तर्क, तथ्य और सत्य जीवन के वे बिल्डिंग ब्लौक हैं, वे नींवें हैं जिन पर पक्के, ऊंचे, सुरक्षित मकान बन सकते हैं, जो एक पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि कई पीढि़यों के काम आ सकते हैं. इस तरह के पक्के निर्माण की जरूरत हर घर और हर परिवार को होती
है. लेकिन, अब ऊंची शिक्षा और इन्फौर्मेशन रिवोल्यूशन के बावजूद भारत के लोग कुछ ज्यादा ही, बाकी दुनिया के लोग भी, अब भ्रम से निर्मित दीवारों में कैद होने लगे हैं और खुद ही उन दीवारों की खिड़कियोंदरवाजों पर ताले लगा रहे हैं.
भारत के न्यूज चैनल देखें. ये कितना भ्रम फैलाते हैं, इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जिस एंकर ने 2016 में बड़ी विश्वसनीयता से कहा था कि 2,000 रुपए के नए नोट में एक चिप लगी है जो कालेधन को ढूंढ़ सकती है, वह अब भी किसी न किसी चैनल पर मौजूद है, जबकि 2,000 रुपए के तथाकथित चिप लगे सारे नोट सरकार द्वारा वापस लिए जा रहे हैं और 95-96 फीसदी नोट तो वापस पहुंच भी चुके हैं.
इस एंकर का बने रहना आम आदमी का अपने भ्रम की दुनिया में जिंदा रहने और उस पर खुद का ताला लगा रखने का सुबूत है. हर वह दर्शक जो इस एंकर का प्रोग्राम आज भी देख रहा है, अपने से बेईमानी कर रहा है, खुद को कैदखाने में धकेल रहा है.
अच्छे दिनों के वादे वाले नेताओं, रेप करने वाले लड़कों से गलतियां हो जाती हैं कहने वाले शासकों, बुलडोजरों को न्याय की सही प्रक्रिया कहने वालों को सही मान लेना या चुपचाप सह लेना तर्क, तथ्य और सत्य को नकारना है. ये वे लोग हैं जो लोगों की इच्छा पर हर रोज ताला लगाते हैं. जो उसे सहते हैं वे सदा ही असत्य और ?ाठ के साम्राज्य में रहेंगे.
चुनावों में तर्क, तथ्य और सत्य पर सब से ज्यादा बड़ा ताला लगाया जाता रहा है- भारत में ही नहीं सारी दुनिया में. सरकारें हमेशा ?ाठ बोल कर बनाई जाती हैं. हिटलर ने तकरीबन 12 साल राज किया और 5 करोड़़ लोग मरवा दिए जरमन लोगों से ?ाठ बोल कर कि वे खास आर्यन खून के लोग हैं. पूरा जरमनी उस समय हिटलर के साथ उठ खड़ा हुआ. वर्ष 1917 में पहले विश्व युद्ध में हारने के बाद जरमन लोगों की जो बुरी गत हुई उस ने उन की तर्क करने और सत्य ढूंढ़ने की शक्ति पर ताला लगा दिया. उन्होंने फ्रैंच, इंग्लिश, अमेरिकी, रूसी सब को अपना दुश्मन मान लिया. अपने बीच सदियों से रह रहे यहूदियों को जरमनी के सारे दुखों की जड़ मान लिया.
जो राजनीति में तर्क और तथ्य को नकारना सहते हैं, वे अपने घरों में भी ऐसा ही करते हैं. बच्चों को शुरू से ही चमत्कारों की कहानियां सुनाई जाती हैं जिन में न तर्क होता, न तथ्य और न ही सत्य. फिर भी कहा यह जाता है कि ये कहानियां सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर नहीं हैं, सिर्फ प्रतीक नहीं हैं, असल दुनिया का इतिहास हैं ये. वे कहते हैं कि ये चमत्कार वास्तव में हुए थे, ये ?ाठी कहानियां नहीं हैं. इस ज्ञान को ले कर बड़ा हुआ युवा कभी तर्क को नहीं खोजता. वह बड़ा हो कर असल में तर्क का मुकाबला कुतर्क से करता है.
फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब की सफलता बताती है कि भारत में ही नहीं, दुनियाभर में तर्क को लोगों द्वारा खुद तालों से बंद कर दिया गया है. एक कौम का धर्म प्रचारक कहता है-‘गौड विल नौट अलाऊ इविल पीपल टू डैस्ट्रौय हिज ओन चिल्ड्रन.’ इस में सत्य कहां है. इस प्रचारक को कैसे पता चला कि उस का गौड बुरे व्यक्ति को अपनी संतानें नष्ट करने से रोकेगा? क्या गौड केवल उसी प्रचारक से बात करता है, उस के सामने बैठे सैकड़ों अंधभक्तों से नहीं? इस प्रचारक का कहना कि शैतान किस्म के लोग आम निहत्थे, निर्दोषों को नष्ट नहीं करते.
यह कितना गलत है, यह साफ है क्योंकि सैकड़ों सालों से, जब से मेनलाइन धर्म हिंदू, ईसाई, इसलाम, बौद्ध, सिख धर्म पनपे हैं, गांवों के गांव, शहर के शहर जला दिए गए हैं इसलिए कि वे विधर्मी थे. हजारों मामलों में तो स्वधर्मी को भी नहीं बख्शा गया.
भारत में ईशनिंदा, भावनाओं को ठेस पहुंचाते तार्किक बात करने वालों को जेलों में बंद करने की मांग की जाती है और सैकड़ों ऐसे लोग जो तर्क, तथ्य की बात करते हैं, भारत सरकार की जेलों में सड़ रहे हैं.
एक धार्मिक चैनल में कहा गया, ‘गौघृत से करें वातावरण शुद्ध व पवित्र. अग्नि में गाय के घी से आहुति देने से उस का धुआं जहां तक फैलता है, वहां तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आणविक विकिरण (रेडिएशन ऐक्टिव रेंज) से पहले वाली स्थिति में आ जाता है. एक चम्मच गौमूत्र की आहुति देने से एक टन प्राणवायु (औक्सीजन) बनती है, जो अन्य किसी उपाय से नहीं बनती.’
इस तरह के मैसेज फौरवर्ड किए जाते हैं, सैकड़ों द्वारा. इस पर विश्वास किया जाता है जबकि यह जानना कठिन नहीं कि और्गेनिक घी को जलाओगे तो कार्बन डाइऔक्साइड ही पैदा होगी. इस तर्कहीनता, इस असत्य को मान कर लोग खुद के विवेक को हर रोज ताला लगा रहे हैं. वे कितने ही मामलों में इस प्रकार के ऊटपटांग तरीके जीवन में लागू करना शुरू कर देते हैं.
नई गाड़ी आती है तो उस की पूजाअर्चना की जाती है. विदेशी कंपनी से नया लड़ाकू जहाज खरीदा जाता है तो उस पर सतिया बनाया जाता है.
हर देश में जब भी बड़े से बड़े शिप को यार्ड से समुद्र में उतारा जाता है, धर्म के पादरी को बुलाया जाता है कि वे समुद्र देवता के प्रकोप से शिप को बचाने के लिए ईश्वर से कहें, प्रार्थना करें. यह सब क्या है : यह ताला ही है.
ये बीच वाले सब अपनी कीमत लेते हैं. पुजारियों के मंदिर बन रहे हैं. सुदूर अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में पहला हिंदू मंदिर 1906 में बना. आज वहां 500 से ज्यादा मंदिर हैं. हर शहर में गुरुद्वारे बन रहे हैं जिन में, भारत सरकार के अनुसार, खालिस्तानी भी छिप कर पनाह ले लेते है. मसजिदें काफिरों के देशों में भी बन रही हैं जहां से हर तरह के इविल, बुरे लोग भी अपनी करतूतों को अंजाम देते हैं.
लोग मरीजों को डाक्टरों के पास छोड़ने के बाद अपने ईष्ट के दरवाजे पर भागते हैं. आज देश के अस्पतालों में पूजाघर बन गए हैं. बड़े अस्पतालों ने भी हर धर्म के देवीदेवताओं के प्रतीकों के लिए जगह बना रखी है. मरीज को उस वैज्ञानिक इलाज की जरूरत होती है जो सिर्फ तर्क, तथ्य और सत्य पर आधारित होता है पर उसे ठीक करने के लिए पूजापाठ, दान शुरू हो जाता है. क्या यह सब तार्किक है?
