रेटिंगः एक स्टार
जब से अक्षय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया है,तब से वह सरकार परस्त सिनेमा को ही प्रधानता दे रहे हैं. ऐसा करने के कारण अपने कैरियर को खात्मे की ओर ही ले जा रहे हैं. एक एक्टर के रूप में अक्षय कुमार को पौलिटिक्स की बजाय ऐक्टिंग और एंटरटेनमेंट पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन वे फिल्मों के लिए ऐसे सब्जेक्ट को चुन रहे हैं, जिस में वह बीजेपी की वाहवाही और कांग्रेस की गलतियों का बखान कर सकें.

मजेदार बात यह है कि अक्षय कुमार की यह सारी सरकार परस्त फिल्में बौक्स औफिस पर धराशायी हो रही हैं क्योंकि ऐसा करते समय उन की फिल्मों के साथ फैक्ट्स के साथ छेड़छाड़ की जाती हैं.
देश में जब काैंग्रेस की सरकार रही है, उस वक्त हर बिजनेसमैन को सरकार के अंदर की लालफीताशाही और भ्रष्टाचार की शिकायत रही है. अब 12 जुलाई को अक्षय कुमार की फिल्म ‘सरफिरा’ रिलीज हुई. इस में कैप्टन गोपीनाथ की कहानी को बैकग्राउंड बना कर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया गया है.

फिल्म बारबार इस बात का जिक्र करती है कि रतन टाटा को भी अपनी हवाई सेवा शुरू करने से पहले इस लालफीताशाही का सामना करना पड़ा. इसी के चलते फिल्म देखते समय मन में सवाल उठता है कि पिछली सरकार के समय बिजनेसमैन को होने वाली दिक्कतों को जनता के सामने लाने के मकसद से तो इस फिल्म का निर्माण हिंदी में नहीं किया गया? कला/सिनेमा में जब भी इस तरह के प्रयास किए जाते हैं तो क्रिएटिवटी जस्टिफाई नहीं हो पाती है.
अगस्त, 2003 में कैप्टन गोपीनाथ ने सामान्य लोगों को एक रुपए में हवाई यात्रा कराने के मकसद से ‘डेक्कन एयरलाइंस’ की शुरू की थी. उस के बाद उन्होंने अपनी बायोपिक बुक ‘सिम्पली फ्लाई ए डेक्कन ओडिसी’ में इस एअरलाइंस को शुरू करने को ले कर आनेवाली प्रौब्लम्स का जिक्र किया है. इसी में साउथ इंडियन ऐक्टर सूर्या ने 2020 में तमिल फिल्म ‘सुराराई पोटरु’ बनाई थी. इस फिल्म को कई नैशनल अवार्ड मिले. सूर्या को बेस्ट ऐक्टर का नैशनल अवार्ड मिला.
सुधा कोंगरा निर्देशित यह मूवी हिंदी में डब हो कर ‘उड़ान’ नाम से आई, जो ‘अमेजन प्राइम वीडियो’ पर है. इसी पर फिल्म ‘सरफिरा’ बनी है, जिस का निर्देशन मूल तमिल फिल्म को डायरेक्टर सुधा कोंगारा ने ही किया है लेकिन अक्षय कुमार की हिंदी फिल्म ‘सरफिरा’ में कई झूठ हैं. पहली बात तो ‘सरफिरा’ यह नहीं कहती कि यह तमिल फिल्म ‘सुराराई पोटरु’ का रीमेक है. इस की वजह है कि ‘सरफिरा’ में सिनेमाई छूट के नाम पर काफी बदलाव किए गए हैं.

