Best Hindi Story : रिया के चेहरे पर आज एक अजीब सी चमक थी. आंखें हंस रही थीं और होंठ गुनगुना रहे थे. जैसे हर लड़की के मन में अपनी ससुराल के, पति के और घरपरिवार के सपने पलते हैं वैसे ही रिया ने भी कुछ ख्वाब पाल रखे थे.

21वीं सदी की पढ़ीलिखी, तेज़तर्रार लड़की रिया आसमान में उड़ रही थी. जैसी सोच रखी थी वैसी ही ससुराल पाई थी. सुखी, संपन्न और सब से महत्त्वपूर्ण घर के सारे लोग पढ़ेलिखे व प्रबुद्ध थे. रिया का मानना था कि पढ़ेलिखे लोगों से तालमेल बिठाना सहज हो जाता है. मानसिक खटराग नहीं होता और ज़िंदगी आसान बन जाती है.

ससुरजी नामी वकील है, सासुजी एमकौम तक पढ़ी बहुत बड़ी समाज सेविका है, देवर एमसीए की पढ़ाई कर रहा है, ननद फैशन डिज़ाइनर है और पति आरव एमबीए तक पढ़ा हुआ एक बड़ी कंपनी में मैनेजर है. सगाई और शादी के बीच ज़्यादा समय नहीं था तो रिया ने ससुराल देखा नहीं था. बस, वीडियो पर आरव ने घर दिखा दिया था. बढ़िया शानदार बंगला था.

सगाई के बाद 2 महीने में ही शादी हो गई तो ससुराल वालों से ज़्यादा जानपहचान का मौका नहीं मिला रिया को. पर रिया को लगा, मेरा स्वभाव सरल और हसमुख है, सो, सब को चुटकी में अपना बना लूंगी, समझ लूंगी और घुलमिल जाऊंगी. ससुराल के सारे मैंबर्स पढ़ेलिखे, समझदार हैं तो दिक्कत नहीं होगी.
शादी भी निबट गई और रिया आरव का हाथ थामे एक नए जीवन की नींव रखने जा रही थी. पर यह क्या, रिया ने गाड़ी से उतर कर दहलीज़ पर कदम रखा कि आश्चर्य में पड़ गई और दिल को धक्का भी लगा. घर के गेट पर एक काला पुतला लटक रहा था, दूसरी ओर नीबूमिर्ची और बीच में लोहे की यू आकार की कोई चीज़ लगी हुई थी.

रिया को अजीब लगा कि पढ़ेलिखे, समझदार लोग भी ऐसी चीज़ों को मानते हैं यह जानकर. पर रिया चुप रही. अभी तो पहला कदम रखा था ससुराल में, तो सवालजवाब करना उचित नहीं समझा उस ने.

सारी रस्में ख़त्म कर के घर के भीतरे पहुंची तो रिया को और झटका लगा. घर में तरहतरह की अजीब चीज़ें देख कर. छोटा कछुआ, कहीं बाम्बू तो कहीं पिरामिड. और तो सब ठीक पर आते ही रिया की सासुजी ने आरव और रिया की नीबू, नमक और लालमिर्च से नज़र उतार कर उस की ननद से बोला कि जा कर चार रस्ते पर फेंक आ. रिया को एक और शोक लगा. मन में पढ़ेलिखे लोगों की जो परिभाषा बिठा रखी थी वह ध्वस्त हो गई. पर अभी कुछ भी पूछने का समय नहीं था, सो चुपचाप रिया सब का अनुसरण करती रही.

सारी रस्में निबट गईं. आरव का हाथ थामे वह अपने बेडरूम में आई. पूरे रूम में बुरी नज़र से बचाने वाले हर टोटके मौजूद थे. रिया को बेचैनी होने लगी मानो पढ़ेलिखे लोगों के बीच न हो कर कोई झाडफूंक वाले बाबा के घर में आ गई हो. थकीहारी, सोचतेसोचते कब नींद आ गई उसे, पता नहीं चला.

