इजराइल का उद्भव लगभग उसी दौर में हुआ था जिस दौरान धर्म के नाम पर पाकिस्तान भारत से अलग हुआ. तब से आज तक इजराइल अपने पड़ोसी देशों से बिलकुल उसी तरह लड़ता आ रहा है जैसे पाकिस्तान. खासकर उस देश के प्रति दोनों में ही नफरत का भाव ज्यादा है जिस देश से टूट कर वे पैदा हुए. दोनों ही देशों में कुछ दिन ही शांति के होते हैं जबकि अधिकांश समय दोनों देशों की सत्ता और सेना लड़ाइयों में व्यस्त रहती हैं और वहां का नागरिक बेचैनी, उग्रता, हिंसा और अपनों के खोने के दुख में डूबा रहता है. रूस-यूक्रेन का युद्ध हो, भारत-पाकिस्तान का युद्ध हो या इजराइल-फिलिस्तीन का, इन के मूल में दूसरे के धर्म के प्रति नफरत और दूसरे की जमीन को हथियाने की साजिश ही निहित है.
गौरतलब है कि हमारी पूरी दुनिया कुल 95 अरब, 29 करोड़, 60 लाख एकड़ जमीन पर बसी है जिस पर दुनियाभर के लगभग 8 अरब इंसान बसते हैं. इस 95 अरब, 29 करोड़, 60 लाख एकड़ जमीन में से सिर्फ 35 एकड़ जमीन का एक ऐसा टुकड़ा है जिस के लिए बरसों से जंग लड़ी जा रही है. जिस जंग में लाखों जानें जा चुकी हैं.
इस जंग को समझाने के लिए उस 35 एकड़ जमीन की कहानी जानना जरूरी है. येरुशलम में 35 एकड़ जमीन के टुकड़े पर एक ऐसी जगह है जिस का ताल्लुक तीनों धर्मों – यहूदी, ईसाई और इसलाम से है. इस जगह को यहूदी ‘टैंपल माउंट’ कहते हैं जबकि मुसलिम इसे हरम अल शरीफ के नाम से पुकारते हैं.
ईसाई इस जगह को ईसा मसीह के क्रूस पर चढ़ाए जाने और फिर जी उठने वाली कहानी से जोड़ते हैं. 35 एकड़ जमीन का यह वो टुकड़ा है जिस पर सैकड़ों साल पहले ईसाइयों का कब्जा हुआ करता था लेकिन वर्ष 1187 में यहां मुसलमानों का कब्जा हुआ और तब से ले कर 1948 तक मुसलमानों का ही कब्जा रहा. लेकिन फिर 1948 में इजराइल का जन्म हुआ और उस के बाद से ही जमीन के इस टुकड़े को ले कर जबतब ?ागड़ा शुरू हो गया. हालांकि सचाई यह भी है कि इस 35 एकड़ जमीन पर बसे टैंपल माउंट या हरम अल शरीफ न तो इजराइल के कब्जे में है और न ही फिलिस्तीन के, बल्कि यह पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के अधीन है और इस की देखभाल का जिम्मा जौर्डन के पास है.
दरअसल धार्मिक लिहाज से येरूशलम ईसाइयों के लिए भी बेहद खास है और यहूदियों व मुसलमानों के लिए भी. इजराइल और फिलिस्तीन दोनों येरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहते थे. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ बीच में आया और उस ने येरूशलम का वह 8 फीसदी हिस्सा अपने कंट्रोल में ले लिया, जिस को तीनों धर्म पवित्र क्षेत्र मानते हैं और जिस पर हरम अल शरीफ या फिर टैंपल माउंट है. 48 फीसदी जमीन का टुकड़ा फिलिस्तीन और 44 फीसदी टुकड़ा इजराइल के हिस्से में रह गया.
फिर सवाल उठा कि हरम अल शरीफ या टैंपल माउंट के रखरखाव की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए? तो इस के लिए तीसरे देश जौर्डन को हरम अल शरीफ या फिर टैंपल माउंट के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई. साथ ही, यह भी समझौता हुआ कि मुसलिम यहूदियों को बाहर से उस टैंपल माउंट के दर्शन की इजाजत देंगे हालांकि वे पूजापाठ नहीं करेंगे.
यही सिलसिला अब भी चला आ रहा है. लेकिन होता यह है कि दोनों ही तरफ के कट्टरपंथी लोग इस समझौते को नहीं मानते. इसीलिए जब कोई यहूदी टैंपल माउंट के दर्शन के लिए आता है तो अंदर से उस पर पथराव किया जाता है. जवाब में इजराइल भी उन पर पथराव करता है.
