पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी की ईमानदारी को ले कर कभी कोई शक नहीं किया गया. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ममता की ईमानदारी पर सवालिया निशान लगा दिया. इसे ले कर आरोपप्रत्यारोप का नया दौर शुरू हो गया है. पढि़ए साधना का लेख.
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ममता की ईमानदारी पर उंगली उठाई है. उन्होंने ममता के करीबी परिजनों की संपत्ति की जांच की मांग भी की है. वे कहते हैं, ‘ममता ईमानदार हैं, यह मैं मान नहीं पा रहा हूं. उन की पारिवारिक आर्थिक स्थिति पहले कैसी थी और अब कैसी है, इस की जांच कर के देख लें.’
दिलचस्प बात यह है कि तमाम विरोधों के बावजूद इस से पहले किसी भी माकपा या वामनेता ने ममता की ईमानदारी को ले कर कभी शक जाहिर नहीं किया. जाहिर है इस से ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में हड़कंप मच गया. तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के बयान को चुनाव में हार के बाद खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे के रूप में देख रहे हैं.
बहरहाल, लंबी चुप्पी के बाद अचानक बुद्धदेव भट्टाचार्य ने मुंह खोला और सीधे ममता पर निशाना साधा.
दो मुख्यमंत्रियों के बीच समानता
यह महज इत्तफाक ही है कि 2 भिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले राज्य के इन दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच काफी समानताएं हैं. तमाम विरोधों के बावजूद भावनात्मक रूप से दोनों एक से हैं. लाख कोशिश करने के बाद भी ये दोनों अपने भीतर कुलबुलाती भावना को कतई छिपा नहीं पाते हैं. खुशी हो या गम, नाराजगी हो या आत्मसुकून, मन की भावना इन के चेहरे के हावभाव में साफ नजर आ ही जाती है.
नदारद है मुख्यमंत्री आवास
अजीब बात है कि राज्य के प्रशासनिक प्रधान का कोई आधिकारिक आवास का अस्तित्व ही नदारद है. देश में ऐसा राज्य संभवतया अकेला बंगाल ही है. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी बुद्धदेव भट्टाचार्य ने अपने निजी आवास से ही राजकाज चलाया. दक्षिण कोलकाता में पाम एवेन्यू के अपने 2 कमरों का फ्लैट बुद्धदेव ने नहीं छोड़ा. सुरक्षा का लाख हवाला देने के बावजूद बुद्धदेव भट्टाचार्य औपचारिक रूप से किसी मुख्यमंत्री आवास के निर्माण को तैयार नहीं हुए. वैसे भी बंगाल के मुख्यमंत्री के लिए कोई सरकारी आवास नहीं रहा है. हालांकि ज्योति बसु का आवास इंदिरा भवन था. कांग्रेस शासित बंगाल में सिद्धार्थ शंकर राय के जमाने में पार्टी सम्मेलन के लिए इस का निर्माण करवाया गया था. लेकिन ज्योति बसु के मुख्यमंत्री बनने के बाद इंदिरा भवन आधिकारिक रूप से उन का आवास बन गया, जो आजीवन उन्हीं का आवास बना रहा. उन की मृत्यु के बाद वाममोरचा ने इसे ज्योति बसु का संग्रहालय बनाने की योजना बनाई, जो चुनाव हार जाने के बाद अधर में ही लटक गई.
वेतनभत्ता लेने से गुरेज
बहरहाल, अब भी राज्य की प्रशासनिक प्रधान ममता बनर्जी का आवास दक्षिण कोलकाता में भवानीपुर के हरीश मुखर्जी रोड स्थित उन का निजी घर ही है. यही नहीं, ‘मां, माटी, मानुष’ की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी ने और भी मिसालें कायम की हैं. वे सरकारी तौर पर मुख्यमंत्री के लिए मंजूर किया गया वेतनभत्ता तक नहीं लेतीं.
मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी ने मंत्रियों के वेतन में इजाफा नहीं किया. हालांकि ममता ने दैनिक भत्ता बढ़ा कर अपने मंत्रियों को थोड़ा खुश जरूर किया है. आइए देखें, राज्य के मंत्रियों को अब कितना वेतन मिलता है :
मंत्रिमंडल के मंत्री का वेतन 8 हजार रुपए और राज्यमंत्री का 7 हजार रुपए है. इस पर भी 90 रुपए किसी कर के बाबत कट जाते हैं. इस के अलावा दैनिक भत्ता 1 हजार रुपए के साथ चिकित्सा भत्ता भी है, जिस की कोई अधिकतम सीमा नहीं है.