सुबह उठी, नहाधो कर नीचे आई तो सासुमां ने कहा, “रिया तुम और आरव करुणानिधि स्वामी के आश्रम जा कर उन के आशीर्वाद ले कर आओ, बाबाजी की कृपा बनी रहेगी.” रिया का दिमाग हिल गया साक्षात द्वारिकाधीश को न पाय लागूं जो जीवनआधार है, ऐसे बाबाजी को क्यों नमूं. हे प्रकृति, छोटे से मोबाइल में हर चीज़ अपडेट करने वाले खुद की सोच को अपडेट करना कब सीखेंगे. पर शादी के पहले ही दिन आरव को नाराज़ करना नहीं चाहती थी रिया तो बेमन से गई आश्रम.

बाबाजी के चेहरे पर रिया को देख कर जो भाव बदले उसे देख कर रिया के दिमाग में आग लग गई. भगवाधारी बाबा के ठाट देख कर रिया को ताज्जुब हुआ. आलीशान कोठी में हर आधुनिक सुखसुविधा मौजूद थी. बाबा के आशीर्वाद लेने के लिए लोगों का तांता लगा था. और वहां उपस्थित भीड़ में कोई भी अनपढ़गंवार नहीं लग रहा था. सभी अच्छे घर के समझदार व पढ़ेंलिखे लोग थे.

रिया सोचने लगी, एक तरफ़ हम चंद्रयान भेज रहे हैं और एक तरफ़ अंधश्रद्धा को हवा दे रहे हैं. कब सुधरेगा समाज. बेमन से बाबा को प्रणाम किया तो बाबा ने आशीर्वाद देने के बहाने रिया के गालों को कुछ यों छुआ कि रिया के तनमन में आग लग गई. मैं गाड़ी में हूं बोल कर पैर पटकते निकल गई.

क्या सोचा था ससुराल वालों के बारे में और क्या निकले. यह बाबा कौन सा भगवान है, महज़ हमारे जैसा इंसान ही तो है, इतना अंधविश्वास और अंधभक्ति. क्या मैं छोटी बच्ची हूं जो बैड टच को न समझ पाऊं. लंपट, कैसे सहला रहा था मेरे गाल. रिया को आरव पर इतना गुस्सा आया था लेकिन सही समय पर बात करूंगी, सोच कर चुप रही.
हर छोटीबड़ी बात के लिए बाबा, ज्योतिष और टोटके… रिया तिलमिला उठती थी. पर रिश्ता बचाने की जद्दोजेहद में आहिस्ताआहिस्ता रिया ससुराल वालों के साथ एडजस्ट करने की पूरी कोशिश कर रही थी. फिर भी हर रोज़ कोई न कोई बात ऐसी हो जाती कि मन आहत हो जाता. 21वीं सदी की पढ़ीलिखी रिया खुद को बहुत मुश्किल से इस अंधविश्वासभरे वातावरण में ढाल रही थी.

धीरेधीरे समय बीतते शादी को एक साल हो गया एक डेढ़ महीने से रिया की तबीयत ठीक नहीं रहती, उलटियां आना, जी मिचलना, चक्कर आना वगैरह. रिपोर्ट करवाने पर पता चला रिया मां बनने वाली है. आज घर में कितनी खुशी का माहौल था. रिया की प्रैग्नैंसी रिपोर्ट पौज़िटिव आई थी. रिया की सास ने आरव को बताया कि बाबाजी कुछ मंत्र बोल कर भभूत देते हैं, उस भभूत को खाने से बेटा पैदा होता है. पहले तो आरव भी भड़का कि ये सब अंधविश्वास है, मैं नहीं मानता.

मां के रोज़रोज़ के दबाव ने और कुछ बेटे की चाह की भीतरी लालसा ने उसे उकसाया. सो, आरव भी रिया पर दबाव ड़ालने लगा, “रिया मेहरबानी कर के मान जाओ न, मां का दिल रख लो. सुनो, मुझे बेटे की चाह नहीं, बस, मां की खुशी के लिए चलते हैं न बाबा के पास. सिर्फ़ कुछ भभूत ही तो खानी है तुम्हें. अगर इतनी सी बात से बेटे का मुंह देखने को मिलता है तो क्या बुराई है.”