मुसलिमों का दावा
मुसलिम मान्यताओं के मुताबिक मक्का और मदीना के बाद हरम अल शरीफ उन के लिए तीसरी सब से पाक जगह है. मुसलिम धर्मग्रंथ कुरान के मुताबिक उन के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब मक्का से हरम अल शरीफ पहुंचे थे और यहीं से वो जन्नत गए. तब येरूशलम में मौजूद उसी हरम अल शरीफ पर एक मसजिद बनी जिस का नाम अल अक्सा मसजिद है.
अल अक्सा मसजिद के करीब ही एक सुनहरे गुंबद वाली इमारत है. इसे डोम औफ द रौक कहा जाता है. मुसलिम मान्यता के मुताबिक यह वही जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत गए थे. जाहिर है कि इसी वजह से अल अक्सा मसजिद और डोम औफ द रौक मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र है और इसीलिए वे इस जगह पर अपना दावा ठोकते हैं.
यहूदियों का दावा
यहूदियों की मान्यता है कि येरूशलम में 35 एकड़ की उसी जमीन पर उन का टैंपल माउंट है यानी वह जगह जहां उन के ईश्वर ने मिट्टी रखी थी जिस से आदम का जन्म हुआ था. यहूदियों की मान्यता है कि यह वही जगह है जहां उन के पैगंबर अब्राहम से खुदा ने कुरबानी मांगी थी. अब्राहम के 2 बेटे थे. एक इस्माइल और दूसरा इसहाक. अब्राहम ने इसहाक को कुरबान करने का फैसला किया. लेकिन यहूदी मान्यताओं के मुताबिक तभी फरिश्ते ने इसहाक की जगह एक भेड़ को रख दिया था. जिस जगह पर यह घटना हुई उस का नाम टैंपल माउंट है. यहूदियों के धार्मिक ग्रंथ हिब्रू बाइबिल में इस का जिक्र है.
बाद में इसहाक को एक बेटा हुआ जिस का नाम जैकब था. जैकब का एक और नाम था इजराइल. इसहाक के बेटे इजराइल के 12 बेटे हुए. उन को ट्वेल्व ट्राइब्स औफ इजराइल नाम से जाना जाता है. यहूदियों की मान्यता के मुताबिक, इन्हीं कबीलों की पीढि़यों ने आगे चल कर यहूदी देश बनाया. शुरुआत में उस का नाम लैंड औफ इजराइल रखा. वर्ष 1948 में इजराइल की दावेदारी का आधार यही लैंड औफ इजराइल बना.
होली औफ होलीज का एक हिस्सा है वैस्टर्न वौल
लैंड औफ इजराइल पर यहूदियों ने एक टैंपल बनाया, जिस का नाम फर्स्ट टैंपल था. इसे इजराइल के राजा किंग सोलोमन ने बनाया था. बाद में यह टैंपल दुश्मन देशों ने नष्ट कर दिया. कुछ 100 सालों के बाद यहूदियों ने उसी जगह फिर एक टैंपल बनाया.
इस का नाम सैकंड टैंपल था. इस सैकंड टैंपल के अंदरूनी हिस्से को होली औफ होलीज कहा गया. यहूदियों के मुताबिक यह वह पाक जगह थी जहां सिर्फ खास पुजारियों को छोड़ कर खुद यहूदियों को भी जाने की इजाजत नहीं थी.
यही वजह है कि इस सैकंड टैंपल की होली औफ होलीज वाली जगह खुद यहूदियों ने भी नहीं देखी. लेकिन 1970 में रोमन ने इसे भी तोड़ दिया. लेकिन इस टैंपल की एक दीवार बची रह गई. यह दीवार आज भी सलामत है. इसी दीवार को यहूदी वैस्टर्न वौल कहते हैं. यहूदी इस वैस्टर्न वौल को होली औफ होलीज के एक अहाते का हिस्सा मानते हैं.
मगर चूंकि होली औफ होलीज के अंदर जाने की इजाजत खुद यहूदियों को भी नहीं थी, इसीलिए वे पक्केतौर पर यह नहीं जानते कि वह अंदरूनी जगह असल में ठीक किस जगह पर है? लेकिन इस के बावजूद वैस्टर्न वौल की वजह से यहूदियों के लिए यह जगह बेहद पवित्र है.
ईसाइयों का दावा
ईसाइयों की मान्यता है कि ईसा मसीह ने इसी 35 एकड़ की जमीन से उपदेश दिया. इसी जमीन पर उन्हें सूली पर चढ़ाया गया और एक कब्र में दफना दिया गया. मगर 3 दिनों बाद वे कब्र में दोबारा जी उठे, लेकिन एक स्त्री को छोड़ कर उन्हें किसी ने नहीं देखा. ईसाई मानते हैं कि जब ईसा मसीह जिंदा हो चुके हैं तो वे इसी स्थान पर लौटेंगे. जाहिर है ऐसे में यह जगह ईसाइयों के लिए भी उतनी ही पवित्र है जितनी मुसलिमों या यहूदियों के लिए.
9 शताब्दियों तक मुसलिमों का कब्जा
वर्ष 1187 से पहले कुछ वक्त तक हरम अल शरीफ या फिर टैंपल माउंट पर ईसाइयों का कब्जा हुआ करता था. लेकिन 1187 में हरम अल शरीफ पर मुसलिमों का कब्जा हो गया. इसी के बाद से हरम अल शरीफ का पूरा प्रबंधन यानी देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ यानी एक तरह से इसलामिक ट्रस्ट को दे दी गई. तब से ले कर 1948 तक इसलामिक ट्रस्ट ही हरम अल शरीफ का प्रबंधन देख रहा था. इस दौरान इस जगह पर गैरमुसलिमों की एंट्री नहीं थी. मगर 1948 में इजराइल के बनने के बाद जब झगड़े बढ़ गए तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे अपने अधीन कर लिया.
आज इजराइल के यहूदी और गाजा के मुसलिम हमास लड़ाकों के बीच इसी जमीन को ले कर जबरदस्त युद्ध छिड़ा हुआ है. धर्म की इन तीनों धाराओं का स्रोत एक ही है, फिर भी ये तीनों एकदूसरे से नफरत करते हैं और कई शताब्दियों से आपस में लड़ते हुए इंसानियत का खून बहा रहे हैं.
इजराइल के यहूदी आज गाजा पट्टी के मुसलमानों का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं. 3 हफ्ते की लड़ाई के दौरान हजारों बम, मिसाइलें और गोलियों दागी जा चुकी हैं और दोनों तरफ के 8,000 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं जिन में बड़ी संख्या मासूम बच्चों की है. जीत तक युद्ध के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इजराइल 24 घंटे गाजा पर आग बरसा रहा है.
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कहते हैं, ‘लड़ाई जारी रखते हुए हम गाजा में भीतर तक जाएंगे और हत्यारों, अत्याचार करने वालों से पूरी कीमत वसूलेंगे. हम हमास को जब तक पूरी तरह मिटा नहीं देंगे तब तक नहीं रुकेंगे.’
दरअसल 7 अक्तूबर, 2023 को हमास ने अचानक इजराइली कसबों और शहरों पर हजारों रौकेट दागे और गाजा सीमा से सैकड़ों बंदूकधारियों ने अचानक इजराइल में घुस कर आम नागरिकों पर हमला किया, जिस में अनेक बुजुर्ग और बच्चे घायल हुए या मारे गए. हमास ने अनेक लोगों की हत्या कर दी और अनेक लोगों को बंधक बना कर अपने साथ ले गए. इजराइल का कहना है कि कम से कम 1,400 लोग मारे गए और 199 का अपहरण हुआ है. हमास की इस हरकत से इजराइल बौखला उठा और उस ने जंग का ऐलान कर दिया.
इस के बाद से ही उस ने गाजा पट्टी पर जबरदस्त मिसाइल हमला शुरू कर दिया और तमाम इमारतों को नेस्तनाबूद कर दिया. उधर से हमास भी इस हमले का जवाब दे रहा है मगर ‘प्यार और जंग में सबकुछ जायज है’ की तर्ज पर हमास और इजराइल युद्ध नियमों को ताक पर रख कर आम नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं. हाल ही में गाजा पट्टी के एक अस्पताल पर मिसाइल छोड़ी गई जिस में घायल बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों का इलाज चल रहा था.
इस हमले में सैकड़ों मरीजों की जानें चली गईं. मरने वालों में डाक्टर और नर्सें भी थीं. इजराइल जहां गाजा पट्टी में जमीन के नीचे बने हमास के बंकरों और सुरंगों को नष्ट करना चाहता है, वहीं उस की कोशिश अपने उन बंधकों को भी छुड़ाने की है, जिन्हें 7 अक्तूबर को हमास के लड़ाके अपने साथ ले गए हैं. खबर है कि उन्हें जमीन के नीचे किसी सुरंग में रखा गया है.
क्या है हमास
गौरतलब है कि हमास का गठन वर्ष 1987 में गाजा के शेख अहमद यासिन ने किया था. इजराइल और पश्चिमी मुल्कों में हमास की छवि एक खूंख्वार लड़ाकू की है जिसे आत्मघाती धमाकों से भी परहेज नहीं है. हमास के घोषणापत्र में लिखा है कि जब तक इजराइल का नाश नहीं होता और मौजूदा इजराइल, पश्चिमी किनारे और गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी इसलामी राष्ट्र नहीं बन जाता, तब तक हमास की जंग जारी रहेगी. हमास का एक ही सपना है कि वह एक आजाद इसलामिक राष्ट्र फिलिस्तीन बने.
