Hindi Love stories : साधारण रंगरूप वाले कविश पर कोई ध्यान न देता था. लेकिन कालेज की सब से खूबसूरत लड़की रिया ने जब उस से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया तो वह हैरान रह गया. आखिर ऐसा क्या देखा रिया ने कविश में ?
घड़ी पर नजर पड़ते ही कविश ने जल्दी से नाश्ता किया और कालेज जाने की तैयारी करने लगा. वह बीए सैकंड ईयर में पढ़ रहा था. कालेज की तैयारी वह बहुत इत्मीनान से करता था. उस का रूपरंग साधारण था, रंग थोड़ा दबा हुआ. उस की कोशिश रहती कि कालेज स्टूडैंट्स खासकर लड़कियां उसे देखें. लेकिन उस के साधारण व्यक्तित्व को देख कर कोई भी प्रभावित नहीं होता था. उसे इस बात का बड़ा मलाल रहता.
ड्रैसअप होने के बाद उस ने मेज पर रखा हैलमेट उठाया. उस के साथ घर के सामान की लिस्ट रखी हुई थी जिसे देख कर उसे बड़ा गुस्सा आया. उस ने कई बार मम्मी से कहा भी कि उसे कालेज से आते हुए सामान लाने को न कहा करें लेकिन वह आदत से मजबूर थीं.
अब वह उस से न कहतीं, हैलमेट के साथ लिस्ट रख देती थीं और साथ में रुपए भी. उस ने खिन्न हो कर रुपए और परची जेब में रखी व मोटरसाइकिल स्टार्ट कर कालेज के लिए निकल गया.
उस का कालेज करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर था. कालेज पहुंच कर भी मम्मी को ले कर उस का रोष कम न हुआ था. उसे हमेशा लगता कि मम्मी उसे प्यार नहीं करतीं. उस की छोटी बहन ताशा को वह ज्यादा प्यार करतीं. वह दिखने में मम्मी जैसी सुंदर और गोरीचिट्टी थी. पढ़ने में भी हमेशा अव्वल रहती. उसे मलाल होता कि औरों की तरह उस की मम्मी लड़के को ज्यादा भाव न दे कर ताशा को सिर पर चढ़ा कर रखतीं. घर का कोई काम होता है तो वह ताशा की जगह उसे ही करने को कहतीं.
मम्मी की देखादेखी बड़ा होने पर भी ताशा उसे इज्जत न देती. वह भी उस पर हुक्म चलाती. कालेज में उस का जिगरी दोस्त रोशन था. क्लास खत्म कर वह बाहर निकला तो उसे रोशन कहीं दिखाई न दिया. पता लगा, आज वह कालेज नहीं आया था. उदास हो कर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया. सामने उस की क्लास के लड़कों का ग्रुप बैठा था.
उस के सामने अपनी फ्रैंड के साथ रिया बैठी थी. वे बीचबीच में एकदूसरे पर कमैंट पास कर रहे थे. रिया क्लास की सब से खूबसूरत लड़की थी. हर कोई उस से दोस्ती करना चाहता था.
कविश की भी उस से बात करने की इच्छा होती. अपने अंदर की कुंठा के कारण वह उस से बात करने में झिझक जाता. रिया और उस की फ्रैंड भी उस की ओर कभी नजर उठा कर न देखते. कविश दूर से उन की चुहलबाजी देख रहा था. घड़ी पर नजर पड़ते ही कविश क्लास की ओर बढ़ गया. कुछ देर बाद वे सब भी क्लास में चले गए.
आर्यन अपने दोस्त पीयूष के साथ अभी भी वहीं बैठा था.
‘‘चलो, क्लास में चलते हैं.’’
‘‘छोड़ यार, मैं कालेज क्लास अटैंड करने नहीं, मस्ती करने आता हूं. कौन सा मुझे पढ़लिख कर नौकरी करनी है.’’