‘सरफिरा’ यह भी नहीं कहती कि यह कैप्टन गोपीचंद की बायोपिक फिल्म है. हां! फिल्म ‘सरफिरा’ में यह बताया गया है कि सच्ची घटनाओं पर आधारित यह फिल्म ‘सिम्पली फ्लाई ए डेक्कन ओडिसी’ से प्रेरित है.
लंबे समय से बौक्स आफिस पर लगातार असफलता का दंश झेलते आ रहे अक्षय कुमार ने इस फिल्म के रिलीज से पहले ही अपनी पीआर एजेंसी को बदला. लेकिन अफसोस यह नई पीआर एजेंसी भी अक्षय कुमार के कैरियर को संवारेगी, ऐसा नहीं लगता क्योंकि इस की कार्यशैली अच्छी तो नहीं कही सकती. यह एजेंसी फिल्म ‘सरफिरा’ के फोटोग्राफ तक देने में यह रिव्यू लिखे जाने तक असमर्थता प्रकट करती रही. अक्षय कुमार ने दूसरी गलती यह कि इस फिल्म में भी अक्षय कुमार अपरोक्ष रूप से एक एजेंडे को ही पेश कर रहे हैं. एक्टर को नहीं भूलना चाहिए कि देश की सरकारों के कामकाज पर अब जनता अपनी पैनी नजर रखती है.

‘डेक्कन एयरलाइंस’ की पहली उड़ान अगस्त, 2023 को शुरू हुई थी. देश में 1999 से 2004 के बीच एनडीए की सरकार थी और भाजपा के अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे लेकिन फिल्म में नौकराशाह की लालफीताशाही व भ्रष्टाचार को ही विशेष रूप से दिखाया गया जैसे कि यह सब कांग्रेस की सरकार में हो रहा हो.
असल जिंदगी में कैप्टन गोपीनाथ सरकारी सैनिक स्कूल में पढ़े, एनडीए की परीक्षा पास कर देहरादून की इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़े और भारत-बांग्लादेश की लड़ाई के समय भारतीय फौज में रहे. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने दुनिया भर के काम किए और अंत में आ कर वियतनाम युद्ध के बाद वहां की एक युवती के कम पैसों वाली हैलीकौप्टर सेवा शुरू करने की कहानी से प्रेरित हो कर एयर डेक्कन शुरू करने का सपना देखा था, जिसे पूरा करने में वह सफल हुए थे पर अब डेक्कन एअर बंद हो चुकी है.

कैप्टन गोपीनाथ वह इंसान हैं, जिन्होने भारत के आम इंसानों को एक रुपए में ‘एअर डेक्कन’ से हवाई यात्रा करने का अवसर दिया. बेशक हर उड़ान में ऐसी सुविधा कुछ सीमित लोगों को ही उपलब्ध कराना संभव था. स्वयं एक गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले गोपीनाथ का लक्ष्य गरीबों के लिए हवाई यात्रा को संभव बना कर वर्ग और जाति विभाजन को पाटना था. वह वर्ग और जाति की बाधाओं को तोड़ते हुए एक सच्चे सामाजिक उद्यमी की पहचान और सीएसआर (कौर्पाेरेट सामाजिक जिम्मेदारी) का एक चमकदार उदाहरण बने. पर व्यावसायिक रूप से एक रूपए में हवाई यात्रा की सोच के चलते कई विमामन विशेषज्ञ कैप्टन गोपीनाथ को हीरो नहीं मानते.

फिल्म की कहानी के केंद्र में वीर म्हात्रे व उन के सपनों की उड़ान है. फिल्म शुरू होने पर पता चलता है कि पर्याप्त ईंधन न होने के चलते डेक्कन एयर का एक विमान चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरना चाहता था, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उसे अनुमति नहीं दी गई. तब डेक्कन एअर के मालिक वीर म्हात्रे (अक्षय कुमार) विचित्र तरीके से एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) टावर में घुस कर फोन छीन लेता है और अपने पायलट को पास के एक सैन्य रनवे पर उतरने का निर्देश देता है. पायलट के पास भी इस के अलावा कोई विकल्प नहीं है. वह एक कठिन लैंडिंग के लिए परेड अधिकारियों के ऊपर से उड़ता हुआ रनवे पर उतरता है,तब तक प्लेन के एक पहिये में आग लग चुकी होती है. दोनों पायलट बुरी तरह से घायल हो चुके हैं लेकिन बिना अनुमति के सैन्य पट्टी पर उतरने के लिए वीर म्हात्रे को भारी कीमत चुकानी पड़ती है.

