उत्तर प्रदेश में जिस जोरशोर और चमकदमक के साथ मुख्यमंत्री की कुरसी पर अखिलेश यादव की ताजपोशी हुई?थी वह चमक 1 साल भी बरकरार नहीं रह पाई. अधूरे वादों और प्रदेश की लचर कानून व्यवस्था किस तरह उन की सियासी राह में रोड़े अटका सकती है, बता रहे हैं शैलेंद्र सिंह.
एक साल पहले उत्तर प्रदेश की जिस जनता ने समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को युवा हृदय सम्राट के रूप में जगह दी थी, आज वही अपने को ठगा महसूस कर रही है. एक तरफ सपा की अखिलेश सरकार अपने पूरे होते वादों का प्रचारप्रसार करने में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है तो दूसरी ओर हकीकत जनता को मुंह चिढ़ा रही है. शर्तों के साथ पूरे किए जाने के वादे ही हैं जो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की चमक को फीका कर रहे हैं.
राजनीतिक समीक्षक हनुमान सिंह ‘सुधाकर’ कहते हैं, ‘‘विधानसभा चुनाव के समय जीत हासिल करने की जल्दी में सपा ने ऐसे वादे कर लिए जिन को पूरा करना संभव नहीं था. सरकार की बागडोर संभालने के बाद अखिलेश यादव ने किसी चतुर कारोबारी की तरह वादों को पूरा करने के लिए ऐसीऐसी छिपी शर्तें रख दीं कि जिन से वादे पूरे होते दिखें. जनता अखिलेश सरकार की चतुर चाल को भांप गई और वह खुद को ठगा महसूस कर रही है.’’
अखिलेश यादव की खासीयत थी कि वे युवा सोच के हिमायती थे. वे आधुनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई पढ़ कर आए थे, युवाओं को भरोसा था कि वे प्रदेश को जाति, धर्म और वोटबैंक के चश्मे से दूर विकास के चश्मे से देखेंगे. आस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी से एनवायरमैंटल इंजीनियरिंग करने वाले अखिलेश यादव इंजीनियरिंग छात्रों की जरूरतों को ही नहीं समझ पाए. सरकार के 1 साल पूरे होने के पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जब साल 2012 में 12वीं पास करने वाले छात्रों को लैपटौप बांटने की योजना की शुरुआत की तो बहुत चतुराई से उन बच्चों को इस योजना का लाभ लेने से वंचित कर दिया जो 12वीं पास करने के बाद इंजीनियरिंग और डाक्टरी की पढ़ाई करने के लिए कंपीटिशन की तैयारी कर रहे थे. जिन छात्रों को प्रवेश प्रदेश के बाहर के संस्थानों में मिला उन को भी ये लैपटौप नहीं दिए गए.
शर्तों के साथ पूरे किए वादे
इंजीनियरिंग कर रहे छात्र दिवाकर प्रताप कहते हैं, ‘‘सपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि साल 2012 में 12वीं पास करने वाले सभी छात्रों को वह लैपटौप देगी और हाईस्कूल पास करने वालों को कंप्यूटर टैबलेट देगी. इस से उत्साहित हो कर युवा ने बड़ी तादाद में सपा को वोट दिया था. मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने अभी तक हाईस्कूल पास करने वाले बच्चों को टैबलेट नहीं दिए, लैपटौप वितरण में भी भेदभाव किया, जिस से बड़ी तादाद में जरूरतमंद छात्र लैपटौप वितरण का लाभ पाने से वंचित रह गए.’’
दरअसल, यह पहली योजना नहीं है जिसे पूरा करने के लिए सरकार ने लोगों को लाभ की रेखा से दूर रखा. इस के पहले बेरोजगारी भत्ता योजना और कन्या विद्याधन योजना के वितरण में भी वह ऐसी ही छिपी हुई शर्तों का सहारा ले चुकी है. सपा ने विधानसभा चुनाव के समय 3 सब से बड़ी योजनाओं की घोषणा की थी. ये योजनाएं बेरोजगारी भत्ता, लैपटौप व टैबलेट वितरण और हर गरीब परिवार को साड़ी व कंबल देना थीं. बेरोजगारी भत्ते की घोषणा होते ही रोजगार कार्यालयों पर रजिस्ट्रेशन कराने वालों की लंबीलंबी लाइनें लग गईं. इन योजनाओं ने सपा की बहुमत से सरकार बनाने में काफी अहम भूमिका अदा की.