‘‘तुम्हें न सही, मुझे तो करनी है.’’
‘‘तुझे किस ने रोका है? आराम से क्लास में जा. तब तक मैं इधरउधर कालेज में घूम रही खूबसूरत तितलियों के दीदार करता हूं.’’
‘‘तू जानता है, मैं तुझे छोड़ कर नहीं जा सकता, इसीलिए ऐसी बात कह रहा है. अपनी खातिर न सही, मेरी खातिर क्लास में चल. वहां भी बहुत सारी रंगीन तितलियां हैं.’’
न चाहते हुए भी आर्यन उस के साथ क्लासरूम की ओर बढ़ गया. उस ने सर की नजर बचा कर रिया को कुछ इशारा किया और सब से पीछे की बैंच पर जा कर बैठ गया. रिया भी मुड़मुड़ कर उसे देख रही थी. कविश सब से पहले आ कर क्लासरूम में बैठ गया था. उस का ध्यान पढ़ाई पर था. क्लास खत्म होते ही वह सीधे घर की ओर बढ़ गया. रास्ते में उसे मंडी से जरूरी सामान लेना था. मम्मी की सख्त हिदायत थी कि वहां सामान सस्ता मिलता है, इसीलिए वहीं से सामान लाया करो. वह अपनी स्थिति अच्छे ढंग से जानता था कि उस की मम्मी सीमित साधन में घर चला रही थीं.
उस के कहने पर इतना ही बहुत था कि उन्होंने उसे मोटरबाइक दिला दी थी. इस से उन्हें भी आराम हो गया था और कविश को भी. वरना उन्हें खुद रिकशा से जा कर सामान लाना पड़ता. वह एकसाथ घर का सामान ले कर आ जाती थीं. अब उसे बाइक दिला कर वह हर काम उसी से करवातीं. उस पर सामान लादने में उसे हिचक महसूस होती थी. उसे यही डर लगा रहता, कहीं कालेज का कोई साथी उसे इस तरह न देख ले. एक मोटरसाइकिल ही थी जिस की वजह से उस का थोड़ा सा मनोबल ऊंचा रहता था. शुक्र था कि किसी ने उसे देखा नहीं था. घर आ कर उस ने राहत की सांस ली. मां रोहिणी उसी का इंतजार कर रही थी.
‘‘सारे रुपए खर्च हो गए?’’
‘‘200 बचे हैं. मुझे पैट्रोल के लिए चाहिए.’’
‘‘ठीक है.’’
कविश ने मां से ज्यादा बात नहीं की. वह उस से नाराज था. अकसर जब भी वह सामान लाता, उस दिन वह मां से ज्यादा बात न करता. उस का मूड उखड़ा रहता. यह बात रोहिणी भी अच्छी तरह जानती थी. वह उस की नाराजगी को ज्यादा भाव न देती. रोहिणी ने चुपचाप सामान अंदर रखा और उस के लिए मेज पर खाना रख दिया. तभी ताशा भी आ गई. उसे चुप देख कर वह बोली, ‘‘क्या हुआ भैया, किसी से झगड़ा हो गया?’’
‘‘चुपचाप खाना खा ले.’’
‘‘आप मुझ से इस तरह बात क्यों करते हैं? कभी तो प्यार से बोल दिया करिए.’’
‘‘मम्मी है न तुम से बात करने के लिए. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है मैं तुम से बात करूं या न करूं?’’ बहस बढ़ती देख कर रोहिणी ने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया. खाना खा कर वह अपने कमरे में आ गया और मोबाइल पर रोशन से बात करने लगा. उसे घर पर जरूरी काम था, इसी वजह से आज कालेज नहीं आया था.
