Jassi Weds Jassi Movie Review : पंजाबी शादी-ब्याहों में मौज-मस्ती खूब होती है. खाना-पीना तो तगड़ा होता ही है, कुड़ियां सज धज कर भंगड़ा करती हैं, बैंड वालों के साथ नाचती हैं. ‘आंख मारे, वो लड़की आंख मारे...’ वाली बातें तो इन शादियों में आम हैं. इन पंजाबी कुढि़यों के कपड़े तो देखो, लिश्कारे मारते हैं.
‘जस्सी वेड्स जस्सी’ पंजाबी शादी के इर्द गिर्द घूमती हिंदी फिल्म है. इस में 1990 के दशक के प्रेम पत्र, हास्य और दिलों को खुश करने वाले पल हैं. फिल्म कॉमेडी से भरी है. शादी में जहां मस्ती होगी, कौमेडी तो अपने आप शुरू हो जाती है.
एक अच्छे हास्य के लिए शोर शराबे की नहीं बल्कि अच्छी लेखनी, ईमानदार अभिनय और पसंदीदा कहानी की जरूरत होती है. यह फिल्म हमें उस जमाने की याद दिलाती है जब प्रेमी जोड़े छिप छिप कर आपस में मिलते थे. अपना प्यार प्रेम पत्रों के जरिए जाहिर करते थे. हद से हद बगीचों में गाने गा लिए जाते थे- ‘तू कितने बरस की, मैं 16 बरस की - तू कितने बरस का, मैं 17 बरस का...’, ‘मिल गए नैना अब की बरस न कहना...’ आदि. आज के सिनेमाई दौर में सिर्फ एक गुदगुदी मुस्कान-सी बन कर उभरती है यह फिल्म. फिल्म दर्शकों को 90 के दशक की याद दिलाती है. फिल्म की कहानी उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर की है.
कहानी जसप्रीत उर्फ जस्सी (हर्षवर्धन सिंह) की है जो एक निराश और हताश प्रेमी है, उसे सच्चे प्यार की तलाश है. उस की चाहत उसे जसमीत (रहमत रतन) तक ले जाती है. लेकिन उन के बीच आ जाता है एक और जस्सी यानी जसविंदर जस्सी (सिकंदर खेर). इस के बाद शुरू होती है गलतफहमियों का दौर. इसी दौरान जस्सी सहगल (रणवीर शौरी) और उस की पत्नी स्वीटी (ग्रुशा कपूर) से टकरा जाता है जो शादी से पहले ही ऊब चुके हैं. सब के जीवन में एक तूफान सा आ जाता है और यही दर्शकों को मजा देता है. कहानी त्रिकोणीय उलझन में फंस कर रह जाती है.
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