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मैं फिर पूछती,”तुम इतनी सजतीसंवरती हो, एक टीचर होने के नाते यह अच्छा नहीं लगता। तुम यहां शिक्षा देने आती हो या मौडलिंग करने…” इस बात पर वह और तेज हंसती।

“जानती हैं, मैं जितना सजतीसंवरती हूं, अपनेआप को जीवन के करीब पाती हूं। अपना जीवन मुझे सजासंवरा लगता है।”

मैं रजनी को हमेशा देखती कि वह स्कूल के एक साइंस टीचर जिस का  नाम मनोज था, हमेशा घुलमिल कर बात किया करती थी। जब भी समय मिलता तो वह मनोज के पास ही होती। जब भी लंच करती तो अपना आधा लंच उस के लिए रख देती। रजनी की तरह मुझे मनोज भी पसंद नहीं था। इस का कारण था कि जब मैं नईनई आई थी तो वह हमेशा मेरे पीछे पड़ा रहता था, मजाक करता था। मुझे यह सब बिलकुल पसंद नहीं था। मैं ने उसे झिङक दिया था, तब से वह मुझ से दूर ही रहता। रजनी के विपरीत वह गोराचिट्टा था। उस की तुलना में वह बहुत सुंदर था।

एक दिन मुझ से रहा नहीं गया। मैं ने रजनी से पूछा,”मनोज से तुम्हारा क्या रिश्ता है?” रजनी ने मेरी तरफ देखा “रिश्ता… क्या मतलब…”

“क्यों तुम रिश्तों का अर्थ नहीं समझतीं?” मैं ने फिर पूछा।

“रिश्ते तो जीवन में ढेर सारे होते हैं, जो जीवन के भीतर कैद होते हैं। वह तो मेरा संपूर्ण जीवन ही है, फिर मैं कैसे बताऊं कि उस से मेरा क्या रिश्ता है,” रजनी ने गंभीरता से कहा।

“वह तुम्हें पसंद करता है?” मैं ने पूछा।

“पसंद?” वह चौंक गई फिर खुल कर बोली,”वह मुझे प्यार करता है।”

मैं हंसने लगी और व्यंग्य से उस से पूछा, “क्या तुम्हें ऐसा लगता है?”

“हमारे बीच लगने जैसा कुछ भी नहीं है। कुछ भी अप्रत्यक्ष नहीं है, सबकुछ  प्रत्यक्ष है। हम बहुत खुले हैं,” कहती हुई रजनी जीने से उतर कर अपना क्लास लेने चली गई।

स्कूल में वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई थी। हमलोग बहुत व्यस्त रहते। साथ ही काम के बोझ का टैंशन बना रहता। मन हमेशा थकाथका रहता। मगर रजनी वह तो सदाबहार थी। न कभी थकती न ही काम का उसे टैंशन  रहता। मैं परीक्षा की कौपी चेक कर रही थी। वह भी मेरी बगल में बैठी हुई गुनगुनाती हुई अपनी ड्राईंग की कौपियां चेक कर रही थी। अब उस के गुनगुनाने पर मैं उसे टोकती नहीं थी।

“यह अंकों की जोङतोङ आप को बोर नहीं करती?” मेरी गणित की कापियों को देख कर उस ने व्यंग्य से कहा।

“बिलकुल नहीं, ” मैं ने रूखे स्वर में कहा।

“आप झूठ बोल रही हैं, ” उस ने कहा तो मैं चौंक गई। “आप का चेहरा साफ बता रहा है कि आप थक गई हैं और थकान तभी होता है जब आदमी उस काम में बोरियत महसूस करता है।”

“तुम्हारे विचार गलत हैं। जब आदमी के पास अधिक काम हो तो वह थक जाता है। शरीर है कोई मशीन नहीं,” मैं ने कहा।

“पर मैं तो थकी नहीं हूं।”

“तुम्हारे पास काम ही क्या है,” मैं ने कहा तो वह हंसने लगी।

“अच्छा मीनाक्षी दी, आप को ड्राइंग में रुचि नहीं है?”

“उस में है क्या जो रुचि हो, आङेतिरछे रेखाओं के भीतर रंग भरे रहते हैं,” मैं ने कहा।

“यही तो कला है, आप बहुत रुखी हैं, आप क्या जानें कला को,” उस ने कहा।

“तुम ही बताओ कला क्या है?” मैं ने बात को टालने के लिए यों ही पूछ लिया।

“यह जीवन है मीनाक्षी दी, जिसे आप आड़ेतिरछे रेखाओं में रंग भरना कहती हैं, वही तो हमारा जीवन है। हमारा जीवन सादे कागज की तरह होता है, जिस का न कोई आकार होता है, न कोई रंग। हम इस जीवन को आकार देते हैं और उसे रंगों से भर देते हैं, मगर आप जैसे लोग इस जीवन को सादे कागज की तरह ही छोड़ देते हैं।”

मैं उस की बातों से तिलमिला गई, पर कहा कुछ नहीं। तभी मनोज सामने आ गया। वह भी बहुत थका सा लग रहा था। मुझे मौका मिल गया,”यह लो रजनी, तुम्हारा जीवन तो बिलकुल थक गया है, बेजान। बिलकुल सादे कागज की तरह।”

“तो इस में गलत क्या है? वे तो सादे कागज की तरह हैं ही, रंग तो मैं भरती हूं उन में, मेरे बिना वे अधूरे हैं।

हमारी बातों को सुन कर मनोज हंसने लगा और रजनी की बालों को स्पर्श करते हुए आगे बढ़ गया। रजनी थोड़ी देर के लिए उस स्पर्श से अभिभूत हो उठी।

स्कूल का ट्रिप पहाड़ों पर घूमने गया। मैं भी गई थी। सारा दिन हम बच्चों को साथ लिए घूमते रहते पर रजनी हमारे साथ नहीं रहती। वह और मनोज चुपचाप सब से आंखें बचा कर कहीं दूर निकल जाते। मेरी निगाहें हमेशा रजनी का पीछा करती थीं। कभीकभी मैं उस के उत्साह और खुशी को देख कर दंग रह जाती। वैसे रजनी मुझ से कुछ भी नहीं छिपाती, मनोज की सारी बातें वह मुझ से बताती थी।

आज हमारे लौटने का दिन था। होटल से निकलने की हम सब तैयारी कर रहे थे। स्टैशन जाने का समय हो चुका था पर रजनी गायब थी। मैं जानती थी कि वह कहां गई होगी। सभी उस का ही इंतजार कर रहे थे। रजनी मुझ से कह कर गई थी कि कोई पूछे तो कह देना कि कि वह कुछ खरीदारी करने निकली है। वह मुझ से इंतजार करने के लिए कह कर गई थी। जब बहुत देर हो गई तो मैं ने रजनी की कही हुई बात सब को बताई और सब को यह कह कर स्टेशन भेज दिया कि वह उस को लेकर आ जाएगी। सभी चले गए। मैं होटल में अकेली थी। बाहर बारिश की हलकी बूंदें पङ रही थीं।

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