दोस्त से बात कर उस का मूड कुछ हलका हो गया था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनों के बीच और साथियों के बीच अपनी अच्छी इमेज कैसे बनाए. कोई उसे कुछ समझता ही नहीं था. घर पर मम्मी और ताशा उसे ज्यादा भाव न देतीं और कालेज में सहपाठी. एक रोशन ही था जो उस की भावनाओं को समझता था, शायद इसलिए कि उस के पास बाइक थी और वह उसे अपने साथ कालेज लाता, ले जाता था.
रात तक उस का मूड कुछ ठीक हो गया था. यह देख कर रोहिणी ने 2 दिन तक उसे बाजार से कुछ लाने के लिए नहीं कहा. लेकिन ऐसा कब तक चलता. हफ्तेभर बाद उस ने फिर उसे एक लिस्ट थमा दी. उसे देख कर कविश का मूड फिर से खराब हो गया. कालेज पहुंच कर उस का जी कर रहा था कि वह उसे फाड़ कर फेंक दे. उस ने लिस्ट ले कर उस की फोटो खींची. दुकानदार के सामने वह लिस्ट ले कर अपनेआप को किसी से कमतर नहीं दिखाना चाहता था. लिस्ट अभी उस के हाथ में थी.
तभी हलकी हवा चली और लिस्ट उड़ कर दूर चली गई. सामने से रिया आ रही थी. उस ने वह लिस्ट उठा ली. यह देख कर कविश धक्क रह गया. उसे लगा, इसे पढ़ कर वह जरूर उस का मजाक उड़ाएगी. वह उसे ले कर उस के पास आई और बोली-
‘‘यह लो तुम्हारी लिस्ट.’’
‘‘थैंक यू.’’
‘‘लगता है घर के काम की जिम्मेदारी तुम पर है.’’
‘‘पापा बाहर नौकरी करते हैं, मम्मी की मदद करनी पड़ती है.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. तुम्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास है. आजकल जवान होते ही युवा घर की ओर कोई ध्यान नहीं देते.’’
कविश को इसी बहाने रिया से बात करने का मौका मिल गया था. वह अपने बारे में उसे ज्यादा से ज्यादा बताना चाहता था.
‘‘मम्मी और छोटी बहन की जिम्मेदारी मुझ पर है, इसीलिए उन के काम में हाथ बंटाता हूं.’’
‘‘मुझे यह जान कर अच्छा लगा,’’ रिया बोली और लिस्ट उसे थमा कर आगे बढ़ गई.
कविश सपने में भी नहीं सोच सकता था कि कागज का यह छोटा सा टुकड़ा वह काम कर देगा जो वह पिछले एक साल से नहीं कर पाया था. उस ने उसे चूम लिया और फिर संभाल कर अपनी जेब में रख लिया. अभी क्लास में 5 मिनट का समय था तब तक रोशन भी वहां आ गया.
‘‘आज बड़े खुश दिखाई दे रहे हो. पहली बार कालेज कैंपस में तुम्हारे चेहरे पर इतनी चमक देख रहा हूं.’’
‘‘बात ही कुछ ऐसी है,’’ कह कर उस ने अभी कुछ देर पहले की घटना सुना दी.
‘‘रिया एक अच्छी लड़की है. वह जानती है किस के साथ कैसी बात करनी है.’’
‘‘मैं समझता था वह आर्यन जैसे लड़कों का साथ पसंद करती है. आज उस ने मेरे साथ बहुत अच्छे ढंग से बात की. मैं कभी इस की कल्पना भी नहीं कर सकता था.’’
‘‘टाइम हो गया. बातें बाद में भी हो जाएंगी. क्लास में चलते हैं.’’
दोनों उठ कर क्लास में आ गए. आज वह पीछे की बैंच पर बैठा था. बातों में उसे थोड़ी देर हो गई थी. रिया ने जैसे ही पलट कर देखा, उस ने एक प्यारी सी मुसकान उस की ओर उछाल दी. यह देख कर वह भी हौले से मुसकरा दी. आज उस का ध्यान पढ़ाई से हट कर रिया पर ही लगा था.
