मालदीव ने आजकल ‘इंडिया आउट’ का अभियान छेड़ रखा है. अभी कुछ दिन पहले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने भारत से कहा था कि वे अपने सारे सैनिक मालदीव से वापस बुला ले और अब मोइज्जू सरकार ने द्वीप के जल का हाइड्रोग्राफिक सर्वे के समझौते को रिन्यू करने से मना कर दिया है. यह समझौता मोहम्मद मोइज्जू सरकार से पहले मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के दौरान 8 जून 2019 को हुआ था. तब भारत को मालदीव के क्षेत्रीय जल का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने के साथ साथ चट्टानों, लैगून, समुद्र तट, समुद्री धाराओं और ज्वार के स्तर का अध्ययन करने और चार्ट बनाने की इजाजत दी गयी थी.

मोहम्मद मोइज्जू की सरकार बनने के बाद यह पहला द्विपक्षीय समझौता है जिसे आधिकारिक तौर पर समाप्त किया जा रहा है. इस के पीछे कारण बताते हुए कहा गया है कि इस तरह के सर्वे और ऐसी संवेदनशील जानकारी शेयर करना उन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है. भविष्य में हाइड्रोग्राफी का काम 100 प्रतिशत मालदीव प्रबंधन के तहत होगा और केवल मालदीव के लोगों को इस की जानकारी दी जाएगी.

आखिर भारत-मालदीव जो एक समय बहुत अच्छे साथी थे उन के रिश्ते में दरार क्यों आने लगी है?

दरअसल, मालदीव के छठे राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद समेत सभी विपक्षी नेताओं को कैद करवा दिया था. मोहम्मद नाशीद भारत के बड़े समर्थक थे.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यामीन को तुरंत सभी नेताओं को रिहा करना होगा, मगर अब्दुल्ला यामीन ने साफ कर दिया कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं मानने वाले हैं.उल्टा उन्होंने मालदीव में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया. 45 दिनों तक चले इस आपातकाल का भारत ने कड़ा विरोध किया.

ऐसा नहीं था कि मालदीव में बदल रहे घटनाक्रम से सिर्फ भारत ही परेशान था. इस की वजह से चीन भी परेशानी में था. इसी बीच अब्दुल्ला यामीन ने अपने दूतों को चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब भेजा. दूत के पहुंचने के तुरंत बाद आश्चर्जनक रूप से चीन का बयान आया कि मालदीव में किसी को दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए. हालांकि, उस ने कुछ समय बाद खुद ही मालदीव की ओर अपने जहाज भेजने शुरू कर दिए.

वहीं, भारत ऐतिहासिक रूप से मालदीव की मदद करता रहा है. 1988 में राजीव गांधी ने सेना भेज कर मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था. 2018 में ही जब पानी का संकट गहराया तो भारत ने मालदीव तक जल पहुंचाया. यही वजह थी कि मोहम्मद नाशीद ने भारत से मदद की गुहार लगाई. भारत अपनी विदेश नीति के चलते अपने सैनिकों को तो नहीं भेज पाया, मगर उस ने कड़े शब्दों में अब्दुल्ला यामीन की आलोचना की और इमरजेंसी खत्म करने की मांग की.

यहीं से दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ने की शुरुआत होने लगी. राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के वक़्त ये रिश्ते कुछ ठीक हुए और प्रधानमंत्री मोदी के मालदीव यात्रा के दौरान कुछ बड़े समझौते भी हुए. राष्ट्रपति सोलिह ने भारतीय प्रधानमंत्री को मालदीव के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान इज्जुदीन’ से भी सम्मानित किया. मगर मोहम्मद मोइज्जू के सत्ता संभालते ही रिश्तों में फिर कड़वाहट भर रही है. भारत के लिए चिंता की बात यह है कि मोहम्मद मुइज्जू चीन समर्थक नेता हैं. चीन को मालदीव ने एक द्वीप भी लीज पर दिया हुआ है. भारत को लगता है कि अगर चीन की मौजूदगी वहां होती है, तो यह उस के लिए बड़े खतरे की बात है. ऊपर से अगर भारतीय सैनिकों की मौजूदगी भी मालदीव से खत्म हो जाती है तो दोहरी चिंता की बात होगी.

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