भाजपा के शासन में धर्म का महासंग्राम चल रहा है और आगे भी उस की मंशा इसे चलाए रखने की है. लेकिन इस महासंग्राम में अपने ही अपनों से लड़ेंगे, यह निश्चित है, जैसे महाभारत का युद्ध जिस में दोनों पक्ष किसी बाहर के दुश्मन से नहीं लड़े, अपने ही अपनों से लड़े.
सिखों के लिए अलग खालिस्तान की मांग उठाने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले के भक्त अमृतपाल सिंह और जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त होने के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले इंजीनियर राशिद का बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव जीतना और देश की संसद में बतौर ‘माननीय’ पहुंचना यह संदेश देता है कि देश के अंदर जितनी जोर से हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का डंका पीटा गया, उतनी ही जोर से उस की प्रतिध्वनि भी उत्पन्न हुई.
भिंडरावाले का भक्त और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने असम की जेल में रहते हुए पंजाब की खडूर साहिब सीट से सांसद का चुनाव जीता और जम्मूकश्मीर में धारा 370 हटाने की मुखालफत करने वाले इंजीनियर राशिद ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहते हुए उत्तरी कश्मीर की बारामूला सीट से जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को 2 लाख से ज्यादा वोटों से हरा कर अपनी जगह लोकसभा में सुनिश्चित की है.
भाजपा और संघ के शासन में देश के अंदर धर्म का महासंग्राम चल रहा है और आगे भी उस की मंशा इसे चलाए रखने की है. लेकिन इस महासंग्राम में अपने ही अपनों से लड़ेंगे, यह निश्चित है. जैसे, महाभारत का युद्ध. वे भी किसी बाहर के दुश्मन से नहीं लड़े, अपने ही अपनों से लड़े, मगर हासिल क्या हुआ? खून से लथपथ धरती और विधवाओं की करुण चीखों से गूंजता आसमान. यह तो शुक्र है ‘इंडिया’ गठबंधन का, जिस ने फिलहाल लोकतंत्र को जीवित रखा हुआ है.
माननीय बने अमृतपाल
‘वारिस पंजाब दे’ के अमृतपाल सिंह को कल तक खालिस्तानी समर्थक कहा जाता था, आज वे अचानक संसद में ‘माननीय’ कहलाएंगे. बता दें कि अमृतपाल पर वैमनस्य फैलाने, हत्या के प्रयास और पुलिसकर्मियों पर हमले से संबंधित कई मामले दर्ज हैं. ‘वारिस पंजाब दे’ राजनीतिक समूह के प्रमुख प्रचारक अमृतपाल सिंह ने निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को लगभग 2 लाख मतों के अंतर से हराया है. जाहिर है, देश में सिखों का एक बहुत बड़ा तबका अमृतपाल के विचारों और फैसलों के समर्थन में एकजुट है. सांसद अमृतपाल का कहना है कि वे खालिस्तानी जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों से प्रेरित हैं.
कुछ वर्षों पहले तक अमृतपाल सिंह की जींस-टीशर्ट वाली तसवीरें दिखा करती थीं, मगर अब वे भिंडरावाले के समान सफेद कुरते और नीली पगड़ी में दिखते हैं. असम की जेल से चुनाव लड़ने के बाद पंजाब की खडूर साहिब सीट से सांसद चुने गए कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह को पद की शपथ लेने के लिए 4 दिनों की पैरोल मिली है. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह ने 11 जून को पंजाब सरकार को पत्र लिख कर पैरोल के लिए अनुरोध किया था ताकि वे संसद में शपथ ले सकें. राज्य सरकार ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक आवेदन भेजा था और उस के आधार पर पैरोल का फैसला लिया गया है.
अमृतपाल सिंह मूलतया पंजाब के जल्लूपुर गांव के रहने वाले हैं. उन की पढ़ाई गांव के स्कूल में महज 12वीं तक हुई है. साल 2012 में अमृतपाल दुबई गए, वहां उन्होंने ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया. उन के ज्यादातर सगेसंबंधी दुबई में रहते हैं. वे सितंबर 2022 में भारत लौटे. उसी महीने उन्हें ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो एक भारतीय पंजाबी फिल्म अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा स्थापित एक संगठन है, जिन की फरवरी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.
यह संगठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधारों के खिलाफ किसान आंदोलन जैसे विशाल अभियान का हिस्सा था. भारत लौटने के बाद से अमृतपाल सिंह सिखों के अधिकारों की रक्षा के लिए सिख समुदाय के एक बड़े हिस्से का नेतृत्व कर रहे थे. गौरतलब है कि सिख समुदाय भारत की आबादी का 1.7 प्रतिशत है. खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों के बीच अमृतपाल सिंह के भाषण बहुत तेजी से लोकप्रिय हुए हैं.
30 वर्षीय अमृतपाल सिंह के आगे एक लंबा राजनीतिक कैरियर है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे भाजपा की पहली पंक्ति के नेताओं के पास अब ज्यादा लंबा वक़्त नहीं बचा है. अगले कुछ वर्षों के दौरान अगर भाजपा और संघ अगर ध्रुवीकरण की राजनीति ही करते रहे और धर्म का परचम बुलंद करते रहे तो देश के भीतर महाभारत की शुरुआत होते देर नहीं लगेगी. यहां हिंदू, मुसलिम, सिख सभी अपने अपने धर्म का परचम लहराते नजर आएंगे जो दुनिया के इस सब से बड़े लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.
अमृतपाल ने पिछले साल 10 फरवरी को अपने पैतृक गांव में एक सादे समारोह में ब्रिटेन की रहने वाली एनआरआई लड़की किरणदीप से शादी की है. आनंद कारज में दोनों परिवारों के लोग शामिल हुए. किरणदीप मूल रूप से जालंधर के कुलारां गांव की हैं, लेकिन कुछ समय पहले उन का परिवार इंगलैंड में बस गया था.