क्लास खत्म होने के साथ वे दोनों कालेज से बाहर आ गए. उस ने पहले रास्ते में रोशन को छोड़ा और उस के बाद मंडी की ओर सामान लेने को मुड़ गया. आज पहली बार उसे सामान लेने में खुशी हो रही थी. घर भी वह अच्छे मूड के साथ पहुंचा था. उस ने सामान उठा कर मेज पर रखा और आवाज लगाई, ‘‘मम्मी, भूख लगी है, खाना लगा दो.’’ इतनी देर में वह हाथ धोने चला गया.
उस का बदला हुआ रूप देख कर रोहिणी हैरान थी. कुछ कह कर वह उसे परेशान नहीं करना चाहती थी. इतना तो वह समझ गई थी कि जरूर कोई बात हुई है जिस की वजह से सामान ला कर भी वह खुश था.
‘‘ताशा नहीं आई?’’
‘‘आ रही होगी. कभीकभी औटो न मिलने की वजह से देर हो जाती है. तुम खाना खा लो वरना खाना ठंडा
हो जाएगा.’’
वह मम्मी से ढेर सारी बातें करना चाहता था लेकिन वह वहां से हट कर किचन में सामान समेटने चली गई थी. तभी ताशा आ गई. आज उस के आने पर कविश को अच्छा लगा था. खाना खाते हुए वह बोला, ‘‘तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’
‘‘आज आप को मेरी पढ़ाई की कैसे याद आ गई?’’
‘‘तुम पढ़ाई में अच्छी हो, इसीलिए जानना चाहता था. कुछ महीने बाद तुम्हारे बोर्ड एग्जाम हैं. इस बार तुम्हें पूरे स्कूल में टौप करना है.’’
‘‘वह तो मैं हर बार करती हूं, भैया. कोई नई बात नहीं है.’’
‘‘मैं तो मेहनत कर के भी अच्छे नंबर नहीं ला पाता. एक तुम ही हो जिस पर सब की उम्मीदें टिकी हैं.’’
‘‘ऐसा नहीं सोचते, भैया. आप मेहनती हैं. मेहनत की बदौलत जरूर कुछ कर लेंगे.’’
‘‘और तुम पढ़ाई की बदौलत एक दिन बहुत बड़ी शख्सियत बनोगी.’’
दोनों भाईबहनों को इस तरह हंसते हुए बात करते देख रोहिणी को अच्छा लग रहा था वरना तो ताशा को देख कर उस का मूड खराब हो जाता था. खाना खा कर वह अपने कमरे में आ गया था. वह अभी तक रिया के खयालों में खोया हुआ था.
कविश रिया से दोस्ती बढ़ाना चाहता था. आज 2 मिनट के लिए ही सही उस से बात कर के उसे बड़ा सुकून मिला था. अगले दिन वह समय से पहले आ कर कालेज गेट के पास ही खड़ा था. रिया को देखते ही उस ने हैलो कहा. बदले में उस ने प्यारी सी मुसकान के साथ हैलो का जवाब दे दिया. तभी वहां आर्यन आ गया और वह उस के साथ बातें करते हुए आगे बढ़ गई. उसे अच्छा लगा था कि रिया ने आज उस की तरफ देख कर उस की हैलो का जवाब दे दिया था. उस ने सोच लिया, एक दिन वह उस के दिल में अपनी जगह बना कर रहेगा.
इतना रिया भी जानती थी कि आर्यन टाइमपास के लिए कालेज आता था लेकिन कविश पढ़ाई को ले कर सीरियस था. अकसर वह क्लास में फर्स्ट लाइन में बैठा रहता और ध्यान से सर की बातें सुनता. रिया पढ़ने में औसत थी. उस ने भी कभी पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लिया था. एक दिन क्लास से निकलते हुए रिया बोली, ‘‘कविश, तुम ने वर्मा सर के नोट्स तैयार किए हैं?’’
