Health Update : मौडर्न मैडिकल साइंस के विकसित होने से पहले लोग मामूली बीमारी होने से भी मर जाते थे. प्लेग, हैजा, तपेदिक या बुखार से लाखों लोग मरे. मिर्गी, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों का इलाज नहीं था तब. इन के इलाज के नाम पर समाज में तरहतरह के टोटके प्रचलित थे. ये टोटके धर्म और अंधविश्वास की देन थे. लोग किसी भी अनहोनी को भगवान की करनी कहते थे. आज भी ऐसा कहने वाले लोग खूब हैं लेकिन वे भी इसे मानते नहीं. बावजूद इस के, भारत स्वास्थ्य के मामले में फिसड्डी है, आखिर क्यों?

तकरीबन डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले हमारे देश की बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं बदतर हैं. सरकारी हौस्पिटलों में बेड नहीं हैं, एंबुलैंस नहीं हैं, पर्याप्त डाक्टर नहीं हैं. औक्सीजन की कमी से बीमार दुनिया से कूच कर जाते हैं. सरकारी हौस्पिटलों के ओपीडी में लंबीलंबी कतारें लगती हैं. औपरेशन के लिए लोगों को महीनों इंतजार करना पड़ता है.

देश की 90 प्रतिशत गरीब आबादी सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए जूझती है. लंबी लाइनों में धक्के खाती है और वक्त पर सही ट्रीटमैंट न मिलने की वजह से अपनों को खो देती है लेकिन सरकारों से सवाल नहीं करती. जनता की इसी उदासीनता की वजह से स्वास्थ्य जैसी बुनियादी बातें कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पातीं.

देश का अमीर वर्ग, धार्मिक गुरु और राजनेता देश की बुनियादी समस्याओं पर कभी भी बात नहीं करते क्योंकि उन्हें यह सब झेलना नहीं पड़ता. इन बड़े लोगों ने सरकारी अस्पताल का ओपीडी तक कभी नहीं देखा होता. ये खाएपिए व अघाए लोग मैडिकल इमरजैंसी होने पर बड़े सरकारी अस्पतालों में वीआईपी ट्रीटमैंट की सुविधा का भरपूर फायदा उठाते हैं और जनता से टैक्स के नाम पर वसूले गए पैसों से प्रदान की जा रही सरकारी सेवाओं का फायदा उठाने के बाद बड़ी बेशर्मी से मैडिकल साइंस के खिलाफ बोलते नजर आते हैं.

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