आज भी बंगाल की मुख्यमंत्री की तनख्वाह महज साढ़े 8 हजार रुपए है. इस के अलावा दैनिक भत्ता 1 हजार रुपए है, जो प्रतिमाह 30 हजार रुपए होता है. मुख्यमंत्री के चिकित्सा संबंधी खर्च की कोई अधिकतम सीमा नहीं है. दार्जिलिंग, कर्सियांग और कलिंपोंग जाने पर प्रतिदिन 260 रुपए, कोलकाता और प्रशासनिक मुख्यालय से 20 किलोमीटर आगे का दौरा करने पर प्रतिदिन 135 रुपए भत्ते का प्रावधान है. पर ममता ने आज तक न तो अपनी तनख्वाह भत्ता लिया है और न ही वे सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल करती हैं. वे अपने किसी ‘शुभाकांक्षी’ की गाड़ी से सचिवालय पहुंचती हैं.
यही नहीं, मुख्यमंत्री बनने के बाद नैतिकता का हवाला देते हुए सांसद के रूप में उन्होंने कभी लोकसभा से कोई पगार या भत्ता नहीं लिया. ममता का वेतन और भत्ता सरकारी कोषागार में जमा हो रहा है. बताया जाता है कि अब तक साढ़े 5 लाख रुपए से अधिक राशि जमा हो चुकी है. जहां तक सरकारी नियम का सवाल है तो मुख्यमंत्री का वेतनभत्ता जमा होता रहेगा. जरूरत पर निकाला जा सकता है. मुख्यमंत्री न रहने पर उन का उत्तराधिकारी इस पर दावा कर सकता है.
हालांकि इस से पहले बंगाल के राज्यपाल रहते हुए वीरेन जे शाह ने भी कभी कोई वेतन नहीं लिया. चूंकि नियमानुसार पगार दिए बगैर सरकार किसी से काम नहीं ले सकती, इसी कारण वीरेन जे शाह सरकारी कोषागार से हर महीने मात्र 1 रुपया वेतन लेते थे. वैसे राज्यपाल के रूप में वेतन के अलावा उन्होंने संवैधानिक प्रधान से जुड़ी अन्य तमाम सरकारी सुविधाओं को लेने से मना नहीं किया था.
पार्टी फंड और पेंटिंग्स
बहरहाल, बुद्धदेव भट्टाचार्य के एक अन्य सहयोगी गौतम देव ने ममता की पेंटिंग्स की बिक्री को ले कर भी सवाल उठाया है. उन का कहना है कि अगर ममता वेतनभत्ता नहीं लेतीं तो वे अपना और पार्टी का खर्च कैसे चलाती हैं? वामपंथी पार्टियां आमलोगों से चंदा लेती हैं. ममता किस तरह पैसे उगाहती हैं?
गौरतलब है कि घोषित रूप से पार्टी फंड के लिए ममता अपनी पेंटिंग्स की बिक्री करती हैं. समयसमय पर चित्रों की प्रदर्शनी भी लगती है, जिन की कीमत 1 लाख से 3 लाख रुपए तक होती है. राज्यसभा में तृणमूल के सांसद डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि उन की पहली पेंटिंग्स प्रदर्शनी में हुई बिक्री से साढ़े 3 लाख रुपए जमा हुए थे. यह राशि स्पैस्टिक सोसाइटी को दी गई. 2007 में आयोजित की गई पेंटिंग प्रदर्शनी में बिक्री से इकट्ठा हुए 11 लाख रुपए की राशि नंदीग्राम आंदोलन में शहीद हुए लोगों के परिवारों को वितरित कर दी गई. और अब पंचायत चुनाव के खर्च के लिए फंड जुटाने के लिए एक बार फिर से चित्र प्रदर्शनी की घोषणा की जा चुकी है. उल्लेखनीय है कि तमाम व्यस्तता के बावजूद ममता बनर्जी अब तक लगभग
5 हजार पेंटिंग्स तैयार कर चुकी हैं. लेकिन पेंटिंग्स बिक्री करने को भी गौतम देव ने उगाही से ही जोड़ कर रखा है. उन का कहना है कि मुख्यमंत्री की खुशामद करने के लिए ही उद्योगपति उन की पेंटिंग्स खरीदते हैं.
