Family : कई मामले देखने को मिले हैं जहां किसी बच्ची या लड़की के साथ उस के सौतेले पिता ने या तो दुष्कर्म को अंजाम दिया या करने की कोशिश की. या फिर कहीं सौतेले बेटे को खुन्नस में मारनेपीटने की घटना देखने को मिली. ये घटनाएं सवाल खड़ा करती हैं कि सौतेला पिता सहारा है या खतरा?
सिरसा के बाल कल्याण समिति के कार्यालय में एक 12 वर्षीय बच्ची समिति की अध्यक्षा अनिता वर्मा को रोरो कर जो कुछ बता रही थी, उसे सुन कर अध्यक्षा सहित वहां उपस्थित लोगों के दिलों में उस बच्ची के पिता के लिए नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था.
बात 28 मार्च, 2025 की है, जब एक पड़ोसी द्वारा बाल कल्याण समिति का रास्ता दिखाए जाने के बाद यह बच्ची अपने पिता की शिकायत ले कर वहां पहुंची थी. उस का आरोप था कि उस का सौतेला पिता उस का बलात्कार करता है और उस के रोनेचिल्लाने पर बुरी तरह मारतापीटता है.
बच्ची ने बताया कि करीब 4 साल पहले उस की मां ने उस के सगे पिता को मार दिया था. इस के बाद मां ने दूसरी शादी कर ली. 2 साल पहले सौतेले पिता ने उस की मां को यूपी में ले जा कर मार दिया और नाबालिग बच्ची को ले कर सिरसा में एक किराए के मकान में रहने लगा. वह बच्ची से बलात्कार करता और उसे मारतापीटता था.
उस के अत्याचार से तंग आ कर एक दिन बच्ची ने डरतेडरते सारी बातें अपनी एक पड़ोसिन को बता दीं. बात फैल गई. पड़ोसियों ने बच्ची के घर आ कर न सिर्फ उस के सौतेले पिता को लताड़ा बल्कि डायल 112 पर कौल कर पुलिस बुलाने की धमकी दी. पुलिस का नाम सुन कर वह तुरंत रफूचक्कर हो गया. एक पड़ोसी बच्ची को ले कर बाल कल्याण समिति के कार्यालय में पहुंचा जहां बच्ची ने सारी आपबीती बताई. फिलहाल आरोपी फरार है. बच्ची के बयान पर पोक्सो एक्ट के तहत उस के सौतेले बाप के खिलाफ अभियोग दर्ज कर लिया गया है, बच्ची को वन स्टौप सैंटर भेज दिया गया है और कार्रवाई जारी है.
रिश्तों को किया तारतार
गाजियाबाद के भोजपुर थाना क्षेत्र के एक गांव में सौतेले पिता ने 13 वर्षीय बेटी के साथ दुष्कर्म की कोशिश की. उस पर कपड़े उतारने का दबाव बनाया. विरोध करने पर गालीगलौज करते हुए उस से मारपीट की. बच्ची के रोनेचीखने की आवाज सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. जबरन दरवाजा खुलवाया और दुष्ट को पकड़ लिया. बच्ची की शिकायत पर डायल 112 पर सूचना दी गई. पुलिस मौके पर पहुंची और आरोपी को हिरासत में ले लिया. पीडि़ता की मां की शिकायत पर पुलिस ने उस के पति के खिलाफ केस दर्ज किया. घटना 22 सितंबर, 2024 की है.
31 अगस्त, 2024, बागपत क्षेत्र के एक गांव में एक सौतेले पिता ने रिश्तों को तारतार किया. पत्नी को नींद की गोली खिला कर उस ने उस की 13 वर्षीय नाबालिग बेटी के साथ रात में रेप किया. आरोपी के खिलाफ पोक्सो एक्ट में मामला दर्ज किया गया.
बच्ची की मां कहती है कि ‘इधर एक हफ्ते से मैं रात में बड़ी गहरी नींद सो रही थी. एक दिन बच्ची स्कूल से आ कर मु झ से चिपट कर बुरी तरह रोने लगी. मैं ने उस से कारण पूछा तो वह बता नहीं पा रही थी. प्यार से पूछने पर उस ने बताया कि पापा गंदे हैं. वे मेरे साथ गंदा काम करते हैं. उस ने फिर मु झे पूरा घटनाक्रम बताया. उस ने बताया कि उस का बाप 2 बार गलत काम कर चुका है. उस ने विरोध करने की कोशिश की तो जान से मारने की धमकी दी. वह उस से डर गई थी.’