पतिपत्नी के बीच भी असत्य घुस जाता है. अगर आप ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार चलें तो रविवार को सहवास नहीं करना चाहिए. जब उस पुराण को रचा गया था उस समय रविवार की अवधारणा भी नहीं थी पर आज के धर्म प्रचारक इसे कहने से डरते नहीं हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि लोगों ने अपनी तर्क, तथ्य और सत्य को ढूंढ़ने की शक्ति पर भी ताला लगा रखा है. वे बिना जाने, परखे, जांचें, इसे सही मान लेंगे.
यही ताला अब भी गैरधार्मिकों, चोरउचक्कों के लिए लाभदायक होता है जब कंप्यूटर फ्रौड होते हैं. सितंबर में ही पुणे में एक डिलीवरी एजेंट, जो ग्लोबल आईटी कंपनी में काम करता था, ‘हाई पेइंग पार्टटाइम जौब’ के स्कैंडल का शिकार हो गया और 35 लाख रुपए खो बैठा.
एक रिटायर्ड कर्नल मुंबई में ढाई करोड़ रुपए गंवा बैठा क्योंकि वह कंप्यूटर पर लिखे शब्दों को तर्क, तथ्य और सत्य से तोलने की जहमत नहीं कर रहा था. इन पर तो उस ने बचपन से ताला लगा रखा है जब उस से कहा गया था कि पूजा करो, पैसा आएगा, सफलता मिलेगी, लड़की मिलेगी, बच्चे होंगे.
पुणे की पुलिस ने एक औरत और उस की 9 साथिनों को पकड़ा जो शादी के इच्छुकों को लड़की दिलातीं, शादी करतीं और अगले दिन वह लड़की मालमत्ता ले कर भाग जाती. ये पुरुष जरा सी लच्छेदार बात पर हां बोल देते क्योंकि इन्हें तर्क, तथ्य और सत्य जानने की इच्छा ही नहीं होती. किसी भी बिचौलिए और होने वाली पत्नी की बैक चैक करना आज के तार्किक कंप्यूटर के कारण कठिन नहीं है, पर इन्हें तो उस ऊपर वाले की शक्ति पर भरोसा है जो सब सही करता है,
जो भक्तों के साथ कभी छल नहीं होने देता.
आज व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम इस तरह के संदेशों से भरे हैं. भक्ति रसायन इंस्टाग्राम हैंडल पर एक संदेश है- ‘विश्वास सच्चा है तो इंतजार अच्छा है.’ यह विश्वास, जिसे अंधविश्वास कहें, ही वह ताला है जो लोग तर्क, तथ्य व सत्य जानने की शक्ति पर लगाते हैं.
अगर आप को असल में आजादी चाहिए तो तर्क को पहचानो, सत्य को ढूंढ़ो, तथ्य और झठ का फर्क समझ.
यह सब को मिल कर करना होता है. फिलौसफर अल्बर्ट कैमस ने कहा था-‘स्वतंत्रता किसी सरकार या नेता का दिया गया उपहार नहीं है. यह वह संपत्ति है जिस के लिए हरेक को हर रोज सब के साथ मिल कर, सब को जोड़ कर लड़ना पड़ता है.’
तर्क, तथ्य और सत्य स्वतंत्रता की लड़ाई के सब से बड़े हथियार हैं. पर अफसोस है कि दुनियाभर में स्वतंत्रता के लिए छटपटाने वाले भी तर्क, तथ्य और सत्य पर नहीं बल्कि अंधविश्वास, आस्था, धर्म, रीतिरिवाजों पर धन, बल और समय न्योछावर करते रहते हैं.
आप आस्था पर विश्वास करते हैं भ्रम पर या तथ्य, तर्क व सत्य जानने की शक्ति पर विश्वास करते हैं?
महान दार्शनिक फ्रैडरिक नीत्शे ने कहा था, ‘कई बार लोग सत्य सुनना ही नहीं चाहते क्योंकि वे अपने भ्रम तोड़ना नहीं चाहते.’