शादी के समय से ही कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन के कारण अमृतपाल सिंह गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए. वे किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा तो बन ही चुके थे, जिस के कारण केंद्र सरकार की नजर उन पर थी. उसी समय उन्होंने और उन के सैकड़ों समर्थकों ने जेल में बंद अपने एक सहयोगी की रिहाई की मांग को ले कर तलवारों और बंदूकों के साथ पंजाब के अजनाला पुलिस थाने पर धावा बोल दिया था.
18 मार्च को पंजाब में पुलिस ने सड़कों पर नाकाबंदी की. हजारों की संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया ताकि अमृतपाल की गिरफ्तारी हो सके, लेकिन अमृतपाल शहर से निकल भागने में कामयाब रहे.
इस के बाद भारतीय अधिकारियों ने एक महीने तक तलाशी अभियान चलाया, जिस में हजारों अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात किया गया और पंजाब के कुछ इलाकों में मोबाइल इंटरनैट सेवाएं निलंबित कर दी गईं. अमृतपाल सिंह के 154 समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन के पास से पुलिस ने 10 बंदूकें और गोलाबारूद जब्त दिखाया. बाद में पंजाब के मोगा जिले के रोडे गांव के एक गुरुद्वारे से अमृतपाल सिंह की भी गिरफ्तारी हुई.
अमृतपाल सिंह को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया, जिस के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को बिना किसी आरोप के एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है. बता दें कि अमृतपाल की हिरासत अवधि 24 जुलाई को समाप्त होनी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले 3 जून को उन की हिरासत की अवधि को एक साल के लिए बढ़ा दिया गया. अमृतपाल सिंह पर एनएसए के तहत मामला दर्ज है. इस के अतिरिक्त हत्या व अपहरण समेत कई और केस दर्ज हैं. लेकिन यही अमृतपाल सिंह देश की संसद में पंजाब के एक बड़े तबके का प्रतिनिधित्व करते नज़र आएंगे. जबजब भाजपा और संघ हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का मुद्दा गरम करेंगे तबतब प्रतिक्रिया के तौर पर अलग खालिस्तान का मुद्दा भी उछाला जाएगा.
जम्मूकश्मीर ने भी चौंकाया
लोकसभा चुनाव नतीजों में कश्मीर का जनादेश भी काफी चौंकाने वाला रहा है. ‘नया कश्मीर’ ने 2 हाईप्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्रों से राज्य के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की जगह जेल में बंद इंजीनियर राशिद को चुन कर देश की संसद में भेजा है.
चुनाव के दिन सूबे की जनता ने ऐतिहासिक रूप से बड़ी संख्या में घरों से निकल कर ऐसी नाटकीय पटकथा लिखी जिस ने जम्मूकश्मीर में अब्दुल्ला और भाजपा के साथ गलबहियां कर चुकीं महबूबा मुफ्ती की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. ‘इंजीनियर राशिद’ के नाम से मशहूर निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल राशिद ने उमर अब्दुल्ला को 2 लाख वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया. एनसी नेता उमर अब्दुल्ला की बारामूला सीट से हार इसलिए भी ज्यादा चर्चित रही क्योंकि राशिद ने दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ा. वे अपने प्रचार के लिए अपने समर्थकों के बीच नहीं थे. बावजूद इस के, उन के सिर जीत का सेहरा बांध कर अगर जम्मूकश्मीर की जनता ने उन्हें संसद तक पहुंचाया है तो यह संदेश भाजपा और संघ के लिए है कि जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटाना सब को रास नहीं आया है. मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग राशिद के समर्थन में इसलिए भी निकल कर आया क्योंकि उसे लगा कि राशिद को लोगों का साथ देने की सजा दी जा रही है.
गौरतलब है कि अब्दुल राशिद गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. राशिद को जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद गिरफ्तार किया गया था. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जब कश्मीर में हर राजनीतिक दल ने फिर से इस की बहाली के मामले में आत्मसमर्पण कर दिया, तब इंजीनियर राशिद अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. हालांकि अभी वे केवल एक आरोपी हैं और दोषी साबित नहीं हुए हैं, इसलिए चुनाव आयोग ने उन का नामांकन स्वीकार कर लिया था. दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें आज, 5 जुलाई को, लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए 2 घंटे की पैरोल प्रदान की. वे पुलिस अभिरक्षा में संसद आए.
इंजीनियर राशिद की जीत ने जम्मूकश्मीर के उन नेताओं को संजीवनी देने का काम किया है जो भाजपा और संघ के धर्मप्रचार से खुश नहीं, बल्कि भयभीत हैं. यही वजह है, इंजीनियर राशिद के हाथों मात खाने के बाद भी जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इंजीनियर राशिद को रिहा करने की मांग उठाई है. उमर अब्दुल्ला ने एक्स पर लिखा, “मैं जम्मूकश्मीर के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा अन्य सांसदों को बधाई देता हूं जो आज शपथ ले रहे हैं. यह हमारे लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण अवसर है. इस बात को स्वीकार करना जरूरी है कि उत्तरी कश्मीर के लोगों ने इंजीनियर राशिद को चुना है और उन्हें लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेने तथा अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना चाहिए.”
अमृतपाल सिंह और इंजीनियर राशिद जैसे नेताओं का लोकसभा में पहुंचना भाजपा-नीत एनडीए के लिए मुश्किल जरूर पैदा करेगा. अगर संघ और भाजपा हिंदू धर्म के प्रचारप्रसार पर ज्यादा जोर देंगे तो उन्हें अन्य धर्म के लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा.