बिहार में जिस तरह से जातीय गणना की गई उस का व्यापक असर दूसरे राज्यों में भी देखने को मिलने लगा है. जैसेजैसे लोकसभा के चुनाव आएंगे जातीय गणना की मांग जोर पकड़ने लगेगी. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तो जातीय गणना की मांग कर ही रही है, कांग्रेस ने भी इस को ले कर 1 करोड़ लोगों से समर्थनपत्र लिखवाने की तैयारी कर ली है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘जिस की जिनती संख्या भारी, उस को उतनी भागीदारी’ की बात उठानी शुरू कर दी है. महाराष्ट्र राज्य में मराठा आरक्षण की मांग भी इसी से जुड़ी हुई है. ‘मराठवाड़ा से महाराष्ट्र’ की यह जंग नया गुल खिलाएगी जो भाजपा के लिए 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर भारी पड़ेगा.

कोई नई मांग नहीं

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग नई नहीं है लेकिन वर्तमान समय में बिहार की जातीय गणना के बाद मराठा आरक्षण की मांग ने तेजी पकड़ी है जिस से राज्य में मराठा और ओबीसी आमनेसामने आ गए हैं. मराठा आरक्षण का समर्थन तो सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं. दिक्कत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण सीमा को बढ़ाने से इनकार किया हुआ है. मराठों को जब ओबीसी सीमा में आरक्षण दिया जा रहा तो ओबीसी नाराज हो रहे हैं. यह काम उन को अपने आरक्षण में हस्तक्षेप लग रहा है.

महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन जितना आगे बढ़ेगा सत्ताधारी भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट को नुकसान होगा. मराठा आरक्षण आंदोलन के उग्र होते ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आंदोलन की अगुवाई करने वाले मनोज जरांगे पाटिल से बातचीत कर मसले का हल निकालने की शुरुआत की.

जातीय समीकरण

महाराष्ट्र में 3 प्रमुख वर्ग हैं- मराठा, ओबीसी और दलित, जो अब अपनेअपने अधिकार और आरक्षण को ले कर सजग हो गए हैं. ‘कुनबी’ का सवाल नया पेंच फंसा रहा है। एकनाथ शिंदे ने मनोज जरांगे को भरोसा दिलाया कि उन की सरकार जो आरक्षण देगी वह कानून की कसौटी पर खरा उतरेगा.

महाराष्ट्र सरकार ने ‘कुनबी जातीय प्रमाणपत्र’ वितरण के संबंध में ठोस निर्णय लेने का भरोसा भी दिलाया है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के आश्वासन के बाद मराठा आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल ने 7वें दिन पानी पी कर अनिश्चितकालीन अनशन को खत्म कर दिया.

भूख हङताल

मनोज जरांगे अंतरवली सराती गांव में भूख हड़ताल पर बैठे थे. सोमवार को जरांगे की हालत बिगड़ गई थी. इस के बाद राज्य में प्रदर्शनकारी उग्र हो गए थे. राज्य में तोड़फोड़ हो गई. इस के बाद यह पहल सरकार की तरफ से हुई. देखा जाए तो यह काम सरकार को पहले करना चाहिए था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण को ले कर क्यूरेटिव पीटिशन दाखिल की है. कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए कानूनी उपाय कर रही है.

जोरदार आंदोलन

2016 में मराठों को आरक्षण के लिए जोरदार आंदोलन हुआ था. राज्यभर में पूरे मराठा समाज की तरफ से तकरीबन 58 मोरचे निकाले गए थे. यह राज्य का सब से बड़ा प्रदर्शन था, जिस पर सरकार को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट जिस में मराठा समुदाय को 16% आरक्षण की सिफारिश की गई थी. इस के बाद समुदाय को आरक्षण देने के लिए मजबूर होना पड़ा था. मराठा महाराष्ट्र की एक प्रभावशाली जाति है. इस के लोग काफी समय से सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहे हैं.

महाराष्ट्र में मराठों को वर्चस्व रखने वाली जाति माना जाता है. किसी जाति को वर्चस्व रखने वाली जाति या डामिनेटेड कास्ट तब कहा जा सकता है जब उस की आबादी दूसरी जातियों से ज्यादा होती है और जब उस के पास मजबूत आर्थिक और राजनीतिक ताकत भी होती है.

एक बड़ा और ताकतवर जाति समूह आसानी से हावी हो सकता है अगर स्थानीय जातीय व्यवस्था में उस की स्थिति बहुत नीचे न हो. मराठों के साथ यह सब है. वह जातीय व्यवस्था में ‘बहुत नीचे’ नहीं हैं.

क्या है मांग

2016 में मराठों की 4 मांगें थीं- सरकारी नौकरी और सरकारी अनुदान से चलने वाले शिक्षा संस्थानों में आरक्षण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार कानून (1956) की कठोरता को कम करना, कोपर्डी कांड के दोषियों को सजा देना और स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करना. हालांकि आंदोलन के अंत तक सिर्फ पहली मांग ही बची रह गई थी.

महाराष्ट्र ने आयोग की सिफारिशों के आधार पर 29 नवंबर, 2018 को सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा वर्ग कानून, 2018 पारित किया, जिस से सरकारी अनुदान से चलने वाले महाराष्ट्र के शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में भरती में मराठों के लिए 16% आरक्षण दिया गया.

मराठों को 16% आरक्षण को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. हाई कोर्ट ने सरकार को आरक्षण को 16% के बजाय 12-13% करने का निर्देश दिया, जिस का 2018 में महाराष्ट्र विधानमंडल ने सर्वसम्मति से पालन किया.