इस सीन के बाद कहानी 1998 में महाराष्ट्र के एक साधारण गांव जरांदेश्वर पहुंच जाती है जहां ट्रेन से रानी (राधिका मदान) का परिवार वीर म्हात्रे (अक्षय कुमार) के घर इस उम्मीद के साथ पहुंचता है कि उन की घमंडी बेटी रानी को वीर म्हात्रे पसंद आ जाए, जिसे अब तक 20 लड़के नापसंद कर चुके हैं. वीर म्हात्रे, रानी के परिवार से अधिक गरीब है और उन का घर खेतों के बीच अस्थायी आवास है. वीर को 24 लड़कियां ठुकरा चुकी हैं. वीर, रानी को बताता है कि घर में शौचालय, उस की नौकरी, अच्छा आवास या पारिवारिक संपत्ति कुछ नहीं है पर वह पहली कम लागत वाली एयरलाइन शुरू करने के सपने को पूरा करना चाहता है. रानी के परिवार के लोग रवि म्हात्रे के साथ रिश्ता करने को तैयार नहीं लेकिन वीर,रानी को पसंद कर लेता है. पर रानी कहती है कि जब वीर की सस्ती एयरलाइंस का सपना पूरा हो जाएगा, तब वह शादी के लिए सोचेगी. इस बीच वह अपना बेकरी का व्यवसाय शुरू कर देती है.

वीर म्हात्रे (अक्षय कुमार) बचपन से ही क्रांतिकारी सोच का है. वह समाज में शोषितों और वंचितों के लिए कुछ करना चाहता है. इसी सोच के साथ वह इंडियन एयरफोर्स जौइन करता है, हालांकि इसी बीच एक घटना घटती है. वीर के पिता की तबीयत बहुत खराब हो जाती है. वह अंतिम वक्त पर अपने बेटे को बस एक नजर देखना चाहते हैं. वीर जैसेतैसे कर के आर्मी कैंप से दोस्तों से कुछ पैसे उधार ले कर वहां से एअरपोर्ट के लिए निकलता है, जिस से जल्दी घर पहुंच सके, लेकिन एयरलाइंस की महंगी टिकट के चलते वह अपने घर पिता की मौत हो जाने के बाद पहुंचता है.
इस घटना के बाद वीर प्रण लेता है कि वह ऐसी एयरलाइन शुरू करेगा जिस में लोग कम दाम में भी हवाई सफर कर सकें. उस के इस काम में काफी बाधाएं और खलल पैदा की जाती हैं. लोकप्रिय जैज एअरलाइन के मालिक परेश गोस्वामी (परेश रावल), वीर के रास्ते में सब से बड़ा रोड़ा बनते हैं. परेश की सोच है कि निचला तबका या मध्यम वर्गीय लोग प्लेन में ट्रैवल नहीं कर सकते, इस में सफर करने का अधिकार सिर्फ पैसे वालों को है. वीर को असफल करने के लिए परेश सारे हथकंडे अख्तियार करते हैं पर वीर को उस के परिवार के साथ ही पूरे गांव वालों का सहयोग मिलता है. तमाम बाधाओं के बावजूद अंततः  अगस्त 2003 में एअर डेक्कन की पहली उड़ान शुरू होती है.
फिल्म की कहानी प्रेरणादायक है,मगर कई जगह कमजोर स्क्रिप्ट और एजेंडे को ले कर चलने की वजह से कुछ मार खा जाती है. फिल्मकार ने जातिगत भेदभाव के अलावा अमीरों की छोटी जाति के प्रति सोच को बहुत ही बेहतर तरीके से उकेरा है. फिल्म में जैज एयरलांइस के मालिक परेश का व्यवहार अमीर व गरीब के बीच की खाई को दिखाता है. परेश को पसंद नहीं कि सफाई कर्मी वही वाशरूम यूज करे या उन के अगलबगल में बैठे.

