सरकारी संस्थानों की सरकार द्वारा बिकवाली करना, फंड न दिया जाना ही सिर्फ इन की बरबादी का कारण नहीं, बरबादी का एक बड़ा कारण उच्च पदों पर ऐसे लोगों को बैठाना है जिन के अजीबोगरीब बयानों और तर्कों से संस्थान की छवि पर असर पड़ता है.

हाल ही में आईआईटी मंडी के डायरैक्टर लक्ष्मीधर बेहरा ने इस साल हिमाचल में आए भूस्खलन और बाढ़ पर अजीबोगरीब बयान दे कर अपने पद की गरिमा ही गिरा दी.

लक्ष्मीधर का कहना है कि चूंकि हिमांचल के लोग ज्यादा मांस खाते हैं इसलिए प्राकृतिक आपदा आई है. अब कोई बेहरा से पूछे कि ऐसे तो हिमाचल से ज्यादा भूस्खलन तेलंगाना में आ जाना चाहिए था, जहां की लगभग 99 फीसदी आबादी मांस खाती है, और मुजफ्फरपुर में तो लोग एक ही दिन में 10 करोड़ का मीट-मछली चाप जाते हैं. वहीं दिल्ली में तो 70 फीसदी आबादी मांस खाती है. आपदा के आने का यही पैमाना है तो अमेरिका में तो एक आदमी सालाना 120 किलो मांस खा जाता है. यानी, लगभग हर दिन 330 ग्राम मांस खा रहा है.

पिछले साल 2022 में लक्ष्मीधर बेहरा को आईआईटी मंडी का डायरैक्टर बनाया गया था. इस से पहले वे कानपुर आईआईटी में थे. वे मूल ओडिशा के रहने वाले हैं और खुद को कृष्ण भक्त कहते हैं. यूट्यूब पर इन के कुछ इंटरव्यू हैं, जहां पता चलता है कि ये भौतिक शिक्षा के साथ अध्यात्मिक शिक्षा भी देते हैं.

चश्मे के बीच में से नाक और माथे पर इस्कानी स्टाइल का चंदन लगाने वाले मिस्टर बेहरा के सिर पर बाल नहीं हैं. संस्कृति का गुणगान करते बेहरा हलके गेरुआ रंग की धोती पहने इस्कान आयोजनों में जाते रहते हैं, कभी कभी विदेशों में हो रहे आयोजनों में भी शिरकत करते हैं. बकौल बेहरा, वे चर्चों में भी जाते हैं जहां गीता पढ़ते हैं, अध्यात्मिक शिक्षा देते हैं.

डायरैक्टर बेहरा भगवदगीता को आर्ट औफ लिविंग मानते हैं. वे एक इंटरव्यू में वैदिक संस्कृति को जीवन में अप्लाई करने की बात करते हैं. वे बताते हैं कि हमें आश्रम भाव से जीवन जीना चाहिए, भौतिक चीजों से दूर रहना चाहिए.ये कुछकुछ उन्हीं लोगों में शरीक होते दिखाए देते हैं जो कहते हैं कि ज्ञान का सारा सार गीता में है, इसी को पढ़ लो काफी है.

प्रोफैसर बेहरा ने साल 1988-90 में राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, राऊरकेला से इंजीनियरिंग में एमएससी की पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने साल 1997 में आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की. वे विदेश में भी पढ़ा चुके हैं. ऐसे देखा जाए तो एक पढ़ेलिखे व्यक्ति से ऐसा सुनना हैरान करता है.

अब आते हैं उन के मूल रुझान पर, चूंकि इस्कान पंथ में मांस, लहसुन, प्याज खाना वर्जित माना जाता है, इस लिहाज से यदि वे इस्कान मान्यताओं के अनुसार यह कह रहे होते तो इसे एक आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता द्वारा दिया बयान मान दरकिनार कर दिया जाता, पर वे आईआईटी डायरैक्टर हैं और जिस शोध के आधार पर वे कह रहे हैं उसे जान लेना भी तो जरूरी है.

दरअसल, इस तरह का एक तयशुदा प्रचार काफी समय से किया जा रहा है कि मांसाहार के चलते दुनियाभर में आपदा जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं. इसे ‘आइन्स्टीन पैन वेव थ्योरी’ कहा जा रहा है. बड़ी चालाकी से इसे आइन्स्टीन के नाम से जोड़ दिया गया है, जबकि आइन्सटीन का इस थ्योरी से कोई लेनादेना ही नहीं, न ही आइन्स्टीन ने इस तरह का कोई पेपर लिखा.

यह थ्योरी कहती है, कत्लखानों में पशु काटे जाते हैं तो उनकी निरीहअव्यक्त कराह,छटपटाहट, तड़प वातावरण में तब तकरहती है जबतक उनकी चमड़ी,खून,मांस-मज्जा पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाती और बड़ी चालाकी से इसे जबरन ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत से जोड़ दिया गया है.डा. मदम मोहन ने अपनी पुस्तक ‘अ न्यू अप्रोच’ में गणितीय गणनाओं का उपयोग करके ‘पैन वेव’ को सिद्ध करने का छद्म प्रयास किया, जिस का कोई आधार नहीं. इसे क्षद्म विज्ञान यानी शूडो साइंस कहा जाए तो गलत न होगा, माने, कहीं का रोड़ा कहीं जोड़ा वाली बात.

अब इस तरह के तर्क में कोई दम नहीं, न ही किसी बड़े नामी वैज्ञानिक मंच पर कोई रिसर्च पेपर इस पर पेश किया गया है. इस माने कोई क्रैडिबिलिटी भी नहीं है इस की. यह पूरा दावा शब्जाल के अलावा और कुछ नहीं.

मिस्टर बेहरा का यदि मानना है कि मुर्गा-मीट-मच्छी खा लेने से हिमाचल में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं तो जाहिर हैउन्हेंआईआईटी मंडी के ही उन तमाम विशेषज्ञों की टीम, जो हिमाचल प्रदेश में हुई लैंड स्लाइड का जोरशोर से अध्ययन कर रही है और सैकड़ों जगहों से नमूने एकत्रित कर रही है, को रुकवा देना चाहिए.

क्या उन में यह हिम्मत है कि अपने ही आईआईटी के विशेषज्ञों की टीम को लैंड स्लाइड के कारणों पर शोध न करने को कहें, क्योंकि डायरैक्टर को तो लैंड स्लाइड के कारण पहले से ही मालूम है.क्या उन में इतनी भी हिम्मत है कि वे अपनी इस बकवास को रिसर्च पेपर में लिख सकें?बेशक नहीं,ऐसा कर के वे जगत में अपनी ही बचीखुची किरकिरी नहीं कराएंगे.

इस से पहले भीलक्ष्मीधर ने कहा था कि लोग भूख से नहीं मरते बल्कि ओवरईटिंग करने से मरते हैं. साइंस एंड टैकनोलौजी से जुड़े ऐसे लोगों का इस तरह के बयान देना धूर्तता तो दिखाता ही है, साथ में लोगों को अंधविश्वासी बनाने कीचालबाजी भी दिखाता है, क्योंकि इसी तरह के लोग जब यह कहते फिरते हैं कि उन्होंने अपने दोस्त के घर से भूत भगाया था तो लोग पाखंडी ही बनते हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...