कनाडा, जापान, इजराइल, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और जौर्डन सहित योरोपीय यूनियन व संयुक्त राष्ट्रसंघ तक ने हमास को आतंकी संगठन का दर्जा दे रखा है, मगर हमास इजराइल से जारी इस जंग को ‘आजादी की जंग’ करार देता है. वह फिलिस्तीन की आजादी के लिए एकमात्र रास्ता जिहाद को मानता है. फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के नेता यासर अराफात की मृत्यु के बाद हमास ने संसदीय राजनीति का रास्ता भी चुना था.
गाजा, कलकिलिया, नबलूस के स्थानीय चुनावों में छिटपुट जीत दर्ज करने के बाद जनवरी 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी संसद के चुनाव में हैरतअंगेज जीत भी दर्ज की. हमास को ईरान सहित कई मुसलिम देशों का सहयोग है. वे हमास को खतरनाक हथियार मुहैया करा रहे हैं.
यहूदियों ने झेले जबरदस्त अत्याचार
ईसाई और मुसलमान हमेशा यहूदियों से ज्यादा ताकतवर रहे और संख्या में भी अधिक रहे. इस की वजह यह रही कि किसी भी दूसरे धर्मसंप्रदाय का व्यक्ति यहूदी नहीं बन सकता है. यहूदी जन्म से ही यहूदी होता है. इस के अलावा दुनिया में यहूदियों के साथ अलगअलग समय में बहुत बुरा व्यवहार हुआ और बहुत बड़ी संख्या में उन को मारा व खदेड़ा गया. जरमनी के नाजी तानाशाह हिटलर ने तो 11 लाख यहूदियों को गैस चैंबरों में डाल कर खत्म किया.
हिटलर का यह होलोकास्ट समूचे यहूदी लोगों को जड़ से खत्म कर देने का सोचासमझा और योजनाबद्ध प्रयास था. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जरमनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने होलोकास्ट के नाम पर लाखों यहूदियों को नजरबंदी कैंपों में रखा. उन की औरतों के साथ बर्बर अत्याचार किए गए. कइयों के साथ तो नाजी सैनिकों ने तब तक बलात्कार किया जब तक उन की जान नहीं निकल गई.
यहूदी औरतों को नग्न कर के, गंजा कर के गैस चैंबरों में झांका गया. नाजियों ने तो जिस तरह यहूदियों का कत्लेआम किया, उन्हें गैस चैंबरों में डाल कर मारा, उन की औरतों से जिस तरह की हैवानियत की, सदियां गुजर जाएंगी उस मंजर को भुलाया नहीं जा सकेगा. यहूदियों का इतिहास दुख और दमन से भरा हुआ है. यही वजह है कि आज यहूदियों की जनसंख्या ईसाइयों और मुसलमानों की तुलना में बेहद कम है.
यहूदी कौम इन्हीं अत्याचारों के कारण इधरउधर दुनियाभर में बिखरीबिखरी रही. शताब्दियों तक उन का कोई एक देश नहीं बन पाया. 19वीं शताब्दी के अंत में यहूदी मातृभूमि इजराइल की मांग बहुत जोरशोर से उठने लगी. 1906 में विश्व यहूदी संगठन ने फिलिस्तीन में यहूदी मातृभूमि बनाने का निर्णय लिया. इस से पूर्व अर्जेंटीना को यहूदी मातृभूमि बनाने को ले कर भी चर्चा हुई. प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और फ्रांस के बीच हुए एक गुप्त सम?ाते (स्काइज-पिकोट एग्रीमैंट) के तहत फिलिस्तीन को ब्रिटेन के हवाले कर दिया गया.
1917 में बाल्फोर घोषणापत्र में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि बनाने की दिशा में पूरा प्रयास करने का आश्वासन दिया, मगर फिलिस्तीनी मुसलिमों ने इस का जबरदस्त विरोध किया. 15 अप्रैल, 1920 को इटली में मित्र देशों के बीच सैन रेमो कान्फ्रैंस हुई जिस में ब्रिटेन को फिलिस्तीन में ऐसी सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियां तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई जिस से उसे यहूदियों की मातृभूमि बनाया जा सके.