महिला ने सब से पहले अपने परिवार के लोगों को बुलाया. उन को सारी बात बताई. उस के बाद आरोपी के खिलाफ शिकायत करने के लिए लड़की के साथ थाने पहुंच गई. थाना प्रभारी संजय कुमार ने पोक्सो एक्ट सहित कई धाराओं में मामला दर्ज किया.
इस तरह की खबरों से आएदिन अखबारों के पन्ने रंगे रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि लड़कियां अपने घरों में ही सुरक्षित नहीं हैं. बहुत सी महिलाएं जो विधवा हो जाती हैं और जिन के पास बच्चे भी हैं, वे दोबारा शादी की इच्छा होने पर भी शादी नहीं करती हैं. पता नहीं नया बाप बच्चों को अपना पाए या नहीं. पता नहीं उस का व्यवहार बच्चों के साथ कैसा होगा? कहीं वह बच्चों के साथ कोई गलत हरकत न करे. पता नहीं वह बच्चों का खर्च उठाएगा या नहीं? पता नहीं वह अपनी संपत्ति पर बच्चों को हक देगा या नहीं? ऐसा न हो कि वह मु झे और बच्चों को मार कर मेरी सारी संपत्ति पर कब्जा कर ले, आदिआदि. यह डर हर मां के दिल में होता है. इस डर के कारण ही वे शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को दबा कर आजीवन अकेली ही रह जाती हैं.
रेहाना का पति 5 साल पहले एक एक्सीडैंट में चल बसा. उस वक्त रेहाना की गोद में 2 साल का रिजवान था. पति की मौत के बाद रेहाना को उस के जेठजेठानी ने इतना परेशान किया कि सालभर के अंदर ही उसे ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहना पड़ा. कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा मगर मांबाप भी रेहाना और उस के बच्चे का खर्च कब तक उठाते? वे रेहाना पर दूसरा निकाह कर लेने का दबाव बनाने लगे. रेहाना की भाभी भी यही चाहती थी कि वह जल्दी ही शादी कर के यहां से जाए. आखिर उस के बच्चे की पढ़ाई का बो झ मेरा आदमी क्यों उठाए? आखिर हमारे भी तो 2 बच्चे हैं.
आखिरकार रेहाना को अफजाल नाम के व्यक्ति से दूसरा निकाह करना पड़ा. अफजाल की पत्नी गुजर चुकी थी और उस के पास एक बेटा और एक बेटी हैं, जो शहर के नामी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं. रेहाना सोचती थी कि अफजाल उस के रिजवान को भी अच्छे स्कूल में पढ़ाएगा और रिजवान को भी भाईबहन मिल जाएंगे, मगर रेहाना के बेटे का एडमिशन अफजाल ने पास के एक थर्ड क्लास सरकारी स्कूल में करवा दिया जहां टीचर बमुश्किल ही नजर आते हैं.
अफजाल अपने बच्चों को अच्छे नए कपड़े पहनाता, मगर रेहाना के बेटे को उन के उतरे हुए कपड़े ही पहनने को मिलते हैं. वह उन की पुरानी किताबों से पढ़ता है. उन के फेंके हुए बस्ते में किताबें रख कर स्कूल जाता है. कुल मिला कर रेहाना के दूसरे पति के घर में रेहाना और उस के बेटे की हालत नौकरों जैसी है. रिजवान तो अफजाल को अब्बू कहने में भी हिचकिचाता है. उसे बारबार अपनी नानी का घर याद आता है.
पति की मौत के बाद अकेली स्त्री का जीवन काफी कठिन होता है. यदि उस के पास बच्चे हैं तो उन के पालनपोषण की पूरी जिम्मेदारी अकेले उस पर ही आ जाती है. अगर वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है और घर से बाहर निकल कर काम नहीं करती है तो बच्चों के साथ या तो वह अपने ससुराल वालों पर बो झ बन जाती है या फिर मायके वालों पर.
यदि औरत पढ़ीलिखी है और नौकरी करती है तो भी घर और नौकरी दोनों के साथ बच्चों को अकेले संभालना बहुत कठिन टास्क होता है. दोनों ही तरह की औरतें यह चाहती हैं कि कोई तो हो जो उन का थोड़ा सा सहारा बन जाए, थोड़ी सी जिम्मेदारी बांट ले, थोड़ा सा प्यार और अपनापन दे दे, उसे भी और उस के बच्चों को भी. कोई भी औरत पूरा जीवन अकेले नहीं काटना चाहती, फिर चाहे उस की उम्र 30 साल की हो या 60 की.
