मातापिता के सामने वसु के दुविधापूर्ण व्यवहार को भारतीय पुरुषों का डबल स्टैंडर्ड समझ कर झरना के मातापिता ने उसे उस से दूरी बरतने की सलाह दी थी. वे उस पर किसी भी प्रकार की जोरजबरदस्ती करने से बचते थे क्योंकि अंत में उन को अपनी बेटी का जीवन प्यारा था.

इतने सालों के बाद आज इन सब बातों को मन ही मन सोचते हुए कुछ चिंतित और लज्जित होते हुए वसु ने झरना से कहा, “मैं तुम्हारा दोषी हूं झरना. मैं ही कारण हूं तुम्हारे एकाकी जीवन का,” यह सुन कर झरना ने बिना विचलित हुए सधे स्वरों में उत्तर  दिया, “2 बाते हैं बसु- पहला, तुम्हारे कठोर निर्णय से मैं हिल जरूर गई थी पर तुम्हारे साथ संबंध को मैं ने कभी रिग्रेट नहीं किया. तुम्हारे साथ बिताए क्षण मेरे लिए मधुर स्मृतियां बन गए क्योंकि उन पलों को मैं ने तुम्हारे साथ भरपूर जिया था और उस में हम दोनों की स्वीकृति और समर्पण था, दूसरा, तुम ने हमारे विवाह के लिए कोशिश तो की पर तुम मेरे लिए उतनी दृढ़ता से अपने मातापिता के सामने खड़े न हो सके जिस के लिए मैं इस निष्ठुर पितृसत्तात्मक और धनलोलुप समाज को ज्यादा दोषी मानती हूं, जो आज भी तुम्हारे जैसे पुरुषों को जरूरत से ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं और जहां तक मेरे एकाकी जीवन का सवाल है तो मैं अपनी इच्छा से अकेली रह रही हूं।

"मेरा काम, मेरे स्टूडैंट्स, मेरा परिवार मुझे हौसला देते हैं। कम से कम मैं जो कर रही हूं उसे अपनी पूरी क्षमता से और संतोषपूर्ण ढंग से कर रही हूं. वसु, शायद मैं आज भी तुम से उतना ही प्रेम करती हूं जितना पहले करती थी पर अब उस प्रेम की स्वीकृति के लिए बारबार मैं खुद को न्यौछावर नहीं कर सकती. शुरुआती दिनों में मैं ने कभी तुम को कोसा, कभी खुद को और फिर मन आत्मग्लानि से भर गया तो मैं ने प्रण लिया कि मुझे अपनी उड़ान खुद ही भरनी है जिस के लिए मुझे किसी से पंख उधार लेने की जरूरत नहीं।”

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