कोलकाता में महिला डाक्टर से रेप की वारदात ने सभी को झकझोर कर रख दिया है, जो कुछ भी हुआ वह वाकई में दर्दनाक था. लेकिन अब उस का फायदा उठा कर महिलाओं को घर में कैद करने की साजिश ने जोर पकड़ लिया है. ताकि महिलाएं घर में रह कर सिर्फ चूल्हा चौका संभालें. पुरुषों के साथ कंधें से कंधा मिला कर न चल पाएं. पहले भी यही कह कर महिलाओं को डराया जाता था कि घर से बाहर जाओगी तो लूट ली जाओगी, रेप का डर है और न जाने क्याक्या कह कर उन्हें धमकाया जाता रहा है. इस से तो अच्छी भली औरतें डर ही जाएंगी कि बाहर पता नहीं क्या हो रहा है, हमारा घर से बाहर निकलना सेफ नहीं है.

जबकि सच यह है कि बहुत थोड़े से लोगों में इतनी हिम्मत होती है कि वह लड़की के साथ जबरदस्ती संबंध बनाएं. लेकिन इस तरह की घटनाएं होने पर हल्ला इस तरह मचा दिया जाता है कि बाहर का माहौल बहुत खतरनाक है जगहजगह दरिंदगी हो रही है. नतीजन लोग डर जाते हैं.

रिस्क तो हर जगह है

जहां तक बाहर जाने पर रिस्क की बात है वो तो हर जगह है. जो लोग सेना में होते हैं उन्हें भी कभी भी लड़ाई करते वक्त उन के हाथपैर टूटने का डर होता है, गोली लगने और मारे जाने का रिस्क होता है, यही बात पुलिस वालों के साथ भी है, तो क्या इस डर से वे अपनी नौकरी करना छोड़ देंगे, नहीं न, तो फिर लड़कियों को आप क्यों कहते हैं कि हाय तुझे कुछ हो न जाए.

महिलाओं का नौकरी करना धर्म के खिलाफ

2017 में भी देवबंद के मौलाना व तंजीम उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश अध्यक्ष नदीम उल वाजदी ने मुसलिम महिलाओं की नौकरी को ले कर विवादित बयान दिया था, जिस का काफी विरोध किया गया था.

वाजदी ने कहा था कि महिलाओं को सरकारी या गैर सरकारी, किसी भी तरह की नौकरी नहीं करनी चाहिए. वाजदी के मुताबिक महिलाओं का नौकरी करना इसलाम के खिलाफ है. घर का खर्चा उठाने की जिम्मेदारी मर्द की होती है, जबकि महिलाओं का काम घर और बच्चों की देखभाल करना है.

वाजदी का कहना है कि महिलाओं का नौकरी करना उसी सूरत में जायज है जब घर का खर्च उठाने वाला कोई मर्द न हो, वह चेहरे सहित खुद को ढक कर काम करे.

नौकरी ऐसी जगह होनी चाहिए जो केवल महिलाओं के लिए हो और गैर-महरम पुरुषों के साथ मेलजोल नहीं होना चाहिए. काम के दौरान उसे पूर्णतः शरई हिजाब का पालन करना चाहिए. काम पर जाते समय उसे कोई निषिद्ध कार्य नहीं करना चाहिए, जैसे ड्राइवर के साथ अकेले रहना, या परफ्यूम लगाना, जहां गैर-महरम उसे सूंघ सकें.

सिर्फ मुसलिम नहीं बल्कि हिंदू धर्म के ठेकेदार भी महिलाओं को घर बैठने और बच्चों गृहस्थी की गाड़ी चलने पर जोर देते हैं. क्योंकि अगर महिलाएं काम गई तो इन की दुकानदारी चौपट हो जाएगी. फिर कहां महिलाओं इतना समय होगा की इन बाबाओं के पास जा कर चक्कर काटें. इसलिए ये लोग खुद नहीं चाहते महिलाएं घर से बाहर निकललें. इसलिए ऐसी घटनाओं के होने के बाद महिलाओं को घर में कैद करने की साजिश ये लोग करते हैं और अच्छे पढ़ेलेखे लोग इन की बातों में आ कर बेटियों को बाहर भेजने से कतराने लगते हैं.

श्रम बल में पिछड़ती महिलाएं

धर्म के ठेकेदारों के द्वारा इस तरह का माहौल बना दिया जाता है कि पारंपरिक तय भूमिका, लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता के कारण महिलाओं के लिए घर से बाहर निकल कर काम करना बहुत चुनौतीपूर्ण है. ये सब बाधाएं भारतीय महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी को सीमित करती है. चाहते हुए भी वे नौकरी नहीं कर पाती है या फिर पूर्णरूप से उस से जुड़ी नहीं रह पाती है.

