सूफियों के बारे में यह आम राय गलत नहीं है कि वे आमतौर पर धार्मिक हिंसा से परहेज करते हैं, इस नातेवे कतई नुकसानदेह नहीं हैं. लेकिन सूफियों के बारे में पसरी यह धारणा बिलकुल गलत है कि वे कोई ऊंचे पहुंचे सिद्ध या चमत्कारी होते हैं और सभी धर्मों को मानते हैं. सूफी खालिस मुसलमान ही होते हैं जिनका कोई स्पष्ट मकसद नहीं है. वे दिनरात ऊपर वाले की आराधना किया करते हैं.
सूफीवाद को समझने के लिए इतना ही काफी नहीं है कि सूफी खुद को आशिक और ऊपरवाले को माशूक और भक्ति को इश्क करार देते हैं. सूफीवाद कहता यह है कि भक्ति में इतने लीन हो जाओ कि सुधबुध खो बैठो. यही मोक्ष है, जोजिंदगी का असल लुत्फ और मकसद है. कर्मकांडों को ईश्वर तकपहुंचने का जरिया न मानने वाले सूफीवाद के पास मेहनत कर खाने और जीने का भी उपदेश नहीं है. वे मानते हैं कि जिस भगवान ने पेट दिया है वही उसे भरने का इंतजाम भी करेगा. यह तो वे भी आज तक नहीं बता पाए कि यह ऊपरवाला आखिर कहीं है भी किनहीं, और अगर है तो उस तक पहुंचने और उस को पाने के लिए इतने सारे रास्ते, धर्म, संप्रदाय व दार्शनिक विचारधाराओं की जरूरत क्यों आन पड़ी.
सूफियों की उत्पत्ति और विकास को लेकर कोई प्रामाणिक साहित्य उपलब्ध नहीं है लेकिन आम सहमति इस बात पर इतिहासकारों में है कि उनकी उत्पत्ति फारस यानी वर्तमान ईरान में हुई थी और 11वीं शताब्दी में सूफी भारत आए थे. हालांकि, इराक के शहर बसरा को भी सूफीवाद की जन्मस्थली माना जाता है. मंसूर हल्लाज,राबिया और अल अदहम जैसे लोकप्रिय कवियों को इनका जनक माना जाता है.