Hindi Stories Love : अचला ससुराल आते ही 2 बच्चों की सौतेली मां बन गई, खुद मां बनने की इच्छा रहरह कर उस के मन में उठने लगी थी. लेकिन पति चाह कर भी उस की इच्छा पूरी नहीं कर सकता था.
स्कूल जाती हुई गीतू को अचला बहुत देर तक अपलक निहारती रही. फाटक के पास पहुंचते ही गीतू मां को टाटा करने लगी. मां के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट आ गई और वह भी प्रत्युत्तर में टाटा करने लगी.
गीतू के जाते ही वह वहीं बरामदे में पड़ी कुरसी पर बैठ गई और पास रखे हुए गमलों को देखने लगी. एक गमले में बेला का फूल था, दूसरे में गुलाब का. वह सोचने लगी, ‘दोनों पौधों के गमले अलगअलग हैं, लेकिन मैं...’
तभी उसे पैरों की आहट सुनाई दी. उस ने पलट कर देखा तो देव को समीप खड़े पाया. उस ने एक बार देव की ओर, फिर गमलों की ओर देखा और फिर वह तुरंत ही देव की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी.
देव ने पीछे से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘अचला, क्या बात है, तुम इतनी गंभीर हो कर क्या सोच रही हो?’’
‘‘कुछ नहीं, यों ही इन दोनों गमलों की ओर देख रही थी.’’
‘‘क्या खास बात है इन गमलों में? फूल दोनों ही गमलों में अच्छे निकले हैं.’’
अचला ने एक जोरदार ठंडी सांस ली और बोली, ‘‘हां, फूल दोनों गमलों में अच्छे निकले हैं.’’
‘‘इतनी साधारण बात को तुम इतने गंभीर ढंग से क्यों कह रही हो?’’
‘‘यह साधारण बात नहीं है. तुम देख रहे हो न, दोनों गमलों के फूल अलगअलग हैं.’’
‘‘वह तो होंगे ही.’’
‘‘बस, समझ लें, मेरे प्रश्न का उत्तर भी यही है.’’
‘‘मैं तुम्हारे प्रश्न का अर्थ नहीं समझ,’’ वह अचला के समीप वाली कुरसी पर बैठते हुए बोला.
‘‘विवाह हुए 6 वर्ष हो गए.’’
‘‘तो इस में क्या खास बात है, समय तो आगे ही बढ़ेगा, पीछे थोड़े ही लौटेगा.’’
‘‘लेकिन 6 साल में मैं ने एक बार भी मातृत्व सुख का अनुभव नहीं किया.’’
‘‘क्या गीतू को तुम अपनी बेटी नहीं समझतीं?’’
‘‘कुछ समझती हूं और कुछ समझना पड़ता है.’’
‘‘मुझे अब और बच्चे नहीं चाहिए,’’ कहते हुए वह अंदर चला गया.
अचला ने सोचसमझ कर तलाकशुदा 2 बच्चियों के पिता के साथ शादी की थी क्योंकि देव से उस का औफिस के सिलसिले में मिलनाजुलना हुआ जो प्रेम में बदल गया. देव ने दोनों बच्चियों से मिला दिया था और अचला की दोनों से पटरी भी बैठ गई थी.
अचला के मस्तिष्क में शहनाई गूंजने लगी. उसे विवाह का दिन याद आ गया. ससुराल आते ही देव की मां ने 3 वर्ष की गीतू और 4 वर्ष के सोमू, दोनों को उसे सौंप कर कहा था, ‘‘अचला, ले ये अपने बच्चे संभाल.’’ कुछ दिनों बाद सोमू को तो उस के नाना लिवा ले गए और गीतू उस की गोद में पलने लगी. अचला ने सोचा था कि उसे कभी अपने खुद के बच्चे की जरूरत नहीं होगी पर अब कुछ खटकने लगा था.
वह सोच ही रही थी कि देव फिर आ गया और उसे झकझोरते हुए बोला, ‘‘अरे, तुम भी क्या मूर्खतापूर्ण बातों में उलझ हो. चलो, दोनों खाना बनाते हैं. फिर दोनों को औफिस जाना है, देर हो रही है.’’
वह उठ कर देव के साथ अंदर चली गई. थोड़ी ही देर में तैयार हो कर दोनों औफिस चले गए. कंप्यूटर पर वह एक इलस्ट्रेशन बना रही थी. वह कंपनी की आर्टिस्ट और ग्राफिक डिजाइनर थी. उंगलियां चलातेचलाते सोचती जाती, ‘काश, मैं जिस तरह इस कैरेक्टर को बना रही हूं, उसी तरह अपने बच्चे का भी बना सकती.’
शाम को क्रैच से गीतू को क्रैच की मेड छोड़ जाती थी.
घर लौटने के आधे घंटे बाद फाटक खुलने की आवाज के साथ उस ने मुड़ कर देखा तो गीतू उसे आती हुई दिखाई दी.
गीतू आ कर उस से लिपट गई. वह उसे प्यार करने लगी.
‘‘मौम, मुझे भूख लगी है.’’
‘‘चल, खाने को कुछ देती हूं.’’
वह उठ कर अंदर चल दी. उस ने फ्रिज में से टोस्ट निकाला और प्याले में दूध डाल कर उसे दे दिया.
तो तुनक कर वह बोली, ‘‘मम्मी, मैं पिज्जा खाऊंगी.’’
‘‘बेटी, अभी नहीं है. अभी टोस्ट खा ले, शाम को पिज्जा मंगा दूंगी.’’
‘‘नहीं मम्मी. मैं अभी खाऊंगी.’’
‘‘मैं ने कहा न कि अभी नहीं मंगा सकती. अभी केला खा ले, शाम को टोस्ट दूंगी.’’
‘‘नहीं मम्मी. मैं अभी खाऊंगी.’’
‘‘मैं ने कहा न कि डबलरोटी नहीं है.’’
गीतू पैर फैला कर वहीं फर्श पर बैठ गई और रोने लगी. अचला को क्रोध आ गया. उस ने 2-3 चांटे जड़ दिए और बोली, ‘‘बहुत जिद करने लगी है तू. कह दिया न कि अभी नहीं मंगा सकती. कहां से लाऊं.’’
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