साल 1922 में ब्रिटेन के अधीन फिलिस्तीन का जितना हिस्सा था उसे उस ने 2 भागों में बांट दिया. बड़ा हिस्सा ट्रांसजौर्डन कहलाया और छोटा हिस्सा फिलिस्तीन. बाद में जौर्डन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता मिल गई. ब्रिटेन के इस कृत्य को यहूदियों ने अपने साथ बड़ा विश्वासघात माना क्योंकि प्रस्तावित यहूदी मातृभूमि का बहुत बड़ा हिस्सा जौर्डन में चला गया. अब यहूदी इस प्रयास में लग गए कि किसी तरह वे फिलिस्तीन पर कब्जा कर लें.
यहूदियों और मुसलमानों के बीच आएदिन ?ाड़पें होने लगीं. वर्ष 1936 में अरबों ने बड़ा विद्रोह कर दिया जिस में हजारों अरब और यहूदी मारे गए. इस विद्रोह के बाद इंगलैंड ने फिलिस्तीन को 2 भागों में बांटने का प्रस्ताव दिया. एक भाग को यहूदी मातृभूमि और दूसरा फिलिस्तीनी अरबों का क्षेत्र घोषित करने की बात हुई. यहीं से फिलिस्तीन की जमीन पर यहूदियों ने ज्यादा से ज्यादा कब्जे के लिए कोशिश शुरू कर दी. वर्ष 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार आई जिस ने यहूदियों की मातृभूमि का समर्थन किया और कहा कि फिलिस्तीन में दुनिया के हर कोने से यहूदियों को ला कर बसाया जाएगा.
इस के लिए अमेरिका और अन्य देशों ने भी ब्रिटेन का साथ दिया और उस पर ऐसा करने का दबाव बनाया. यह वह समय था जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज अस्त हो रहा था. ब्रिटेन ने फिलिस्तीन का मसला संयुक्त राष्ट्र के हवाले कर दिया. 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को 2 हिस्सों-अरब राज्य और यहूदी राज्य यानी इजराइल में विभाजित करना तय किया. येरूशलम जो ईसाई, अरब और यहूदी तीनों के लिए धार्मिक महत्त्व का क्षेत्र था उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन के अंतर्गत रखा जाना तय हुआ. मगर इस विभाजन में फिलिस्तीन के 70 प्रतिशत अरब लोगों को मात्र 42 प्रतिशत क्षेत्र मिल रहा था जबकि यही लोग विभाजन के पहले 92 प्रतिशत क्षेत्र पर काबिज थे.
लिहाजा, अरब इस विभाजन के खिलाफ हो गए. उस वक्त तक इजराइल और फिलिस्तीन की वास्तविक सीमारेखा निर्धारित नहीं हो पाई थी. सो, यहूदियों और फिलिस्तीनी अरबों में खूनी टकराव शुरू हो गया. उसी बीच 14 मई, 1948 को यहूदियों ने स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए इजराइल नाम के एक नए देश का ऐलान कर दिया, जो यहूदियों के सपनों का देश था.
मगर अगले ही दिन अरब देशों-मिस्र, जौर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक ने मिल कर इजराइल पर हमला बोल दिया. यहीं से अरबइजराइल युद्ध की शुरुआत हुई जो आज तक ठंडी पड़ती नहीं दिख रही है. जून 1948 में युद्धविराम जरूर हुआ मगर इस ने अरबों और इजराइलियों को दोबारा तैयारियां करने का मौका दे दिया. चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से इजराइल का पलड़ा भारी हो गया. इस के बाद अरबों से हुए युद्ध में इजराइल की जीत हुई और फिर शरणार्थी समस्या शुरू हो गई. 1949 में जोर्डन और इजराइल के बीच एक समझाते के तहत ग्रीनलाइन नामक सीमारेखा का निर्धारण हुआ. जौर्डन नदी का पश्चिमी हिस्सा यानी वेस्ट बैंक पर जौर्डन और गाजा पट्टी पर मिस्र का कब्जा हो गया.
फिलिस्तीन के बड़े हिस्से पर इजराइल का कब्जा
अनेक समझातों के बावजूद साल 1956, 1967, 1973, 1982 में इजराइल व फिलिस्तीन लड़ते रहे और इजराइल लगातार फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता रहा. नौबत यह आ गई कि पहले 55 फीसदी और फिर 48 फीसदी से सिमटते हुए 22 फीसदी और अब 12 फीसदी जमीन के टुकड़े पर ही फिलिस्तीन सिमट कर रह गया जबकि आधिकारिक रूप से येरूशलम को छोड़ कर इजराइल लगभग बाकी के 80 फीसदी इलाके पर कब्जा कर चुका है.
लेदे कर फिलिस्तीन के नाम पर अब 2 ही इलाके बचे हैं – एक गाजा और दूसरा वैस्ट बैंक. वैस्ट बैंक अमूमन शांत रहता है जबकि गाजा गरम क्योंकि गाजा पर एक तरह से हमास का कंट्रोल है और मौजूदा जंग इसी गाजा और इजराइल के बीच है.