रिया गुस्से से कांप उठी, “आरव, बीज को बोये डेढ़ महीना हो गया. जो बोया है वही उगेगा. क्या खेतों में ज्वार बोने के बाद किसी भभूत के छिड़काव से गेहूं उगते हैं. पढ़ेलिखे हो कर बच्चों जैसी बातें मत करो, मैं नहीं जाऊंगी किसी बाबा के पास.”

पर रिया की सास के दिमाग में बाबाजी का भूत और पोते की चाह ने रिया के खिलाफ़ बगावत का बिगुल बजा दिया था. सो, वह सुबह से शाम तक रिया को प्रताड़ित करने का एक बहाना नहीं छोड़ती थी. और इस बात को ले कर घर में हो रहे झगड़े व तनाव के आगे रिया को झुकना पड़ा, बेमन से खाती रही भभूत. उस की सास सब के सामने इतराती रहती देखना, हमारे घर गुलाब जैसा बेटा ही आएगा. और बेटे के सपने देखने लगी. घर में भी सब के मन में यह बात बैठ गई कि बेटा ही होगा.
इतने में नौ महीने बीत गए और एक काली बरसाती रात में रिया को दर्द उठा और अस्पताल ले जाना पड़ा. बाहर सब बेटे की प्रतीक्षा में बैठे थे कि अभी खुशखबरी आएगी. रिया की सास ने नर्स से बोला, “जल्दी से मेरे गुलाब जैसे पोते को ले आना मेरी गोद में.”
बारिश का मौसम था. बिजली ज़ोर से कड़की और नर्स ने आ कर एक और बिजली गिराई, “माताजी, गुलाब नहीं, जूही खिली है आप के आंगन में.” सब के दिल बैठ गए, यह क्या हो गया.

आरव ने जैसेतैसे दिल बहलाया और बोला, “कोई बात नहीं. बेटी तो लक्ष्मी का रुप होती है.” लेकिन रिया की सास हारने को तैयार नहीं, बोली, “बहू ने श्रद्धा से भभूत खाई होती तो जरूर बेटा होता. खैर, अगली बार ढ़ंग से खिलाऊंगी, पर देख आरव, बेटी बोझ होती है, तू इस का कुछ इंतज़ाम कर दे और अगली बार मुझे पोता ही चाहिए और उस के लिए तेरी दूसरी शादी भी करवानी पड़ी तो भी करवा दूंगी, हां.”

अब आरव का धैर्य जवाब दे गया. उस ने उसी समय मां को सख्त़ शब्दों में डांट दिया, “मां, अब बस भी कीजिए. आप के अंधविश्वास ने मेरे मन में भी बेटेबेटी में फ़र्क का बीज बो दिया. मेरी बेटी मेरा अभिमान होगी. अब आप मुझे बख़्श दीजिए और आप भी ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर से नज़ात पाइए, अपनी सोच बदलिए. हम 21वीं सदी में जी रहे हैं.

“रिया और अपनी बच्ची के साथ मैं अलग हो जाऊं, उस से पहले सुधर जाइए. आप जैसे स्वभाव वाली सास की वजह से ही कहावत पड़ी होगी कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है.”

पर आज रिया खुश थी अपनी चांद सी बेटी को पा कर और आरव को एक अंधविश्वास से बाहर निकलता देख कर. दूसरे दिन अख़बार की हैडलाइन पढ़ कर रिया की सास चौंक उठी, ‘शहर में संन्यास आश्रम वाले गुरुजी करुणानिधि स्वामी नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार केस में गिरफ़्तार.” सासुमां दौड़ते हुए नम आँखों से पोती को गोद में उठा कर खिलाने लगी, मेरी गुड़िया मेरा अभिमान और रिया को गले लगा कर बोली, “धन्यवाद बेटी जो तुम ने हमें इतनी प्यारी पोती का उपहार दिया.”
रिया को आज अपने सपनों का घर, परिवार मिल गया. आरव ने कहा सैल्फ़ी तो बनती है और छोटे से स्क्रीन में संयुक्त परिवार एकसाथ हंसतेमुसकराते झिलमिलाने लगा.

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