सन 1953 में बलराज साहनी, निरूपा रौय, मीना कुमारी अभिनीत ब्लौकबस्टर फिल्म ‘2 बीघा जमीन’ आई थी. इस में गरीब शंभु, जिस की भूमिका बलराज साहनी ने निभाई थी, को अपनी जमीन को बचाने के लिए कोलकाता में रिक्शा चलाने को मजबूर होते दिखाया गया था. उस की जमीन पर एक अमीर साहूकार ने जबरन कब्जा कर लिया था.
समाजवादी विषय पर बनी इस फिल्म ने फिल्मों में एक अलग ही ट्रेंड सैट कर दिया था. उस के बाद बौलीवुड में जमीनों पर जबरन कब्जा किए जाने पर अनगिनत फिल्में बनीं और पीड़ित दरदर की ठोकरे खाते हुए भ्रष्ट सिस्टम से लड़तेलड़ते मर गए.
हमारा सिस्टम आज इतना भ्रष्ट हो चुका है कि प्रभावशाली नेता, विधायक, अफसर सब लूटखसोट में लगे हुए हैं, जिसे जो चीज पसंद आ जाती है, वह उस पर कब्जा कर लेता है और पीड़ित का सिस्टम का कुछ नहीं बिगाड़ पाता. भई, आखिर सिस्टम जो ठहरा, किस की जुर्रत है कि वह उसे चैलेंज करे?
फिल्म ‘डेढ़ बीघा जमीन’ भी सिस्टम से टकराने पर है. फिल्म में एक मिडिल क्लास के एक आम आदमी को एक विधायक के खिलाफ आवाज उठाते दिखाया गया है. विधायक ने उस की डेढ़ बीघा जमीन पर जबरन कब्जा कर रखा है. उस आम आदमी को अपनी बहन की शादी में भारीभरकम दहेज देना है और वह अपनी डेढ़ बीघा जमीन बेच कर बहन की शादी कराना चाहता है परंतु उसे जमीन तो वापस नहीं मिलती, सीने पर गोलियों की बौछार जरूर मिलती है, विधायक उसे मरवा देता है.
फिल्म में इस आदमी की भूमिका पिछले साल ‘स्कैम 1992’ में अपनी बेहतरीन ऐक्टिंग की छाप छोड़ने वाले प्रतीक गांधी ने निभाई है. इस के अलावा प्रतीक गांधी विद्या बालन के साथ ‘दो और दो प्यार’ में भी नजर आया है.
इस फिल्म की कहानी समाज में फैली दहेज की बुराई को भी दर्शाती है, जहां पर बेटी की शादी के लिए घरवालों को दहेज देने के लिए जमीन से ले कर न जाने क्याक्या दाव पर लगाना पड़ता था. ‘डेढ़ बीघा जमीन’ के माध्यम से कहीं न कहीं प्रतीक गांधी ने उस आम आदमी की कहानी को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है, जिस से हर कोई गुजर रहा है, लेकिन इस के खिलाफ आवाज बहुत कम लोग ही उठाते हैं.
प्रतीक गांधी ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है. उस की पत्नी की भूमिका में खुशाली कुमार ने भी अच्छी ऐक्टिंग की है. कहानी दिल तो छूती है, क्लाइमैक्स दुखद है. फिल्म से आम आदमी जुड़ाव महसूस करता है. कुल मिला कर यह फिल्म दर्शकों को सिस्टम की क्रूरता के आगे बेबस आम आदमी की लाचारी का बखूबी एहसास कराती है.
फिल्म का निर्देशन अच्छा है. फिल्म में मसालों से परहेज किया गया है, मगर मनोरंजन का भी इस में अभाव है. फिल्म में कोई गीत नहीं है. उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा का इस्तेमाल फिल्म में किया गया है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.