लेकिन भारतीय समाज में यह पाया गया है कि अधिकांश मामलों में बच्चों वाली औरत जब दूसरी शादी करती है तो सौतेला पिता बच्चों को पूरे दिल से अपना नहीं पाता. बच्चे उस के घर में उपेक्षित रहते हैं. उन का पालनपोषण ठीक तरीके से नहीं हो पाता. कई बार तो उन की अति आवश्यक जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं. सौतेले पिता द्वारा मौका मिलते ही बेटियों के साथ दुर्व्यवहार और बलात्कार के मामले बहुतायत से देखे जाते हैं. इन्हीं घटनाओं के कारण औरतें चाह कर भी दूसरी शादी नहीं कर पाती हैं.
लालच भी वजह
कई बार औरत के पास पहले पति की छोड़ी हुई संपत्ति भी होती है. कई बार संपत्ति के लालच में दूसरा आदमी ऐसी औरत से शादी कर लेता है और फिर उस की पूरी संपत्ति पर अजगर बन कर बैठ जाता है. ऐसी स्थिति में भी बच्चे प्रताडि़त रहते हैं और बच्चों की दशा देख कर औरत भी खुश नहीं रहती.
बहुत कम मर्द ऐसे होते हैं जो सचमुच अपनी पत्नी के बच्चों को सगे पिता जैसा प्यार देते हैं और अपनी चलअचल संपत्ति पर उन को हक दे पाते हैं. यह तभी संभव है जब वह मर्द उस औरत से कुछ हद तक प्रेम करता हो और उस की खुद की कोई औलाद न हो. मगर ऐसे लोग कम ही दिखते हैं.
तो क्या बच्चों की खातिर औरतें अपनी इच्छाओं का गला घोंट लें? वे पूरी उम्र अकेलेपन में बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए जिएं? अपनी शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को मारती रहें अथवा समाज और परिवार से छिपा कर गलत रास्ते से, जो खतरनाक भी हो सकता है, उन जरूरतों को पूरा करें?
गौरतलब है कि बच्चों को 18-20 साल की उम्र तक मां की जरूरत होती है. पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उन की नौकरी लगती है, मां की जरूरत कम होती जाती है. शादी के बाद तो और कम हो जाती है. यदि सास और बहू की आपस में बनी तो ठीक वरना कुछ ही साल बाद वह मां जिस ने अपना पूरा जीवन बच्चे की खातिर अकेलेपन में गुजार दिया, बेटेबहू को कांटे की तरह चुभने लगती है और वे उस से छुटकारा पाने के रास्ते ढूंढ़ने लगते हैं.
विधवा स्त्री की संतान यदि बेटियां हों तब भी उन की शादियां कर के वह अकेली रह जाती है. शादीशुदा बेटी मां की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती, हारीबीमारी में उस के पास नहीं रह सकती, उस का अकेलापन दूर नहीं कर सकती क्योंकि उस के पैरों में ससुराल की जिम्मेदारियों की बेडि़यां पड़ जाती हैं.
अकेले रहना कठिन
दिल्ली के सरकारी वृद्धाश्रम में ऐसी कई बुजुर्ग महिलाएं हैं जिन्होंने पति की मौत के बाद बच्चों का मुंह देख कर दूसरी शादी नहीं की, मगर जब बच्चे बड़े हो गए और उन की शादियां हो गईं तो उन्होंने बूढ़ी अकेली मां को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया.
ऐसे में बच्चों की खातिर औरत पूरी उम्र तनहा गुजारे, यह कोई सम झदारी तो नहीं होगी. दूसरे की खुशी के लिए अपनी जिंदगी को नर्क बना लेना ठीक नहीं है. किसी भी इंसान के लिए उस का खुद का जीवन प्रमुख है. ऐसे में समाज और परिवार को औरतों के बारे में अपना दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है. संविधान ने स्त्री को बहुत सारे हक दिए हैं, मगर वह उन अधिकारों को इस्तेमाल में नहीं ला पाती क्योंकि एक तरफ शिक्षा अधूरी रहती है तो दूसरी तरफ परिवार औरत को इतना दबा कर रखता है कि वह अपनी जरूरतों, इच्छाओं और अधिकारों के बारे में आवाज नहीं उठा पाती.
