मुझे तो तेरी लत लग गई, लग गई
“लत ये ग़लत लग गई”
भारत में रोजाना औसतन 4 घंटे 40 मिनट सोशल मीडिया पर यूजर्स समय बिताते हैं और इंस्टाग्राम पर एक आम यूजर दिन में 20 बार आता है. इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी ‘मेटा’ के मुताबिक ऐप पर आने वाले लोग अपना 20% समय शौर्ट वीडियो यानी रील्स देखने में बिताते हैं। भारत इंस्टा रील का सबसे बड़ा मार्केट है .
भारत में रील्स देखने का एडिक्शन जनरेशन Z यानी 1995 के बाद जन्म लेने वाली पीढ़ी में सबसे ज्यादा है . इसकी लत युवाओं को ऐसी लगी है कि कुछ लोग घंटो रील और वीडियो देखने में बिता देते हैं. रील की लत से परेशान युवा 5 से 6 घंटे तक रील देखते हैं. सोशल मीडिया की लत किसी नशे से कम नहीं है. हाल ही में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग फर्म कोफ्लुएंस की रिपोर्ट सामने आई है. जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में रोजाना औसतन 4 घंटे 40 मिनट सोशल मीडिया पर यूजर्स समय बिताते हैं और इंस्टाग्राम पर एक आम यूजर दिन में 20 बार आता है. इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी ‘मेटा’ के मुताबिक ऐप पर आने वाले लोग अपना 20% समय शौर्ट वीडियो यानी रील्स देखने में बिताते हैं। भारत इंस्टा रील का सबसे बड़ा मार्केट है .
कुछ लोगों को तो फोन पर रील्स देखने की इतनी आदत होती है कि वो वाशरूम में भी फोन अपने साथ ले जाते हैं. छोटे तो छोटे बड़ों को भी इसकी लत होती है.
जेब खाली करती रील देखने की आदत
पहले के जमाने में संयुक्त परिवार हुआ करते थे . घर में बच्चे बड़े बुजुर्ग सभी एक साथ रहते थे . बच्चों को चाचा ताऊ के बच्चों का साथ मिलता था ,बड़े घर की जिम्मेदारी संभालने में व्यस्त रहते थे . घर के बच्चों के साथ उनका अच्छा समय व्यतीत होता था . लेकिन अगर आज की बात की जाए तो बच्चे या तो अगर अपने पेरेंट्स के साथ रह रहे हैं तो भी उन्हें अपनी प्राइवेसी चाहिए ,उनके पास करने को कुछ नहीं टेक्नोलौजी ,इंटरनेट की सुविधा के स्तर के बढ़ने से वे अपने अपने कमरों में अकेले अकेले घंटों एक ही जगह पर बिना हिलेडुले फोन की स्क्रीन पर आंखें गड़ाए रहते हैं . चाहे बच्चे हों या युवा वे न तो घर के काम में कोई हाथ बंटाते हैं न ही किताबों से कोई जानकारी लेने की कोशिश करते हैं . पहले लड़कियां घर के रसोई के कामकाज सीखती थीं, लड़के पिता के काम में हाथ बँटाते थे लेकिन आज वे सिर्फ बैठे बैठे रील्स देखकर डेटा खर्च कर रहे हैं और ज़ोमेटो स्विगी जैसे औनलाइन फूड डिलीवरी एप्प से फूड आर्डर करते रहते हैं और न केवल अपनी हेल्थ के साथ खिलवाड़ करके अनेक शारीरिक और मानसिक बीमारियों को इन्वाइट कर रहे हैं बल्कि अपनी जेब भी खाली कर रहे हैं .
आप सोचिए एक 13 -14 साल का बच्चा या 20 -22 साल का युवा घर में बैठे रील्स देखते समय जब उसे भूख लगी वह उठ कर रसोई में जाकर अपने लिए कुछ बनाकर खाने की बजाय ज़ोमेटो स्विगी से जो खाने की डिश 50 -100 रुपये में घर में हाइजीनिक तरीके से बन सकती हैं उसके लिए 200 -250 रुपये खर्च कर देता है .उसी समय में जब वह नकारा बैठ कर बेकार की उल जलूल रील्स देख रहा है और जेब खाली कर रहा है वहीं उससे समय किसी रेस्टोरेंट में कोई उसके लिए खाना बना रहा है कोई उसे वह फूड डिलिवरी कर रहा है और अपनी जेब को भारी कर रहा है . आप ही सोचिए वह युवा या बच्चा आखिर कितने दिन तक निठल्ला बैठकर बिना कमाए रील्स देखकर समय और पैसे बर्बाद कर पाएगा . कभी तो वह समय आएगा जब उसके माँ बाप की कमाई और उसकी सेहत बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएगी !
जब तक कोई भी अपनी उम्र के अनुसार पढ़ाई ,कैरियर,कमाई के जरिए पर ध्यान नहीं देगा ,सिर्फ घंटों रील्स देखता रहेगा वह दिन दूर नहीं जब बाप दादाओं की जायदाद भी डूब जाएगी !
न कोई फैक्ट ,न कोई लॉजिक न कोई जानकारी
सबसे बड़ी बात वे लोग जो घंटों रील्स में समय बर्बाद करते हैं अगर वास्तविकता देखी आए तो उन रील्स में न तो कोई जानकारी होती है न कोई फैक्ट ,न कोई लॉजिक होता है, लेकिन क्योंकि अपना भला बुरा सोचने समझने की शक्ति खत्म हो चुकी है इसलिए बस समय की बर्बादी और जेब खाली करने में लगे पड़े हैं ! यह समझने की जरूरत है कि रील्स देखने से जेब खाली होने के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा !
NEET Examके लिए 25 लाख से अधिक युवा आवेदन करते हैं लेकिन सफल होने वालों की संख्या 1 लाख के लगभग होती है इसका मतलब बाकी युवा अपने पेरेंट्स के पैसों की बर्बादी कर रहे हैं वे सिर्फ दिखाने को एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं और अकेले में रील्स देखकर समय और जेब खाली कर रहे हैं!
कुल मिलाकर आज का युथ अपनी एनर्जी और समय गलत जगह यानी रील्स देखने में बर्बाद कर रहा है . और तो और रील्स में जहां देखिए जिसे देखो वो बाबा बना हुआ है ,कोई टैरो ,कोई ज्योतिष ,कोई ग्रहों की आधी अधूरी जानकारी देकर अंधविश्वास फैला रहा है.
इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर पॉपुलर एक इन्फलुएंसर का कहना है कि रील्स देखने का फायदा तभी है जब आप इनसे कुछ बेहतर सीख सकें। अगर कोई जिसे ज्यादा जानकारी नहीं है या अपने विषय का एक्सपर्ट नहीं है तो इस तरह की रील्स बनाना और देखना दोनों ही समय की बर्बादी है. मोबाइल पर रील और वीडियो देखना युवाओं को नकारा बना रहा है.
हाल ही में द स्पोटर्स हब में टॉक शो में शामिल हुए लेखक चेतन भगत ने भी युवाओं की रील्स देखने की लत के बारे में कहा कि दिन के 5-6 घंटे रील्स देखने वाले देखने वाले युवा रील्स से कुछ सीख नहीं रहे बल्कि अपनी बौद्धिक क्षमता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सोचिये कोई अगर मोबाइल पर रील और वीडियो देखकर डॉक्टर बना है तो क्या उससे इलाज कराया जा सकता है, नहीं। यह पूरी तरह से समय की बर्बादी है.