसकरा कर तनाव को कम करने की कोशिश की मगर सावित्री की भावभंगिमा में कोई अंतर नहीं आया.

‘‘यह मेरे प्रश्न का उत्तर तो नहीं हुआ. आखिर हुआ क्या है आप को?’’ सावित्री ने अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘वही तो... वही तो मैं डाक्टर से पूछ रहा हूं कि आखिर मुझे हुआ क्या है भाई जो मुझे यहां रोक रखा है? तुम नहीं जानतीं आजकल के इन डाक्टरों को, आप को जुकाम हुआ नहीं कि अतिथि सत्कार के मूड में आ जाते हैं. वैसे तुम्हें किस ने बताया कि मैं इस अस्पताल में हूं?’’ दीनानाथ धाराप्रवाह बोले जा रहे थे.

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