ईमानदारी की मिसाल
ममता की ईमानदारी की मिसाल यह है कि कई बार ममता बनर्जी ने खुलेआम जनसभाओं में कहा है कि तृणमूल कांग्रेस के नाम पर अगर कोई चंदा मांगे तो न दें. यहां तक कि वे नहीं चाहतीं कि उन का परिवार उन के नाम का बेजा इस्तेमाल कर कोई फायदा उठाए. इस बाबत उन्होंने अपने परिवार और भाइयों को भी नहीं बख्शा. इसी मुद्दे पर पहले 2007 और फिर 2010 में ममता बनर्जी का अपने भाइयों स्वप्न, कार्तिक और अमित के साथ झगड़ा हो चुका है. झगड़े के बाद ममता बनर्जी ने अपनी मां गायत्री देवी के साथ घर छोड़ दिया था और तृणमूल के पार्टी दफ्तर में जा कर डेरा जमा लिया था. झगड़े का सबब यह है कि ममता के नाम पर उन के भाई स्वप्न ने एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया और ममता के नाम पर पैसों की उगाही की थी.
तृणमूल के निशाने पर सुचेतना
बुद्धदेव भट्टाचार्य के आरोपों का सवाल है तो ऐसा भी माना जा रहा है कि यह उन का ‘राजनीतिक फर्ज’ है. आखिर राजनीति में यह सब तो करना ही पड़ता है. बिना आरोपप्रत्यारोप के राजनीति में कुछ खास करने को रह नहीं गया है. लेकिन पार्टी सुप्रीमो पर लगे आरोप पर तृणमूल भला कैसे चुप बैठती. ममता की पार्टी से पार्थ चट्टोपाध्याय (उद्योग मंत्री) ने बुद्धदेव भट्टाचार्य की बेटी सुचेतना के एनजीओ ‘अरण्य’ के बहाने उन की ईमानदारी पर सवाल उठा कर ‘प्रत्यारोप’ का ‘फर्ज’ पूरा कर दिया. पार्थ चट्टोपाध्याय ने सीधे बुद्धदेव भट्टाचार्य से सवाल किया है. उन का कहना है कि ‘बुद्धदेव साहब, मुख्यमंत्री रहते आप की बेटी ने एक एनजीओ का गठन किया था. बहुत ही कम समय में वह एनजीओ इतना फलफूल कैसे गया? इस पर जरा प्रकाश डालिए.’
एकदूसरे पर भड़ास
अब बुद्धदेव भट्टाचार्य और तृणमूल के बीच आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है तो कांग्रेस भला कैसे पीछे रहती. लगेहाथ कांग्रेसी दीपा दासमुंशी ने भी अपनी भड़ास को हवा दे दी. दीपा दासमुंशी और अधीर चौधुरी ने ममता की ईमानदारी के प्रचार को निशाना बनाते हुए कहा है कि इस देश के अब तक के किसी मुख्यमंत्री को अपनी तसवीर के नीचे ‘ईमानदारी का प्रतीक’ लिखने की जरूरत नहीं पड़ी है पर ममता बनर्जी को अपनी ईमानदारी की डुगडुगी पीटनी पड़ रही है. ऐसे में उन्हें इस का प्रमाण देना चाहिए.
बहरहाल, माना जा सकता है कि बंगाल का विकास नहीं हुआ, राज्य के उद्योग नष्ट हो रहे हैं, एक के बाद एक कलकारखाने बंद हो रहे हैं और फिलहाल कोई औद्योगिक संभावना भी नजर नहीं आ रही है. अगर राज्य की राजनीति और राजनीतिक पार्टियों की बात को दरकिनार कर दें तो यह जरूर कहा जा सकता है कि यह बंगाल ही है जिसे लगातार 1 नहीं 2 बेदाग मुख्यमंत्री मिले. खासकर तब जब देश में भ्रष्टाचार के नित नए आयाम देखने को मिल रहे हैं.