कुनबी दरजा बहाल करने की मांग

इस बार के मराठा आंदोलन में नई मांग रखी गई है कि कुनबी का दरजा बहाल हो. कुनबी मूल रूप से ‘खेतिहर’ वर्ग के लोग थे, जिन्हें महाराष्ट्र की पारंपरिक व सामाजिक व्यवस्था में ‘शूद्र’ माना जाता था. मराठवाडा जब महाराष्ट्र में शामिल हुआ तो 1948 में इन की पहचान मराठों में बदल गई, जिस से इन को आरक्षण मिलना बंद हो गया. सितबंर, 1948 तक निजाम का शासन खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी माना जाता था.

कुनबी की गणना ओबीसी में होती थी। इसलिए मराठा समुदाय के लोगों को फिर से कुनबी जाति का दरजा बहाल किए जाने और इस का प्रमाणपत्र फिर से जारी किए जाने की मांग उठ रही है.

कुनबी दरजा वापस मिलते ही उन को पिछड़ी जातियों वाला आरक्षण मिलने लगेगा. एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने की बात दोहराते हुए अपने काम भी गिना रही है, जो उस ने मराठों के लिए अब तक किया है.

मराठवाड़ा के मराठों के लिए कुनबी जाति प्रमाणपत्र अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण के लिए योग्य बनाने की बात कही है. महाराष्ट्र के जानकार लोगों का कहना है कि इन दोनों जातियों का अलगअलग समय पर उन के पेशे के हिसाब से नाम बदलता रहा है. जो लोग खेती का काम कर रहे हैं वे कुनबी हैं और जो देश की रक्षा के लिए हथियार उठाता है तो वह मराठा बन जाता है.

दूसरा सच

कुनबी मराठा का दूसरा सच यह भी है कि 96 कुली मराठा आमतौर पर अपनी जाति के अंदर शादी करने को सही मानते हैं. कुनबी के साथ शादी को समुदाय से बाहर की शादी माना जाता है. इस से यह लगता है कि यह अलगअलग जातियां हैं. एक अलग बात यह भी है कि आंदोलनकारी मराठा होने का दावा करते हुए भी कुनबी जाति के सर्टिफिकेट की मांग कर रहे हैं.

सवाल यह उठता है कि अगर यह सच है तो वर्ण विभाजन में कुनबी को ‘शूद्र’ और मराठा को ‘क्षत्रिय’ कैसे माना जाता है ? इस मसले को हल करने और जातीय गणना को करने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा स्थापित समिति बनी है. उस की रिपोर्ट अभी आई नहीं है. समिति ने 2 माह का समय मांगा है.

महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण को ले कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कोर्ट 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हुई, जिस ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत राज्य के मराठा आरक्षण कानून को अमान्य कर दिया था. सुनवाई के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं की गई है.

दबाव में सरकार

2024 में लोकसभा चुनाव के साथ ही साथ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी है. ऐसे में मराठा आरक्षण आंदोलन से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. यह आंदोलन जोर न पकड़ सके इस के पहले ही इस को शांत करना जरूरी था. ऐसे में एकनाथ शिंदे सरकार ने हर बात मान लेने में भलाई समझी.

मराठा आरक्षण की मांग करने वाले जारंगे पाटिल ने कुनबी ओबीसी जाति प्रमाणपत्र प्रदान करने की अलग मांग रख कर सरकार को परेशान करने वाला काम किया है. महाराष्ट्र में ओबीसी आबादी का 52% हैं. मराठों की आबादी लगभग 33% है. ऐसे में जिस की जितनी संख्या भारी उस को उतनी हिस्सेदारी के तहत अधिकार देने पड़ेंगे.

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय पहले से ही केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए प्रदान किए गए 10% आरक्षण का लाभ ले रहा है. सरकार के विरोधी नेता कह रहे हैं कि ओबीसी समुदाय में पहले से ही बहुत सारी जातियां हैं. अगर मराठों को इस में जोड़ा गया तो दिक्कत होगी.

ओबीसी समुदाय 1980 के दशक से ही बीजेपी के लिए अहम रहा है. गोपीनाथ मुंडे और एकनाथ जैसे नेताओं के कारण भाजपा को लाभ मिलता रहा है. कांग्रेस को इस से नुकसान हुआ था. अब ओबीसी का भाजपा से राजनीतिक मोहभंग हो रहा है. विरोधी दल इस का लाभ उठा सकते हैं.

महाराष्ट्र सरकार कुछ भी दावे करे मगर उस के लिए काम करना सरल नहीं है. सरकार को आरक्षण सीमा में संशोधन के लिए इसे केंद्र के पास ले जाना होगा. लेकिन अगर ऐसा होता है तो राजस्थान, गुजरात जैसे अन्य राज्य भी केंद्र के सामने ऐसी ही मांग रख सकते हैं. मराठों और ओबीसी के बीच आरक्षण को ले कर टकराव हो रहा है. ओबीसी अब तक बीजेपी के पीछे लामबंद हुए हैं, वे ज्यादातर उन के साथ रहेंगे तो मराठा वोट बंट जाएगा. भाजपा को इस का नुकसान उठाना होगा. मराठा आंदोलन का हल सरल नहीं है. जैसेजैसे जातीय गणना की मांग पूरे देश में जोर पकङेगी महाराष्ट्र भी उस आंदोलन में जुङ जाएगा।

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