‘‘थोड़ाबहुत किए हैं.’’
‘‘वैसे तो सबकुछ अब इंटरनैट पर मिल जाता है.’’
‘‘उस की बात और होती है और सर की पढ़ाई की बात कुछ और है.’’
‘‘देखती हूं, तुम बहुत ध्यान से उन्हें सुनते हो. मुझे लगा, तुम ने जरूर अच्छे नोट्स तैयार किए होंगे. हो सके तो कुछ मुझे भी दे देना. मेरा भी भला हो जाएगा,’’ रिया मुसकरा कर बोली तो कविश एकटक उसे देखने लगा.
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो?’’
‘‘तुम हंसते हुए बहुत अच्छी लगती हो.’’
‘‘यह तो बहुत घिसापिटा डायलौग है. रोमियो छाप लड़के इस का इस्तेमाल करते हैं. तुम्हें कुछ हट कर कहना चाहिए था.’’
‘‘सौरी, आइंदा इस बात का ध्यान रखूंगा.’’
‘‘चलती हूं,’’ कह कर वह आगे बढ़ गई.
वह रिया को दूर तक जाते हुए देखता रहा. उस ने सोच लिया, घर जा कर वह सब से पहले वर्मा सर की क्लास के नोट्स तैयार करेगा. ये उस के लिए भी अच्छे रहेंगे और इसी बहाने वह रिया को भी प्रभावित कर सकेगा. घर आ कर उस ने जल्दी से खाना खाया और उस के बाद नोट्स की तैयारी में लग गया. रोहिणी को समझ नहीं आ रहा था कि आजकल कविश को क्या हो गया है. वह घर पर भी दोनों से प्यार से बात करता और पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान देने लगा था.
वह चाह कर भी उस से कुछ नहीं पूछ सकी. रात देर तक बैठ कर उस ने बहुत तैयारी कर ली. अब वह पहले के मुकाबले अपनेआप को आत्मविश्वास से भरा हुआ महसूस करता. उस की चाल में भी यह सब झलकने लगा था. मम्मी के सामान की लिस्ट अब उसे परेशान न करती और वह खुशीखुशी घर के काम निबटा देता. ताशा से उस की शिकायत दूर हो गई थी. वह भी अपनी बातें भाई के साथ बांटने लगी थी.
हफ्तेभर की मेहनत में कविश ने सारे नोट्स तैयार कर दिए थे. उस ने सारी बातें रोशन को बता दी थीं. वह भी उस के लिए खुश था. शनिवार का दिन था. उस ने आज रिया को नोट्स देने के बारे में सोच लिया था. वह क्लास के बाहर उस का इंतजार कर रहा था.
कालेज से निकलते हुए पहले रिया को आर्यन ने रोक लिया. उस की बातों से निबट कर वह आगे बढ़ी. कविश को सामने देख कर उस ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रहे हो?’’
‘‘तुम्हारा कर रहा था. मैं ने वर्मा सर के सारे नोट्स तैयार कर लिए हैं.’’
‘‘थैंक यू, तुम ने मेरी बहुत बड़ी मुश्किल हल कर दी. उन का पढ़ाया हुआ मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आता. मैं इस विषय में हमेशा पिछड़ जाती हूं.’’
‘‘बुरा मत मानना, रिया, नोट्स देने से पहले मेरी एक शर्त है.’’
‘‘पढ़ाई पर भी शर्त?’’
‘‘जरूरी है. मैं ने ये नोट्स बहुत मेहनत से तैयार किए हैं केवल अपने और तुम्हारे लिए. प्लीज, इन्हें किसी और को मत देना. उन्हें भी मेहनत करनी आनी चाहिए.’’
‘‘तुम ठीक कहते हो. मेहनत तो मुझे भी करनी चाहिए थी लेकिन मैं इस काम में दिल नहीं लगा पाती. मैं तुम्हारी बात का खयाल रखूंगी,’’ रिया बोली तो कविश ने उसे नोट्स थमा दिए.