21वीं सदी में फिर शुरू हुआ बातचीत का दौर
फिलिस्तीन की अधिग्रहित भूमि पर इजराइल द्वारा बस्तियां बसाने की नीति को ले कर सितंबर 2010 से दोनों के बीच शांतिवार्त्ता पर विराम लगा हुआ था. लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री जौन केरी के प्रयासों से अगस्त 2013 में इजराइल और फिलिस्तीन बातचीत के लिए एक मेज पर आए. वाशिंगटन स्थित अमेरिकी विदेश विभाग के फोगी बौटम मुख्यालय में हुई वार्त्ता में इजराइल का प्रतिनिधित्व विधि मंत्री जिपी लिवनी और यित्जाक मोलचो ने किया. वहीं, फिलिस्तीन ने अपना पक्ष रखने के लिए साए एराकात और मोहम्मद सतायेह की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन भेजा.
बातचीत में दोनों देशों के बीच सीमाई मुद्दों, फिलिस्तीनी शरणार्थियों, पश्चिमी तट पर इजराइली बस्तियों का भविष्य और येरूशलम की स्थिति को ले कर किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने की कोशिश हुई.
येरूशलम पर विवाद
येरूशलम, जो यहूदी, ईसाई और मुसलमान तीनों का धार्मिक स्थल है पर आधिपत्य का मुद्दा सब से बड़ा था. इजराइल येरूशलम को बांटना नहीं चाहता है. 1980 के इजराइली संविधान में एकीकृत और पूर्ण येरूशलम को इजराइल की राजधानी घोषित किया गया है. लेकिन अमेरिका पूर्वी येरूशलम पर इजराइल का कब्जा नहीं मानता है. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस इलाके में इजराइलियों द्वारा बस्तियां बसाए जाने पर भी आपत्ति जताई थी.
वहीं फिलिस्तीन पूर्वी येरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता था जो 1967 में इजराइली कब्जे से पहले जौर्डन के अधीन था. दरअसल इसलाम धर्म में पुराने येरूशलम की मान्यता तीसरी सब से पवित्र जगह के रूप में है.
ताकतवर होता इजराइल
आज इजराइल की जनसंख्या करीब 92 लाख है. क्षेत्रफल के मामले में हमारे महाराष्ट्र से भी छोटा इजराइल विज्ञान और तकनीक के मामले में अग्रणी है. इस का लोहा दुनिया मानती है. उस के पास बहुत सशक्त सैन्यशक्ति है. बड़ेबड़े उद्योग हैं. वह दुनिया के अमीर देशों में गिना जाता है. इजराइल की कुल जीडीपी 58,273 डौलर से ज्यादा की है.
भारत एशिया में इजराइल का दूसरा सब से बड़ा व्यापारिक भागीदार और विश्व स्तर पर 7वां सब से बड़ा भागीदार है. वित्त वर्ष 2022-23 में इजराइल का इंडियन मर्चेंडाइज ऐक्सपोर्ट 7.89 बिलियन डौलर था. जाहिर है, उगते सूरज को सभी प्रणाम करेंगे.
मगर फिलिस्तीन जिस की जनसंख्या 54 लाख है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिस की हिस्सेदारी मात्र 0.01 प्रतिशत है, वैज्ञानिक दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है और रूढि़वादी दकियानूसी विचारों के मौलानाओं के हाथ की कठपुतली है. जो जिहाद के जरिए अपना हक और जमीन पाने के लिए लड़ रहे हैं और इस के लिए उसे अरब देशों से सहयोग मिलता है.
फिलिस्तीन एक आंशिक रूप से मान्यताप्राप्त राष्ट्र है. फिलिस्तीन लिबरेशन और्गनाइजेशन (पीएलओ) ने 15 नवंबर, 1988 को अल्जीरिया की नेशनल असेंबली की परिषद में फिलिस्तीन राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा की थी. फिलिस्तीन अरब राज्यों के लीग का सदस्य है और कुछ राष्ट्रों द्वारा मान्यताप्राप्त है. फिलिस्तीन की प्रशासनिक राजधानी वैस्ट बैंक के मध्य स्थित रामल्लाह शहर है. फिलिस्तीन की आबादी में 80-85 फीसदी मुसलमान हैं. फिलिस्तीन के मुसलमान मुख्य रूप से शफी इसलाम का अभ्यास करते हैं, जो सुन्नी इसलाम की एक शाखा है.