द वायर में छपी जानकारी के अनुसार पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएलएस जुलाई 2021-जून 2022) के आंकड़े बताते हैं कि 29.4 प्रतिशत महिलाएं (15-49 उम्र) ही भारतीय श्रम बल में योगदान दे रही हैं. पुरुषों में यह दर 80.7 फीसदी है. भारत में ऐतिहासिक रूप से महिलाओं की श्रम बल में कमी रही है और इस का एक बड़ा कारण महिलाओं के लिए निर्धारित जेंडर रोल्स हैं. जेंडर के आधार पर तय की गई भूमिका के कारण महिलाओं से वे घरपरिवार को ज्यादा महत्व देने की अपेक्षा की जाती है.

हाल ही में 2024 में यूनिसेफ के द्वारा किए गए एक सर्वे से पता चला है कि भारतीय महिलाएं शिक्षा के तुरंत बाद शादी के बजाय नौकरी करना चाहती हैं पर उन की इच्छाओं को समझने वाला कोई नहीं है. यूनिसेफ के यूथ प्लेटफौर्म ‘युवाह’ और यू रिपोर्ट के द्वारा किए गए सर्वे में देश के 18-29 साल के 24,000 से अधिक युवाओं ने अपनी राय सामने रखीं. आउटलुक में प्रकाशित खबर के मुताबिक सर्वे के परिणाम में 75 फीसदी युवा महिलाएं और पुरुषों का मानना है कि पढ़ाई के बाद नौकरी हासिल करना महिलाओं के लिए सबसे जरूरी कदम है. इस से अलग 5 फीसदी से भी कम उत्तरदाताओं ने पढ़ाई के तुरंत बाद शादी की वकालत की है.

बाहर जौब करने व पढ़नेलिखने पर पाबंदी

इस तरह इन्हीं धर्म के ठेकेदारों की साजिश का नतीजा कि लड़कियों के बाहर जौब करने व पड़नेलिखने पर पाबंदी लगा है. इस बारे में उत्तर प्रदेश के बड़ौत की रहने वाली आस्था का कहना है, “मैं अपने आगे की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु जाना चाहती थी और मेरे घरवाले मान भी गए थे लेकिन अब इस घटना के बाद उन्होंने साफ कह दिया है कि पढ़ाई करनी है तो या तो अपने ही शहर में करो या फिर किसी रिश्तेदार के यहां रह कर करो. हम तुम्हे इतने दूर अकेले भेजने का रिस्क नहीं ले सकते.” आस्था मायूस हो कर कहती हैं कि शायद मेरे सपने पूरे होने से पहले ही दब गए.

वहीँ अलीगढ़ के रहने वाले संदीप का कहना है कि “यह सच है हमें अपने बच्चों को बाहर भेजने से डर लगता है. हमें लड़कियों की शादी भी करनी है कुछ उल्टासीधा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगें. और हां मुझे यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि इस तरह की घटनाओं का असर हम पर पड़ता है. बड़े शहरों वालों के लिए ये आम बात होती होगी लेकिन हमें डरा देती हैं ऐसी खबरें.

लड़केलड़कियों की मदद करने से भी घबराते हैं

इस तरह का माहौल देख कर कोई लड़की किसी भी आदमी से बात करने में घबराती है. वही आदमी भी घबराता कि अगर मैं ने लड़की की हेल्प करने की कोशिश की और इस ने डर कर शोर मचा दिया तो मैं तो बेवजह ही मारा जाऊंगा. आज की तारीख में अगर कोई लड़की कहीं जा रही है या सड़क पर परेशान खड़ी है, तो आप उसे लिफ्ट देने के लिए भी नहीं पूछ सकते क्योंकि हो सकता है वह इस का कुछ और ही मतलब निकाल ले ओर शोर मचा दे.

समाज में आपसी विशवास कम होता जा रहा है

लोग आपस में एकदूसरे पर भरोसा नहीं करते, एकदूसरे को और उन के बच्चों को शक नजर से देखते हैं. लोग सगे रिश्तेदारों के यहां अपनी लड़कियों को छोड़ने से पहले 10 बार सोचते हैं. क्या यह सही है.