लेकिन जब वादा निभाने का वक्त आया तो अखिलेश सरकार ने बहुत चतुराई से एक बड़े तबके को योजना का लाभ लेने से वंचित कर दिया. बेरोजगारी भत्ता लेने के लिए जो शर्तें लगाई गईं उन से बड़ी तादाद में लोगों को इस योजना का लाभ नहीं मिल सका. शर्तों में कई बार बदलाव किए गए. उस के बाद भी इस योजना का लाभ सभी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच सका. उलटे, साढ़े 8 करोड़ रुपए बेरोजगारी भत्ता देने के इंतजाम में साढ़े 12 करोड़ रुपए खर्च हो गए. यही हाल कन्या विद्याधन योजना में हुआ. इस योजना का लाभ मात्र उन लोगों को मिला जिन की सालाना कमाई 35 हजार रुपए से कम है.
राजनीतिक लेखक अरविंद जयतिलक कहते हैं, ‘‘सोचने वाली बात यह है कि शहरों में रहने वाला 3 लोगों का परिवार क्या 35 हजार रुपए की सालाना कमाई में किसी बच्चे को पढ़ा सकता है? इस योजना का लाभ लेने के लिए घपला करने वालों ने बड़ी तादाद में फर्जी आय प्रमाणपत्र बनवाए. ऐसे में एक बड़ा वर्ग, जो घपला नहीं कर सका, सरकार से नाराज है. इस से अखिलेश यादव की छवि धूमिल हुई है.’’
साड़ी और कंबल बांटने की योजना में भी शर्तें हैं. इस का केवल उन लोगों को लाभ मिलेगा जिन का नाम बीपीएल सूची में दर्ज है. गांव की बीपीएल सूची बड़ी संख्या में फर्जी रूप से बनती है जिस के कारण गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता.
दलित चिंतक रामचंद्र कटियार कहते हैं, ‘‘सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए फर्जी प्रमाणपत्र दाखिल करने वाले लोग खुश भले न हों पर जिन लोगों का हक मारा जाता है वे नाराज जरूर हो जाते हैं. ऐसे में वे सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं. साड़ीकंबल वितरण योजना में जिस तरह से देरी हो रही है उस से लोग नाखुश हैं. यह पार्टी का बड़ा वोटबैंक है. इन की नाराजगी का प्रभाव लोकसभा चुनाव में दिखेगा जो समाजवादी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम कर सकता है.’’
चरमराती कानून व्यवस्था
कालेज के दिनों में फुटबाल खेलने के शौकीन रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार में आने के बाद खुद फुटबाल की तरह हालात का सामना करने में लगे रहे. अपनी छवि बदलने के लिए अखिलेश यादव ने अफसरों के साथ क्रिकेट मैच में उन के छक्के छुड़ा कर मैच तो जीत लिया पर सरकार चलाने में बेहतर कैप्टन नहीं बन पाए. सब से कम उम्र के मुख्यमंत्री होने के चलते उन का मंत्रिमंडल उन को ‘टीपू’ समझता रहा. उन के मंत्रिमंडल के कई मंत्री सार्वजनिक रूप से अखिलेश यादव को ‘टीपू’ के बचपन वाले नाम से ही पुकारते रहे, जिस का कई बार मुख्यमंत्री ने विरोध भी किया.
कुंडा, प्रतापगढ़ में सीओ जियाउल हक की हत्या के बाद जब अखिलेश मंत्रिमंडल के कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह पर आरोप लगा तो पूरे मंत्रिमंडल के एकजुट होने के बजाय एकदूसरे से उलझने का काम हुआ. नतीजतन, पूरे मामले का धार्मिक ध्रुवीकरण हो गया. इस से निबटने में खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को घुटनों के बल हो जाना पड़ा.
अखिलेश सरकार के 1 साल के समय में प्रदेश में 12 जगहो पर सांप्रदायिक दंगे हुए. एक बड़ा वर्ग अपनी उपेक्षा को ले कर सरकार से नाराज हो चला है. प्रदेश की गिरती कानून व्यवस्था से आम जनता परेशान है.
विरोधी ही नहीं, खुद सपा के प्रमुख मुलायम सिंह यादव कई बार सार्वजनिक रूप से अखिलेश सरकार की आलोचना कर चुके हैं. ऐसे में विरोधी दलों को तो पूरा मौका मिल जाता है. पूरे साल अखिलेश यादव अपनी मुसकराहट से लोगों को लुभाते जरूर रहे हैं पर लोग मुसकराते तभी अच्छे लगते हैं जब दिल से खुशी महसूस कर रहे हों. जनता को लगता है कि केवल अच्छी मुसकान से काम नहीं चलने वाला. 1 साल का समय कम नहीं होता. अखिलेश सरकार का पूरे प्रदेश में कहीं भी हनक, धमक और इकबाल नहीं दिखता है. जनता के पैसे खर्च कर सरकार की छवि चमकाने के पहले समाजवादी सरकार को एनडीए की ‘इंडिया शाइनिंग मुहिम’ से सबक सीखना चाहिए. समाजवादी पार्टी के लिए ‘लक्ष्य 2014’ सामने है. ऐसे में शर्तों के साथ वादे पूरे करने की गलती अखिलेश सरकार को नहीं करनी चाहिए.