हमारे ब्रह्मांड के साथसाथ सौरमंडल में भी धरती ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां जीवन संभव है.इसी धरती पर जीवन के लिए कई अनुकूल परिस्थितियों में अब धीरेधीरे बदलाव आ रहा है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि धरती का केंद्र धीरेधीरे कमजोर हो रहा है.

करीब 2वर्षों पहले खबर आई थी कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो रहा है. यह पिछली 2 शताब्दियों में अपनी 10 फीसदी तीव्रता खो चुका है. जीवन के लिए चुंबकीय क्षेत्र बहुत जरूरी है. यह हमें सूर्य से आने वाले रेडिएशन और अंतरिक्ष से आने वाले आवेशित कणों से बचाता है. इसके कमजोर पड़ने से उपग्रहों और अंतरिक्ष यान परेशानी में पड़ जाएंगे.

कमजोर चुंबकीय क्षेत्र का असर

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बीच पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो रहा है जिससे उपग्रहों में तकनीकी गड़बड़ी हो रही है. इसका क्षेत्र प्रतिवर्ष 20 किलोमीटर की दर से पश्चिम की ओर बढ़ रहा है. इस क्षेत्र में पिछले 50 वर्षों में एक बड़े हिस्से में काफी तेजी से कमी देखी गई है.

चुंबकीय क्षेत्र कमजोर होने से ब्रह्मांड से आवेशित कण ओजोन परत को चीरते हुए पृथ्वी पर आ जाएंगे और यह वह ऊंचाई है जहां सैटेलाइट परिक्रमा करते रहते हैं.ऐसा होने से इसमें तकनीकी गड़बड़ी होने का खतरा बढ़ जाएगा. पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र जीवन के लिए एक रक्षाकवच की तरह होता है.

अब एक और नया खतरा पृथ्वी के केंद्र पर मंडरा रहा है. दरअसल इनर कोर के कारण ही धरती की मैग्नेटिक फील्ड बनी हुई है. यदि धरती का कोर ही खत्म हो जाएगा तो उसकी गुरुत्व शक्ति तो प्रभावित होगी ही, साथ ही, वायुमंडल भी खत्म हो जाएगा. धरती का केंद्र यदि कमजोर पड़ेगा तो लोगों का जीवन खत्म हो जाएगा.

धरती का दिल यानी गरम इनर कोर लगातार घूम रहा है जिसकी वजह से हम चुंबकीय और गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव करते हैं. ऐसा पृथ्वी केंद्र के एक दिशा में घूमने की वजह से होता है. लेकिन, वैज्ञानिकों का कहना है कि अब यह केंद्र अपने घुमाव की दिशा बदलने की तैयारी में है जिससे धरती के दिल की धड़कन बढ़ जाएगी यानी भूकंप की संभावना बढ़ जाएगी.

घूमता केंद्र धड़कता दिल

धरती के केंद्र का घुमाव हमारी स्थिरता को तय करता है. अगर इसके घुमाव में बदलाव होता है तो पृथ्वी की सतह भी खतरे में आ जाएगी. इस तरह के घुमाव में करीब 70 साल बाद बदलाव आता है जो अब होने वाला है.

धरती का केंद्र अपने घुमाव की दिशा बदलने की तैयारी में है जिसका असर इस की ऊपरी सतह पर पड़ सकता है. इसके लगभग 5 हजार किलोमीटर नीचे भी ठोस आंतरिक कोर है. पृथ्वी का यह ठोस आंतरिक कोर खुद स्वतंत्र रूप से घूमता है जो केवल तरल धातुओं से घिरा हुआ है.

इस ठोस आंतरिक कोर के बारे में हम भूकंपीय तरंगों की तीव्रता मापने से जानते हैं. ये तरंगें परमाणु विस्फोटों से भी उत्पन्न हो सकती हैं जो पृथ्वी के केंद्र को हिला सकती हैं.

पृथ्वी के इस अंदरूनी हिस्से की गति पर वैज्ञानिकों ने एक नया शोध 23 जनवरी को नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित किया है जिसमें पिछले 6 दशकों में आए भूकंपों और उन से उत्पन्न भूकंपीय तरंगों का विश्लेषण किया गया है.उससे पता चलता है कि 2009 के आसपास पृथ्वी के आंतरिक कोर की गति रुक गई और फिर यह विपरीत दिशा में चलने लग गई.

यह कोर एक गोल झूले की तरह आगेपीछे लगातार घूमती रहती है. कोर के एक पूरे चक्र में करीब 7 दशक लग जाते हैं यानी इसकी दिशा हर 35 साल में बदल जाती है. पृथ्वी के ठोस कोर ने पहली बार 1970 के दशक में दिशा बदली थी और अब इसका अगला चक्र 2040 के दशक के मध्य में शुरू होगा जो पृथ्वी पर दिन की लंबाई को घटाबढ़ा सकता है.

पृथ्वी केंद्र की अनियमित चाल

पृथ्वी के केंद्र को हम आसानी से देख नहीं सकते. इसके सैंपल लेना भी मुश्किल है लेकिन भूकंपों से निकलने वाली तरंगें और शीत युद्ध के दौरान किए गए परमाणु परीक्षण पृथ्वी के केंद्र को प्रभावित कर रहे हैं. कहीं न कहीं इसका असर अब पृथ्वी पर दिखाई देने लगा है.

