हमारा देश प्रारंभ से ही धर्मभीरु रहा है. जहां तक धर्म के सकारात्मक ऊर्जा का सवाल है उस से परहेज नहीं, मगर धर्म की नकारात्मकता और उस के पीछे के प्रोपगंडे के कारण जाने कितने लोग जिंदगीभर दर्द और यातना सहते रहते हैं और जब यह पीड़ा असहनीय हो जाती है तो लोग आत्महत्या कर लेते हैं.
ऐसा ही वाकेआ उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में घटित हुआ है जहां 2 सगी बहनों ने अंतर्राष्ट्रीय कह कर अपनी पीठ थपथपाने वाली ब्रह्माकुमारी संस्था के आश्रम में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली और जो चिट्ठी लिखी, उससे कई चेहरे धीरेधीरे बेनकाब हो रहे हैं.
चिट्ठी को पढ़कर यह प्रतीत होता है कि लंबे समय से आर्थिक और मानसिक शोषण से परेशान होकर दोनों बहनों ने आत्महत्या कर ली. पहलेपहल उन्हें और परिवार को सब्जबाग दिखाए गए मगर जब सचाई सामने आई तो दोनों बहनों के सामने संभवतया आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था.
दरअसल, यह आश्रम पद्धति वर्तमान में हमारे देश में एक ऐसा नासूर सा बन गई है. आश्रम यातना और शोषण का अड्डा हो गए हैं. मगर, धर्म के नाम पर सबकुछ चलता रहता है और शासनप्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता या नहीं कर पाता.
आइए आज आपको उक्त सच्चे घटनाक्रम से रूबरू कराते हैं. उत्तर प्रदेश में आगरा के जगनेर थाना क्षेत्र स्थित ब्रह्माकुमारी आश्रम में रहने वाली 2 सगी बहनों के आत्महत्या करने और वहीं मिले उन के सुसाइड नोट के बाद आश्रम सवालों के घेरे में आ गया है.
आश्रम में रहने वाली 2 सगी बहनों एकता (37 वर्ष) और शिखा (34) ने 10 नवंबर, 2023, दिन शुक्रवार को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उनके सुसाइड नोट ने आश्रम से जुड़ी एक महिला समेत 4 लोगों का कच्चाचिट्ठा खोला है.
बहनों ने आश्रम में पनपे इस आपराधिक रैकेट द्वारा आर्थिक गड़बड़झाले से लेकर अन्य अनैतिक गतिविधियों में संलग्न होने का खुलासा किया है. सुसाइड नोट में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ को संबोधित करते हुए पत्र में उन दोनों बहनों ने लिखा कि आरोपियों को आसाराम बापू की तरह ही आजीवन कारावास दिया जाए. अब सुसाइड नोट के तथ्यों के आधार पर पुलिस मामले की जांच कर रही है.
एकता और शिखा ने आत्महत्या से पहले 4 पेज का सुसाइड नोट लिखा. शिखा ने एक पेज में ही अपनी पूरी बात लिख दीजबकि एकता ने 3 पेज का सुसाइड नोट लिखा.शिखा ने लिखा,“ ‘हम दोनों बहनें एक वर्ष से परेशान थीं. हमारी मौत के लिए नीरज सिंघल, धौलपुर के ताराचंद, नीरज के पिता और ग्वालियर आश्रम में रहने वाली एक महिला जिम्मेदार हैं.”’ शिखा ने अपने सुसाइड नोट में मौत के जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग की है.
एकता ने सुसाइड नोट में पूरे मामले का परदाफाश किया है. इसमें उस ने लिखा है कि नीरज ने उनके साथ सैंटर में रहने का आश्वासन दिया था. सैंटर बनने के बाद उसने बात करना बंद कर दिया. एक साल से वे बहनें रोती रहीं, लेकिन उसने नहीं सुनी. उसका साथ उसके पिता, ग्वालियर आश्रम रहने वाली महिला और ताराचंद ने दिया. यही नहीं, 15 साल तक साथ रहने के बाद भी वह ग्वालियर वाली महिला से संबंध बनाता रहा. इन चारों ने उन के साथ गद्दारी की.
सुसाइड नोट में लिखा है कि उनके पिता ने 7 लाख रुपए प्लौट के लिए दिए थे. ये रुपए उन्होंने आश्रम से जुड़े व्यक्ति को दिए थे. इस घटना के बाद पुलिस अधिकारी सक्रिय हो गए हैं और पूछताछ करते हुए संदिग्धों की गिरफ्तारी की जा रही है. इस घटनाक्रम से यह सवाल एक बार फिर समाज के सामने है कि चाहे ब्रह्माकुमारी आश्रम हो या फिर बहुत सारे आश्रम, जो हमारे देश में बहुत ही तेजी से खुलते चले जा रहे हैं, सभी में भीतर ही भीतर क्या पकता रहता है.
शासन, प्रशासन और समाज का इन आंसुओं पर कोई अंकुश नहीं होने के कारण एकता और शिखा जैसी जाने कितनी लड़कियां, महिलाएं शोषण व अत्याचार की शिकार होती हैं. सिर्फ सफेद कपड़े या भगवा पहन लेने से ये लोग विशिष्ट हो जाते हैं और कानून से ऊपर होकर कानून व नैतिकता के खिलाफ काम करना अपना अधिकार समझ लेते हैं. आज समाज में जागरूकता की आवश्यकता है कि कोई भी आश्रम गैरजिम्मेदाराना व असामाजिक कार्य न कर पाए.