Indian Railways : कभी गर्व का विषय रही भारतीय रेलवे अब दर्द का विषय बन गई है. यह बात इसलिए कहीं जा रही है क्योंकि रेलवे का प्रबंध अब प्रबंध नहीं कुप्रबंधन हो गया है. रेलवे को शुरू से ही एक ऐसी व्यवस्था के रूप में जाना जाता था जो भारत की जीवन रेखा कही जाती थी.
रेलवे गुलामी ला रही है
रेलवे एक ऐसी व्यवस्था है जो दूर दराज के गांव को महानगरों से जोड़ती है, यह गरीब से गरीब व्यक्ति को भी राजधानी पहुंचने का मौका देती थी लेकिन आज यही रेलवे है जो आम आदमी के जेब पर डाका डाल रही है. ऐसा लगता है कि रेल मंत्री ने जानबूझ कर रेलवे की तस्वीर बिगाड़ने की ठान ली है. भारतीय रेल अब नहीं चाहता कि गरीब लोग अब रेल की यात्रा करें. रेल मंत्री ने अब गरीब लोगों को बैलगाड़ी युग में ले जाने की पूरी तैयारी कर ली है. वे नहीं चाहते कि जो गरीब लोग जो अपने गांवघर छोड़ आए हैं वो दुबारा अपने परिवारजनों से मिलने अपने गांव जाए. दशकों पहले अंग्रेजों ने गरीबों को गुलाम बनाया था, अब भारतीय रेल उसी पटरी पर चल रही है. आम गरीब लोग जो मजदूरी करते है, बड़े शहरों में छोटामोटा काम करके पैसे जोड़कर अपने घर भेजते है, उन्हें अब भारतीय रेल साजिशन गुलाम बना बनाने पर तुली हुई है. आज भारतीय रेलवे अपमान उत्पीड़न और पीड़ा का पर्याय बन गई है. चाहे टिकट बुक करना हो या प्लेटफार्म पर पहुंचना हो या ट्रेन का शौचालय हो या ट्रेन का खान-पान हो या ट्रेन में यात्रियों की सुरक्षा हो, हर ट्रैक पर रेलवे अब पूरी तरह से विफल हो चुकी है. रेलवे का हर क्षेत्र अब व्यवस्था, भ्रष्टाचार और संवेदनशीलता के अधीन है.
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