धरती की उम्र के मुताबिक इस केंद्र को ठंडा होकर क्रिस्टल होने की घटना बहुत पुरानी नहीं है. खगोलविद डा.सोन्ग ने 90 के दशक में कहा था कि धरती का केंद्र अलगअलग गति में घूम रहा है, जिसका असर पृथ्वी की सतह पर पड़ेगा. इसके बाद से दुनिया के कई वैज्ञानिकों के कान खड़े हो गए और वे इस बात के सुबूत जुटाने में लग गए कि आखिर केंद्र अलगअलग गति में क्यों घूम रहा है और अगर उसकी दिशा बदली, तो क्या होगा.

इसके पीछे की वजह है इनर कोर के ऊपर मौजूद आउटर कोर से बनने वाला दबाव. तरल बाहरी कोर ठोस लोहे को अपनी तरफ खींचती रहती है, इससे निकलने वाली तरंगें बाहरी आवरण को हिला देती हैं, जिससे ताकतवर गुरुत्वाकर्षण पैदा होता है. यही शक्ति इनर कोर के घुमाव को धीमा या तेज करती है.

बाहरी और आंतरिक कोर की लड़ाई के चलते ही हर 70 साल में केंद्र के घुमाव की दिशा में बदलाव आ रहा है जो एक नए खतरे का संकेत है. इस हिसाब से आंतरिक कोर 2040 के आसपास फिर से पूर्व की ओर घूमना शुरू करेगा जो अभी पश्चिम दिशा में घूम रहा है.

हालांकि पूर्व और पश्चिम दिशा के बीच होने वाले घुमाव में रुकावट और बदलाव आज से 17 साल बाद आएगा, फिर भी इसे हलके में नहीं लिया जा सकता. इससे कोई प्रलय तो नहीं आएगी, फिर भी धरती पर हलके भूकंप के झटके शुरू हो सकते हैं जिन की तीव्रता आगे बढ़ भी सकती है.

इतना ही नहीं, इस वजह से दिन के समय में भी कुछ सैकंडों का अंतर आ सकता है. इसके लिए विभिन्न प्रकार के परमाणु परीक्षण भी जिम्मेदार होंगे. पृथ्वी से जुड़े कई रहस्य और सवाल हैं, जिनके जवाब आज भी वैज्ञानिक खोज रहे हैं.

पृथ्वी घूमना बंद कर दे तो

पृथ्वी का भीतरी भाग गरम और ठोस लोहे से बना है. इसके कारण पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र और गुरुत्वाकर्षण बल पैदा होता है. ऐसा पृथ्वी के केंद्र में एक ही दिशा में घूमने के कारण होता हैं. ऐसे में यदि पृथ्वी कुछ समय के लिए रुक जाए या वह विपरीत दिशा में घूमने लगे तो क्या होगा, इसका अनुमान लगाना असंभव है.

पृथ्वी अपने अक्ष पर लगभग 1,600किलोमीटर या कहें 1,000 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से घूमती रहती है. हालांकि, इस स्पीड का एहसास हमें नहीं होता क्योंकि हम भी इसके साथ ही घूमते रहते हैं. पृथ्वी के घूमने और रुकने को लेकर कई शोध हुए हैं, जिन में अलगअलग बातें सामने निकल कर आई हैं

पृथ्वी अगर अचानक घूमना बंद कर दे तो पृथ्वी के अधिकांश हिस्सों में प्रलय आ जाएगी. इसके रुक जाने से पृथ्वी के आधे हिस्से को लगातार सूर्य की गरमी का सामना करना पड़ेगा और आधा हिस्सा अंतरिक्ष की तरह ठंड का सामना करेगा. इससे पृथ्वी के उस हिस्से पर बहुत अधिक गरमी हो जाएगी जो सूरज की ओर होगा और बाकी के हिस्से पर हमेशा के लिए अंधेरा और ठंड हो जाएगी.इसका असर सभी जीवजंतुओं पर तो होगा ही, साथ ही, समुद्र का पानी पृथ्वी के अधिकांश हिस्से को डुबो देगा.

आज पृथ्वी पर हो रहे युद्ध कहीं न कहीं इसके वास्तविक वातावरण को बदल रहे हैं. ऐसे में अगर हम लड़ते रहें तो एक और नए खतरे का द्वार खुल जाएगा. आज सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि धरती के केंद्र में हो रहे बदलावों से मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, क्या इस से धरती पर कोई बड़ी आपदा आएगी?

आमतौर पर धरती की चुंबकीय शक्ति 2.50 लाख साल में बदलती है जो अभी दूर की बात है. वैज्ञानिकों की मानें तो पृथ्वी के अंत का अगला चरण अब से 5 से 7 अरब वर्षों में दिखाई देगा जब सूर्य एक लाल विशालकाय हीलियम के गोले में बदल जाएगा जिसकी गरमी पृथ्वी की सतह को पूरी तरह से नष्ट कर देगी. इसकी झलक अभी से दिखने लगी है.

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