फिलिस्तीन के पास नहीं है अपनी कोई सेना
आज जो युद्ध जारी है उस में सारे रौकेट और बम गाजा पट्टी से इजराइल पर गिराए जा रहे हैं और इजराइल भी इसी गाजा पट्टी पर बम बरसा रहा है. नतीजे में अब तक दोनों तरफ के 8 हजार से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं. वैसे, इजराइल और फिलिस्तीन सालों से एकदूसरे से टकराते रहे हैं. दोनों मुल्कों की इस जंग में अब तक हजारों लोगों की जानें भी जा चुकी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं, इजराइल बारबार जिस फिलिस्तीन से लोहा लेता है उस फिलिस्तीन के पास अपनी कोई सेना नहीं है? फिलिस्तीन की लड़ाई हमास लड़ रहा है.
दरअसल 150 वर्षों पहले भी फिलिस्तीन के पास कोई फौज नहीं थी क्योंकि तब वह औटोमन राज्य के तहत आता था. 100 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास फौज नहीं थी क्योंकि तब फिलिस्तीन का एक देश के तौर पर कोई वजूद नहीं था और वह ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था. 60 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास फौज नहीं थी क्योंकि तब वह जौर्डन के हिस्से में आता था.
1988 में फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात ने पहली बार फिलिस्तीन को एक आजाद मुल्क का नाम दिया, जिसे जोर्डन और मिस्र ने अपनी रजामंदी दे दी. 1993 में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच हुए औस्लो अकौर्ड में इजराइल ने फिलिस्तीन के फौज बनाने पर रोक लगा दी थी. इस के बाद से ही फिलिस्तीन के पास सिर्फ अर्धसैनिक बल हैं जो वैस्ट बैंक इलाके में तैनात रहते हैं, लेकिन कोई स्थायी फौज नहीं है जबकि गाजा में सत्ता चलाने वाले हमास के पास लड़ाके हैं जो अकसर इजराइल को अपना निशाना बनाते रहते हैं.
हमास के पास 80 हजार लड़ाके
दूसरी तरफ फिलिस्तीन की हालत यह है कि वह खुद के हथियार के नाम पर कुछ रौकेट्स ही बना पाता है, जिस से अकसर इजराइल को निशाना बनाता है. हालांकि, जानकारों की मानें तो इन में से भी ज्यादातर रौकेट वह या तो ईरान की मदद से बनाता है या फिर ईरान चोरीछिपे इन रौकेट्स की सप्लाई फिलिस्तीन को करता है. फिलिस्तीनियों के पास कोई स्थायी सेना तो नहीं है, लेकिन गाजा और वेस्ट बैंक में इजराइलियों से लोहा लेने वाले हमास समेत कई लड़ाके गुट हैं और इन की संख्या करीब 80 हजार के आसपास है.
1987 में हुआ था हमास का गठन
सवाल यह है कि अगर फिलिस्तीन के पास अपनी फौज नहीं है तो हमास फिलिस्तीन की ओर से क्यों लड़ता है? तो इस का जवाब हमास के वजूद में आने से है. फिलिस्तीनी इलाके से इजराइली फौज को हटाने के इरादे से 1987 में इस का गठन किया गया था और तब से ले कर अब तक हमास लगातार खुद को मुसलमानों का खैरख्वाह बताते हुए इजराइल से लोहा लेता रहा है. और तो और, हमास इजराइल को मान्यता तक नहीं देता है और पूरे फिलिस्तीनी क्षेत्र में इसलामी हुकूमत कायम करना चाहता है.
फिलिस्तीन की मदद करता है ईरान
लेकिन इन सब के बीच एक बड़ा सवाल यह है कि जब हमास दुनिया के कई बड़े देशों की नजर में एक आतंकवादी संगठन है, इसे किसी की मान्यता तक नहीं है तो फिर इसे इजराइल से लड़ने के लिए हथियार कहां से मिलता है? वह भी तब जब हमास के कब्जे वाली जगह गाजा पट्टी के एक तरफ खुद इजराइल की सीमा है और दूसरी तरफ समुद्र है तो इस का जवाब है, गाजा पट्टी से सटा मिस्र का इलाका. दुनिया जानती है कि फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जारी जंग में ईरान शुरू से फिलिस्तीन के साथ रहा है और वही ईरान मिस्र के रास्ते गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी गुट हमास को हथियार, गोलाबारूद और रौकेट मुहैया कराता है.
इजराइल के पास है बड़ी फौज
इजराइल डिफैंस फोर्सेज के पास एक लाख 70 हजार फौज के जवान और अधिकारी हैं जबकि उस के पास अस्थाई फौज के तौर पर 30 लाख से ज्यादा शहरी हमेशा फौज में अपनी सेवा देने के लिए तैयार रहते हैं. ये आंकड़े चौंका देने वाले हैं क्योंकि 90 लाख के देश में 30 लाख नागरिक ऐसे हैं जो फौज में सेवाएं देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इस की वजह यह है कि इजराइल के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए फौजी ट्रेनिंग जरूरी होती है.
