Hindi Kavita : क्यों जी रहा हूँ मैं?
ज़िन्दगी की तलास में भटक रहा हूँ मैं
ये क्या ज़िन्दगी है जिसे जी रहा हूँ मैं।
क्यों जी रहा हूँ मैं?

वक़्त ने मुंह फेरा,
अपनों ने साथ छोरा।
बेगैरत हो गया हूँ मैं|
क्यों जी रहा हूँ मैं?

न क्रोध रहा न अहंकार
न घर रहा न परिवार,
सूरज की कड़कती धूप में
मुझे ठंड का एहसास है
आँखो में रोशनी
पर जीवन में अंधकार है|

गम के साए में खुशियाँ तलास रहा हूँ मैं।
ये क्या ज़िन्दगी है जिसे जी रहा हूँ मैं।
क्यों जी रहा हूँ मैं?

लेखक : बाल कृष्ण मिश्रा                                  

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