सैक्स वर्कर्स के पास जाने में शर्म कैसी

यह बात हम नहीं बल्कि खुद सैक्स वर्कर्स सामने आ कर कह रही हैं. आजकल सोशल मीडिया पर कुछ सैक्स वर्कर्स सामने आ कर अपील कर रही हैं कि बाहर काम पर जाने वाली लड़कियों के साथ इस तरह की हरकत करना सही नहीं है. आप हमारे पास आएं यह हमारा काम है. इस के बदले में हम कुछ पैसे ही तो लेते हैं. लेकिन हम आप के साथ सहयोग करने को तैयार हैं. वाकई वह सही कह रही है और खुद ऐसा कहने की पहल करना एक सराहनीय कदम है. जब इन लोगों को ऐसी दरिंदगी करते शर्म नहीं आती तो फिर सैक्स वर्कर्स के पास जा कर अपनी हवस मिटने में शर्म कैसी.

बेटों में बचपन से डाले संस्कार

लड़कियों के साथ बुरा होने की सजा आप लड़कियों को ही घर में बंद कर के क्यों दे रहे हैं. उन के बजाय एक बार जरा अपने लड़कों को घर में बंद कर के देखिए और उन्हें कहें तुम्हारे वजह से लड़कियां सुरक्षित नहीं है इसलिए तुम बाहर नहीं जाओगे. क्या आप ऐसा कर पाओगे. यह भी छोड़िए आप इतना ही कर लीजिए कि बचपन से अपने बेटों को लड़कियों की इज़्ज़त करना सिखाएं लेकिन उस के लिए आप को पहले खुद अपनी बीवी की इज्जत करनी पड़ेगी. क्योंकि आप को देख कर ही तो आप का बेटा तय करेगा कि उसे महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना है. तो क्यों न इस के लिए शुरआत अपने ही घर से करें. जब आप के अपने घर की ही नींव कमजोर है तो सजा बेटियों को क्यों. सच तो यह है कि अगर समस्या की जड़ में जाएंगे तो दीवारें अपनी ही कमजोर निकलेंगी.

लड़कियों को नहीं, लड़कों को कंट्रोल करने जरुरत

महिलाओं को घर में कैद करना या उन के मन में डर बैठा देना कोई हल नहीं है. उन्हें बाहर जाने से रोकने से कोई हल नहीं निकलेगा क्योंकि कंट्रोल उन्हें नहीं लड़कों को करना है और वो काम आप के अपने घर से ही हो सकता है.

सब को अपने बच्चे के बारे में पता होता है कि वह कैसी प्रवृति का है, वह हिंसक है, महिलाओं पर गंदी नजर रखता है, गलत कामों में इन्वोल्व रहता है तो क्या आप इतनी हिम्मत जुटा पाएंगे कि अपने बेटों के खिलाफ कुछ बड़ा घटित होने से पहले ही पुलिस कंप्लेंट करा पाएं.

हिम्मत नहीं है, तो पैदा कीजिए. और अगर यह नहीं पता कि खुद का बेटा कैसा है तो पता करें बेटियों पर नज़र रखने से पहले बेटों पर नजर रखें और उन्हें खुद सही रास्ते पर लाएं. समस्या का हल बेटियों को घर में कैद करने से नहीं बल्कि अपने ही घर के बेटों पर नजर रख कर उन्हें सुधारने से निकलेगा.

कानूनों को भी सख्त करे सरकार

दूसरे, दरिंदगी हो रही है तो कानूनों को सख्त करें. लेकिन सरकारों को एकदूसरे पर आरोप लगा कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने से फुर्सत मिले तो वह कुछ ओर करें. यहां तक कि मौजूदा सरकार अपराधियों के साथ मिल कर उन के अपराध को छिपाने में उन का पूरा साथ देती है.

अब इस की वजह वोट बटोरना हो या कुछ और पर ऐसा हमेशा से होता आया है. तभी तो सबूतों से छेड़छाड़ कर इतनी आसानी से ये अपराधी कानून के चुंगल से बच निकलते हैं और हम अगली इसी तरह की कोई घटना होने का इन्तजार करते हैं ताकि फिर इसी तरह का रोना पीटना मचा कर लड़कियों की सुरक्षा पर सवाल उठा कर उन्हें डराधमका के घर में कैद कर दे.

जहां तक बात है कानूनों को सख्त करने की तो जब इन सरकारों के बिगड़े लाडले ही इस तरह की घटनाओं में इन्वोल्व होते हैं, तो फिर कानूनों को सख्त कर के अपने ही घर पर गाज थोड़े ही न गिराएंगे ये राजनेता.

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