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू स्वीकार करते हैं कि एक फिलिस्तीनी राष्ट्र का निर्माण होना चाहिए जिस के लिए वेस्ट बैंक के कुछ इलाकों से इजराइल की वापसी जरूरी होगी. गाजा से इजराइल पहले ही वापस आ चुका है. लेकिन इजराइल यह भी चाहता है कि गाजा और वेस्ट बैंक के आसपास बसाई गई उस की बस्तियां उस की सीमा में आएं. इजराइल वेस्ट बैंक और पूर्वी येरूशलम में अपनी बस्तियों के अधिकांश भाग को अपनी सीमा के अधीन रखना चाहता है. नेतन्याहू सरकार को डर है कि इस से पीछे हटने पर उन की सरकार का गठबंधन टूट सकता है क्योंकि उन की सरकार में कुछ दक्षिणपंथी नेता फिलिस्तीन को उस का हक देने के बिलकुल खिलाफ हैं और वे नेतन्याहू पर दबाव बनाए हुए हैं कि हमास को पूरी तरह कुचल कर फिलिस्तीन को कमजोर बनाए रखा जाए.
इजराइल को हमास का बहुत डर है. उस को लगता है कि एक दिन फिलिस्तीन पर हमास का शासन हो जाएगा, जो उस के लिए घातक साबित होगा. इसलिए वह जौर्डन घाटी की सुरक्षा व्यवस्था अपने हाथ में रखना चाहता है. साथ ही, वह अपनी सीमा से सटे फिलिस्तीन के एक बड़े हिस्से पर भी नजर बनाए हुए है. इजराइल पूर्व के युद्धों में बेघर हुए फिलिस्तीनी लोगों की घरवापसी यानी इजराइल में आने के भी पुरजोर विरोध में है. उस का मानना है कि इस से इजराइल के गठन के मकसद पर ही कुठाराघात होगा. यह एक यहूदी राष्ट्र है. शरणार्थियों की वापसी से यहूदियों के देश का भूगोल ही बदल जाएगा.
फिलिस्तीन की मांग
फिलिस्तीन 1967 में फिलिस्तीनी भूभाग पर हुए इजराइली कब्जे को पूर्णतया हटाना चाहता है. वैस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलम और गाजा को वह भविष्य के फिलिस्तीन के रूप में देखता है. अगर इस में कोई भी भूभाग इजराइल को दिया जाता है तो इस के बदले बराबर के महत्त्व वाला भूभाग वह चाहता है. फिलिस्तीन गाजा में इजराइल की बसाई बस्तियों पर भी अपना कब्जा चाहता है. हालांकि, वह कुछ हिस्सों को इजराइल को देने पर राजी हो सकता है. शरणार्थियों के विषय में फिलिस्तीन का मानना है कि शरणार्थियों की घरवापसी के बिना उन पर हुए अत्याचार का समुचित न्याय उन्हें नहीं मिल पाएगा. वे इस के लिए किसी भी तरह के मुआवजे का विकल्प भी स्वीकार नहीं करते हैं. इजराइल के यहूदी राष्ट्र घोषित करने को वे गैरजरूरी मानते हैं.
अमेरिका का रुख
अमेरिका का कहना है कि 1967 से पहले की स्थिति पर बातचीत सही है. लेकिन वह जमीन के बदले जमीन का विकल्प खुला रखने के पक्ष में है. अमेरिका वेस्ट बैंक में इजराइली बस्तियों को अवैध मानता है. हालांकि वह हालात की नजाकत को समझ रहा है. अमेरिका शरणार्थियों की घरवापसी पर इजराइल के विरोध को देखते हुए मुआवजे के विकल्प पर गौर कर रहा है. जिन की घरवापसी संभव नहीं है, उन के विकास में मदद की योजना पर काम करने की जरूरत अमेरिका समझाता है.
अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश आज इजराइल के साथ खड़े हैं. इस युद्ध में ईसाई जमात भले ही आज यहूदियों के साथ खड़ी है लेकिन यही ईसाई जमात यहूदियों से बेइंतिहा नफरत भी करती है क्योंकि वह मानती है कि उन के पैगंबर ईसा मसीह को सूली पर चढ़वाने के लिए यहूदी कौम जिम्मेदार है. वहीं, दूसरी तरफ अरब देशों ने फिलिस्तीन के समर्थन में एकजुट होना शुरू कर दिया है. गाजा पट्टी के हमास लड़ाकों का इजराइल पर हमला और उस के बाद शुरू हुई लड़ाई धीरेधीरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है.