हर इंसान को अपने सपने को पूरा करने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. पर कैप्टन गोपीनाथ की बाधाओं में सरकारी व्यवस्था के काम करने के तरीके के साथसाथ व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता भी अहम रही. कई बार इंसान हताश भी होता है. रवि म्हात्रे भी हताश होते हैं, मगर फिल्मकार उस हताशा को ठीक से बयां नहीं कर पाए.
कहानी को तमिलनाडु से महाराष्ट्र के परिवेश में बदला गया है. यह किस की सलाह पर हुआ पता नहीं. लेकिन अक्षय कुमार और राधिका मदान अपने कैरेक्टर में पूरी तरह से ढल नहीं पाए. फिल्म में कुछ सवालों को हवा में छोड़ दिया गया है. रवि म्हात्रे ने कब और क्यों एअरफोर्स की नौकरी छोड़ी या रानी का बेकरी का व्यवसाय किस तरह शुरू हआ,आखिर डेक्कन एअर क्यों बंद हुई, इस पर फिल्म खामोश रहती है. ट्रेन में परिवार के साथ यात्रा करते हुए रानी के मांसाहारी भोजन करने का सीन व बातचीत को रखने की वजह समझ से परे है. यह भी किसी एजेंडे के तहत ही रखा गया क्या?

कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं,मगर जैज एयरलाइंस के मालिक परेश के संवाद फिल्म ‘हेरा फेरी’ से चुराए हुए लगते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि निर्देशक को यह भी नहीं पता कि मोटर साइकिल सवार के लिए पूरे देश में हेलमेट पहनना अनिवार्य है.
लंबे समय से बौक्स औफिस पर अक्षय कुमार फिल्में बुरी तरह से असफल होती रही हैं. ‘सरफिरा’ में कहानी तो जबरदस्त है, मगर रवि म्हात्रे के किरदार को परदे पर साकार करने में अक्षय कुमार मता खा गए हैं. उन के हंसने व रोने का एक जैसा मैनेरिजम हम पिछले 15 वर्षों से उन की हर फिल्म के हर किरदार में देखते आ रहे हैं. उन की चालढाल, हाथ हिलाने के अंदाज में भी कहीं कोई बदलाव नहीं आया. अक्षय कुमार का अभिनय पूरी तरह से मशीन जैसा हो गया है. यही वजह है अक्षय कुमार ने अब तक ‘मिशन रानीगंज’ या ‘सम्राट पृथ्वीराज’ सहित जितनी भी बायोपिक फिल्मों में अभिनय किया, यह सभी असफल ही रहीं.
अक्षय कुमार के अभिनय की सब से बड़ी कमजोरी यह है कि वह किसी भी किरदार में अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने का प्रयास ही नहीं करते. शायद उनके अभिनय को निखार सके, ऐसा निर्देशक उन्हें नहीं मिला. घमंडी, खड़ूस,सख्त व आत्मविश्वासी मराठी लड़की रानी के किरदार में राधिका मदान जरुर अपनी छाप छोड़ती हैं, मगर मराठी भाषा के संवाद भी उन के जबान से अटपटे ही लगते हैं. फिल्म में एक संवाद के माध्यम से यह साफ किया जा चुका है कि रवि म्हात्रे,रानी से उम्र में काफी बड़े हैं इसलिए इन की कैमिस्ट्री को ले कर कोई सवाल नहीं उठता.
कैप्टन चैतन्य राव के किरदार में अभिनेता कृष्णकुमार बालासुब्रमण्यम ठीक ठाक हैं. जैज़ एयरलाइंस के मालिक परेश गोस्वामी की भूमिका में परेश रावल को देख कर ‘हेरा फेरी’ का उन का किरदार याद आ जाता है. रवि म्हात्रे के दोस्त के किरदार में प्रकाश बेलवाडी अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. रवि म्हात्रे की मां के किरदार में सीमा बिस्वास सुखद एहसास देता है.

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