‘‘वैसे, मैं इन्हें मेल पर भी भेज सकता था लेकिन हार्ड कौपी में पढ़ने में आसानी रहती है. संभाल कर रखना.’’
‘‘चिंता मत करो, मैं इन की परवा अपने से भी ज्यादा करूंगी. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. जानती हूं इस काम में बहुत मेहनत लगती है.’’
‘‘मेरे लिए कोई और काम हो तो बेझिझक कहना.’’
‘‘है न एक काम. तुम ने इतनी मेहनत की है तो कम से कम एक कप कौफी तो साथ पी सकते हैं. चिंता मत करो, तुम्हें बिल भरने को नहीं कहूंगी. यह काम मुझे करना है. मुझे मेहनती इंसान बहुत पसंद हैं. भले ही मैं खुद इस से जी चुराती हूं.’’
‘‘तुम्हें मेरे साथ बाइक पर चलने में कोई झिझक तो नहीं.’’
‘‘झिझक कैसी, अब हमतुम दोस्त हैं.’’
यह सुन कर कविश की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने बाइक पर किक मारी. बाइक पर बैठ कर रिया ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया. उस का स्पर्श पा कर उसे लगा जैसे वह धरती पर नहीं, आकाश की सैर कर रहा है. उस के ख्वाबों को पंख लग गए थे. आज उस की दिली तमन्ना पूरी हो गई थी.
कुछ दूर आ कर रिया बोली, ‘‘सामने वाले रैस्टोरैंट की कौफी बहुत अच्छी होती है. चलो वहीं चलते हैं.’’
न चाहते हुए भी कविश ने बाइक की स्पीड कम की और उस ओर मुड़ गया. वह उस के साथ और कुछ देर बाइक पर घूमना चाहता था. किनारे की मेज पर बैठते ही रिया ने कौफी का और्डर दे दिया था और साथ में कुछ स्नैक्स भी मंगा लिए. उस की हालत देख कर रिया समझ गई कि वह पहली बार किसी लड़की के साथ बैठ कर कौफी पी रहा है.
‘‘मेरे साथ यहां बैठने में डर तो नहीं लग रहा?’’
‘‘कैसा डर, यह तो मेरे लिए खुशी की बात है.’’
‘‘आराम से कौफी पियो. मुझे घर जाने की कोई जल्दबाजी नहीं है. मम्मीपापा दोनों जौब करते हैं. घर पर इस समय कोई नहीं रहता.’’
‘‘घर पर मम्मी और बहन इंतजार कर रही होंगी, उन दोनों को मेरी चिंता रहती है. वे खाना तभी खाती हैं जब मैं घर जाता हूं.’’
‘‘तुम्हारे लिए यह बहुत खुशी की बात है कि तुम्हारे पास ऐसी मम्मी है. हमारे घर पर चंपा सुबह खाना बना कर चली जाती है. जो जब आता है तभी खा लेता है. रात में ही हमारी कभीकभी मुलाकात होती है.’’
‘‘ऐसी जिंदगी का भी अपना ही मजा है.’’
‘‘यह मजा ज्यादा देर सुकून नहीं देता. अपनों का अभाव बहुत खलता है. छोड़ो इन बातों को, तुम आगे चल कर क्या करना चाहते हो?’’
‘‘पहले ग्रेजुएशन पूरी करूंगा, फिर कंपीटिशन की तैयारी. देखो, समय कहां ले जाता है. तुम ने क्या सोचा?’’
‘‘मेरे पापा का बिजनैस है. सोचती हूं वही जौइन कर लूंगी. मुझे कुछ और करना होता तो आर्ट्स न लेती.’’
‘‘इस में क्या बुराई है. विषय तो सभी एकजैसे होते हैं. सब की अपनी अहमियत है.’’
