ऐसा नहीं है कि दलित समुदायों में सुंदर लड़कियां नहीं होतीं लेकिन वे सुंदर दिखने से बचती हैं क्योंकि सुंदरता उन के लिए अभिशाप ही साबित होती है. दूसरे सामाजिक तौर पर उन की जिंदगी बहुत बदसूरत होती है. धर्म ने भी मान रखा है कि दलित स्त्री सुंदर नहीं होती और जो होती हैं वे ऊंची जाति वाले पुरुषों की हवस पूर्ति के लिए जन्मी हैं.

एक दलित औरत की जिंदगी का फसाना और अफसाना इस से ज्यादा कुछ और हो ही नहीं सकता कि उस की सामाजिक स्थिति आम समाज से बहुत बदतर और जानवरों से थोड़ी बेहतर होती है. धर्म ग्रंथों की यह बकवास कभीकभी सच के बहुत नजदीक लगती है कि शूद्र योनि में जन्म पूर्व जन्मों के पापों का फल है. शूद्र स्त्री के बारे में तो यह एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत जैसी लागू होती है.
बिना दलित स्त्री हुए दलित स्त्री की पीड़ा समझना कोई आसान काम नहीं है. उस की एक तकलीफ बीते दिनों लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने यह सवाल पूछते उजागर की कि कोई दलित आदिवासी या पिछड़े वर्ग की महिला आज तक मिस इंडिया क्यों नहीं बनी. प्रयागराज के जिस आयोजन में उन्होंने यह बात उठाई उस का नाम संविधान सम्मान सम्मेलन था. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान से ही संविधान की प्रति सीने से लगाए घूम रहे राहुल गांधी के इस बयान को भले ही अमित मालवीय और किरण रिजिजू जो दूसरी तीसरी पंक्ति के नेता बालक बुद्धि कह कर मजाक बनाने की नाकाम कोशिश करते नजर आए. लेकिन हकीकत में हर किसी की तरह हैरानी उन्हें भी हुई होगी कि बात तो सही है. आज तक कोई गैर सवर्ण महिला मिस इंडिया नहीं बन पाई है.
जवाब तो भाजपा नेताओं के पास राहुल गांधी के इस सवाल का भी नहीं होगा कि कुछ लोग क्रिकेट या बौलीबुड के बारे में बात करेंगे, कोई मोची या प्लम्बर को नहीं दिखाएगा. यहां तक कि टौप एंकर भी 90 फीसदी से नहीं हैं. जातिगत जनगणना की मांग को बारबार अलगअलग तरीकों से दोहरा रहे राहुल का 90 फीसदी से मतलब गैरसवर्ण समुदायों की आबादी से था. अगर राहुल गांधी का मूल सवाल या एतराज बचपना होता तो कोई वजह नहीं थी कि भाजपा के एक प्रवक्ता प्रदीप भंडारी मिस इंडिया की लिस्ट खंगाल कर रिया एक्का का नाम सामने लाते कि ज्यादा नहीं महज 2 साल पहले छत्तीसगढ़ के जशपुर की एक आदिवासी लड़की मिस रिया एक्का ने मिस इंडिया का ख़िताब जीता था. लेकिन कोई भी मुख्यधारा में 90 फीसदी आबादी की भागीदारी का सच ढूंढ कर नहीं ला सका.

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