मध्यम और उच्च वर्ग में देखा गया है कि जो महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं, सम झदार हैं और नौकरीपेशा हैं, जब उन का साथ पति से छूट जाता है, तब वे बहुत ठोंकबजा कर ऐसे मर्द को दूसरे पति के रूप में चुनती हैं जो उन की शर्तों पर साथ रहे या साथ रखे. पढ़ीलिखी और आर्थिक रूप से मजबूत स्त्री के बच्चे भी कान्फिडैंस से भरे होते हैं और यदि सौतेला बाप उन के साथ कोई दुर्व्यवहार करता है तो वे उस को अपनस समय मान कर सहन नहीं करते बल्कि भरपूर विरोध करते हैं.
‘भय बिनु होय न प्रीत गोसाईं’ कहावत भी उसी समाज की देन है जिस समाज में प्रेम को बड़ा पवित्र और नि:स्वार्थ कहा गया है. दरअसल दुनिया में कोई भी संबंध नि:स्वार्थ नहीं होता है. हम सब एकदूसरे से किसी न किसी स्वार्थवश ही जुड़े हैं. यह स्वार्थ शारीरिक जरूरत का है, भावनात्मक जरूरत का है, आर्थिक जरूरत का है और सुरक्षा का है. इन्हीं स्वार्थों के चलते विवाह संस्थान का जन्म हुआ. भारतीय समाज में स्त्री सदैव पुरुष से कमजोर बना कर रखी गई. वह भयवश ही पुरुष से प्रेम और सैक्स करती है, भयवश ही उस के घर की देखरेख करती है और उस के बच्चे पैदा करती व पालती है. इस के एवज में उसे पुरुष से सुरक्षा मिलती है. स्त्री भयवश यह सब न करे तो पुरुष उस को घर से निकाल बाहर करे.
समझदारी सक्षम बनने में
स्त्री अगर दिमागी तौर पर और आर्थिक रूप से मजबूत हो जाए तो कोई भी कार्य उसे भयवश न करना पड़े. सम झदार स्त्री यदि विधवा हो जाए और दूसरे विवाह की बात सोचे तो उस से पहले वह अपने बच्चों की परवरिश व पढ़ाई का पूरा इंतजाम कर के ही अगले व्यक्ति से विवाह करेगी अथवा वह उस पुरुष के सामने कुछ ऐसी शर्तें रख कर विवाह करेगी ताकि उस के बच्चों को स्नेह और उन के अधिकारों से वंचित न होना पड़े.
साक्षी तनेजा एक कालेज में बायोलौजी की प्रोफैसर हैं. उन के पास 14 वर्ष और 17 वर्ष के 2 बेटे हैं. 6 साल पहले पति की मृत्यु हो गई. 6 साल अकेले रहने के उपरांत उन्हें आलोक दीक्षित से विवाह करने की इच्छा हुई. आलोक दीक्षित उन्हीं के कालेज में फिजिक्स के प्रोफैसर हैं और साक्षी के साथ उन की अच्छी बनती है. आलोक का अपनी पत्नी से तलाक हो चुका है. साक्षी और आलोक ने जब विवाह करने का फैसला लिया तो साक्षी ने आलोक के सामने कुछ शर्तें रखीं.
पहली शर्त यह थी कि साक्षी के पहले पति द्वारा छोड़ी गई चलअचल संपत्ति साक्षी के दोनों बेटों के नाम होगी. इस के अलावा साक्षी की सैलरी का आधा हिस्सा वह दोनों बेटों के नाम बैंक में जमा करेगी और आधा घर चलाने में खर्च होगा. आलोक की संपत्ति पर पत्नी होने के नाते साक्षी का हक होगा और घर के खर्च में आलोक भी अपनी सैलरी का आधा हिस्सा देंगे. साक्षी की तमाम शर्तें आलोक ने सुनीं और उन को इस में कुछ भी गलत नहीं लगा, लिहाजा वे सहर्ष राजी हो गए.
साक्षी ने अपने दोनों बेटों से अपनी शादी के विषय में खुल कर बात की. उन्हें आलोक से मिलवाया. कई बार दोनों बेटों को आलोक के साथ रहने के लिए भी छोड़ा. जब उस ने देखा कि बच्चे नए पिता के साथ कम्फर्टेबल हैं तब उस ने निश्चिंत हो कर शादी की डेट फिक्स की. आज साक्षी और उन का परिवार काफी खुश है. न बच्चे तनाव में हैं और न साक्षी को कोई तनाव है.
यदि स्त्री की पढ़ाई और नौकरी पर सरकार सब से ज्यादा ध्यान दे तो समाज की बहुत सारी समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएं. अनेक प्रकार के अपराध जो स्त्रियों के साथ घटते हैं वे न घटें. स्त्री का स्वतंत्र होना और आर्थिक रूप से मजबूत होना अनेक समस्याओं का समाधान है.