‘‘तुम्हारी बात में दम है लेकिन आजकल यही समझ जाता है जो पढ़ने में होशियार है वह साइंस, कौमर्स ले कर चलता है. बाकी सब्जैक्ट तो मात्र डिग्री लेने के लिए होते हैं.’’
‘‘ऐसा नहीं है, मेहनत तो सभी में करनी होती है.’’
‘‘पढ़ाईलिखाई छोड़ कर कुछ और बात करो.’’
‘‘क्या करूं, समझ नहीं आता. मैं एक साधारण लड़का हूं. आज से पहले किसी लड़की के साथ ऐसे बात नहीं की.’’
‘‘आंटी ने तुम्हें बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं. छोटी उम्र में ही तुम्हें जिम्मेदार बना दिया. इस के आगे रूपरंग माने नहीं रखता,’’ रिया बोली.
कौफी खत्म हो चुकी थी. कविश ने रिया को उस के घर छोड़ दिया था. इसी बहाने उस ने रिया का घर भी देख लिया था. आज का दिन कविश की जिंदगी में बहुत माने रखता था. घर देर से पहुंचने पर रोहिणी ने पूछा, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी कविश?’’
‘‘दोस्त के साथ कौफी पीने चला गया था. आप खाना लगा दो, मुझे भूख लगी है.’’
बिना किसी लागलपेट के उस ने अपनी बात मम्मी से कह दी. ताशा तब तक खाना खा चुकी थी. वह बोली, ‘‘एक बात कहूं, भैया, अब आप बहुत खुश दिखाई देते हैं. आप के व्यक्तित्व में काफी परिवर्तन आ गया. ऐसी क्या बात हो गई?’’
उस की बात सुन कर वह मुसकरा दिया, बोला, ‘‘जैसा तू सोच रही है ऐसा कुछ नहीं है.’’
‘‘मैं भी यह कहना चाहती थी, कविश. कुछ तो है जिस ने तुझे बदल दिया.’’
‘‘मुझे किसी ने नहीं बदला, मम्मी. आप ने बदला है.’’
‘‘यह क्या कह रहा है?’’
‘‘मेहनत की कद्र करनी आप ने मुझे सिखाई. आप जानती थी कि रूपरंग, कदकाठी और योग्यता के बल पर मैं किसी को प्रभावित नहीं कर पाऊंगा.’’
‘‘तुम्हें हमेशा ताशा से शिकायत रहती थी. मैं जानती हूं वह पढ़ने में होशियार है और दिखने में खूबसूरत भी. अपनी इन 2 खूबियों के बल पर वह किसी को भी प्रभावित कर सकती है लेकिन तुम केवल मेहनत के दम पर अपना मुकाम हासिल कर सकते हो, इसीलिए मैं ने शुरू से तुम्हें मेहनत करने के लिए मजबूर किया.’’
‘‘मैं आज तक तुम्हें गलत समझता रहा, मम्मी. अब समझ में आया, मम्मी कभी गलत नहीं हो सकती.’’
‘‘देर से ही सही, तुम्हें मुझ पर विश्वास तो आया.’’
‘‘मम्मी, मेरी रिया से दोस्ती हो गई है,’’ कह कर उस ने सारी बातें उन्हें बता दीं.
रोहिणी के मन की मुराद पूरी हो गई. वह कविश के लिए बहुत खुश थी. वह जानती थी, कविश एक साधारण लड़का है जो मेहनत के बलबूते अपनी मंजिल हासिल कर सकता है. इसीलिए वह हमेशा उस के ऊपर जिम्मेदारियां डालती रहती थी.
इस वजह से उसे काम करने की आदत पड़ी. रिया ने समय पर उस की पहचान कर ली. इस से ज्यादा अच्छी बात और क्या हो सकती थी.
अब कविश को हैलमेट के साथ सामान की लिस्ट का भी इंतजार रहता. Hindi Love stories